tag:blogger.com,1999:blog-3347952622162097882.post5149713233335999003..comments2024-02-22T16:01:17.360+05:30Comments on नया जमाना: हिन्दी के कुंभकर्ण बुद्धिजीवी जागेंनया जमानाhttp://www.blogger.com/profile/07265292209310274504noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-3347952622162097882.post-64091026183763689802009-11-05T08:01:54.392+05:302009-11-05T08:01:54.392+05:30कुंभकर्ण की नींद में खलल डालने के लिए धन्यवाद।
ऩई ...कुंभकर्ण की नींद में खलल डालने के लिए धन्यवाद।<br />ऩई तकनीक को हिंदी लेखकों ने समझना जरुरी है। पुणे विश्वविद्यालय में हिंदी अध्ययन मंडल का नामित सदस्य होने पर मैंने भी सूचना प्रौद्योगिकी के बारे पाठ शामिल करने का अनुरोध किया था तव भी विरोध हुआ था। बाद में यूजीसी की सूचना के अनुसार अब विश्वविद्यालय को सूचना प्रौद्योगिकी तथा हिंदी के बारे में पाठ शामिल करने पड़ रहे है।Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07853590707407972601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3347952622162097882.post-28039051058038967762009-11-04T23:46:49.674+05:302009-11-04T23:46:49.674+05:30मुझे याद नहीं, वर्षों पहले हरिशंकर परसाई या शरद जो...मुझे याद नहीं, वर्षों पहले हरिशंकर परसाई या शरद जोशी का एक व्यंग्य पढा था, जिसमे रचनाकार बखूबी कहते हैं कि पठन पाठन की माध्यम अंग्रेजी इसलिए है कि अध्यापकों ने अपने नोट्स अंग्रेजी में बनाये हैं, और वे मेहनत करना नहीं जानते, बस उसी को साल दर साल दुहराते रहते हैं | अगर भारत की शिक्षा व्यवस्था देखनी हो तो बहुत हद तक ये बातें सच भी है| जो इमानदार होता है, उसे तो विद्वान भगा देते हैं, नहीं, तो सबको पता चल जायेगा कि कौन कितना नंगा है | घूम फिर कर वही किताबें, वही सिलेबस, और वही रटे रटाये डायलोग, और वही सवाल | यह हिंदी ही नहीं, बहुत हद तक भारतीय शिक्षण व्यवस्था पर लिखा गया एक सुन्दर लेख है | <br /><br />जिसे भी स्थाई नौकरी मिलती है, वह छाती ठोंक कर कहता है, "मुझे जितना पढ़ना था, पढ़ लिया और अब मुझे अमुक की टांग खींचनी है, अमुक से इस बात का बदला लेना है|" और "प्रोफेसर" साहब विश्वविद्यालय की दलगत राजनीती में शामिल हो जाते हैं|<br /><br />उनमे से कई भ्रष्ट हो जाते हैं, कई प्रांतवाद, क्षेत्रवाद, या वैचारिक (मार्क्सवाद, कांग्रेस, या भाजपाई ) राजनीती में शामिल हो जाते हैं, और अपनी कक्षाओं में १५ मिनट देर से आना, १० मिनट पढाना, और १५ मिनट पहले जाना अपनी आदत में शामिल कर लेते हैं, क्योंकि, "उनके पास आज बहुत काम है, फलां मीटिंग है, स्टाफ काउंसिल में जाना है, आदि, इत्यादि |" तो जब वे इतना "काम" करेंगे तो नयी तकनीक के लिए उनके पास समय कहाँ से होगा, क्योंकि उसमे तो पढना पड़ेगा, सीखना पड़ेगा, जिसकी आदत एम्, ए के दौरान छूट गयी थी | नेट के लिए किसी ने मदद कर दी, या सवाल बता दिए या सच में पढ़ लिया | तो, बीच में NET को ही गैर वाजिब कर दिया गया था | <br /><br />बस इसलिए हम कहीं भी साथ काम नहीं कर सकते, नोबेल वैगरह तो बहुत दूर की बाते हैं |Sachihttps://www.blogger.com/profile/04099227991727297022noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3347952622162097882.post-36952867903377098852009-11-04T20:48:03.389+05:302009-11-04T20:48:03.389+05:30अत्यंत सामयिक महत्त्व और उद्बोधन पूर्ण आलेख| अपने ...अत्यंत सामयिक महत्त्व और उद्बोधन पूर्ण आलेख| अपने याहू समूह हिन्दी-भारत <br />http://groups.yahoo.com/group/HINDI-BHARAT/<br />तथा कई मित्रों को भेज रही हूँ| .. कि सचेत हो जाना चाहिए अब तो ...Kavita Vachaknaveehttps://www.blogger.com/profile/02037762229926074760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3347952622162097882.post-42501221886959350772009-11-04T14:14:21.848+05:302009-11-04T14:14:21.848+05:30सही है। नयी तकनीक हिन्दी को नया जीवन दे सकती है। इ...सही है। नयी तकनीक हिन्दी को नया जीवन दे सकती है। इसलिये सभी हिन्दी प्रेमियों को उपलब्ध भाषा-प्रद्योगिकी का भरपूर उपयोग करना चाहिये और जो तकनीक अपनी भाषा के लिये उपलब्ध नहीं है उसकी माँग की जानी चाहिये या खुद तैयार करनी चाहिये (यदि करना सम्भव हो)।अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-3347952622162097882.post-2450178360081725572009-11-04T13:19:58.171+05:302009-11-04T13:19:58.171+05:30बहुत सारगर्भित जानकारी पूर्ण पोस्ट...शुक्रिया.
नीर...बहुत सारगर्भित जानकारी पूर्ण पोस्ट...शुक्रिया.<br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.com