tag:blogger.com,1999:blog-3347952622162097882.post5840321418408876412..comments2024-02-22T16:01:17.360+05:30Comments on नया जमाना: कबीर की आंखें और आलोचना की रपटननया जमानाhttp://www.blogger.com/profile/07265292209310274504noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-3347952622162097882.post-48059853197992723322011-04-28T03:52:48.256+05:302011-04-28T03:52:48.256+05:30"भक्ति आंदोलन के अधिकतर कवियों को भक्त कवि कह..."भक्ति आंदोलन के अधिकतर कवियों को भक्त कवि कहा जाता है वे कवि हैं, भक्तकवि नहीं हैं। भक्त का संसार अलग है, कवि का संसार अलग है। ये दार्शनिक नहीं हैं, कवि हैं। भक्त भगवान की सुनता है कवि भगवान की नहीं सुनता। उपदेशक भगवान की सुनता है कवि नहीं सुनता। भक्ति आंदोलन के कवियों ने कानों से संस्कृति को नहीं सुना था आंखों से देखा था।<br /> संस्कृति को सुनना और देखना इन दोनों में बुनियादी अंतर होता है। संस्कृति को कानों से सुनने का अर्थ अनुकरण करना और संस्कृति को आंखों से देखने का अर्थ है अपने को अलग करना,पृथक करना। भक्ति आंदोलन के कवियों के द्वारा संस्कृति,जातिप्रथा,भेदभाव आदि बातों की जो काव्यालोचना मिलती है उसका कारण यह नहीं है उनके पास आधुनिकभावबोध था,बल्कि उसका प्रधान कारण है इन कवियों का संस्कृति को देखना।"<br />भक्त, कवि, दार्शनिक, उपदेशक, श्रोता और दर्शक के संबंध और अंतरविरोध को आपने बखूबी व्याख्यायित किया है। आपकी समीक्षा पुनः पुस्तक की ओर बढने को प्रेरित करती है। सो अब तो पुस्तक पुनः पढनी ही होगी के लिए। सादर।PUKHRAJ JANGID पुखराज जाँगिडhttps://www.blogger.com/profile/12780240720269882294noreply@blogger.com