सोमवार, 27 अगस्त 2012

अवसरवादी राजनीति के जाल में फंसा बोडो का जातीय संकट

जातीय संघर्ष हो या साम्प्रदायिक दंगे  भारत के अधिकतर नेता जातीय समस्या को कानून-व्यवस्था की समस्या के रूप में देखते हैं। भारत में जातीय और साम्प्रदायिक दंगे जब भी होते हैं तो अवसरवादी राजनीति और प्रशासनिक निकम्मापन खुलकर सामने आ जाता है।बोडो इलाके में भी इनदिनों यही हो रहा है।राज्य प्रशासन इसे कानून-व्यवस्था की समस्या के रूप में ही देख रहा है ,जो गलत है।

विगत दो माह से बोडोलैंड के इलाके में तनाव है। बोडो समुदाय के अतिवादियों ने गैर बोडो समुदाय के लोगों पर सामूहिक हमले किए हैं। इन हमलों में 80 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। सैंकड़ों लोग घायल हुए हैं और पांच लाख स्थानीय बाशिंदे विस्थापित हुए हैं। हाल ही में बोडो हिंसाचार और विस्थापन के आरोप में बोडो पीपुल्स फ्रंट के विधायक प्रदीप कुमार ब्रह्मा को असम पुलिस ने गिरफ्तार किया है। ब्रह्मा की गिरफ्तारी के बाद इस इलाके में तनाव बढ़ गया है। गिरफ्तारी के तत्काल बाद ही उनके समर्थकों ने रेल यातायात ठप्प करके असम को बाकी देश से काट दिया और अंत में मजबूर होकर सेना को स्थिति संभालने के लिए कर्फ्यू लगाना पड़ा।

बोडो नेता प्रदीप कुमार ब्रह्मा के खिलाफ पुलिस थाने में अनेक केस दर्ज हैं और उनका दल कांग्रेस के साठ सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल है। विलक्षण बात यह है कि प्रदीप ब्रह्मा का बोडो पीपुल्स फ्रंट एक तरफ कांग्रेस सरकार के सत्तारूढ़ मोर्चे में शामिल है वहीं दूसरी ओर उसे भाजपा का भी समर्थन हासिल है। जिस समय दिसपुर के अधिकारियों ने प्रदीप ब्रह्मा को गिरफ्तार किया तो उनसे यही कहा गया कि वे बोडो पीपुल्स फ्रंट के लोगों के प्रति नरमी बरतें क्योंकि कांग्रेस को डर है कि उनकी राज्य सरकार बोडो विधायकों के समर्थन वापस ले लेने से गिर सकती है और यही वह बुनियादी वजह है कि बोडो अतिवादियों ने जब हमले आरंभ किए तो राज्य प्रशासन मूक दर्शक बना रहा और बोडो हिंसाचार की जांच का काम सीबीआई के हवाले कर दिया है। अब प्रदीप कुमार ब्रह्मा के खिलाफ जो केस दर्ज हैं उनको भी सीबीआई को सौंपने की तैयारियां चल रही हैं। सीबीआई के हवाले जातीय दंगों की जांच सौंपकर राज्य प्रशासन नेसाफ कर दिया है कि वह इन दंगों की जांच करने की स्थिति में नहीं है। उल्लेखनीय है प्रदीप ब्रह्मा के खिलाफ सात आपराधिक मामले कोकराझार के विभिन्न थानों में दर्ज कराए गए हैं जिनमें चश्मदीद गवाहों ने बयान तक दिए हैं। बोडो अतिवादियों के हिंसाचार और लाखों लोगों के पलायन को लेकर ज्योंही बोडो विधायक प्रदीप ब्रह्मा को गिरफ्तार किया गया भाजपा ने तत्काल उसकी गिरफ्तारी की निंदा की। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता तरुण विजय ने ब्रह्मा की गिरफ्तारी को लोकतंत्रविरोधी और बदले की कार्रवाई कहा। बोडो इलाके में 80 से ज्यादा निर्दोष लोगों की हत्या करने और पांचलाख से ज्यादा लोगों को शरणार्थी बनाने वाले राजनीतिक संगठन के नेता को भाजपा प्रवक्ता तरुण विजय ने राष्ट्रभक्त भारतीय नागरिक कहा है। भाजपा का मानना है कि प्रदीप ब्रह्मा राष्ट्रभक्त भारतीय है जो एक तरफ बंगलादेशी घुसपैठियों और दूसरी ओर पुलिस के दमनतंत्र का शिकार बना है।

पुलिस सूत्रों के अनुसार प्रदीप कुमार ब्रह्मा को 22 अगस्त को कोकराझार जिले के फकीरग्राम और दोतमा पुलिस थाने में दरिज केस नं.27/2012U/S ,120(बी)/147/ 148/ 149/ 436/426/379/506 की धाराओं में दर्ज मामलों के संदर्भ में आधी रात को उनके घर से गिरफ्तार किया गया। कोकराझार के चीफ जुडिशियल मजिस्ट्रेट सी.चतुर्वेदी के सामने 23अगस्त को जब ब्रह्मा की जमानत याचिका पेश की गई तो चीफ जुडीशियल मजिस्ट्रेट ने उसे खारिज करके ब्रह्मा को 14दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया।

दूसरी ओर ब्रह्मा के समर्थकों ने 4-5 घंटे तक असम के विभिन्न इलाकों का समूचा रेल यातायत ठप्प कर दिया , खासकर कोकराझार में जगह जगह प्रतिवाद किया और सड़कों और रेलमार्ग को ठप्प कर दिया। इससे असम का पूरे देश से संपर्क कटा रहा। विभिन्न स्थानों पर सभी ट्रेन 5-6 घंटे तक फंसी रहीं,बाद में ब्रह्मा के समर्थकों ने कोकराझार इलाके में अनिश्चितकालीन बंद की घोषणा कर दी।इस समय कोकराझार में एक तरफ कर्फ्यू है दूसरी ओर बोडो पीपुल्स फ्रंट का अनिश्चितकालीन बंद चल रहा है।

एक अन्य घटनाक्रम में विगत शुक्रवार को गोहाटी में प्रेस को सम्बोधित करते हुए दि नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन ने नार्थ ईस्ट के छात्रों और पेशेवर लोगों के देश के बाकी हिस्सों से हाल ही में हुए पलायन के खिलाफ आगामी 6सितम्बर को असम को छोड़कर समूचे नार्थ ईस्ट में एकदिन के बंद का आह्वान किया है। उल्लेखनीय है कि यह संगठन उत्तर-पूर्व के राज्यों में छात्रों का संयुक्त मंच है। इसमें विभिन्न राज्यों में सक्रिय छात्र संगठन शामिल हैं।इनमें अधिकांश अतिवादी राजनीति करने वाले संगठन हैं। इस संगठन ने मांग की है कोकराझार में हाल की हिंसा के शिकार विस्थापितों में सिर्फ उन्हीं विस्थापितों को शरणार्थी शिविरों में मदद दी जाए जो माइग्रेट करके भारत नहीं आए हैं। माइग्रेंट पीडितों को कोई मदद न की जाय। दूसरी ओर बोडो पीपुल्स फ्रंट के नेता और बोडो आदिवासी परिषद के अध्यक्ष हग्रामा मोहीलरी ने एक बयान जारी करके सारी स्थिति को और भी जटिल बना दिया है। उन्होंने मांग की है कि हाल के बोडो हिंसाचार के कारण विस्थापित लोगों में उन्हीं लोगों का पुनर्वास किया जाय जिनके नाम 1971 की मतदाता सूची में हैं और जो इसका प्रमाण दे सकें। जिनके पास प्रमाण नहीं है उनका पुनर्वास न किया जाय। यदि इसके बिना विस्थापितों का पुर्नवास किया जायगा तो बोडो आदिवासी परिषद इसका विरोध करेगी। मोहीलरी ने यह भी कहा कि असम में कांग्रेस-बोडो पीपुल्स फ्रंट का गठबंधन बना रहेगा।मोहीलरी ने मांग की है कि भारत-बंगलादेश सीमा को पूरी तरह सील किया जाय और जो वैध नागरिक हैं सिर्फ उनकी ही पुनर्वास व्यवस्था की जाय।

आगामी 26अगस्त को बोडो पीपुल्स फ्रंट का एक प्रतिनिधिमंडल केन्द्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे से मिलने दिल्ली जा रहा है और उनको ज्ञापन देकर बोडो इलाके की ताजा स्थिति से अवगत कराएगा। अब सबकी निगाहें शिंदे और बोडो नेताओं की आगामी सप्ताह होने वाली मीटिंग पर लगी हैं। कांग्रेस के नेता चाहते हैं कि बोडो इलाके में स्थिति सामान्य बनाने के लिए कोई बीच का रास्ता निकल आए और विस्थापितों को पुनःउनके घरों में ले जाकर बसा दिया जाय और बोडो नेताओं के आक्रोश को भी ठंड़ा कर दिया जाय।यही वजह है कि राज्य और केन्द्र के किसी भी बड़े कांग्रेसी नेता ने हाल की बोडो पीपुल्स फ्रंट की हिंसात्मक कार्रवाईयों की निंदा में एक शब्द तक नहीं कहा और भाजपा ने तो सीधे इस संगठन को समर्थन दिया है। ऐसी स्थिति में जल्द ही कोई समाधान निकलता नजर नहीं आ रहा।

सोमवार, 20 अगस्त 2012

फेसबुक और उत्तर-पूर्व के लोगों का पलायन


               
इंटरनेट पर अफवाह लिखने से सामाजिक तनाव पैदा नहीं होता ,सामाजिक तनाव और सामजिक विद्वेष तो पहले से मन में और समाज में मौजूद है इसको इंटरनेट, एसएमएस,वीडियो,एमएमएस की अफवाहों और बोडो जातीय हिंसाचार ने हवा दी है।
भारतीय जीवन में बैठी जातीय दुर्भावनाएं और जातीय घृणा उत्तर-पूर्व के लोगों के पलायन की जड है । मुसलमानों और उत्तर-पूर्व के लोगों के प्रति हमारे समाज में परायाभाव पहले से ही है।यह परायापन विभिन्न माध्यमों के जरिए पोषित होता रहा है। उसकी विस्फोटक अभिव्यक्ति है हाल का पलायन । अफवाहें पलायन का गौण कारण है मूल कारण है सामाजिक विभाजन, सामाजिक घृणा की विचारधाराओं का विभिन्न माध्यमों के जरिए हमारे बीच में किया जा रहा प्रचार। इसका सचेत रूप से प्रतिवाद किया जाना चाहिए।
हाल में अफवाह फैलाने में नेट पर सक्रिय 80बेवसाइट के कंटेंट को अपराधजनक पाया गया है और उनको ब्लॉक करने के आदेश दिए गए हैं। इस समूचे घटनाक्रम से भारत सरकार सबक ले और प्रत्येक बेवसाइट की छानबीन और निगरानी करे,यदि ऐसा नहीं करते तो दोबारा इंटरनेट का शरारती तत्व इस्तेमाल करने से बाज नहीं आएंगे। पीटीआई के अनुसार -
Government is learnt to have ordered blocking of 80 more Internet pages and user-accounts on Sunday on social networking sites including Facebook, Google and Twitter to avoid panic among people of northeastern region living across India.
All these sites were found hosting inflammatory and hateful content, spreading rumours and inciting violence targeting the people from north-east, government sources said.
Yesterday, the government had issued instructions to block 76 Internet sites, which included web-pages and some websites, and had said that bulk of the rumours that triggered panic among people of North-eastern states in Karnataka, Tamil Nadu and Maharashtra were sourced from Pakistan.
“We have found inflammatory and objectionable contents on some pages of Facebook and Google. Some user-accounts at Twitter were also found spreading similar contents. All together, around 80 such pages and accounts have been ordered to be blocked on Sunday,” the sources said.
The rumours about a possible attacks have led to mass exodus of people from northeast from many places including Bangalore, Chennai, Mumbai and Pune.
Home Minister Sushil Kumar Shinde on Sunday asked his Pakistani counterpart Rehman Malik to crackdown on elements based in that country that were using social media networking sites to whip up communal sentiments and spreading hate in India.
According to a report prepared by the Home Ministry, a Pakistan-based hardline group is suspected to have been involved in doctoring images and spreading them across social networking sites to create panic among people of northeastern region living across India.
   पाक के षड़यंत्रकारियों के द्वारा भेजे गए विभाजनकारी एसएमएस ,एमएमएस और नेट वीडियो के द्वारा पैदा हुए बबाल से डरकर संसद में और उसके बाहर अनेक लोग समूचे सोशल साइटस पर पाबंदी लगाने की मांग करने लगे हैं। यह मांग सही नहीं है। असल में ,इंटरनेट के 4 बड़े फायदे हैं,पहला, इसने सूचना का लोकतांत्रिकीकरण किया है। यह सस्ता और मुफ्त मीडियम है। दूसरा, इंटरनेट पर बार बार निजी और सार्वजनिक का भेद नष्ट होता है। तीसरा,यह सार्वजनिक स्तर पर व्यक्ति की इमेज को नए आयाम में ले जाकर खोलता है। चौथा ,यहां पर बिना चुने प्रतिनिधि हर समय मौजूद रहते हैं। इस तरह के लोगों की संप्रेषण क्षमता बहुत ज्यादा होती है। वे नेट पर कभी कभी प्रतीकपुरूष बन जाते हैं। जैसे अन्ना हजारे ।
 भारत में फे,बुक.यू-ट्यूब आदि नए माध्यम हैं और नेट पर षडयंत्रकारियों और अज्ञानिययों का तांता लगा है,ये लोग इस माध्यम के उपयोग-दुरूपयोग को लेकर विभ्रम और धूर्तता के शिकार है। षडयंत्रकारी  धूर्तता से काम ले रहे हैं।जबकि अज्ञानी लोग भोलेपन के मारे हैं। सच यह है कि  मुसलमानों के बर्मा में उत्पीड़न के फेक वीडियो  पाक से नेट पर भेजे गए और उसका हमारे मुसलमानों के मन पर बुरा असर पड़ा।मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि इस तरह के भडकाऊ वीडियो पाक स्थित आतंकी गिरोहों और आईएसआई की भारतीय उपमहाद्वीप में सामाजिक अस्थिरता पैदा करने की कोशिश का हिस्सा हैं। ये वीडियो नेट पर विगत एक माह  से चल रहे थे।सरकार ने कोई पहल नहीं कीष नेट सर्वर कंपनियों ने कोई पहल नहीं की,की। नेट सर्वर मालिकों ने भी भारत सरकार के दिशा निर्देशों का पालन नहीं किया।  आतंकियों ने अपने निर्मित वीडियो में  मुसलमानों के साथ भारत में हो रहे अत्याचारों के निजी वीडियो क्लिपिंग को भी शामिल कर लिया। यह वीडियो तकनीक का विभाजनकारी दुरूपयोग है ।
नई कम्युनिकेशन तकनीक कितनी विश्वसनीय और खतरनाक है कि लोग अपरिचितों के मैसेज पर भरोसा कर रहे हैं। भयाक्रांत हैं।अफवाहों से डरे हुए हैं।हर कम्युनिकेशन विश्वसनीय नहीं होता। कम्युनिकेशन पर सब समय विश्वास न करें। खासकर अपरिचित स्रोत से भेजा कम्युनिकेशन खतरनाक भी हो सकता है। वह आपकी खुशियां छीन सकता है।
    असम और म्यांमार की घटनाओं की फेक इमेजों के जरिए मुसलमानों के खिलाफ घृणा पैदा की गयी। कायदे से इस तरह की फेक इमेजों पर विश्वास न करें। फेसबुक आदि वर्चुअल कम्युनिकेशन में सक्रिय यूजरों से अपील है कि वे जिस व्यक्ति को नहीं जानते उसके संदेश पर विश्वास न करें। जिसे नहीं जानते उसके एसएमएस पर भरोसा न करें और न डरें। सामाजिक घृणा पैदा करने वाले मैसेज,फोटो आदि की तुरंत पुलिस को खबर करें या संबंधित नेटवर्क में शिकायत करें। अपरिचितों के संदेश जोड़ते कम हैं तोड़ते ज्यादा हैं। सावधान रहें,कम्युनिकेट करें और समाज को जोड़ें।
       भारत की अविकसित मानसिकता का संघ परिवार , नई संचार तकनीक ,कम्प्यूटर,इंटरनेट,सोशल साइटस आदि का भी संघ परिवार ,      फेसबुक पर संघ परिवार ने नियोजित ढ़ंग से विचारधारात्मक जहर फैला आरंभ कर दिया है। इस जहर के कुछ रूप हैं। मसलन् आप ज्योंही कोई धर्मनिरपेक्ष , बहुलतावादी ,साम्प्रदायिक सदभाव वाला विचार रखेंगे ये लोग आएंगे और समूची शक्ति के साथ इस्लाम विरोध और मुस्लिमविरोधी घृणा का प्रचार करने लगते हैं । तथ्यहीन और भडकाऊ बातें लिखते हैं। भाजपा-संघपरिवार के अलावा इनलोगों ने तमाम नेताओं के कैरीकेचर और चरित्रहनन वाले फोटो भी पेस्ट किए हैं। साम्यवाद विरोध और धर्मनिरपेक्ष विचारों का विरोध करना इनकी नियमित दिनचर्या है। इस तरह की चीजें भारत के राजनीतिक-सांस्कृतिक वातावरण में जहर घोल रही हैं।
असल में फेसबुक को उदारमंच बनाने के लिए मित्रों को सचेत प्रयास करना होगा। फेसबुक पर उदार विचारों और परिवर्तनकामी विचारों का स्वागत है और जो लोग संकीर्णतावाद,फंडामेंटलिज्म (सभी रंगत का),आतंकवाद और सामाजिक घृणा फैलाने वाले विचारों को लिख रहे हैं उन्हें ब्लॉक करें। हिन्दी में यह बीमारी नासूर की शक्ल अख्तियार करती जा रही है। उत्तर-पूर्वी जनजातियों के लोगों को असम के हिंसाचार को लेकर अफवाह और आतंक की खबरों से घबड़ाने , पूना और बंगलौर शहर छोड़ने की जरूरत नहीं है। इस संदर्भ में इन लोगों को अपने घरवालों को भी भरोसा देना चाहिए ,क्योंकि अफवाहों का बाजार असम और उसके बाहर खासकर महाराष्ट्र और कर्नाटक के कुछ शहरों में गर्म है। अफवाह फैलाने वाले समाजभंजक लोग हैं और वे जल्द ही सामने आ जाएंगे कि वे कौन लोग हैं। कर्नाटक -महाराष्ट्र राज्य प्रशासन की यह जिम्मेदारी है कि वह पूना और बंगलौर में रहने वाले नार्थःईस्ट के लोगों में भरोसा पैदा करे। साथ ही संघ परिवार की भी यह जिम्मेदारी है कि वह असम की दुखद घटनाओं के आधार पर अफवाह और पूर्वाग्रहों का प्रचार करने से बाज आए और शांति बनाए रखने में मदद करे।

बोडो इलाके में उग्रवाद और अफवाह से लोकतंत्र घायल


                                
            भारत में अधिकांश राजनेताओं की मुश्किल यह है कि वे बयान देना जानते हैं लेकिन उसके सामाजिक प्रभाव को नहीं जानते। जबकि आतंकियों,उग्रवादियों और साम्प्रदायिक संगठनों के नेताओं को मालूम है कि बयान का क्या असर होता है और उसका किस तरह दुरूपयोग किया जाय। वे अपने बयान के अनुरूप सामाजिक स्थितियों को मोड़ना और सामाजिक अंतर्विरोधों का दुरूपयोग करना अच्छी तरह जानते हैं।इस मामले में मीडिया का भी वे प्रभावशाली ढ़ंग से दुरूपयोग करते हैं जिससे उनकी बातें सही,सटीक और स्वाभाविक लगें। हिंसा और आतंक वैध लगे। यही वजह है कि अशांति के समय राजनेता कमजोर और विभाजनकारी नेता ज्यादा असरदार दिखते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो बोडोलैंड इलाके में बोडो और गैर बोडो समुदायों के बीच हुए हिंसाचार के प्रसंग में उदार की तुलना में उग्रवादी और साम्प्रदायिक राजनीति आक्रामक है।
    असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई जब 6 जुलाई की हिंसा के बाद बोल रहे थे तो वे नहीं जानते थे कि उनके बयान का किस तरह बुरा असर होगा। 6 जुलाई2012 को कोकराझार में दो मुस्लिम नेताओं की बोड़ो उग्रवादियों ने हत्या कर दी। इस हत्याकांड को राज्य सरकार को गंभीरता से लेना था लेकिन मुख्यमंत्री तरूण गोगोई से इस हत्याकांड के बाद जब पूछा गया कि राज्य सरकार इस तरह की हिंसा से निबटने के लिए क्या उपाय उठाने जा रही है तो गोगोई ने कहा कि  हिंसा को रोकने की मैं कोई गारंटी नहीं दे सकता, उनके बयान ने जातीय घृणा में डूबे हिंसकों के मनोबल बढ़ा दिया।  बाद में 19जुलाई को दो और लोगों की हत्या हुई इसकी प्रतिक्रिया में बोडो उग्रवादियों के 4लोगों की हत्या कर दी गयी।
      आश्चर्य की बात है कि इस हत्याकांड के बाद भी सरकार चौकन्नी नहीं हुई और सोई रही। इसका दुष्परिणाम यह निकला कि बोडो उग्रवादियों ने निर्दोष लोगों की बस्तियों और गांवों पर हमले बोल दिए और देखते ही देखते इन हमलों की जद में 400 गांव आ गए । हिंसा और आतंक के कारण इन गांवों से दो लाख से ज्यादा लोग पलायन करने के लिए मजबूर हुए । इनलोगों को  120 राहत शिविरों में रखा गया है। इन शिविरों के खर्चे के लिए केन्द्र सरकार ने 300 करोड़ रूपये की सहायता राशि भी घोषित की है। इससे शिविर चलाए जाएंगे, मारे गए लोगों और घायलों को क्षतिपूर्ति के रूप में मुआवजा दिया जाएगा। बोडो उग्रवादियों के हमलों से 80 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और सैंकड़ों लोग घायल हुए हैं। प्रधानमंत्री,गृहमंत्री से लेकर सोनिया गांधी और मुख्यमंत्री ने इन कैम्पों का दौरा किया है।  कायदे से प्रभावित इलाकों में राज्य सरकार ,स्वयंसेवी संगठनों और मानवाधिकार संगठनों को हिंसाचार के तुरंत बाद सक्रियता दिखानी चाहिए थी लेकिन वे इन इलाकों में नहीं गए।  यह गंभीर चिन्ता का विषय है।
    इससे भी दुखद बात यह है कि संसद में भाजपा और देश में संघ परिवार ने इस हिंसाकांड को बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों की समस्या से बेवजह जोड़ दिया । ये संगठन तथ्य और सत्य दोनों पर परादा डाल रहे हैं। इससे हिंसक ताकतों को बल मिला है। ये ताकतें बोड़ो इलाके में जातीय विद्वेष और हिंसा का माहौल बनाए रखना चाहती हैं। तत्कालीन गृहमंत्री पी.चिदम्बरम् ने जब राहत शिविरों का मुआयना करके 31जुलाई को प्रेस कॉफ्रेंस में दावा किया कि असम में तुलनात्मक तौर शांति लौट आई है तो वे महज आशा जगाने की कोशिश कर रहे थे। सच यह था कि राहतशिविरों में दो लाख से ज्यादा शरणार्थी पलायन करके आ चुके थे और पहले के जातीय दंगों में पलायन करके आए लोग अभी भी राहतशिविरों में पड़े हुए हैं और उनको वापस घर भेजने में सरकार सफल नहीं हुई है। हाल में जो लोग राहतशिविरों में आए हैं वे कब अपने घर लौटेंगे कोई नहीं जानता। उल्लेखनीय है कि बोडोलैंड इलाके में बोडो जनजाति के लोगों का वर्चस्व है। लेकिन यह इलाका लंबे समय से संथाली,मुसलमान और बंगालियों की रिहायश भी रहा है। ब्रिटिश शासनकाल में बड़े पैमाने पर बिहार और पश्चिम के संथालियों को खेती आदि के कामों के लिए यहां लाकर अंग्रेजों ने बसाया था।
     उल्लेखनीय है कि बोडो इलाके को लेकर 10 फरवरी 2003 में बोडो आंदोलनकारियों के साथ राज्य और केन्द्र सरकार के बीच एक समझौता हुआ था । उस समझौते के तहत बोडोलैंड टेरीटोरियल कौंसिल का गठन किया गया। बोडो उग्रवादियों ने उसके पहले हथियारों का समर्पण किया था और वायदा किया था कि वे हिंसा का रास्ता छोड़ देंगे। लेकिन वे इस वायदे को बार बार तोड़ते रहे हैं और गैर बोडो लोगों पर हमले करते रहे हैं।
     बोडोलैंड क्षेत्र परिषद में 4जिले हैं कोकराझार,बासका,उदलगोरी और चिराग। इसके अलावा इस इलाके के विकास के लिए केन्द्र सरकार ने 100 करोड़ रूपये भी जारी किए थे। उल्लेखनीय है जिस समय यह समझौता हुआ था उस समय केन्द्र में लालकृष्ण आडवाणी गृहमंत्री थे और असम में तरूण गोगोई मुख्यमंत्री थे।  लेकिन बोडोलैंड परिषद के नेताओं ने इस इलाके में विकास पर ध्यान देने की बजाय पंगे वाले मसले पहले उठाए और उन्होंने गैर बोडो लोगों के स्वामित्व वाली जमीन-जायदाद के स्वामित्व को विवादों में डाल दिया। इस विवाद का वे अभी तक कोई मान्य हल नहीं निकाल पाए हैं। फलतःइस इलाके में सब समय तनाव रहता है। इसके कारण बोडो एक ओर हैं संथाली और मुस्लिम बंगाली दूसरी ओर हैं।
    यह जातीय ध्रुवीकरण इसलिए भी है कि इस इलाके में लंबे समय से गैर-बोडो बाशिंदों की संख्या इस इलाके में बोडो बाशिंदों से ज्यादा है। इसमें बंगलादेश से माइग्रेट करके आकर बसे लोगों की संख्या नगण्य है। बोडो इलाके में वे लोग संख्या में ज्यादा हैं जो ब्रिटिशशासन काल से यहां रह रहे हैं। संघ परिवार ने आक्रामक प्रचार अभियान के जरिए सभी माइग्रेट लोगों को बंगलादेशी माइग्रेट मुस्लिम की केटेगरी में डाल दिया है।   
     संघ परिवार मांग कर रहा है बोडो इलाके में रहने वाले सभी माइग्रेट लोगों को बाहर निकाला जाए और दुर्भाग्य से यही मांग बोडो उग्रवादी भी कर रहे हैं। इस तरह बोडो उग्रवादी और संघ परिवार दो भिन्न संगठन होते हुए भी एक ही जैसी मांग उठा रहे हैं,एक जैसी भाषा बोल रहे हैं,एक जैसी अफवाहें फैला रहे हैं, इससे बोडो क्षेत्र में तनाव बढ़ा है। सेना को इस इलाके में उतारने के बावजूद स्थिति सामान्य नहीं बन पायी है और हिंसा जारी है। दूसरी ओर असम के बाहर अफवाहों का बाजार गर्म है। पूना और बंगलौर में उत्तर-पूर्व के निवासियों पर अनेक स्थानों पर हमले हुए हैं। मुंबई और दूसरी जगहों पर मुस्लिम आतंकियों ने सभा के बहाने आम जनता और पुलिस पर हमले किए हैं जिनमें बड़े पैमाने पर सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान हुआ है और दो लोग मारे गए ।
    असम के जातीय तनाव को कम करने के लिए पहली शर्त है कि आतंकियों,अफवाह उड़ाने वालों और उत्तर-पूर्व बनाम भारत का विभाजन करके प्रचार करने वालों, बोडो बनाम गैर बोडो समुदाय के नाम पर वर्गीकरण करके प्रचार करने वालों से सरकार सख्ती से निबटे।
   कौन किस इलाके का पुराना बाशिंदा है कौन नया है, कौन मूल बाशिंदा है और कौन माईग्रेट करके आकर बसा है, इसके बारे में पहले से तयशुदा नियम कानून हैं और उन कानूनों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। हाल ही में कोकराझार और अन्य जिलों से हिंसा के कारण जिन लोगों ने घर छोड़ा है उन्हें पुनः उन इलाकों में बसाया जाय और प्रभावित इकाकों में सेना सख्ती से प्रशासन संभाले। जिन लोगों ने उत्तर-पूर्व के लोगों और अन्य लोगों में एसएमएस,फेसबुक ट्विटर आदि के जरिए अफवाहें फैलायी हैं उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाय।    



विशिष्ट पोस्ट

मेरा बचपन- माँ के दुख और हम

         माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...