शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

जलीकट्टु बर्बरता का महिमामंडन है-

     दुनिया में अनेक देश हैं जहां आज भी बर्बरता का महिमामंडन होता है,इस तरह के देशों में भारत अग्रणी है। जलीकट्टु हमारे देश की बर्बर प्रथाओं में से एक है।इस तरह की प्रथाओं का हमारे समाज में बचे रहना इस बात का प्रतीक है कि बर्बरता को हमारे समाज की स्वीकृति और वैधता हासिल है, हम बर्बरता देखकर दुखी नहीं होते ,गुस्सा नहीं करते, इसके विपरीत हमें बर्बरता के नजारे में मजा आता है,हमारे समाज की तमाशेखोरी की जड़ में इस बर्बरता की भी भूमिका है।
जलीकट्टु की प्रथा का तमिल पहचान से कोई संबंध नहीं है।तमिल पहचान का मतलब यदि बैल और आदमी का युद्ध है तो निश्चित तौर पर इस प्रथा को बहुत पहले ही बंद हो जाना चाहिए।
संयोग की बात है हमारे देश में देवता पूजा है,पशु पूजा है,लेकिन संवेदनाओं की पूजा अर्चना नहीं होती,संवेदनाओं की अनुभूति के मामले में आज भी प्राचीनकाल में पड़े हुए हैं,हमारी संवेदनाएं आज भी आधुनिक नहीं हो पायी हैं,कहने के लिए तमिलनाडु भारत का सबसे विकसित राज्य है लेकिन उसमें नागरिकों में आज भी एक बड़ा वर्ग है जिसके पास आधुनिक संवेदनाएं नहीं हैं।
जल्लीकट्टु पर जो लोग हंगामा कर रहे हैं वे असल में आदिम संवेदनाओं की हिमायत में हंगामा कर रहे हैं।आदिम संवेदनाओं का बचे रहना और मौका पाते ही आदिम वातावरण में जीने की लालसा रखना अपने आपमें समस्यामूलक है।
कायदे से आधुनिककाल में हमें आदिम संवेदनाओं में जीना चाहिए ।लेकिन जलीकट्टु की हिमायत में खड़े युवा और शिक्षित समूह आदिम संवेदनाओं की हिमायत में खड़े हैं। आधुनिक संवेदना की धुरी है न्यायबोध,न कि परंपरा।
भारत में प्रकृति,पशु,मनुष्य आदि के बारे में आज भी आधुनिक संवेदनाएं, न्यायबोध आदि का शिक्षितों में अभाव है,वे आए दिन अपने अतीतप्रेम को विभिन्न रूपों में व्यक्त करते हैं।हमारे समाज में अतीत के रूपों और संवेदनाओं को बचाए रखने में परंपराएं सबसे बड़े रक्षाकवच का काम करती रही हैं।परंपराओं की जरूरत उसी व्यक्ति को होती है जिसके पास वर्तमान का सही ज्ञान नहीं होता और जो न्यायबोध से पलायन करना चाहता है।
असल में जलीकट्टु के नाम पर न्यायबोध से पलायन का चरमोत्कर्ष ही सामने आया है।हमने एक ऐसा मध्यवर्ग तैयार किया है जिसके पास सब कुछ है लेकिन न्यायबोध नहीं है।बिना न्यायबोध के आधुनिकता मूलतःबर्बर होती है,इसे हम खुलेआम अपने जीवन में महसूस करते हैं।
जली कट्टु की प्रथा का विरोध2004 से हो रहा है और इस पर भारत सरकार के पशु कल्याण बोर्ड ने सही कदम उठाते हुए इस प्रथा पर पाबंदी लगाने की मांग करते हुए जो पहल की थी वह एक सही कदम था,कई उतार-चढाव के बाद भी सुप्रीमकोर्ट ने इस प्रथा पर प्रतिबंध जारी रखकर सही काम किया है।यह प्रथा हर हालत में बंद होनी चाहिए।जो लोग इस प्रथा की मांग कर रहे हैं वे अपने लिए वर्चुअल जलीकट्टु खेल बना सकते हैं और घर में बैठकर खेल सकते हैं।
भारत की आयरनी यह है कि यहां पर कोई भी समाजसुधार कानूनी दवाब के बिना लागू नहीं हुआ है,जलीकट्टु पर पाबंदी मूलतः समाजसुधार है।
उल्लेखनीय है समाजसुधार जब भी लागू करने गए हैं तब ही आम जनता के बृहत्तर हिस्सों ने प्रतिवाद किया है,हमारे देश की जनता समाज सुधारों से डरती है,जड़ता में अमरता का आनंद लेती है। जड़ता,परंपरा ये सब आधुनिक विकास के रोड़े हैं इनको हटाना हम सबकी जिम्मेदारी है।

सोमवार, 2 जनवरी 2017

नोटबंदी का सच और मोदी सरकार के झूठ-



मोदी सरकार झूठ बोलने में अव्वल है,उनके झूठ को दोहराने के मामले में मोदीभक्त परम अव्वल है ! नोटबंदी के समापन पर वित्तमंत्री अरूण जेटली ने जिस तरह के दावे किए जरा उनकी हकीकत को देखें।

´फाइनेंशियल एक्सप्रेस´(2जनवरी2017) ने मोदी सरकार के आंकड़ों का सच उजागर किया है।मसलन् वित्तमंत्री अरूण जेटली ने अप्रत्यक्ष करों में 26.2 फीसदी बढोतरी की बात कही,उन्होंने यह भी कहा कि सर्दी की फसल बुआई में 6फीसदी की बढोत्तरी हुई,नवम्बर माह में एक्साइज करों की वसूली में 32 फीसदी इजाफा हुआ,लेकिन सच यह है अक्टूबर माह में 41फीसदी की एक्साइज करों की वसूली हुई थी,नवम्बर में तो गिरावट आई।इसी तरह सेवा करों में 13.3फीसदी बढोत्तरी हुई थी लेकिन अक्टूबर माह मेंसेवा करों की वसूली 68.8फीसदी रही।एक्साइज ड्यूटी की वसूली में गिरावट इसके बावजूद आई कि इस दौरान एकबार पेट्रोलियम पदार्थों के करों की दर में इजाफा हो चुका था।यही हाल रवि की फसल के बुआई के आंकड़ों का है,इन आंकड़ों के संदर्भ में भी अरूण जेटली और पीएम मोदी सफेद झूठ बोल रहे हैं।रवि की बुआई में तेज गिरावट आई है।य का है।यही हाल विकासदर के बारे में किए जा रहे दावों का है,अखबार ने विस्तार के साथ अनेक वित्तीय एजेंसियों और आरबीआई के दावों की रोशनी में रेखांकित किया है कि विकासदर में निश्चित रूप से गिरावट आएगी।विस्तार से यह रिपोर्ट यहां पढ़ें-

With no clear estimates forthcoming from the government on the extent of black money unearthed by demonetisation, about a dozen agencies have trimmed their forecasts for India’s GDP growth for the current fiscal in the range of 40-330 basis points, reports fe Bureau in New Delhi. And many have cast shadow over the growth projections for 2017-18 as well. Finance minister Arun Jaitley last week cited a 26.2% annual jump in indirect tax collection and a 6% rise in winter crop sowing to suggest demonetisation didn’t hurt the economy as much as assumed by some commentators critical of the government’s unprecedented decision. However, data showed excise duty collections rose an annual 32% in November, down from 41% in October, and the growth in service tax mop-up slowed to just 13.3% in November from as much as 68.8% in the previous month. The slowdown in excise revenue growth in November was despite another round of hike in the excise duty on petroleum products in the month. Also, the increase in Rabi crop area seems rather muted at 2.8% if compared with the normal acreage by this time of year.

While the note ban put spokes in the wheels of the economy when it was struggling to accelerate (although Q2 GDP growth was 7.3% against 7.1% in Q1, investment in fixed capital contracted 5.6% in Q2, recoding third straight quarter of fall). Banks’ credit growth, at multi-year lows for quite some time, too touched a new low of 5.8% in the fortnight through December 9 from a year before even though banks were flush with funds post demonetisation.

The Reserve Bank Of India had projected only a 50-basis point drop in gross value addition in the economy in 2016-17 due to demonetisation.

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With private consumption–a key driver of GDP growth for close to two years now–hit by demonetisation, it is more incumbent on the government to continue to stir demand through its own spending. The government is relying on the expected jump in tax revenue (by an estimated Rs 1 lakh crore) from the new income disclosure scheme PMGKY to step up spending. Additionally, banks could enhance fresh lending as demonetisation has dramatically increased their liquidity (leading lenders have already announced steep rate cuts in their benchmark lending rates).

According to Nomura, demonetisation has hit rural consumption demand harder than urban demand, services more than manufacturing, and exports more than imports.Market research firm Nielsen says that the Rs 2.5-lakh crore FMCG sector witnessed a 1.2% net negative impact on consumer sales in value terms in November, with one in every five housewives surveyed said she cut spending by 50% or more. Auto sales, too, hit a 44-month low in November.



PMI for services for November witnessed the sharpest monthly decline since November 2008 (just after the Lehman crisis) and manufacturing PMI, too, slowed down. In signs that the impact of demonetisation will continue into the next fiscal, the Composite Leading Index of Nomura, which tracks non-farm GDP growth with a two-quarter lead, for early 2017 has slumped to the lowest level since the series started in 1996. Even SBI’s near-term composite index that predicts industrial activity hit a record low of 45.5 year-on-year, down from the revised level of 50 in the previous month.







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