शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

एमिल दुर्खीम की महान कृति आत्महत्या का हिन्दी में प्रकाशन

   विख्यात फ्रांसीसी समाजशास्त्री एमिल दुर्खीम के चार बड़े कामों में से केवल लि सुइसाइड अनुवाद के लिए बचा है। दि एलिमेंटरी फार्म ऑफ दि रिलिजियस लाइफ पहली बार 1915 में अंग्रेजी में छपी; दि डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी 1933 में और दि रूल्स ऑफ सोशियोलोजिकल मैथड 1938 में। लि सुइसाइड को पहली बार छपे पचास वर्ष से अधिक हो गए हैं लेकिन समाजशास्त्रीय, सांख्यिकीय और मनोवैज्ञानिक क्षेत्रों में इसके प्रति दिलचस्पी किसी पुराने काम के प्रति दिलचस्पी से कहीं अधिक है। सामाजिक विचारधारा की दृष्टि से इसका ऐतिहासिक महत्व ही अंग्रेजी पाठक संसार में इसे ले जाने का पर्याप्त कारण बन जाता है। समाजशास्त्र में यह पुस्तक मील का पत्थर है और फ्रांस में शैक्षिक समाजशास्त्र की आधारशिला रखने वाले और उसे सुदृढ़ करने वाले और फ्रांस के बाहर दुनिया को प्रभावित करने वाले व्यक्ति को समझने के लिए अपरिहार्य है। इसे देखते हुए इसका बहुत पहले अनुवाद हो जाना चाहिए था।
आज हमारी सांख्यिकीय सामग्री अधिक परिष्कृत और व्यापक है और दुर्खीम के मुकाबले हमारा सामाजिक मनोवैज्ञानिक तंत्र बेहतर स्थापित है, लेकिन आत्महत्या पर उनका काम विषय को आंकड़ों, तकनीकों और संचित ज्ञान के साथ पकड़ने की दृष्टि से आज भी एक आदर्श है। उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक में जब दुर्खीम अपने काम में शामिल अन्वेषण कर रहे थे उस समय इस या अन्य किसी विषय के बारे में सांख्यिकीय सूचना के भंडार (सरकारी या निजी) बहुत कम, अपर्याप्त या खस्ता हालत में थे। अपनी स्वाभाविक ऊर्जा और कुछ छात्रों की, विशेषकर मार्सेल मॉस की मदद से दुर्खीम ने सामान्य समस्या और इसकी आंतरिक तफसील से जुड़े सवालों का उत्तर खोजने के लिए उपलब्ध आंकड़ों को फिर से संजोया। उस समय सांख्यिकीय तकनीक बहुत कम विकसित थी। अपनी लेखन-यात्रा में दुर्खीम को नए तकनीकों का अन्वेषण करना पड़ा। सांख्यिकीय तकनीकों के गाल्टन और पियरसन जैसे अन्वेषकों को छोड़कर सामान्य सह-संबंधों के तत्वों की किसी को जानकारी नहीं थी। बहु और आंशिक सह-संबंध की भी यही स्थिति थी। इसके बावजूद दुर्खीम ने प्रणाली विज्ञानिक अध्यवसाय और अनुमिति द्वारा आंकड़ों की शृंखलाओं में संबंध स्थापित किया।
दुर्खीम द्वारा बनाई गई तालिकाओं को अनुवाद में यथावत रख दिया गया है। सांख्यिकीय प्रस्तुतीकरण के मौजूदा मानकों के अनुसार उन्हें तब्दील करने का कोईप्रयास नहीं किया गया है। इस तरह से उनका अपना ऐतिहासिक मूल्य और अपनी विशेषता है। उनको अलंकृत करने से उस वातावरण का पता नहीं चलता जिसमें उन्हें आवश्यकतानुसार तैयार करना पड़ा। हालांकि हाल के आंकड़े उपलब्ध हैं, लेकिन अपने आंकड़ों के जरिए दुर्खीम जो सूचना देना चाहते थे वह आज भी समाजशास्त्रियों और सांख्यिकीविद के लिए दिलचस्पी का विषय है। वास्तव में (आत्महत्या पर सैनिक जीवन के प्रभाव के बारे में) एक तालिका को एक सर्वोत्तम पत्रिका में आत्महत्या पर हाल ही के एक निबंध में यथावत ले लिया गया।1
अपने ऐतिहासिक और प्रणाली वैज्ञानिक अभिप्राय के अलावा लि सुइसाइड का महत्व अपनी विषयवस्तु और उसे पकड़ने के समाजशास्त्रीय ढंग में भी निहित है। दुर्खीम यह स्थापित करना चाहते हैं कि जो बात हमें अत्यधिक वैयक्तिक और व्यक्तिगत तत्व लगती है वास्तव में उसके बीज सामाजिक ढांचे और समाज पर उसके प्रभाव में निहित होते हैं। मनोविकृति विज्ञान पर क्रांतिकारी निष्कर्ष और समकालीन सांख्यिकीविदों के श्रेष्ठ आंकड़े भी इस समस्या को पूरी तरह से पकड़ नहीं पाए हैं। हम परिचय में इस बारे में अधिक विस्तार से बात करेंगे।
ऐसे भी लोग हैं जो सामाजिक कारण-कार्य संबंध के क्षेत्र में अब भी लि सुइसाइड को सर्वोत्कृष्ट नहीं तो उत्कृष्ट रचना मानते हैं। साथ ही ज्ञान के समाजशास्त्र के रूप में जाने जाने वाले क्षेत्र में दुर्खीम ने अहंभाव परार्थता और एनोमी में अनुस्यूत सामूहिक चेतना अवस्थाओं के साथ विचार-व्यवस्थाओं को संबध्द करने का जो प्रयास इस पुस्तक में किया है वह कम महत्वपूर्ण नहीं है।
अंत में लि सुइसाइड सामाजिक व्याख्या के दुर्खीम के बुनियादी सिध्दांतों को मूर्त रूप में दरशाती है। उनके सामाजिक यथार्थवाद, जो समाज को उसके हिस्सों के योग से कहीं अधिक बड़ा मानता है, और उससे जुड़ी सामूहिक प्रतिरूप और सामूहिक चेतना की अवधारणा को यहां एक विशेष समस्या क्षेत्र पर लागू किया गया है और इसके बहुत अच्छे परिणाम निकले हैं। क्योंकि दुर्खीम ने न केवल प्रणालीवैज्ञानिक और स्वत: शोध प्रणाली सिध्दांत तैयार किए (विशेष रूप से दि रूल्स ऑफ सोशियोलोजिकल मेथड) बल्कि काफी बड़े क्षेत्र में अनुसंधान द्वारा उनकी परख भी की। वह कभी इस बात से इनकार नहीं करते कि उनके काम में कुछ जोड़ना, संशोधन करना और हमारे ज्ञान में इजाफा करना जरूरी होगा क्योंकि वह वैज्ञानिक प्रयास को एक सामूहिक काम मानते थे जिसके निष्कर्ष एक पीढ़ी द्वारा दूसरी पीढ़ी को सौंपे जाते हैं और इस प्रक्रिया द्वारा उनमें सुधार लाया जाता है।
यह अनुवाद दुर्खीम की मृत्यु के तरह वर्ष बाद और 1897 में पहले संस्करण के तैंतीस वर्ष बाद 1930 में प्रकाशित संस्करण से किया गया है। इस संस्करण का पर्यवेक्षण मार्सेल मॉस ने किया। यहां अपने संक्षिप्त परिचय में प्रोफेसर मॉस ने बताया कि पुनर्मुद्रण विधि के कारण मुद्रण और संपादन संबंधी कुछ गलतियों को दूर करना संभव नहीं था। डॉ जॉन ए. स्पॉल्डिंग की मदद से मैंने पाठय और सांख्यिकीय पड़ताल द्वारा जहां पता लग सका है और उन्हें दूर करने का प्रयास किया है।
यहां अनुवाद के पाठ के लिए मैं पूरी जिम्मेदारी लेता हूं। डॉ. स्पॉल्डिंग और मैंने पहले मसौदे पर काम किया। उसके बाद हम दोनों ने दूसरे मसौदे पर काम किया। लेकिन अंतिम परिवर्तन अकेले मैंने किए हैं।
मेरे एक छात्र श्री जेरोम एच. कोलनिक ने टंकित प्रति और प्रूफरीडिंग में मेरी मदद की है। उन्होंने केवल रुटीन काम नहीं किया है और उनके बहुत से सुझाव मेरे लिए बहुत मूल्यवान सिध्द हुए हैं।
दि सिटी कॉलेज, न्यूयॉर्क    जॉर्ज सिंपसन
1 नवंबर 1950
  ( एमिल दुर्खीम-आत्महत्या,अनुवादक-रामकिशन गुप्ता,ग्रंथ शिल्पी,बी-7 सरस्वती कॉम्प्लेक्स,सुभाष चौक,लक्ष्मी नगर,दिल्ली-110092)

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