शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

नागार्जुन जन्मशती पर विशेष -कश्मीर में मात खाएँगे हिन्दी पंडित,पाकिस्तानी पीर

                      (जनकवि बाबा नागार्जुन)
           कश्मीर में लंबे समय से अशान्ति चल रही है। पाकिस्तान और उसके अनुयायी पृथकतावादी संगठन एक ओर हैं तो दूसरी ओर हिन्दुत्ववादी संगठन हैं,बीच में कहीं तीसरा धड़ा धर्मनिरपेक्ष काश्मीरियों का है जो कश्मीर की रक्षा किए हुए हैं और उनके कारण ही आज कश्मीर भारत का हिस्सा है वरना हिन्दू साम्प्रदायिक ताकतें और फंडामेंटलिस्ट-पृथकतावादी अपने-अपने तरीकों से जम्मू-कश्मीर को बांट चुके होते।
    जो लोग नागार्जुन के बारे में बातें कर रहे हैं उनसे सम-सामयिक सवालों पर स्टैंड लेने के लिए कहा जाना चाहिए। बाबा की कविता का मामला साहित्य का मामला नहीं है। यह समाज और राष्ट्र का मामला भी है। बाबा नागार्जुन के पास कश्मीर को लेकर एक समझ थी और वे कश्मीर की धड़कन को अच्छी तरह पहचानते थे। कश्मीर पर लिखी उनकी कविता का शीर्षक है ‘ केसर की मासूम क्यारियों से आती आवाज’। बाबा ने लिखा-
‘‘ काश्मीरी ही काश्मीर कर सकते उद्धार/’’ जो लोग यह समझते हैं कश्मीर की समस्या देशी है वे गलतफहमी के शिकार हैं,पहले भी आज भी काश्मीर की समस्या बाहरी ताकतों के द्वारा पैदा की गई है। अमेरिका और पाक की इन दिनों कश्मीर में अतिरिक्त दिलचस्पी दर्ज की गई है। अमेरिकी रवैय्ये पर बाबा ने लिखा-‘‘ अमरीकी बन्दर पंचों की खुल जाएगी पोल/काश्मीर में बजा करेंगे काश्मीर के ढ़ोल।’’
कश्मीर को लेकर तथाकथित सुलह कराने वालों पर बाबा ने लिखा - ‘‘ डिनर नई दिल्ली में और कराची में कर लंच/ तौल रहे रावलपिंडी में लड्डू बन्दर पंच।’’
अंत में बाबा नागार्जुन ने जो लिखा वह और भी महत्वपूर्ण है। लिखा ‘‘ मात खाएँगे हिन्दी पंडित,पाकिस्तानी पीर/ लो देखो ,वह खड़ा हो रहा नया-नया कश्मीर।’’        
      







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