मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010

कारपोरेट मीडिया का चिली खनिक उद्धार नाटक

    चिली में खान में फंसे 33 खनिकों के उद्धार कार्य के व्यापक कवरेज को देखकर मेरे मन में सवाल उठा कि अहर्निश कारपोरेट घरानों का जयगान करने वाला ग्लोबल मीडिया,खासकर टेलीविजन चैनल अचानक दयालु और मानवीय हितों का कवरेज क्यों देने लगते हैं ? वे इस तरह के कवरेज के जरिए क्या बताना और क्या छिपाना चाहते हैं ? क्या वे यह बताना चाहते हैं कि वे मानवीय हितों के सवालों पर प्रतिबद्ध हैं ?   
       ग्लोबल मीडिया जब भी ऐसी किसी घटना का कवरेज देता है तो किसी बड़े यथार्थ को छिपाने या उस पर से ध्यान हटाने का काम करता है या फिर कारपोरेट घरानों की बर्बर इमेज को मानवीय बनाकर पेश करने की कोशिश करता है और यह उसका कारपोरेट पब्लिक रिलेशन का काम है। पब्लिक रिलेशन के काम के जरिए वह विचारधारात्मक संदेश भी देने का काम करता है। चिली के खान मजदूरों के उद्धार कार्य का कवरेज देकर ग्लोबल मीडिया ने यही काम किया है। यह उद्धार कार्य नहीं है बल्कि कारपोरेट पूंजीवाद को चमकाने और उसकी दयालु छवि पेश करने की कोशिश है। इसका खनिकों के हितों से कोई संबंध नहीं है।
     इस कवरेज के जरिए यह भी संदेश दिया गया कि यह उद्धार कार्य अपने आप में हीरोइज्म है। एक ही वाक्य में कहें तो यह एक नाटक था। बड़ा विश्वव्यापी नाटक था। चिली की खानों में मजदूरों का फंस जाना और वहीं पर दबकर मर जाना कोई नई घटना नहीं है बल्कि यह कारपोरेट पूंजीवादी विकास की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है। जिस तरह की भयावह लूट कारपोरेट घरानों ने मचायी हुई है उसका यह अपरिहार्य परिणाम है।
इस प्रसंग में कुछ तथ्यों पर गौर करें,चिली की अर्थव्यवस्था में कॉपर एक तरह से सोना है। आप जितनी खानें खोदेंगे उतना ही मुनाफा कमाएंगे और उसी गति से दुर्घटनाएं भी होंगी। चिली में औसतन 39 खान दुर्घटनाएं प्रति वर्ष होती हैं। लेकिन इनमें से अधिकांश की कोई रिपोर्टिंग ग्लोबल मीडिया नहीं करता। खान मालिक सभी कानूनों का उल्लंघन करते हैं उसकी भी रिपोर्टिंग नहीं करता। खान मालिकों के प्रति कारपोरेट मीडिया का किस तरह का रवैय्या है इस बात का आप सहज ही भारत के संदर्भ में अनुमान लगा सकते हैं कि वेदान्त के उडीसा स्थित प्रकल्प के पर्यावरण संबंधी कानूनी उल्लंघन की मीडिया ने कभी रिपोर्टिंग ही नहीं की।
     चिली में खानों का मालिकाना हक कारपोरेट घरानों के पास है। यह हक उन्हें तानाशाह पिनोचेट के जमाने में मिला था जो अभी तक बरकरार है। खान उत्खनन के कारण स्थानीय लोगों को बेइंतहा तकलीफें उठानी पड़ रही हैं जिनका मीडिया में कोई कवरेज नहीं है। इन खानों में आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती हैं जिनकी कोई रिपोर्टिंग नहीं होती। लेकिन इसबार खनिकों के अंदर फंसे होने और उनके उद्धारकार्य का लाइव कवरेज जिस तरह दिखाया गया उसने सबका ध्यान खींचा है। वहां पर 33 खनिक खान में फंसे थे वह इलाका राजधानी सांतियागो के पास के ही एक उपनगर विला ग्रिमाल्दी में स्थित है।
      आश्चर्य की बात है इन खानों पर तानाशाह पिनोचेट के जमाने में कारपोरेट घरानों का कब्जा हुआ था जो चिली में वामपंथियों के शासन में आने के बावजूद अभी भी बरकरार है। पिनोचेट के बर्बर अत्याचारों को अभी भी चिली की जनता भूली नहीं है।
    जिस समय टीवी वाले उद्धार कार्य का कवरेज कर रहे थे। वहीं दूसरी ओर मापुचा जाति के लोग अपने शोषण,उत्पीड़न और राज्य और कारपोरेट आतंक के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। जंगलात और खानों पर जिन कारपोरेट घरानों का पिनोचेट के जमाने में नियंत्रण स्थापित हुआ था उसका प्रतिवाद कर रहे थे। मापुचा जाति के लोगों को भयावह आतंक और शोषण की जिंदगी से गुजरना पड़ रहा है। उनके खिलाफ आतंकवाद विरोधी कानून का जमकर दुरूपयोग किया जा रहा है और स्टेट मशीनरी की ओर से उन पर हमले किए जा रहे हैं। इन सबके प्रतिवाद में मापुचा जाति के लोग 90 दिन से भूख हड़ताल कर रहे थे लेकिन मीडिया ने उसका कहीं पर भी कवरेज नहीं दिया।
   मापुचा जाति के लोगों पर कारपोरेट और स्टेट के संयुक्त हमले हो रहे हैं। आए दिन उनकी हत्या हो रही है,अपहरण हो रहे हैं और जबरिया दण्डित किया जा रहा है। लेकिन इसका मीडिया में कोई कवरेज नहीं है। हठात खान में फंसे 33 खनिकों का व्यापक कवरेज देकर मीडिया ने यह संदेश दिया है कि चिली के खान मालिक और राज्य का कितना बड़ा दिल है,वे कितने दयालु हैं।
   असल में इस कवरेज के बहाने चिली के कारपोरेट घरानों की अबाधित लूट और चिली के गरीब गांव वालों पर अहर्निश हो रहे अत्याचारों से ध्यान हटाने की कोशिश की गई है। उल्लेखनीय है पिनोचेट के शासन में आतंकवाद विरोधी कानून बनाया गया था वह आज भी लागू है और आम लोग ,खासकर ग्रामीण लोग उस कानून को खत्म करने के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं।
     यह बात सारी दुनिया जानती है कि चिली में एलेन्दे की चुनी हुई सरकार को अपदस्थ करने और तख्तापलट में वहां के कारपोरेट घरानों और पिनोचेट का हाथ था। राष्ट्रपति एलेन्दे उस समय प्रतिक्रांतिकारियों से संघर्ष करते हुए राष्ट्रपति भवन की इमारत में अंतिम दम तक संघर्ष करते रहे और अंत में उन्होंने अपनी ही पिस्तौल से गोली मारकर आत्महत्या की थी।
    पिनोचेट के शासनकाल में तानाशाही का जो बर्बर दौर चला उसका यादें आज भी रोएं खड़े कर देती हैं। पिनोचेट के शासन के बाद भी ग्रामीणों पर दमन की चक्की चल रही है और उसकी कोई खबर मीडिया नहीं देता। जिस समय उद्धार कार्य का कवरेज आ रहा था ,उससे कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर चिली के आतंकवादविरोधी कानून को खत्म करने की मांग को लेकर मापुचा जाति का आंदोलन चल रहाथा। वे 90 दिन से भूख हड़ताल पर थे। लेकिन मीडिया ने उसकी रिपोर्टिंग नहीं की।
   समस्या यह है खनिकों के उद्धार कार्य को कवरेज दिया जाए या उन लोगों को कवरेज दिया जाए जो चिली की खानों में अबाधित लूट मचाए हुए हैं और चिली की जनता का शोषण कर रहे हैं।जिसके कारण आए दिन खान दुर्घटनाएं हो रही हैं।
    चिली में किसी चीज से जनता मुक्ति चाहती है तो वह है बड़े कारपोरेट घरानों की लूट से। विश्व मीडिया चिली के कारपोरेट घरानों की लूट और आतंकी व्यवस्था पर चुप है और खनिकों के उद्धार कार्य का व्यापक कवरेज देकर खान मालिकों को दयालु और पुण्यात्मा बनाने में लगा है। यह कवरेज उसी पब्लिक रिलेशन का हिस्सा था। शोषण के लिए पब्लिक रिलेशन बर्बरता है,सभ्यता का अपमान है।यह असली खबर पर पर्दादारी है।











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