शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

रोजे बूर्दरों - फासीवादी विचारधारा : व्याख्या का प्रयास

फासीवादी विचारधारा के कुछ सारभूत तत्व हैं जो निश्चित ही पर्याप्त सरल लगते हैं। वे ऐसी धारणाओं पर आधारित हैं जिन्हें उचित-अनुचित की परिधि में रखना कठिन हैं। देखा जाए तो उन्नीसवीं सदी के समस्त गैर समाजवादी राजनीतिक और सामाजिक विचारों से यहां वहां ले लेकर फासीवादी की बौद्धिक नींव रखी गई है। राष्ट्रीय एकीकरण के दौरान राष्ट्रवाद के दक्षिण और अति-दक्षिण को लोकप्रिय राष्ट्रवाद से जोड़कर फासीवादी का ढांचा बनाया गया है। उदाहरण के लिए 'संपूर्ण इटली' का आंदोलन जो इटली के एकीकरण के पहले से जारी था फासीवादी में समन्वित कर लिया गया था। फासीवादी में राज्य के सिद्धांत, वर्ग समन्वय, अच्छी और बुरी पूंजी जैसी धारणाओं में अनेक अनुदार और अतिवादी राजनीतियों के तत्व पहचाने जा सकते हैं। साथ ही व्यक्ति का उदात्तीकरण, उसकी क्षमता और सफलता का अंतरसंबंध, सामाजिक असमानता का स्रोत है। व्यक्तियों के गुणों और प्रतिभाओं में असमानता जैसे विचार उदारपंथी सोच की विरासत हैं। यह देखा जा सकता है कि फासीवादी कार्यक्रम में समाजवाद का प्रभाव दिखता भी हो तो विचारधारा के स्तर पर समाजवाद के प्रति तनिक भी सकारात्मक झुकाव नहीं दिखाई देता है। श्रम की गरिमा की बात है भी तो एक तो यह केवल समाजवाद तक सीमित नहीं है, दूसरे यह श्रमिकों के लुभाने के लिए ही लक्षित है। समाजवाद के एक भी मूलभूत लक्ष्यों, जैसे उत्पादन के साधनों का समाजीकरण या श्रमिकों की मुक्ति का फासीवाद की विचारधारा में कोई स्थान नहीं है क्योंकि यह विचारधारा है ही समाजवाद और मार्क्सवाद विरोधी।
इस तरह फासीवादी विचारधारा तरह-तरह के विचारों की खिचडी है बेमेल, और कह सकते हैं बेसमझी। समस्या पूंजीवादी समाज के विकास के दौरान विकसित विभिन्न विचारों के बीच की टकराहट से पैदा होती है।
मौलिकता का प्रथम सोपान है पहले से चले आ रहे विचारों का उग्रीकरण (रैडीकलाइजेशन) ।  सबसे उजागर उदाहरण है व्यक्ति की भूमिका। गुणों और प्रतिभा की असमानता की धारणा सारे मुखौटे उतार देती है और जहां तक इस सिद्धांत के परिणामों का प्रश्न है सामाजिक या नैतिक दर्शन का कोई तर्क स्वीकार नहीं करती। जहां उदारपंथ बीच का रास्ता अपनाते हुए मानव के शाश्वत मूल्यों की बात करते हुए व्यक्ति के अधिकार के संबंध में पड़ोसी के भी अधिकार की बात करता है और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को पूरी तरह नकारता है, फासीवाद सारभूत असमानता के नाम पर, जिसे कुछ भी ठीक नहीं कर सकता, कमजोर पर मजबूत का प्रभुत्व और पहलों द्वारा दूसरों के शोषण को न्यायोचित करार देता है।यह उग्रता किसी विरासत को नहीं स्वीकारती। मार्क्सवाद का नकार तो उसका मुख्य उद्देश्य है ही वह किसी उदारपंथी परंपरा का भी ऋण नहीं स्वीकारती। इस विच्छेद की धारणा के साथ वह किसी भी उदार या अनुदार विचार से कोई संगतिसमझौता संभव नहीं मानती। फासीवाद मेहनतकशों की विचारधारा के संबंध में मार्क्सवाद और विभिन्न प्रकार की अन्य विचाराधाराओं को दो श्रेणी मान कर अपने को एक तीसरी ही श्रेणी अधिक मजबूत, अधिक शुध्द और एकमात्र प्रशंसनीय के रूप में प्रस्तुत करता है। वह दूसरों के लिए बहुत सख्त भाषा का इस्तेमाल करता हैटकराहट वाली या खंडन-मंडन वाली। मार्क्सवाद के संदर्भ में तो फासीवाद 'परजीवी' 'यहूदी षडयंत्र' की तरह की ऐसी भाषा इस्तेमाल करता है मानो मार्क्सवाद मानवविरोधी शैतान हो। इस क्रम में वह उन को भी लपेट लेता है जो मार्क्सवाद के 'कोढ़', 'जहर', 'कैंसर' को रोक नहीं सके।
इस तरह फासीवाद यथास्थिति को स्वीकारने वाली विचारधाराओं से अपने को भिन्न साबित करने के लिए उग्र अनुदारता और अतिरेक की तरह प्रस्तुत करता है। वह इस लोकप्रिय उग्र अनुदारता को दो स्तरों पर प्रस्तुत करता है :
      1.     वह ग्रासरूट-जन की मुखिया की सत्ता के साथ एकात्मता को अपनी वैधता का आधार बताता है। इसीलिए जनमत संग्रह को राजनीतिक उपकरण बताता है और राष्ट्रवाद की अंतर्वस्तु में सामाजिक और लोकप्रिय तत्व जोड़ता है।
      2.    वह समाजवाद और क्रांति की अंतर्वस्तु को नकारते हुए उन्हीं के शब्दों को लगातार इस्तेमाल करता है'सच्चा समाजवाद', 'सर्वहारा राष्ट्र' स्थापित करने के लिए। इस तरह प्रचलित पूंजीवादी और मार्क्सवादी दोनों धाराओं से अपने को अलग कर वह उनके प्रभाव से मुक्त कर जनता पर अपना प्रभुत्व कायम करना चाहता है।
फासीवाद की मौलिकता यह है कि अपने को एकदम नई, एकमात्र क्रांतिकारी, बुरे अतीत से छुटकारा दिलाने वाली, हर तरह के सामाजिक कैंसर से मुक्त कर एक राष्ट्रीय समुदाय निर्मित कर पाने में सक्षम एकमात्र शक्ति के रूप में प्रस्तुत करता है।
फासीवाद उन एकदम अस्वीकार्य असमानताओं को भी उनको स्वीकार करा देता है जो उससे सबसे अधिक उत्पीड़ित होते हैं। इस प्रकार फासीवादी ऐसी व्यवस्थाओं, जो मूल रूप से प्रतिक्रियावादी, जनवाद विरोधी, अभिजनवादी और सर्वसत्तावादी है, एक लोकप्रिय अंतर्वस्तु और रूप प्रदान करता है। यही फासीवाद की अंतर्निहित बेइमानी उजागर हो जानी चाहिए इसमें लगे व्यक्ति विशेष कितने ही ईमानदार क्यों न हो।
( साभार, फासीवाद : सिद्धांत और व्यवहार,लेखक- रोजे बूर्दरों,प्रकाशक- ग्रंथ शिल्पी, बी-7,सरस्वती काम्प्लेक्स,सुभाष चौक, लक्ष्मी नगर,दिल्ली-110092,मूल्य -275) 








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