शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

संयासवाद नहीं है मार्क्सवाद

                           (मार्क्सवाद के जनक कार्ल मार्क्स )                            
      भारत में एक तबका है जिसका मानना है कि कम्युनिस्टों को दुनिया की किसी चीज की जरूरत नहीं है। उन्हें फटे कपड़े पहनने चाहिए। सादा चप्पल पहननी चाहिए। रिक्शा-साइकिल से चलना चाहिए।कार,हवाई जहाज का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।  मोटा खाना और मोटा पहनना चाहिए। इस वेशभूषा में थोड़ी तरक्की हुई तो पाया कि नक्सलों ने जींस का फटा और गंदा पैंट और खद्दर का कुर्त्ता पहन लिया।  इस तरह के पहनावे और  विचारों का मार्क्सवाद से कोई लेना देना नहीं है।
    साम्यवाद या मार्क्सवाद को मानने वाले संत नहीं होते। मार्क्सवाद का मतलब संयासवाद नहीं है। वे भौतिक मनुष्य हैं और दुनिया की समस्त भौतिक वस्तुओं को प्यार करते हैं और उसका पाना भी चाहते हैं। उनका इस पृथ्वी पर जन्म मानव निर्मित प्रत्येक वस्तु को भोगने और उत्पन्न करने के लिए हुआ है।
    मार्क्सवादी परजीवी नहीं होते बल्कि उत्पादक होते हैं। यही वजह है कि मजदूरो-किसानों का बड़ी संख्या में उनकी ओर झुकाव रहता है। वे हमेशा उत्पादक शक्तियों के साथ होते हैं और परजीवियों का विरोध करते हैं। जो लोग कम्युनिस्टों का विरोध करते हैं वे जाने-अनजाने परजीवियों की हिमायत करते हैं।   
    मार्क्सवादी का मतलब दाढ़ी वाला व्यक्ति नहीं है,ऐसा भी व्यक्ति मार्क्सवादी हो सकता है जो प्रतिदिन शेविंग करता हो। कम्युनिस्ट गंदे,मैले फटे कपड़े नहीं पहनते। बल्कि सुंदर,साफ-सुथरे कपड़े पहनते हैं। कम्युनिस्ट सुंदर कोट-पैंट भी पहनते हैं। शूट भी पहनते हैं। ऐसे भी कम्युनिस्ट हैं जो सादा कपड़े पहनते हैं। कहने का अर्थ यह है कि मार्क्सवाद कोई ड्रेस नहीं है। मार्क्सवाद कोई दाढ़ी नहीं है। मार्क्सवाद एक  विश्व दृष्टिकोण है दुनिया को बदलने का नजरिया है। आप दुनिया कैसे बदलते हैं और किस तरह बदलते हैं,यह व्यक्ति स्वयं तय करे। इसके लिए कोई सार्वभौम फार्मूला नहीं है।
    मार्क्सवाद कोई किताबी ज्ञान नहीं है। दर्शन नहीं है। बदमाशी नहीं है,गुंडई नहीं है, कत्लेआम का मंजर नहीं है। मार्क्सवाद राष्ट्र नहीं है,राष्ट्रवाद नहीं है,राष्ट्रीयता नहीं है, धर्म नहीं है, यह तो दुनिया को बदलने का विश्वदृष्टिकोण है। मार्क्सवादी सारी मानवता का होता है और सारी मानवता उसकी होती है। वह किसी एक देश का भक्त नहीं होता। वह किसी भी रंगत के राष्ट्रवाद का भक्त नहीं होता। वह देश,राष्ट्रवाद,राष्ट्रीयता आदि से परे समूची विश्व मानवता का होता है यही वजह है कि वह विश्वदृष्टिकोण के आधार पर सोचता है।
      मार्क्सवादी की बुनियादी मान्यता है कि यह संसार शाश्वत नहीं है। यह संसार परिवर्तनीय है। इस संसार में कोई भी चीज शाश्वत नहीं है यदि कोई चीज शाश्वत है तो वह है परिवर्तन का नियम।
      कम्युनिस्टों की एक चीज में दिलचस्पी है कि यह दुनिया कैसे बदली जाए। जो लोग कहते हैं कि यह दुनिया अपरिवर्तनीय है,वे इतिहास में बार-बार गलत साबित हुए है। जो यह सोचते हैं कि मार्क्सवाद के बिना शोषण से मुक्त हो सकते हैं ,वे भी गलत साबित हुए हैं। शोषण से मुक्ति के मामले में अभी तक कोई भी गैर मार्क्सवादी विकल्प कारगर साबित नहीं हुआ है। वास्तव अर्थों में सामाजिक तरक्की ,समानता और भाईचारे का कोई भी गैर-मार्क्सवादी रास्ता सफल नहीं रहा है।
    हमारे भारत में अनेक लोग हैं जो कम्युनिस्टों की बुराईयों को जानते हैं लेकिन अच्छाईयों को नहीं जानते। वे यह भी नहीं जानते कि कम्युनिस्टों की ताकत का स्रोत क्या है ? कम्युनिस्ट झूठ बोलकर जनता का विश्वास नहीं जीतते,कम्युनिस्ट सत्य से आंख नहीं चुराते। जो कम्युनिस्ट झूठ बोलता है जनता उस पर विश्वास करना बंद कर देती है। मार्क्सवाद और असत्य के बीच गहरा अन्तर्विरोध है।
कार्ल मार्क्स ने सारी दुनिया के लिए एक ही संदेश दिया था वह था शोषण से मुक्ति का। उसने व्यक्ति के द्वारा व्यक्ति के शोषण के खात्मे का आह्वान किया था। सारी दुनिया में कम्युनिस्ट इसी लक्ष्य के लिए समर्पित होकर काम करते हैं। वे किसी एक के नहीं होते। समूची मानवता के हितों की रक्षा के लिए काम करते हैं। उनके काम और विचार में कोई अंतर नहीं होता। इस अर्थ में हमें कम्युनिस्टों को समझने की कोशिश करनी चाहिए।
      मेरे कहने का यह अर्थ नहीं है कि कम्युनिस्टों में कोई दोष नहीं है। जी नहीं, उनमें भी वे सब दोष हैं जो हम सबमें होते हैं। वे इसी समाज से आते हैं। लेकिन वे दोषों से मुक्त होने की कोशिश करते हैं। जो कम्युनिस्ट मानवीय दोषों को कम करते हैं और निरंतर समाज और स्वयं को बेहतर बनाने और लोगों का दिल जीतने,आम जनता की सेवा करने का प्रयास करते हैं उन्हें जनता भी दिल से प्यार करती है।
       हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो आए दिन पानी पी-पीकर कम्युनिस्टों और मार्क्सवाद को गरियाते रहते हैं। कम्युनिस्ट विरोधी अंध प्रचार करते हैं। कम्युनिस्ट सिद्धांतों को जानने और मानने वालों ने सारी दुनिया को प्रभावित किया है। उन्होंने समाज को बदला है। लेकिन ध्यान रहे यदि कम्युनिस्ट गलती करता है तो बड़ा नुकसान करता है। एक कम्युनिस्ट की आस्था,व्यवहार और नजरिया दूरगामी असर छोड़ता है। वह विचारों की जंग में सामाजिक परिवर्तन की जंग में समूचे समाज का ढ़ांचा बदलता है।
   हमारे देश में कम्युनिस्ट बहुत कम संख्या में हैं और तीन राज्यों में ही उनकी सरकारें हैं। लेकिन उनकी देश को प्रभावित करने की क्षमता बहुत ज्यादा है। कम्युनिस्ट पार्टी हो या अन्य गैरपार्टी मार्क्सवादी हों.वे जहां भी रहते हैं।दृढ़ता के साथ जनता के हितों और जनता की एकता के पक्ष में खड़े रहते हैं।
      जिस तरह बुर्जुआ और सामंती ताकतों के पास नायक हैं और विचारधारा है। वैसे ही कम्युनिस्टों के पास भी नायक हैं,विचारधारा है। कम्युनिस्टों की क्रांतिकारी विचारधारा हमेशा ग्बोबल प्रभाव पैदा करती है। जबकि बुर्जुआजी के नायकों का लोकल असर ज्यादा होता है। कम्युनिस्टों के क्रांतिकारी नायक मरकर भी लोगों के दिलों पर शासन करते हैं ,आम लोग उनके विचारों से प्रेरणा लेते हैं। इसके विपरीत बुर्जुआ नेता जीते जी बासी हो जाते हैं,अप्रासंगिक हो जाते हैं।




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