शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

मनुष्यत्व का अपमान है धार्मिक फंडामेंटलिज्म

    कोई हिन्दू बने या मुसलमान हमें इसमें आपत्ति नहीं है। हमारी आपत्ति इसमें है कि वे भारत को हिन्दूराष्ट्र क्यों कहते हैं। भारत संवैधानिक तौर पर हिन्दू राष्ट्र नहीं है। भारत का संविधान,हिन्दू राष्ट्र का संविधान नहीं है। भारत कभी भी हिन्दू राष्ट्र नहीं था। बात-बात में हिन्दू राष्ट्र की दुहाई देना,भाषणों से लेकर लेखन तक में उसका इस्तेमाल करना अवैज्ञानिक है,गलत है।
     हिन्दूराष्ट्र और हिन्दुत्व को भारतवासियों का पर्याय बताना सफेद झूठ है और यह भारतवासियों का अपमान है। भारत की बहुसांस्कृतिक विरासत और बहुसांस्कृतिक जनता का अपमान है। यदि राम को रावण के नाम से बुलाया जाएगा तो वह गलत होगा। राम को राम के  नाम से ही सम्बोधित किया जाना चाहिए। उसी तरह भारत को भारत के नाम से पुकारें।  ‘भारत एक हिन्दूराष्ट्र है’ यह कहकर न पुकारें ,यह भारत का अपमान है,भारतवासियों का अपमान है। मनुष्यता का अपमान है। यह हिन्दू फंडामेंटलिज्म है।    
     आज के हिन्दुस्तान की सच्चाई यह है कि यहां एक नहीं अनेक किस्म की पहचानें प्रत्येक व्यक्ति के पास हैं। लेकिन संघ परिवार एक ही अस्मिता का बारबार ढ़ोल पीटता रहता है। वे लोग संविधान में उपलब्ध अभिव्यक्ति की आजादी और विचारों के प्रसार की आजादी का दुरूपयोग कर रहे हैं और भारतीय समाज के बारे में गलत समझ पैदा कर रहे हैं । बहुजातीयता और बहुसांस्कृतिकता का अपमान कर रहे हैं।   
    संघ जब हिन्दू राष्ट्र के नाम पर इस्लाम और ईसाई धर्म की निंदा करता है और उन्हें पराए धर्म के रूप में चित्रित करता है तो बहुलतावाद को अस्वीकार करता है। संविधान की मूल स्प्रिट का उल्लंघन करता है।   
    हिन्दू से इतर अस्मिताओं और धर्मों का इतिहास भारत में सैंकड़ो-हजारों साल पुराना है। देश का समूचा तानाबाना बहुसांस्कृतिक-बहुधार्मिक-बहुजातीय मान्यताओं और विश्वासों पर टिका है। इसे रचने में हिन्दुओं,मुसलमानों, जैनियों, नाथों-सिद्धों,योगियों,शाक्तों,बौद्धों आदि का योगदान रहा है। संघ के लोग जब भारत को हिन्दूराष्ट्र के रूप में चित्रित करते हैं तो गैर हिन्दू धर्मों और संस्कृतियों की भारत के निर्माण में जो भूमिका रही है उसे अस्वीकार करते हैं।
   भारत आज एक तरह से खुले समाज के रूप में अपना विकास कर रहा है और इसमें सभी धर्मों-जातीयताओं और संस्कृतियों के लिए समानता का भाव है। इन सबको समान संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं। भारत का संविधान खुले तौरपर बहुसांस्कृतिकता और बहुधार्मिकता की हिमायत करता है। इसके बावजूद संघ के नेताओं का भारत को बार-बार हिन्दू राष्ट्र कहना वस्तुतः बहुसांस्कृतिक जातीयताओं और धर्मों का अपमान ही कहा जाएगा।
      संघ परिवार के लोग हिन्दू राष्ट्र के नाम पर आम लोगों के हृदय में बहुसांस्कृतिवाद और बहुधार्मिकवाद के खिलाफ ज़हर भरना चाहते हैं। वे यह भी जानते हैं कि भारत कभी हिन्दू राष्ट्र नहीं था , न आज है और न भारत कभी भविष्य में हिन्दू राष्ट्र बनेगा।
   भारत की बहुसांस्कृतिक-बहुधार्मिक-बहुजातीय राष्ट्र-राज्य की पहचान है। भारत की पहचान का आधार हिन्दूधर्म नहीं है। कोई भी धर्म भारत की पहचान का आधार नहीं है। बहुजातीयता,बहुधार्मिकता और बहुसांस्कृतिकता राष्ट्रीय पहचान का आधार हैं।
     भारत आज खुले समाज का हिमायती है। हिन्दूसमाज जैसे बंद समाज की धारणा का पक्षधर नहीं है। आज भारत के खुले समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती हिन्दुत्व और इस्लामिक फंडामेंटलिस्टों की ओर से आ रही है। ये दोनों ही विचारधाराएं अपने-अपने तर्कों के आधार पर आम आदमी की जिंदगी और खासकर बहुसांस्कृतिक स्वतंत्रता पर हमले कर रहे हैं। इन दोनों ही फंडामेंटलिस्ट विचारधाराओं के भारत में अब तक के कारनामे भारत के खुले समाज के वातावरण को नष्ट करने वाले हैं।
    आज जनतंत्र के बुनियादी तानेबाने के लिए इन दोनों ही किस्म के संगठनों से गंभीर खतरा है। हिन्दू और मुस्लिम फंडामेटलिज्म के झंडाबरदार समाजवाद और पूंजीवाद के विकल्प के रूप में अपनी फंडामेंटलिस्ट विचारधारा को पेश कर रहे हैं। वे इसे सामाजिक विकास के तीसरे मार्ग के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें इन दोनों ही फंडामेंटलिस्ट विचारधाराओं की आलोचना करते समय सतर्कता से काम लेना चाहिए। इन दोनों को ही इस्लाम और हिन्दू धर्म से अलगाने की जरूरत है।
    मसलन आरएसएस के हिन्दुत्व का हिन्दूधर्म से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं है। उसी तरह केरल में हाल के वर्षों में पैदा हुए मुस्लिम फंडामेंटलिस्ट संगठन पापुलर फ्रंट का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है। य़ह एक मुस्लिम फंडामेंटलिस्ट संगठन है और अनेक मायनों में यह संघ का अनुकरणकर्ता है।
     यूरोप के अनेक देशों में घटिया किस्म की हरकतें हो रही हैं। ये हरकतें उन देशों में हो रही हैं जिन्हें उदार पूंजीवादी मुल्क माना जाता है। मसलन इटली में मुसलमान औरतों के लिए अलग से समुद्रतट बनाए गए हैं जहां पर वे कपड़ों में निर्भय होकर समुद्रस्नान कर सकें और पतनशील पश्चिमी नग्नता से बची रह सकें।
    हॉलैण्ड में मुसलमानों के लिए अलग से अस्पताल बनाए जाने की बातें हो रही हैं जहां पर मुस्लिम औरतें अपने पिता,पति,भाई आदि के साथ गैर मुस्लिमों की मौजूदगी में मिल सकें। यह कोशिश की जा रही है कि कोई गैर मुस्लिम डाक्टर मुस्लिम बीबी,बहन और माताओं को हाथ भी न लगा सके। इन दिनों यूरोप की सड़कों पर बुर्का ज्यादा नजर आ रहा है। इतना बुर्का तीस साल पहले नहीं दिखता था।
   हिन्दू फंडामेंटलिस्टों ने उन तमाम सुधारों,मान्यताओं और मूल्यों को चुनौती दी है जिन्हें भारत ने रैनेसां के दौरान और बाद के वर्षों में अर्जित किया था। बहुलतावाद का प्रत्येक क्षेत्र में सम्मान करना रैनेसां की उपलब्धि थी। इसे हमें राजा राममोहन राय सौंप गए हैं।
        हिन्दू शुद्धता ,हिन्दू संस्कृति और हिन्दू राष्ट्र की धारणा पर विगत 30 सालों में जिस आक्रामक भाव से संघ परिवार ने जोर दिया है उससे भारत का बहुलतावादी सामाजिक-राजनीतिक ढ़ांचा हिल गया है। वे हिन्दुत्व -हिन्दुत्व करके भारत के बहुलतावादी तंत्र को बर्बाद करना चाहते हैं जिसे बड़ी तकलीफों के बाद रैनेसां में हमारे समाज ने अर्जित किया था। बहुलतावाद के लिए शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर जोर दिया गया।
   फंडामेंटलिस्टों का मानना है कि हम कानून का सम्मान करते हैं लेकिन धर्म के मामले में हम किसी की बात नहीं मानेंगे। हमारे लिए धर्म का मतलब क्या है यह हम तय करेंगे। शाहबानो केस के फैसले से लेकर रामजन्मभूमि विवाद पर आए फैसले तक एक ही रूझान है। दोनों ही रंगत के फंडामेंटलिस्ट मानते हैं कि धर्म एक ऐसी चीज है जिसे कानून या कोई स्पर्श नहीं सकता। वह परम पवित्र अपरिवर्तनीय है। शुद्ध है।
     ये लोग धार्मिक जीवनशैलियों को अपनाने पर जोर दे रहे हैं। धर्मनिरपेक्षता दोनों को ही नापसंद हैं। धर्मनिरपेक्ष लोग काम बिगाड़ने शत्रु लगते हैं। फंडामेंटलिस्टों को कम्युनिस्ट ,उपभोक्तावादी ,व्यक्तिवादी इन तीनों से नफरत है। फंडामेंटलिस्टों का मानना है कि कम्युनिज्म और पूंजीवाद दोनों में ही करोड़ों लोग मारे गए हैं। वहां शांति,सुख और सुरक्षा संभव नहीं है। शांति ,सुख और सुरक्षा तो सिर्फ धार्मिक फंडामेंटलिज्म में ही दे सकता है। उनका दावा है कि हिन्दू और मुस्लिम फंडामेंटलिज्म ही उपभोक्तावाद और समाजवाद का एकमात्र सही विकल्प है । असल में धार्मिक फंडामेंटलिज्म विध्वंसक विकल्प है विकास का विकल्प नहीं है।  










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