सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

भूमंडलीकरण और विकास - 2- फिदेल कास्त्रो

               (क्यूबा के महान् क्रांतिकारी फिदेल कास्त्रो)
    जनसंचार पर एकाधिकार के जरिए धरती के हर कोने में उपभोक्तावाद का जहर फैलाकर देश की राष्ट्रीय संस्कृति को कौन नष्ट कर रहा है? प्रति वर्ष वाणिज्यिक विज्ञापनों पर एक खरब डालर के खर्चे के बारे हम क्या कहें जबकि इस रकम का इस्तेमाल शिक्षा, स्वास्थ्य, पेय जल और आवास के अभाव तथा भूख और कुपोषण को दूर करने के लिए किया जा सकता था? क्या यह केवल आर्थिक मुद्दा है? राजनीतिक और नैतिक नहीं?
नव उदार भूमंडलीकरण बिलकुल साफतौर पर तीसरी दुनिया का फिर से उपनिवेशीकरण है। जैसा कि यहां पहले ही दोहराया जा चुका है, एफ.टी.ए.ए. वास्तव में अमरीका का लैटिन अमरीका पर कब्जा है जिसमें बलवान देश पड़ोसी कनाडा, मैक्सिको और ब्राजील सहित सबसे कमजोर देशों को निगल जाएगा। यह अनैतिक करार है जिसके अंतर्गत पूंजी और वस्तुओं की मुक्त आवाजाही होगी लेकिन कत्लघर बन चुकी मैक्सिको और अमरीका की सीमाओं को पार करने वाले 'जंगलियों' को मौत मिलेगी। उनके लिए कोई एडजस्टमेंट एक्ट नहीं है जिससे आवास और रोजगार का स्वत: अधिकार मिल जाए, भले ही उन्होंने कोई भी उल्लंघन या अपराध किया हो। यह एक्ट तो हमारे देश में क्रांतिकारी परिवर्तनों के लिए क्यूबा को दंडित करने के वास्ते बनाया गया था।
बेहतर दुनिया संभव होने में विश्वास करने वाले एक क्रांतिकारी और योध्दा के रूप में मेरा दृढ़तापूर्वक तथा बगैर हिचक के यह कहना है कि विदेशी निवेश के बदले में किसी देश की संपदा और प्राकृतिक संसाधनों का निजीकरण करना बहुत बड़ा अपराध है। यह तीसरी दुनिया के देशों के जीने के संसाधनों को बहुत सस्ते में बल्कि मुफ्त दे देने जैसी बात है। इससे नए तरह का उपनिवेशीकरण होगा जो कि और अधिक सुविधाजनक और अपने आप काम करने वाला होगा। मूल निवासियों को कानून व्यवस्था तथा अन्य अनिवार्य चीजों की लागत चुकानी होगी जैसा कि पहले उपनिवेशवादी ताकतों के मामले में होता था।
विदेशी पूंजी के साथ संबंधों के मामले में क्यूबा सहयोग के परस्पर लाभप्रद और ध्यानपूर्वक विचारे गए रूपों का प्रयोग करता है जिससे देश की प्रभुसत्ता पर आंच नहीं पहुचंती और राष्ट्रीय संपदा तथा देश के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन का नियंत्रण विदेशी पूंजी या ताकत के हाथों में नहीं रहता।
हमारा एक नियम है कि हम कोई चीज मुफ्त नहीं देते। कीमत संबंधी किसी उलझन की स्थिति में हम जिसका जो बनता है उसे वह दे देते हैं। इस बारे में कोई गलतफहमी न रहे कि हम समाजवादी देश हैं और हम समाजवादी रहेंगे। जबर्दस्त बाधाओं के बावजूद हम और अधिक अनुभव, उत्साह, ऊर्जा और सपने के साथ अधिक मानवीय समाज बना रहे हैं। हमारे यहां अमरीकी डालर चलता है, यूरो चलना शुरू हुआ है। पर्यटन की सुविधा के लिए अन्य मुद्राएं भी चल सकती हैं, लेकिन बुनियादी तौर पर चलने वाली मुद्रा सामान्य क्यूबाई पेसो और परिवर्तनीय क्यूबाई पेसो है। मौद्रिक स्थिति नियंत्रण में है। 2002 में पूरे वर्ष में हमारी मुद्रा का मूल्य स्थिर रहा। दूसरे देशों में ऐसी स्थिति नहीं रही। हमारे यहां से दुर्लभ मुद्रा भी नहीं गई।
जैसा कि सबको मालूम है हमारे गोलार्ध में सबसे विकट समस्या भारी बाह्य कर्जे की है। इस कर्ज के मूलधन और ब्याज चुकाने में कई बार राष्ट्रीय बजट का 50 प्रतिशत हिस्सा चला जाता है जिससे देश की अनिवार्य सेवाओंस्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा पर बहुत बुरा असर पड़ता है।
सट्टा बाजार के हमलों और पूंजी पलायन से अपने आपको बचाने के लिए सरकारें बैंक में धन जमा रखती हैं। इसका भारी ब्याज उन्हें चुकाना पड़ता है। इसी कारण कोई भी देश अपने ही धन के बल पर विकास हासिल नहीं कर पा रहा है।
नई आर्थिक व्यवस्था द्वारा लादा गया मुक्त मुद्रा विनिमय विकास के लिए जूझ रहे देशों की कमजोर अर्थव्यवस्थाओं के लिए घातक सिध्द हुआ है। काफी लंबे समय से मुद्रा किसी काम की चीज नहीं रह गई है जैसे कि वह पहले हुआ करती थी। इसकी बचत की जा सकती थी और सोने या चांदी के टुकड़ों की तरह बर्तन में रखकर जमीन में गाड़ा जा सकता था।
जैसा कि सभी अर्थशास्त्रियों को मालूम है ब्रेटन वुड्स में अमरीका, जिसके पास विश्व के स्वर्ण भंडार का 80 प्रतिशत हिस्सा है, को विश्व भर में आरक्षित मुद्रा जारी करने का विशेषाधिकार दिया गया है। लेकिन उस समय उसने जारी किए गए प्रत्येक बैंक नोट के मूल्य को सोने में बदलने के उत्तरदायित्व का करार किया। यह उत्तरदायित्व पूरा किया गया जिसमें कागज की मुद्रा के मूल्य की गारंटी थी। इसके लिए देश की सरकार बहुत साधारण क्रियाविधि अपनाती थी और वह थी बाजार में बेशी या कमी के अनुसार आवश्यक सोना बेचना या खरीदना। यह फार्मूला 1971 तक चलता रहा जब राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने भारी सैनिक खर्चों और कर रहित युध्द के बाद एकतरफा निर्णय लेते हुए अमरीकी डालर को स्वर्ण मानक से अलग कर दिया।
उस समय किसी ने भी यह कल्पना नहीं की होगी कि इसके बाद मुद्रा की खरीद-बिक्री में जबर्दस्त सट्टेबाजी की जाएगी। आज प्रतिदिन इस तरह के 1 खरब डालर का लेनदेन होता है।
अमरीकी डालर द्वारा विश्वसनीयता संचित कर लिए जाने, सबके द्वारा इसे विनिमय के उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने की आदत, इसे जारी करने वाले देश की जबर्दस्त आर्थिक शक्ति तथा किसी अन्य उपकरण के अभाव में यह महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

यह विशेषाधिकार लैटिन अमरीका तथा शेष तीसरी दुनिया के देशों के पास नहीं था। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में हमारी मुद्राएं कागज के टुकड़े मात्र हैं। उनका मूल्य दुर्लभ मुद्रा, बुनियादी तौर पर अमरीकी डालरों के राष्ट्रीय भंडार पर निर्भर है। लैटिन अमरीका या कैरेबिया के किसी भी देश की मुद्रा न तो स्थिर है न स्थिर रह सकती है। आज यदि किसी
मुद्रा का मूल्य 100 है तो कुछ महीनों, सप्ताहों या दिनों में बाह्य या आंतरिक तत्वों के कारण उसका मूल्य उसके पहले के मूल्य का 50 प्रतिशत, 40 प्रतिशत या यहां तक कि 10 प्रतिशत हो जा सकता है। अर्जेंटीना में पेसो का मूल्य डालर के बराबर रखने के रमणीय, अव्यावहारिक और लोकप्रशंसित प्रयास का क्या हुआ? इसकी परिणति विनाश में ही हुई। रियाल और डालर की टक्कर में भी यही हुआ। इक्वाडोर जैसे देशों ने अपनी मुद्रा कचरे के ढेर में डाल दी तथा अमरीकी डालर को देश में प्रचलन की एक मात्र मुद्रा के रूप में स्वीकार कर लिया।
मैक्सिको में नियमित रूप से हर छह साल बाद सरकार के बदल जाने के कारण भारी अवमूल्यन हुआ जिससे उसकी मुद्रा का मूल्य बहुत कम रह गया। सट्टेबाजी के आखिरी आघात तथा 1998 के संकट के बाद ब्राजील को अपनी 40 अरब डालर की रकम, जो कि उसने अपनी सर्वोत्तम उत्पादन तथा सेवा कंपनियों के निजीकरण द्वारा हासिल की थी, को गंवाने में मुश्किल से आठ सप्ताह लगे।

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