लूटिए चिन्तन-सुख निभृत निर्जन में
आने न दीजिए वृथा विकल्प मन में
अति अधिक अभिरुचि रखिए न धन में
कभी कुफल भी चखिए जीवन में
लूटिए चिन्तन सुख निभृत निर्जन में।
-नागार्जुन
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
माँ के सुख से ज्यादा मूल्यवान हैं माँ के दुख।मैंने अपनी आँखों से उन दुखों को देखा है,दुखों में उसे तिल-तिलकर गलते हुए देखा है।वे क...
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