सोमवार, 25 अक्टूबर 2010

बाबा रामदेव अपने ट्रस्ट की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करें

               (बाबा रामदेव)       
     ‘योगसूत्र ’ में योग के क्रियात्मक पक्ष की चर्चा की गई है। यह यौगिक क्रिया ध्यान लगाने की औपचारिक कला ,मानव का आंतरिक स्थिति में परिवर्तन लाने ,और मानव चेतना को पूर्ण रूप से अंतर्मुखी बनाने से संबद्ध थीं।
    ए.ई.गौफ ने ‘ फिलासफी ऑफ दि उपनिषदाज’(1882) में लिखा है कि योग का आदिम समाजों ,खासकर आदिम जातियों-निम्न जातियों से संबंध है। दार्शनिकों की एकमत राय है कि योग का तंत्र-मंत्र,जादू टोने से भी संबंध रहा है। इस परिप्रेक्ष्य को ध्यान रखकर देखें तो बाबा रामदेव ने आधुनिक धर्मनिरपेक्ष योगियों की परंपरा का निर्वाह करते हुए योग-प्राणायाम को तंत्र-मंत्र,जादू-टोने से नहीं जोड़ा है। बल्कि वे अपने कार्यक्रमों में किसी भी तरह के कर्मकांड आदि का प्रचार भी नहीं करते। अंधविश्वासों का भी प्रचार नहीं करते। सिर्फ सामाजिक-राजनीतिक तौर पर उनके जो विचार हैं वे संयोगवश संघ परिवार या हिन्दुत्ववादियों से मिलते हैं।
      बाबा रामदेव का विखंडित व्यक्तित्व हमारे सामने है। एक ओर वे योग-प्रणायाम को तंत्र वगैरह से अलगाते हुए धर्मनिरपेक्ष व्यवहार पेश करते हैं ,लेकिन दूसरी ओर अपने जनाधार को बढ़ाने के लिए हिन्दुत्ववादी विचारों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इस समूची क्रिया में योग-प्राणायाम प्रधान है,उनके राजनीतिक-सामाजिक विचार प्रधान नहीं है। उनका योग-प्राणायाम का एक्शन महत्वपूर्ण है। उनका हिन्दुत्व का प्रचार महत्वपूर्ण नहीं है। हिन्दुत्व के राजनीतिक विचारों को वे अपने योग के बाजार विस्तार के लिए इस्तेमाल करते हैं।
     वे एक राजनीतिक दल बना चुके हैं जो अगले लोकसभा चुनाव में सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़े करेगा। मैं समझता हूँ उन्हें राजनीति में सफलता नहीं मिलेगी। इसका प्रधान कारण है उनका राजनीतिक आधार नहीं है। उनके योग शिविर का सदस्य उनका राजनीतिक सदस्य नहीं है। यदि संत-महंतों की राजनीतिक पार्टियां हिट कर जातीं तो करपात्रीजी महाराज जैसे महापंडित और संत की रामराज्य परिषद का दिवाला नहीं निकलता। हाल के वर्षों में बाबा जयगुरूदेव की पार्टी के सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त न हुई होती।
   उल्लेखनीय है बाबा जयगुरूदेव की पार्टी की उन इलाकों में जमानत जब्त हुई है जहां पर उनके लाखों अनुयायी हैं। बाबा रामदेव को यह ख्याल ऱखना चाहिए कि वे विश्व हिन्दू परिषद से ज्यादा प्रभावशाली नहीं हैं। लेकिन कुछ क्षेत्रों को छोड़कर अधिकांश भारत में विश्व हिन्दू परिषद चुनाव लड़कर जमानत भी नहीं बचा सकती है। इससे भी बड़ी बात यह है कि भारतीय राजनीतिक जनमानस में अभी भी धर्मनिरपेक्षता की जड़ें गहरी हैं। कोई भी पार्टी धार्मिक या फंडामेंटलिस्ट एजेण्डा सामने रखकर चुनाव नहीं जीत सकती। गुजरात या अन्य प्रान्तों  में भाजपा की सफलता का कारण इन सरकारों का गैर धार्मिक राजनीतिक एजेण्डा है। दंगे के लिए घृणा चल सकती है। वोट के लिए घृणा नहीं चल सकती। यही वजह है कि गुजरात में व्यापक हिंसाचार करने के बावजूद भाजपा यदि जीत रही है तो उसका प्रधान कारण है उसका अधार्मिक राजनीतिक एजेण्डा और विकास पर जोर देना।
      कहने का तात्पर्य यह है कि बाबा रामदेव टीवी चैनलों पर जिस तरह की राजनीतिक बातें करते हैं उसके आधार पर वे कभी चुनाव नहीं जीत सकते। क्योंकि उनका राजनीति से नहीं योग से संबंध है। उन्होंने जितने साल संयासी के रूप में गुजारे उतने साल राजनीतिक दल बनाने और राजनीतिक संघर्ष करने पर खर्च किए होते तो संभवतः उन्हें कुछ सफलता मिल भी सकती थी।
     बाबा रामदेव कम्पलीट पूंजीवादी मानसिकता के हैं। वे योग और अपने संस्थान से जुड़ी सुविधाओं का चार्ज लेते हैं। उनके यहां कोई भी सुविधा मुफ्त में प्राप्त नहीं कर सकते। यह उनका योग के प्रति पेशेवर पूंजीवादी नजरिया है। वे फोकट में योग सिखाना,अपने आश्रम और अस्पताल में इलाज की व्यवस्था करने देने के पक्ष में नहीं हैं। मसलन उनके हरिद्वार आश्रम में चिकित्सा के लिए आने वालों में साधारण सदस्यता शुल्क 11हजार रूपये,सम्मानित सदस्यता 21 हजार रूपये,विशेष सदस्यता शुल्क 51 हजार रूपये,आजीवन सदस्यता एक लाख रूपये,आरक्षित सीट के लिए 2लाख 51 हजार रूपये और संस्थापक सदस्यों से 5 लाख रूपये सदस्यता शुल्क लिया जाता है।
आयकर विभाग की मानें तो बाबा रामदेव द्वारा संचालित दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट भारत के समृद्धतम ट्रस्टों में गिना जाता है। जबकि अभी इसे कुछ ही साल अस्तित्व में आए हुए हैं। गृहमंत्रालय के हवाले से ‘तहलका‘ पत्रिका ने लिखा है कि बाबा रामदेव की सालाना आमदनी 400 करोड़ रूपये है। यह आंकड़ा 2007 का है।
    असल समस्या तो यह है कि बाबा अपनी आय का आयकर विभाग को हिसाब ही नहीं देते। कोई टैक्स भी नहीं देते। पत्रिका के अनुसार ये अकेले संत नहीं हैं जिनकी आय अरबों में है। श्रीश्री रविशंकर की सालाना आय 400 करोड़ रूपये,आसाराम बापू की 350 करोड़ रूपये,माता अमृतानंदमयी ‘‘अम्मा’’ की आय 400 करेड़ रूपये,सुधांशु महाराज 300 करोड़ रूपये,मुरारी बापू 150 करोड़ रूपये की सालाना आमदनी है। (तहलका,24जून, 2007)
एक अन्य अनुमान के अनुसार दिव्ययोग ट्रस्ट सालाना 60मिलियन अमेरिकी डॉलर की औषधियां बेचता है। सीडी,डीवीडी,वीडियो आदि की बिक्री से सालाना 5 लाख मिलियन अमेरिकी डॉलर की आय होती है। बाबा के पास टीवी चैनलों का भी स्वामित्व है।   
     उल्लेखनीय है बाबा रामदेव अपने कई टीवी भाषणों और टीवी शो में विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने और भ्रष्टाचार के सवाल पर बहुत कुछ बोल चुके हैं। हमारी एक ही अपील है कि बाबा रामदेव अपने साथ जुड़े ट्रस्टों ,आश्रमों,अस्पतालों और योगशिविरों के साथ-साथ चल-अचल संपत्ति का समस्त प्रामाणिक ब्यौरा जारी करें ,वे यह भी बताएं कि उनके पास इतनी अकूत संपत्ति कहां से आयी और उनके दानी भक्त कौन हैं, उनके नाम पते सब बताएं।
     बाबा रामदेव जब तक अपनी चल-अचल संपत्ति का समस्त बेयौरा सार्वजनिक नहीं करते तब तक उन्हें भारत की जनता के सामने किसी भी किस्म के नैतिक मूल्यों की वकालत करने का कोई हक नहीं है। भारत में अघोषित तौर पर संपत्ति रखने वाले एकमात्र अमीर लोग हैं या बाबा रामदेव टाइप संत-महंत। जबकि सामान्य नौकरीपेशा आदमी भारत सरकार को आयकर देता है ,अपनी संपत्ति का सालाना हिसाब देता है। भारत सरकार को सभी किस्म के संत-महंतों की संपत्ति और उसके स्रोत की जांच के लिए कोई आयोग बिठाना चाहिए और इन संतों को आयकर के दायरे में लाना चाहिए।
    नव्य उदारतावाद के दौर में टैक्सचोरों और कालेधन को तेजी से सफेद बनाने की सूची में भारत के नामी-गिरामी संत-महंतों की एक बड़ी जमात शामिल हुई है। इन लोगों की सालाना आय हठात् अरबों-खरबों रूपये हो गयी है। इस आय के बारे में राजनीतिक दलों की चुप्पी चिंता की बात है। उनके देशी-विदेशी संपत्ति और आय के विस्तृत ब्यौरे को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
     संतों-महंतों के द्वारा धर्म की आड़ में कारपोरेट धर्म का पालन किया जा रहा है। धर्म जब तक धर्म था वह कानून के दायरे के बाहर था लेकिन जब से धर्म ने कारपोरेट धर्म या बड़े व्यापार की शक्ल ली है तब से हमें धर्म उद्योग को नियंत्रित करने,इनकी संपत्ति को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने,सामाजिक विकास कार्यों पर खर्च करने की वैसे ही व्यवस्था करनी चाहिए जैसी आंध्र के तिरूपति बालाजी मंदिर से होने वाली आय के लिए की गई है।
      इसके अलावा इन संतों-महंतों के यहां काम करने वाले लोगों की विभिन्न केटेगरी क्या हैं ,उन्हें कितनी पगार दी जाती है,वे कितने घंटे काम करते हैं, किस तरह की सुविधा और सामाजिक सुरक्षा उनके पास है। कितने लोग पक्की नौकरी पर हैं ,कितने कच्ची नौकरी कर रहे हैं।इन सबका ब्यौरा भी सामने आना चाहिए। इससे हम जान पाएंगे कि धर्म की आड़ में चल रहे धंधे में लोग किस अवस्था में काम कर रहे हैं। संतों-महंतों के द्वारा संचालित धार्मिक संस्थानों को कानून के दायरे में लाना बेहद जरूरी है। भारत में धर्म और धार्मिक संत-महंत कानून से परे नहीं हैं। वे भगवान के भक्त हैं तो उन्हें कानून का भी भक्त होना होगा। कानून का भक्त होने के लिए जरूरी है धर्म के सभी पर्दे उठा दिए जाएं।   
                










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