समाज में कई तरह के लोग हैं। कुछ ऐसे हैं जो कॉमनसेंस की नजर से दुनिया देखते हैं,कुछ हैं जो विचारधारा की परिपक्व नजर से दुनिया देखते हैं,कुछ हैं जो असत्य या गप्प की नजर से देखते हैं। इनमें कॉमनसेंस और असत्य की नजर से देखने वालों की संख्या ज्यादा है। विचारधारा की परिपक्व नजर से देखने वालों की संख्या इनकी तुलना में कम है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के आधार से दुनिया को देखने वालों की संख्या इनसे भी कम है। कायदे से यह क्रम उलटा होता तो अच्छा होता। मैंने जब भी आरएसएस की विचारधारा की आलोचना करके लिखा तो संघभक्तों ने कईबार सवाल उठाया कि भारत में कम्युनिस्ट सफल क्यों नहीं हुए ? क्रांति क्यों नहीं हुई ? कम्युनिस्टों के दिन अब लद गए। भारत से उनका नामोनिशां मिट जाएगा।
यह सच है कि भारत में कम्युनिस्टों को जितनी सफलता मिलनी चाहिए थी उतनी सफलता उन्हें मिली है। वे इससे ज्यादा सफलता हासिल कर सकते थे कि लेकिन क्रांतिकारी विचारों की सफलता और क्रांतिकारी संगठन की सफलता बाह्य तत्वों पर निर्भर करती है। क्रांति का जन्म विचारों के गर्भ से नहीं भौतिक परिस्थितियों के गर्भ से होता है।
भारत में संगठित कम्युनिस्ट पार्टियां हैं। वे चाहती हैं भारत में क्रांति हो। उनके हमदर्द चाहते हैं क्रांति हो । लेकिन क्रांति चाहने से नहीं होती। क्रांति कोई माल नहीं है कि आप बाजार जाएं और खरीद कर ले आएं और उपभोग करने लगें।
क्रांति कोई खेल भी नहीं है कि जब इच्छा हो खेलना आरंभ कर दो। क्रांति कोई कॉस्मेटिक्स या खुशबूदार क्रीम या इत्र नहीं है कि खोलो लगाओ और फिर खुशबू ही खुशबू।
क्रांति और कम्युनिस्टों के बारे में आए दिन जिस तरह की गप्पबाजीभरी टिप्पणियां हम सुनते या पढ़ते हैं उससे एक चीज का पता चलता है कि इस तरह की टिप्पणियां करने वाले लोग क्रांति और क्रांति की प्रक्रिया के बारे में वैज्ञानिक ज्ञान के अभाव के कारण अनाप-शनाप बोलते-लिखते हैं।
क्रांति दुनिया का सबसे हसीन और प्यारा पदबंध है। इस पर जितने लोग निछावर हैं उससे ऊपर अभी सिर्फ एक ही पदबंध हैं जिस पर लोग निछावर हैं और प्राण तक देने के लिए तैयार हैं वह है प्रेम। प्रेम और क्रांति की प्रतिस्पर्धा में ईश्वरप्रेमी पिछड़ गए हैं। तुलनात्मक तौर पर देखें तो प्रेम का इतिहास क्रांति के इतिहास से पुराना है। प्रेम को महान बनाया भक्ति आंदोलन के लेखकों ने। पांचवीं-छठी शताब्दी में दक्षिण भारत में आलवार संतों ने प्रेम और ईश्वर के बीच की प्रतिस्पर्धा आरंभ की और ईश्वर को गौण और प्रेम को महान बना दिया। हमने कभी ध्यान ही नहीं दिया कि जिस समय प्रेम का महाख्यान रचा जा रहा था उस समय समाज में दो नए वर्ग जन्म ले रहे थे पहला था कारीगर और दूसरा था व्यापारी। कारीगरों के उदय के साथ प्रेम के महाख्यान का आरंभ हुआ और आधुनिककाल में यही कारीगरवर्ग ,मजदूरवर्ग में रूपान्तरित हुआ और व्यापारी का पूंजीपतिवर्ग में रूपान्तरण हुआ।
मजदूरों ने आधुनिक समाज को जन्म दिया। औद्योगिक क्रांति को जन्म दिया। जो लोग कहते हैं कि मजदूरों ने क्या किया है ? वे नहीं जानते या जान-बूझकर अनदेखी करते हैं कि मजदूरवर्ग ने ही औद्योगिक क्रांति को संभव बनाया। संसार की महानतम वैज्ञानिक खोजों को संभव बनाया। मजदूरवर्ग ने औद्योगिक क्रांति से आगे जाकर क्रांति की खोज की। जबकि पूंजीपतिवर्ग औद्योगिक क्रांति तक जाकर ठहर गया।
संसार में कारीगर जन्म नहीं लेते तो प्रेम का जन्म नहीं होता और भक्ति का महान साहित्य नहीं रचा जाता। कबीरदास-तुलसीदास-मीराबाई जैसे महान लेखकों का जन्म नहीं होता। पहले कारीगर आए फिर उनके भावों-विचारों की अभिव्यक्ति का महान भक्ति साहित्य लिखा गया। इसी तरह पहले मजदूर आए और उन्होंने औद्योगिक क्रांति,जनतंत्र आदि को संभव बनाया।रोमांटिशिज्म के महान अंग्रेजी साहित्य को जन्म दिया।
कहने का अर्थ है मजदूर सिर्फ वस्तुएं ही नहीं बनाते वे श्रेष्ठतम कलाओं को भी जन्म देते हैं। यही वह प्रस्थान बिंदु है जहां से हमें मजदूरों से प्यार करने की आदत ड़ालनी चाहिए। मजदूरों से प्यार किए बिना आप सामयिक जीवन में शांति से नहीं रह सकते। हमारे युवाओं और औरतों में सामाजिक अशांति,अवसाद, कुण्ठा, निराशा का प्रधान कारण है मजदूरों से प्रेम का अभाव ।
हम मजदूरों की बनायी वस्तुओं से प्यार करते हैं लेकिन मजदूरों से घृणा करते हैं, मजदूरों के क्रांतिकारी विचारों से घृणा करते हैं। यही वह प्रस्थान बिंदु हैं जहां से हम इस दुनिया को नए नजरिए से देखें। जो लोग मजदूरों से प्यार करते हैं वे बड़े ही जिंदादिल इंसान होते हैं। उनसे मिलकर उत्साह और प्रेरणा का संचार होता है।
आज सामाजिक जीवन के प्रति ज्यादा से ज्यादा नौजवानों में जो निरर्थकताबोध पैदा हो रहा है उसका प्रधान कारण है उनका मजदूरों के साथ अलगाव और प्रेम का अभाव। मजदूरों से प्रेम हमें जीवन की सार्थकता का एहसास कराता है। इसके विपरीत वस्तुओं का प्रेम जंगली पशु बनाता है।
मजदूरों के बिना वस्तुएं बेजान होती हैं। हम यदि मजदूरों को भूल जाएंगे और वस्तुओं को याद रखेंगे तो विभ्रम के शिकार होंगे। मजदूर और वस्तु को मिलाकर देखेंगे,मिलाकर प्यार करेंगे तो सत्य का सामना करने का साहस पैदा होगा।
आज समाज में सत्य में दिलचस्पी घटती जा रही है इसका प्रधान कारण है कि हमारी मजदूरों में दिलचस्पी घटती जा रही है। सत्य का हमारी पकड़ के बाहर चले जाना बहुत बडी त्रासदी है लेकिन उससे भी बडी त्रासदी है कि हमारी पकड़ से मजदूरवर्ग का निकल जाना। इसके कारण हम विभ्रमों में फंसकर रह गए हैं।
विभ्रमों में फंसे व्यक्ति को वास्तव जगत नजर नहीं आता। वास्तव जगत में रहते हुए भी वह उससे अनभिज्ञ होता है। मजदूरों के प्रति बढ़ती अनभिज्ञता का यही प्रधान कारण है। इसके कारण हम भगवान से प्यार करते, प्रेमिका से प्यार करते हैं।माता-पिता से प्यार करते हैं,प्रकृति से प्यार करते हैं,दोस्तों से प्यार करते हैं।लेकिन मजदूरों से प्यार नहीं करते। जो इस समाज के सर्जक हैं उनसे प्यार नहीं करते। हम मजदूरों से प्यार करें तो कभी मनोचिकित्सक के पास जाने की जरूरत न पड़े।कभी सिर में दर्द नहीं होगा। जीवन की रामबाण दवा है मजदूर प्रेम। वह ईश्वर प्रेम और प्रेमिका के प्रेम से भी महान है। सिर्फ एकबार करके तो देखें !
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