मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

सामूहिक सांस्कृतिक संपदा के निजीकरण के नायक बाबा रामदेव

    बाबा रामदेव को अभिताभ बच्चन के बाद सबसे बड़ा ब्रांड या मॉडल मान सकते हैं। वे योगी हैं और मॉडल भी। वे संत हैं लेकिन व्यापारी भी। वे गेरूआ वस्त्रधारी हैं लेकिन मासकल्चर के प्रभावशाली रत्न भी हैं। बाबा रामदेव ने योग की मार्केटिंग करते हुए जिस चीज पर सबसे ज्यादा जोर दिया है वह है योग का ‘प्रभाव’। वे अपने योग के सभी विवरण और ब्यौरों का प्रचार ‘प्रभाव’ को ध्यान में रखकर करते हैं। योग के ‘प्रभावों’ पर जोर देने का अर्थ है उनके वक्तव्य के विचारों की विदाई। वे बार-बार एक ही तरीके से विभिन्न आसनों को टीवी लाइव शो में प्रस्तुत करते हैं। उन्हें दोहराते हैं।
     बाबा रामदेव ने योग के उपभोक्ताओं को अपने डीवीडी,सीडी आदि की बिक्री करके, लाइव टीवी शो करके योग के साथ आधुनिक तकनीकोन्मुख भी बनाया है। वे योग को व्यक्तिगत उत्पादन के क्षेत्र से निकालकर मासप्रोडक्शन के क्षेत्र में ले गए हैं। पहले योग का लोग अकेले में अभ्यास करते थे,लेकिन बाबा रामदेव ने योग के मासप्रोडक्शन और जनअभ्यास को टेलीविजन के माध्यम से संप्रेषित किया है।
     योग का आज बाबा की वजह से मासप्रोडक्शन हो रहा है। यह वैसे ही मास प्रोडक्शन है जैसे अन्य वस्तुओं का पूंजीवादी बाजार के लिए होता है। मास प्रोडक्शन (जनोत्पादन) और जनोपभोग अन्तर्ग्रथित हैं।
    लोग सही ढ़ंग से योग सीखें ,इसके लिए  जरूरी है सही लोगों से प्रशिक्षण लें। सही लोगों को देशभर में आसानी से पा सकें इसके लिए जरूरी है मासस्केल पर योग शिक्षक तैयार किए जाएं। इसके लिए सभी इलाकों में योग प्रशिक्षण की सुविधाएं जुटायी जाएं और इसी परिप्रेक्ष्य के तहत बाबा ने योग के मासप्रोडक्शन और प्रशिक्षण की राष्ट्रीय स्तर पर शाखाएं बनायी हैं। बाबा के ट्रस्ट द्वारा निर्मित वस्तुओं के वितरण एजेंट हैं।और दुकानदारों की पूरी वितरण प्रणाली है । यह प्रणाली वैसे ही है जैसे कोई कारपोरेट घराना अपनी वस्तु की बिक्री के लिए वितरण और बिक्री केन्द्र बनाता है।
    बाबा रामदेव के प्रचार में व्यक्ति की क्षमता से ज्यादा योग की क्षमता के प्रचार-प्रसार पर जोर दिया जा रहा है। यह मानकर चला जा रहा है कि योग है तो ऊर्जा है, शक्ति है। इसके आगे वे किसी तर्क को मानने के लिए तैयार नहीं हैं। योग से शरीर प्रभावित होता है लेकिन कितना होता है ? कितने प्रतिशत लोगों को बीमारियों से मुक्त करने में इससे मदद मिली है इसके बारे में कोई स्वतंत्र वैज्ञानिक अनुसंधान अभी तक सामने नहीं आया है। कायदे से बाबा के सदस्यों में यह काम विभिन्न विज्ञान संस्थाओं को करना चाहिए जिससे सत्य को सामने लाने में मदद मिले।
   बाबा रामदेव का टेलीविजन से अहर्निश स्वास्थ्य लाभ का प्रचार अंततः विज्ञानसम्मतचेतना फैला रहा है या अवैज्ञानिक चेतना का निर्माण कर रहा है,इस पर भी गौर करने की जरूरत है। भारत जैसे देश में जहां अवैज्ञानिकचेतना प्रबल है ,वहां पर बाबा रामदेव का प्राचीनकालीन चिकित्साशास्त्र बहुत आसानी से बेचा जा सकता है। बाबा ने चिकित्सा विज्ञान को अस्वीकार करते हुए पुराने चिकित्सा मिथों का अतार्किक ढ़ंग से इस्तेमाल किया है। इस क्रम में बाबा ने चिकित्सा विज्ञान को ही निशाना बनाया है। उस पर तरह-तरह के हमले किए हैं।
    बाबा रामदेव ने मासकल्चर के फंड़े इस्तेमाल करते हुए योग और प्रणायाम के अंतहीन अभ्यास और इस्तेमाल पर जोर दिया है। योग करना,प्राणायाम करना जिस समय बंद कर देंगे। शारीरिक स्वास्थ्य गड़बड़ाने लगेगा। अंतहीन योग-प्राणायाम का वायदा अंततः कहीं नहीं ले जाता।
    बाबा रामदेव का फंडा है योग शिविर में शामिल हो,योग के पीछे चलो ,वरना पिछड़ जाओगे। इसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पक्ष हैं। जो योग के लिए खर्च कर सकते हैं,प्रतिदिन योग कर सकते हैं,उनके लिए शारीरिक उपद्रवों से कुछ हद तक राहत मिलती है। जो खर्च करने की स्थिति में नहीं हैं,जो रोज योग-प्राणायाम करने की स्थिति में नहीं हैं वे बेचारे देख-देखकर कुण्ठित होते रहते हैं।
     जो खर्च करने की स्थिति में हैं वे खाते-पीते घरों के थके-हारे लोग हैं। इन खाए-अघाए लोगों की सामाजिक भूमिका और ,श्रम क्षमता में बढ़ाने में मदद जरूर मिलती है। ये वे लोग हैं जिन्हें भारत की क्रीम कहते हैं। जिनके पास नव्य उदारीकरण के फायदे पहुँचे हैं। इन लोगों में नव धनाढ़यों का बड़ा हिस्ला है। बाबा रामदेव की योग मार्केटिंग में ये सबसे आगे हैं। इन्हें ही बाबा ने निशाना बनाया है।
       बाबा रामदेव ने अप्रत्यक्ष ढ़ंग से कारपोरेट घरानों की सेवा की है यह काम उन्होंने चिकित्सा विज्ञान पर हमला करके किया है। हम सब लोग जानते हैं कि कारपोरेट पूंजीवाद अपने हितों और मुनाफों के विस्तार के लिए मेडीकल साइंस तक को नष्ट करने की हद तक जा सकता है। और यह काम नव्य उदारतावाद के आने के बाद बड़े ही सुनियोजित ढ़ंग से किया जा रहा है। सरकार की तरफ से ऐसी नीतियां अपनायी जा रही हैं जिनके कारण सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं सिकुड़ती जा रही हैं। आज भी हिन्दुस्तान की गरीब जनता का एकमात्र सहारा सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं हैं,लेकिन केन्द्र सरकार सुनियोजित ढ़ंग इन्हें बर्बाद करने में लगी है।
      दूसरी ओर फार्मास्युटिकल कंपनियां बीमारियों के उपचार पर जोर दे रही हैं ,वे सरकार पर दबाब ड़ाल रही हैं कि सरकार इस दिशा में प्रयास न करे कि बीमारी क्यों पैदा हुई ? सरकार बीमारियों को जड़ से खत्म करने की दिशा में न तो नीति बनाए और नहीं पैसा खर्च करे।  वे चाहते हैं बीमारी को जड़ से खत्म न किया जाए। वे बार-बार बीमारी की थेरपी पर जोर दे रहे हैं। वे बीमारी को जड़ से खत्म करने पर जोर नहीं दे रहे हैं।
     बाबा रामदेव के योग का भी यही लक्ष्य है उनके पास प्राचीनकालीन थेरपी है जिसे वे जड़ी-बूटियों और प्राणायाम के जरिए देना चाहते हैं। फार्मास्युटिकल कंपनियां यह काम अपने तरीके से कर रही हैं और बाबा रामदेव उसी काम को अपने तरीके से कर रहे हैं। इस क्रम में बाबा रामदेव और फार्मास्युटिकल कंपनियां बड़ी ही चालाकी से एक जैसा प्रचार कर रहे हैं।
    मसलन फार्मास्युटिकल कंपनियां किसी बीमारी की दवा के आश्चर्यजनक परिणामों के बारे में बताती हैं तो बाबा रामदेव भी अपने योग के जादू से ठीक होने वाले व्यक्ति को मीडिया में पेश करते हैं। हमारे देश में अनेक बीमारियां हैं जो आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियों के कारण पैदा होती हैं। बाबा के योग के पास उनका कोई समाधान नहीं है। मसलन बड़े पैमाने पर प्रदूषित जल के सेवन या स्पर्श के कारण जो बीमारियां पैदा होती हैं उनका योग में कोई समाधान नहीं है। शराब के सेवन या नशीले पदार्थों के सेवन से जो बीमारियां पैदा होती हैं ,उनका कोई समाधान नहीं है। शराब या नशे के कारण पैदा होने वाली समस्याओं को आप नशे की वस्तु की बिक्री बरकरार रखकर दूर नहीं कर सकते।
    थैरेपी के जरिए  सामाजिक क्रांति करने के सारी दुनिया में अन्तर्विरोधी परिणाम आए हैं। योग से संभवतः कुछ बीमारियों का सामान्य उपचार हो जाए। छोटी-मोटी दिक्कत कम भी हो जाए लेकिन इससे बीमारी रहित समाज तैयार नहीं होगा। सबल-स्वस्थ भारत तैयार नहीं होगा।
    बाबा के योग को पाने के लिए व्यक्ति को अपनी गांठ से पैसा देना होगा। आयुर्वेद का इलाज बाबा के अस्पताल में कराने के लिए निजी भुगतान करना होगा। बाबा मुफ्त में उपचार नहीं करते। यही चीज तो कारपोरेट घराने चाहते हैं कि आम आदमी अपनी इलाज पर स्वयं खर्चा करे और स्वास्थ्य लाभ करे,वे अपने तरीके से सरकारी चिकित्सा व्यवस्था पर मीडिया में हमले करते रहते हैं,बाबा रामदेव अपने तरीके से चिकित्सा विज्ञान की निरर्थकता का ढ़ोल बजाते रहते हैं। बाबा और कारपोरेट फार्मस्युटिकल कंपनियां इस मामले में एक हैं ,दोनों ही चिकित्सा को निजी खर्चे पर करने की वकालत कर रहे हैं।
   बाबा और कारपोरेट घरानों की स्वास्थ्य सेवाएं उनके काम की हैं जो इनमें इलाज कराने का पैसा अपनी गांठ से दे सकते हैं। जो नहीं दे सकते वे इस सेवा के दायरे के बाहर हैं। बाबा रामदेव और उनके अंधभक्त जानते हैं कि हिन्दुस्तान की 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी 20 रूपये पर गुजारा करती है उसके पास डाक्टर को देने के लिए सामान्य फीस तक नहीं होती।ऐसी स्थिति में बाबा का योग उद्योग किसकी सेवा करेगा ?
    फार्मास्युटिकल कंपनियों ने एंटीबायोटिक दवाओं का प्रचार करके समूचे चिकित्साविज्ञान को ही खतरे में डाल दिया है। दूसरी ओर बाबा रामदेव ने योग के पक्ष में वातावरण बनाने के लिए आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को निशाना बनाया हुआ है। दोनों का लक्ष्य एक है आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की उपलब्धियों को नष्ट करो। दोनों का दूसरा लक्ष्य है मुनाफा कमाओ। ये दोनों ही सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर आए दिन हमले बोलते रहते हैं।
   बाबा रामदेव और फार्मास्युटिकल कंपनियों के चिकित्साविज्ञान पर किए जा रहे हमलों के काऱण स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में असमानता और भी बढ़ेगी । हम पहले से ही आधी-अधूरी स्वास्थ्य सेवाओं के सहारे जी रहे थे लेकिन नव्य उदारतावादी हमलों ने इन सेवाओं को और भी महंगा और दुर्लभ बना दिया है।
    इस युग का महामंत्र है हर चीज को माल बनाओ। बाबा ने योग को भी माल बना दिया। बाबा की चिकित्सासेवाएं कमोडिटी हैं,पैसे दीजिए लाभ लीजिए। पैसा से खरीदने के लिए आपको निजी बाजार में जाना होगा। इसके कारण विगत कई दशकों से स्वास्थ्य सेवाओं को निजी क्षेत्र के हवाले कर दिया गया है।
    मजेदार बात यह है निजी स्वास्थ्य सेवाओं का जनता भुगतान करती है लेकिन फायदा निजी क्षेत्र को होता है। सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भुगतान जनता करती है तो मुनाफा भी जनता के खाते में जाता है। लेकिन निजी कारपोरेट स्वास्थ्य सेवाओं से लेकर बाबा रामदेव की योग स्वास्थ्य सेवाओं तक भुगतान जनता करती है मुनाफा निजी कंपनियां और बाबा रामदेव की पॉकेट में जाता है। इस अर्थ में बाबा रामदेव ने योग को कारपोरेट मुनाफाखोरी के धंधे में तब्दील कर दिया है।
   ध्यान रहे नव्य उदारीकरण का यह मूल मंत्र है पैसा जनता का मुनाफा निजी कंपनियों का। सारी नीतियां इसी मंत्र से संचालित हैं और बाबा रामदेव का योग-प्राणायाम का खेल भी इसके सहारे चल रहा है।
   जिस तरह का हमला सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर कारपोरेट घरानों और बाबा रामदेव ने किया है उसका लाभ किसे मिला है ? उसका लाभ निजी कंपनियों और बाबा रामदेव के ट्रस्ट को मिला है। इससे राष्ट्र खोखला हुआ है। बाबा रामदेव के ट्रस्ट और निजी स्वास्थ्य कंपनियों के हाथों अरबों -खरबों की संपदा के जाने का अर्थ यह भी है कि अब हम स्वास्थ्य के क्षेत्र में आगे नहीं पीछे जा रहे हैं। समाज के अधिकांश समुदायों को बेसहारा छोड़कर जा रहे हैं। इनको मिलने वाले लाभ से राष्ट्र को कोई लाभ नहीं होने वाला,यह पैसा किसी नेक काम में ,विकास के किसी काम में खर्च नहीं होगा। यह स्वास्थ्यसेवाओं का व्यक्तिकरण है ,व्यवसायीकरण है। यह देशभक्ति नहीं है। पूंजी और मुनाफा भक्ति है। यह कारपोरेट संस्कृति है। यह भारतीय संस्कृति नहीं है। यह खुल्लमखुल्ला जनता के हितों के साथ गद्दारी है। यह जनता के साथ एकजुटता नहीं है।   
    स्वास्थ्य और बीमारी माल या वस्तु नहीं हैं। इन्हें पूंजीपतिवर्ग ने अपने मुनाफे के लिए माल या वस्तु में तब्दील किया है। बाबा का समूचा योग -प्राणायाम का कार्य व्यापार मुनाफे और माल की धारणा पर आधारित है। बाजार के  सिद्धांतों पर आधारित है। योग हमारी विरासत का हिस्सा रहा है। यह बाबा रामदेव का बनाया नहीं है। इसे सैंकड़ो-हजारों सालों से भारत में लोग इस्तेमाल करते आ रहे हैं। यह अमूल्य धरोहर है बाबा रामदेव ने इसे अपनी संपदा और मुनाफे की खान बनाकर जनता की धरोहर को लूटा है। बाबा रामदेव को परंपरागत योग को माल बनाकर बेचने और उससे अबाध मुनाफा कमाने का कोई नैतिक हक नहीं है। योग निजी बौद्धिक उत्पादन या सृजन नहीं है। वह भारत की जनता की साझा सांस्कृतिक संपदा है उससे कमायी गयी दौलत को बाबा को निजी ट्रस्ट के हवाले करने की बजाय राष्ट्र के हवाले करना चाहिए। क्योंकि योग पर उनका पेटेंट राइट नहीं बनता। ऐसी अवस्था में वे इससे मुनाफा अपने ट्रस्ट के खाते में कैसे डाल सकते हैं ?          
(उपरोक्त चित्र का योग और बाबा रामदेव के साथ कोई संबंध नहीं है)


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