गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

हिन्दुत्व की मोहक शैतानियत

     हिन्दुत्ववादी संगठनों और उनके अनुयायियों की मुझे लेकर सबसे बड़ी आलोचना यह है कि मुझे हिन्दुत्व में कोई अच्छी बात नजर क्यों नहीं आती ? मैं हमेशा उनकी आलोचना ही क्यों करता हूँ।
   ऐसा नहीं है बंधुओ कि मुझे आपके गुणों के बारे में मालूम नहीं है,आप सभी के पास व्यक्तिगत गुण-अवगुण हैं। हो सकता है आपमें से अनेक कई बेहतरीन गुणों से भरे इंसान हों। गुणों का संबंध व्यक्तिगत स्थिति से है। मैं आपमें से किसी को भी व्यक्तिगत तौर पर जानता नहीं हूँ इसलिए कुछ कह पाना मुश्किल है।
   मैं जब भी संघ परिवार की आलोचना करता हूँ तो एक राजनीतिक विचार के रूप में आलोचना करता हूँ। मैं निजी तौर पर अनेक संघी नेताओं का मित्र हूँ। आपलोग जानते हैं कि आदरणीय स्व.विष्णुकांतशास्त्री मेरे सहकर्मी थे,वे मेरे विभाग में हिन्दी के प्रोफेसर थे, संघ के बड़े नेता थे,बाद में यू-पी .के राज्यपाल भी रहे।
    मेरे मथुरा में हिन्दी के शिक्षक आदरणीय मथुरानाथ चतुर्वेदी संघ के मथुरा में संस्थापकों में से एक थे। उनसे मैंने वर्षों हिन्दी पढ़ी है और वे निजी तौर पर बेहद अच्छे व्यक्ति थे।  मजेदार बात यह है कि मैं उनके प्रभाव के कारण मार्क्सवाद की ओर आकर्षित हुआ,वे बड़े ही अचरज के साथ सोवियत संघ में हो रहे परिवर्तनों को देख रहे थे। वे सोवियत साहित्य और सोवियत राजनीतिक पत्रिकाओं के नियमित पाठक थे ।
     मैं उस समय मथुरा के एक संस्कृत कॉलेज में पढ़ता था।मेरी सारी शिक्षा-दीक्षा संस्कृत माध्यम से हुई है ,माथुर चतुर्वेद संस्कृत संस्कृत महाविद्यालय में मैंने संस्कृत के विभिन्न विषयों पर संस्कृत के उद्भट विद्वानों से पढ़ा है। मथुरानाथ चतुर्वेदी इसी कॉलेज में हिन्दी शिक्षक थे और बेहद ईमानदार व्यक्ति थे। उनका सादगीभरा जीवन था।  उनसे ही मुझे सबसे पहले सोवियत संघ में हो रहे समाजवादी परिवर्तनों की जानकारी मिली थी।
     आप लोगों को जानकर आश्चर्य होगा कि उन्होंने कभी संघ में शामिल होने के लिए नहीं कहा उलटे मुझे पढ़ने के लिए मार्क्सवादी साहित्य मुहैय्या कराया था। कहने का मेरा तात्पर्य यह है कि मैंने अपने जीवन में जिस आरएसएस वाले को देखा है और जिसका मेरे ऊपर गहरा असर था वह अंदर से सोवियत संघ में घट रहे परिवर्तनों से बेहद प्रभावित था।
    मैं 1967-68 में संस्कृत कॉलेज में भर्ती हुआ था और वहां 1979 तक पढता रहा और इस दौरान मेरा मथुरानाथजी से घनिष्ठतम संपर्क बना रहा। उनके ही कारण मुझे संघ और भाजपा के अनेक बड़े नेताओं को करीब से जानने का मौका मिला, अनेक से मिला भी हूँ,क्योंकि मथुरा में मेरे घर के पास ही एक धर्मशाला है कव्वीबाई धर्मशाला। उसमें ज्यादातर संघ ने नेता आकर रूकते थे। मैंने व्यक्तिगत तौर पर दीनदयाल उपाध्याय, अटलबिहारी वाजपेयी,नानाजी देशमुख आदि के साथ मथुरानाथजी के साथ ही खुलकर बातें की हैं। इसके कारण मैं जानता हूँ कि संघ के लोगों में अनेक लोग बेहद अच्छे होते हैं,मुश्किल है उनकी विचारधारा के साथ।
     हिन्दुत्व की विचारधारा मूलतःविभाजनकारी है,यह बात मैंने मार्क्सवादियों से नहीं जानी,इसे मैंने सबसे पहले संघ के जिम्मेदार कर्मठ कार्यकर्ताओं से ही जाना। मथुरा में हमारे पास कई मंदिर हैं,उनमें एक महत्वपूर्ण देवीमंदिर भी है जहां सभी लोग दर्शन -पूजा को आते हैं। मथुरा शहर के अधिकांश संघी भी यहां आते हैं। उनके निजी आचरण को देखकर ही मैंने यह जाना था कि संघ के लोग कट्टर जातिवादी और घनघोर मुस्लिम विरोधी होते हैं। यह मेरा किताबी ज्ञान नहीं है। व्यक्तिगत अनुभव पर आधारित ज्ञान और समझ है।
     मुझे हिन्दुत्ववादियों की एक बात बहुत अच्छी लगती थी उनकी सामाजिकता और मित्रता। वे जिसे मित्र बनाते थे उसका ख्याल रखते थे और अपने व्यवहार और दैनंदिन जीवन में मदद करने के कारण मित्रों को संघ में ले जाते थे। मैं संघियों का मित्र तो था लेकिन कभी शाखा में नहीं गया। मैं उनके विचारों को जानता था और उनके कामकाज की दूर से समीक्षा किया करता था और जैसा भी समझता था वैसा अपने दोस्तों को बताता भी था।
     मैं निजी तौर पर बाबू जयप्रकाशनारायण और अनेक स्थानीय भाकपा और माकपा के कॉमरेडों के संपर्क में 1973-74 में आया और उनका व्यवहार ,विचार और आचरण मुझे संघ के लोगों से कई मायनों में श्रेष्ठ लगा और आपात्काल में मैं संघ की ओर न जाकर मार्क्सवादियों और बाबू जयप्रकाश नारायण के लोगों के करीब रहा। मुझे आपातकाल में संघ का दोगलापन अच्छा नहीं लगा। लेकिन संघ के मित्रों से अच्छे संबंध बने रहे।
     मेरे सैंकड़ों मित्र थे जो संघ में थे और उनमें से ढ़ेर सारे लोग हमारे मथुरा में होने वाले कार्यक्रमों में सुनने नियमित आते थे ,इसका व्यापक असर भी देखा गया कि अनेकों ने संघ को छोड़ दिया। जबकि मथुरा में गिनती के एक दर्जन कॉमरेड नहीं थे। कहने का तात्पर्य यह है कि जो लोग इन दिनों मेरे संघ के प्रति आलोचनात्मक लेखन को लेकर परेशान हैं ,मैं उनसे यही कहना चाहता हूँ कि राजनीतिक तौर पर संघ कोई अच्छा काम करेगा तो मैं उसकी प्रशंसा जरूर करूँगा लेकिन मेरी जानकारी में संघ ने एक भी अच्छा राजनीतिक काम नहीं किया है।
    संघ बहुत बड़ा संगठन है। करोडों लोग उसके साथ हैं। लेकिन उसके पास हिन्दू समाज के लिए समाजसुधार का कोई कार्यक्रम नहीं है। वे सिर्फ हिन्दुत्व-हिन्दुत्व करके अप्रासंगिक एजेण्डे पर जनता को बांटकर व्यस्त रखते हैं। जबकि वे सकारात्मक कार्यक्रम बनाकर हिन्दुओं का भला कर सकते हैं। लेकिन ऐसा करना उनका लक्ष्य नहीं है। वे हिन्दुत्व के नाम पर लगातार आक्रामक होते गए हैं। वे नरमदिल थे लेकिन उनके हिन्दुत्ववादी विचारों ने नरमदिल को शैतानीदिल का बना दिया है। मुझे संघ से नहीं उसके शैतानी दिल-दिमाग से शिकायत है। इसने समाज का व्यापक अहित किया है।  





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