सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

9अक्टूबर को चे का स्मृति दिवस- महान क्रांतिकारी चेग्वारा की विरासत -2- फिदेल कास्त्रो

यहां भी बहुत कम प्रकाश है। यहां प्रकाश करना होगा। ऐसा न हो कि इसे अंधेरा कोना मान कर इस पर पूर्व हमला हो जाए । लेकिन यह स्क्वायर, ये सीढ़ियां अंधा कोना नहीं हैं, यह पूरी तरह से प्रकाशित कोना है, लाखों प्रकाशपुंजों से आलोकित कोना। यह स्क्वायर, ये सीढ़ियां सूर्य जैसी हैं, ऐसा सूर्य जिसे हमने यहां आते ही देखा, जिसे हमने जोसे मार्ती की मूर्ति पर पुष्प चढ़ाते समय देखा (दर्शकों में से किसी ने उनसे कुछ कहा)। हां ,लेकिन सेन मार्टिन की मूर्ति पर हम थोड़ा पहले पहुंचे, हालांकि सूर्य निकल चुका था। मैंने सोचा, यह लो! हमारा सूर्य शक्तिशाली और गर्म है। फिर मुझे लगा शायद यह उतना गर्म नहीं है। कहने का मतलब है कि मौसम ठंडा है लेकिन सूर्य दहक रहा है। 
सूर्य बहुत शक्तिशाली लगता था। लेकिन इस क्षण दो सूर्य हैं। एक वह सूर्य जो हमने आज सुबह यहां पहुंचने पर देखा तथा दूसरा हम यहां इस स्क्वायर, इन सीढ़ियों पर देख रहे हैं। यह सूर्य विचारों का सूर्य है। विचार की दुनिया को प्रकाशित करते हैं । मेरा तात्पर्य ऐसे विचारों से है जो न्यायपूर्ण हैं, जो दुनिया में शांति ला सकते हैं, जो युद्ध के गंभीर खतरे को खत्म कर सकते हैं, हिंसा का अंत कर सकते हैं। इसीलिए मैं विचारों की लड़ाई की बात करता हूं।
मैं आशावादी हूं और मुझे विश्वास है कि पहले की गई गलतियों, जबर्दस्त एकतरफा शक्तियों के पैदा हो जाने के बावजूद दुनिया को बचाया जा सकता है क्योंकि मैं यह मानता हूं कि विचार ताकत पर विजय पा सकते हैं । यहां हम यही देख रहे हैं।
मैं कोई लंबा-चौड़ा उग्र भाषण देने के लिए यहां नहीं आया हूं। बल्कि प्रत्येक शब्द बोलते समय सावधानी रखना मैं अपना कर्तव्य समझता हूं। मैंने अपने देश और दुनिया के बारे में बोलने की योजना बनाई थी और मैं वही कर रहा हूं। लेकिन आपको यहां देखे बगैर, यहां महसूस किए बगैर ऐसा नहीं कर सकता हूं।
पहले मैं यह कल्पना कर रहा था कि बैठक एक शांत कमरे में होगी जिसमें प्रत्येक व्यक्ति ठीक से बैठा होगा। फिर मैंने सोचा कि मैं अर्जेंटीनियाइयों से क्या बात करूंगा? कहीं पर भी भाषण देना बहुत जटिल काम होता है। यह आसान काम नहीं है। ऐसी बातों से बचना होता है जो किसी की भावना को आहत करें या जो किसी तरह की दखलंदाजी लगे और मुझे विश्वास है कि मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा है जो इस मेहमानवाज देश के आंतरिक मामलों में दखलंदाजी लगे। लेकिन मैंने सोचा कि मैं किसके बारे में बात करूं? मेरे दिमाग में विचार आया कि अधिकांश वक्ता अपना विषय श्रोताओं पर लाद देते हैं। वे इस या उस विषय पर बोलने के लिए पहले ही योजना बना लेते हैं। तभी मैंने विचार बनाया कि मैं पहले से कोई विषय तय न करूं और अपने सामने बैठे छात्रों से ही पूछूं कि वे किन विषयों पर मुझे सुनना चाहते हैं। अपनी मर्जी से जो चाहे बोलने के बजाए मैं चाहता था कि आप अपना विषय मुझे दें। मैंने सोचा कि यही अधिक लोकतांत्रिक तथा उचित होगा।
यह सब शाम के बाद इस विश्वविद्यालय में आए भूचाल, तूफानी लहर तथा इस झंझावात के आने से पहले की बात थी। मैंने चारों तरफ देखकर विचार किया कि क्या पहले सोची गई रणनीति काम कर सकती है। मैंने महसूस किया कि यह संभव नहीं है। लेकिन वहां किसी ने मुझसे...किसी विषय पर (उनसे चे के बारे में बोलने के लिए कहा गया) चे के बारे में बोलने के लिए कहा ।
मैं यहां विस्तार से बात कर सकता हूं लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में इसका कोई मतलब नहीं होगा। मैं कुछ बातें कर सकता हूं। मुझे चे के बारे में बोलने के लिए कहा गया है । मैं आज सुबह सेन मार्टिन की मूर्ति के सामने ही उनके बारे में बोला था क्योंकि मेरे विचार से वह असाधारण शख्सियत थे।
चे सैनिक के रूप में हमारी सेना में भर्ती नहीं हुए थे। वह डॉक्टर थे। वह संयोग से मैक्सिको गए। वह गुआटेमाला तथा लैटिन अमरीका में कई स्थानों पर गए। वह खदान क्षेत्र में थे जहां काम करना बहुत मुश्किल है। उन्होंने अमेजन में कुष्ठरोगियों के अस्पताल में काम किया।
लेकिने मैं चे की केवल एक विशेषता के बारे में बात करूंगा जिसका मैं बहुत कायल हूं। हर सप्ताहांत चे मैक्सिको शहर के बाहर एक ज्वालामुखी पोपोकेटेपेटी के शिखर पर चढ़ने की कोशिश करते थे। यह बहुत ऊंचा पर्वत शिखर है जो पूरे वर्ष बर्फ से ढका रहता है। वह अपनी पूरी ताकत लगाकर चढ़ना शुरू करते, जबर्दस्त कोशिश करते लेकिन चोटी पर कभी नहीं पहुंच पाते। उनकी दमे की बीमारी हर बार उनके आड़े आ जाती थी। अगले सप्ताह, वह बकौल उनके, इस 'पोपो' शिखर पर चढ़ने की फिर नाकाम कोशिश करते। वह बार-बार कोशिश करते। हालांकि वह चोटी पर नहीं पहुंच पाए लेकिन जीवन भर इस पोपोकेटेपेटी शिखर पर चढ़ने की कोशिश करते रहे । इससे उनके दृढ़ निश्चय, उनके आत्मिक बल, उनके अध्यवसाय का पता चलता है जिसकी मैं बहुत प्रशंसा करता हूं।
उनकी दूसरी विशेषता यह थी कि जब किसी काम के लिए हमारे छोटे से समूह को किसी वालंटियर की जरूरत होती थी तो वह ही सबसे पहले खुद को पेश करते थे।
डॉक्टर के रूप में रोगियों तथा घायलों को देखने के लिए वह हमेशा ही पीछे रुक जाते थे। कुछ खास परिस्थितियों में जब हम वनों से घिरे पहाड़ी इलाकों में होते थे तथा चारों ओर से हमारा पीछा हो रहा था तो मुख्य दल को चलते रहना होता था। कुछ हल्के निशान छोड़ दिए जाते थे जिससे कि डॉक्टर आसपास कुछ दूर मरीजों और बीमारों की देखभाल कर सके। यह सब तब तक चलता रहा जब तक वह समूह में एकमात्र डॉक्टर थे। बाद में और डॉक्टर आ गए।
आपने कुछ घटनाओं का जिक्र करने के लिए कहा है। मैं एक बहुत मुश्किल कार्रवाई के विषय में बताऊंगा। जब हम प्रांत के उत्तरी तट पर उतराई के एक पहाड़ पर थे तो पता चला कि कुछ और लोग उतर कर वहां आ रहे हैं। इस उतराई पर पहुंचने के बाद पहले कुछ दिन हमें बहुत मुसीबतें झेलनी पड़ी थीं। जो लोग अब उतरे थे उनका साथ देने के लिए हमने बहुत साहसिकता का काम किया। तट पर अच्छी तरह से जमकर बैठी यूनिट पर हमला करना सैनिक दृष्टि से बुद्धिमत्ता का काम नहीं था।
मैं इसका पूरा विवरण नहीं दूंगा। तीन घंटे तक चली इस लड़ाई के बाद हमने सौभाग्य से सभी तरह का संचार काट दिया। इस लड़ाई में भी उन्होंने मिसाल योग्य काम किया। इस लड़ाई में शामिल एक तिहाई लोग या तो मर गए या घायल हो गए। एक डॉक्टर के रूप में उन्होंने घायल शत्रुओं की भी देखभाल की। यह बड़ी असामान्य सी बात थी। शत्रु पक्ष के कुछ सैनिक घायल नहीं हुए थे लेकिन उन्होंने अपने कामरेडों के साथ-साथ भारी संख्या में घायल शत्रु सैनिकों की भी देखभाल की ।
आप इस व्यक्ति की संवेदनशीलता के बारे में कल्पना नहीं कर सकते । मुझे एक वाकया याद है। हमारा एक घायल कामरेड बचने की हालत में नहीं था। हमें उस इलाके से फौरन बाहर निकलना था क्योंकि पता नहीं कब विमान आ जाए। लेकिन सौभागय से लड़ाई के दौरान एक भी जहाज नहीं आया। सामान्यत: इस तरह की लड़ाई के दौरान बीस मिनट के भीतर पहले विमान आ जाते हैं। लेकिन इस बार हमने अचूक गोलियों से उनकी संचार व्यवस्था ठप्प कर दी थी। हमें कुछ अतिरिक्त समय मिल गया था लेकिन हमें घायलों को देखना था और वहां से तुरंत निकल जाना था। उन्होंने निश्चित मौत से जूझ रहे हमारे एक कामरेड के बारे में बताया उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। कामरेड को वहां से हिलाया नहीं जा सकता था। कभी-कभी गंभीर रूप से घायल लोगों को उठाना मुश्किल हो जाता है। चूंकि आपने शत्रु के जख्मों का इलाज किया है तथा कइयों को बंदी बना कर उनके साथ सम्मान का सलूक किया है इसलिए आपको विश्वास का सहारा लेना पड़ता है। हमने कभी भी युद्धबंदी के साथ बुरा व्यवहार नहीं किया है और न ही कभी उन्हें मारा है । कभी-कभी हम दुर्लभ मात्रा में उपलब्ध अपनी दवाईयां भी उन्हें दे देते थे।
इस नीति के कारण हमें युद्ध में बहुत कामयाबी मिलती थी । किसी संघर्ष में सही ध्येय के लिए लड़ रहे लोगों को ऐसा आचरण करना चाहिए जिससे शत्रु भी उसका सम्मान करे।
उस घटना में हमें अपने बहुत से घायल कामरेडों को पीछे छोड़ना पड़ा। कुछ तो बहुत गंभीर रूप से घायल थे। बाद में उन्होंने बहुत तकलीफ के साथ जो बताया वह मेरे दिल को छू गया। हमारे एक कामरेड के बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। उन्होंने चलने से पहले इस मरणासन्न कामरेड पर झुककर उसका माथा चूमा ।
चे एक असाधारण मनुष्य थे।वह असाधारण रूप से सुसंस्कृत और प्रतिभासंपन्न व्यक्ति थे। उनके अध्यवसाय और उनकी दृढ़ता के विषय में मैं आपको पहले ही बता चुका हूं। क्रांति की सफलता के बाद उन्हें जो भी कार्य दिया गया उन्होंने उसे तुरंत स्वीकार किया। वह नेशनल बैंक ऑफ क्यूबा के डायरेक्टर थे। उस समय वहां पर एक क्रांतिकारी की बहुत जरूरत थी। क्रांति की हाल ही में विजय हुई थी। देश की आरक्षित निधियों को चुरा लिया गया था। इसलिए संसाधन बहुत कम थे।
हमारे शत्रुओं ने इसका मजाक उड़ाया। वे हमेशा मजाक उड़ाते हैं, हम भी उड़ाते हैं। लेकिन इस मजाक का राजनीतिक मंतव्य था। इसके अनुसार मैंने एक दिन घोषणा की कि 'हमें एक इकोनामिस्ट चाहिए।' चे ने तुरंत हाथ खड़ा कर दिया। उन्हें गलती लगी थी। उन्होंने सोचा कि मैंने कहा था कि हमें एक कम्युनिस्ट चाहिए और इस तरह से उन्हें चुना गया । खैर चे क्रांतिकारी थे, कम्युनिस्ट थे और उत्कृष्ट अर्थशास्त्री थे क्योंकि उत्कृष्ट अर्थशास्त्री होना इस बात पर निर्भर करता है कि आपने देश की अर्थव्यवस्था के इस अंग अर्थात नेशनल बैंक ऑफ क्यूबा के प्रभारी के रूप में क्या कार्य करने का विचार बनाया है। उन्होंने एक कम्युनिस्ट और एक अर्थशास्त्री के रूप में यह दायित्व बखूबी संभाला। उनके पास कोई डिगरी नहीं थी लेकिन उन्होंने बहुत कुछ देखा और पढ़ा था।
चे ने ही हमारे देश में स्वैच्छिक कार्य के विचार को आगे बढ़ाया क्योंकि वह खुद हर रविवार को स्वैच्छिक कार्य करने के लिए जाते थे। किसी दिन वह खेती का कार्य करते तो किसी दिन नई मशीनरी की जांच करते तो किसी दिन निर्माण कार्य करते। उन्होंने इस प्रथा की विरासत हमारे लिए छोड़ी है। उनके पदचिह्नों पर चलते हुए आज लाखों क्यूबाइयों ने यह प्रथा अपनाई है।
वह हमारे लिए बहुत सारी यादें छोड़ गए हैं। इसलिए मैं कहता हूं कि वह मेरी जिंदगी में आए सबसे महान और असाधारण व्यक्ति हैं। मेरा विश्वास है कि अवाम में इस तरह के करोड़ों-करोड़ व्यक्ति मौजूद हैं।
कोई भी उत्कृष्ट व्यक्ति तब तक कुछ नहीं कर पाएगा जब तक कि उसके जैसी विशेषताएं विकसित करने में सक्षम लाखों लोग न हों। यही कारण है कि हमारी क्रांति ने निरक्षरता को दूर करने तथा शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए हैं ।
(फिदेल कास्त्रो- नव उदारवाद का फासीवादी चेहरा ,अनुवाद-रामकिशन गुप्ता ,ग्रंथ शिल्पी, भी-7,सरस्वती काम्प्लेक्स,सुभाष चौक,लक्ष्मीनगर,दिल्ली-110092 ,मूल्य-325, से साभार)

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