मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

बाबा रामदेव की इमेजों का जादू


   टेलीविजन युग की यह खूबी है कि जो टीवी पर्दे पर दिखता है वही सत्य है। जो पर्दे पर नहीं दिखता उसका अस्तित्व भी दर्शक मानने को तैयार नहीं होते। इस तरह के दर्शकों की अनेक प्रतिक्रियाएं मेरे बाबा रामदेव पर केन्द्रित लेखों पर सामने आयी हैं। वे टेलीविजन निर्मित यथार्थ और प्रचार पर आंखें बंद करके विश्वास करते हैं।वे यह सोचने को तैयार नहीं हैं कि बाबा रामदेव और योग की टीवी निर्मित इमेज फेक इमेज है।
    जो लोग बाबा रामदेव को टीवी पर देख रहे हैं वे यह मानकर चल रहे हैं बाबा ही योग के जनक हैं। योग का तो सिर्फ स्वास्थ्य से संबंध है। बाबा के टीवी दर्शकों की यह भी मुश्किल है कि उन्हें ज्ञान-विज्ञान से कोई लेना-देना नहीं है। वे टीवी इमेजों के जरिए यह भी मानकर चल रहे हैं कि बाबा रामदेव जो बोलते हैं, सच बोलते हैं,सच के अलावा कुछ नहीं बोलते। वे टीवी प्रचार से इस कदर अभिभूत हैं कि बाबा रामदेव के बारे में किसी वैज्ञानिक बात को भी मानने को तैयार नहीं हैं। यहां तक कि वे अपने प्राचीन ऋषियों-मुनियों की योग के बारे में लिखी बातें मानने को तैयार नहीं हैं। वे भीड़ की तरह बाबा रामदेव का वैसे ही अनुकरण कर रहे हैं जैसे कोई साबुन के विज्ञापन को देखकर साबुन का उपभोग करने लगता है। उसके बारे में वह कुछ भी जानना नहीं चाहता।
   बाबा रामदेव कोई ऐसी हस्ती नहीं हैं कि उनके बारे में सवाल न किए जाएं। जो लोग नाराज हैं हमें उनकी बुद्धि पर तरस आता है। वे बाबा के विज्ञापनों और प्रौपेगैण्डा चक्र में पूरी तरह फंस चुके हैं।
    बाबा रामदेव ने योग के उपभोग का लोकतंत्र निर्मित किया है। यहां योग करने वालों में स्वास्थ्य संबंधी असमानताएं हैं। इस असमानता को मिटाना बाबा का लक्ष्य नहीं है। वे इस असमानता को बनाए रखते हैं। यौगिक क्रियाओं का सार्वजनिक प्रदर्शन करके योग के उपभोग का वातावरण और फ्लो बनाए रखना चाहते हैं। वे योग के नियमित उपभोग के माध्यम से अपने ग्राहक को बांधे रखते हैं। इस क्रम में वे योग को बनाए रखते हैं लेकिन अन्य चीजें वे ठीक नहीं कर पाते।
    मसलन वे एडस या कैंसर ठीक नहीं कर सकते। किसी भी बड़ी बीमारी को ठीक नहीं कर सकते। प्राणायाम से आराम मिलता है और इस आराम से अनेक सामान्य समस्याएं कम हो जाती हैं जैसे रक्तचाप वगैरह।
   बाबा रामदेव जब योग का प्रचार करते हैं तो योग से सुख मिलेगा,आराम मिलेगा, शांति मिलेगी और शरीर निरोगी बनेगा आदि वायदे करते हैं। ये वायदे वैसे ही हैं जैसे कोई माल अपनी बिक्री के लिए विज्ञापन में करता है। मजेदार बात यह है कि साधारण आदमी यदि प्रतिदिन आधा-एक घंटा व्यायाम कर ले तो वह सामान्यतौर पर चुस्त-दुरूस्त रहेगा। यदि व्यक्ति सुबह जल्दी उठे और व्यायाम करे तो वह सामान्य तौर पर स्वस्थ हो जाएगा। लेकिन अब मुश्किल यह है कि बाबा रामदेव से हम ये बातें पैसा देकर सुन रहे हैं, और पैसा देकर खरीद रहे हैं, पैसा देकर मान रहे हैं।
       बाबा रामदेव ने योग को ग्लैमर का रूप दिया है। उसे दिव्य-भव्य बनाया है। इसके कारण सभी वर्ग के लोगों में इसकी सामान्य अपील पैदा हुई है। बाबा रामदेव अपने योग संबंधी व्याख्यानों में व्यक्ति ‘क्या है ’ और ‘क्या होना चाहता है’ के अंतर्विरोध का बड़े कौशल के साथ इस्तेमाल करते हैं। वे इस क्रम में व्यक्ति को स्वास्थ्य और शरीर के प्रति जागरूक बनाते हैं। शरीर स्वस्थ रखने के प्रति जागरूकता पैदा करते हैं।
     बाबा रामदेव अपने स्वस्थ शरीर के जरिए बार-बार टीवी पर लाइव शो करके जब योग दिखाते हैं तो योग को ग्लैमरस बनाते हैं। सुंदर शरीर की इमेज बार-बार सम्प्रेषित करते हैं। सुंदर शरीर के प्रति इच्छाशक्ति जगाते हैं। स्वस्थ शरीर का दिवा-स्वप्न परोसते हैं और यही उनके व्यापार की सफलता का रहस्य भी है। वे आम टीवी दर्शक की इच्छाशक्ति और अनुभूति के बीच के अंतराल को अपनी यौगिक क्रियाओं के जरिए भरते हैं। उसके प्रति आकर्षण पैदा करते हैं।
   जो लोग यह सोच रहे हैं कि बाबा रामदेव का योग का अभ्यास उन्हें भारतीय संस्कृति का भक्त बना रहा है वे भ्रम में हैं। विज्ञापन और टेलीविजन के माध्यम से योग का प्रचार-प्रसार मूलतः योग को एक माल बना रहा है। आप पैसा खर्च करें और योग का उपभोग करें। यहां भोक्ता की स्व-निर्भर छवि ,निजता और जीवनशैली पर जोर है। वे योग का प्रचार करते हुए योग की विभिन्न वस्तुओं और आसनों की बिक्री और सेवाओं को उपलब्ध कराने पर जोर दे रहे हैं। वे योग संबंधी विभिन्न सूचनाएं दे रहे हैं। योग की सूचनाओं को देने के लिए वे जनमाध्यमों का इस्तेमाल कर रहे हैं। क्योंकि लोकतंत्र में जनमाध्यमों के अलावा किसी और तरीके से सूचनाएं नहीं दी जा सकतीं।
   बाबा रामदेव की खूबी यह है कि उन्होंने योग को फैशन के पैराडाइम में ले जाकर प्रस्तुत किया है। आज योग-प्राणायाम जीवनशैली का हिस्सा है। फैशन स्टेटमेंट है। यह मासकल्चर की एक उपसंस्कृति है। योग पहले कभी संस्कृति का हिस्सा था। लेकिन इनदिनों यह मासकल्चर का हिस्सा है। बाबा रामदेव की सुंदर देहयष्टि एक परफेक्ट मॉडल की तरह है जो योग का प्रचार लाइव टेलीकास्ट के जरिए करते हैं। बाबा रामदेव की बारबार टीवी पर प्रस्तुति और उसका प्रतिदिन करोड़ों लोगों द्वारा देखना योग को एक सौंदर्यपरक माल बना रहा है। बार-बार एक ही चीज का प्रसारण योग के बाजार को चंगा रखे हुए है। वे योग के जरिए स्वस्थ भारत का सपना बेचने में सफल रहे हैं।
    बाबा रामदेव अपने प्रचार के जरिए स्वस्थ और श्रेष्ठ जीवन का विभ्रम पैदा कर रहे हैं। योग को सर्वोत्कृष्ट बता रहे हैं। जीवनशैली के लिए श्रेष्ठतम बता रहे हैं।  वे बार-बार यह भी कहते हैं कि लाखों-करोड़ों लोग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं तुम भी इस्तेमाल करो।
    वे विज्ञापन कला का अपने प्रसारणों में इस्तेमाल करते हैं फलतः उनकी बातें अति-स्वाभाविक लगती हैं। उनकी यही अति-स्वाभाविकता योग और बाबा रामदेव के प्रति किसी भी आलोचनात्मक विवेक को अपहृत कर लेती है। अति-स्वाभाविकता का गुण है कि आप सवाल नहीं कर सकते। वे अपनी प्रस्तुतियों के जरिए योग और स्वयं को सवालों के दायरे के बाहर ले जाते हैं। वे इसे शुद्ध ‘कॉमनसेंस’ बना देते हैं। इसके कारण दर्शक को योग के पीछे सक्रिय विचारधारा,व्यवसाय आदि नजर नहीं आते। वह इसके मकसद के बारे में भी सवाल नहीं उठाता बल्कि होता उलटा है जो सवाल उठाते हैं बाबा रामदेव के भक्त उस पर ही पिल पड़ते हैं। वे बाबा रामदेव की टीवी निर्मित इमेज के अलावा और कोई इमेज देखने,सुनने और मानने को तैयार नहीं हैं। इस अर्थ में बाबा रामदेव की इमेज के गुलाम हैं। यह वैसे ही है जैसे आप लक्स साबुन खरीदते हुए करिश्मा कपूर या ऐश्वर्याराय की इमेज के गुलाम होते हैं,उसका अनुकरण करते हैं और बाजार से जाकर लक्स साबुन खरीद लेते हैं और नहाने लगते हैं।
     बाबा रामदेव का योग को कॉमनसेंस के आधार पेश करना और उसका बार-बार प्रसारण इस बात का भी प्रमाण है कि वे योग को बाजारचेतना की संगति में लाकर ही बेचना चाहते हैं। कॉमनसेंस का वे योग के लिए फुसलाने की पद्धति के रूप में इस्तेमाल करते हैं।      
   



7 टिप्‍पणियां:

  1. tum to aise baat kar rahe ho jaise uski dukaan chalne se tumahari band ho rahi hai .
    chintan ke liye samaj or desh mein or bhi bahut se mudde hai ....tumeh or kuch nahi milaa ,

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  2. ढेर सारे बाबाजी हैं जो लोगों को मूर्ख बनाए हुए हैं. सबसे बड़ा बेबकूफ बनाने वाला बाबा है फिदेल कास्त्रो, इस बाबा ने अपनी बाबागिरी के चलते सारे क्यूबा को बेबकूफ बनाया और खुद अय्याशियाँ करता रहा. दुनिया भर में इस बाबा के भक्त बेबकूफ बने फिदेल कास्त्रो का नाम जपते रहते हैं. आपने पिछली पोस्ट में रामदेव को कामुकता का जनोत्सव बताया था. कामुकता का सबसे बड़ा जनोत्सव तो ये फिदेल कास्त्रो नाम का बाबा है.

    पंडिज्जी, जैसे आप इस फिदेल कास्त्रो नाम के बाबा के भगत हैं, आप इस बाबा के आगे अपनी आँखें मूँद कर मुंडी हिलाते रहते हैं, वैसे ही बाबा रामदेव के भगत आँखें मूँद कर मुंडी हिलाते रहते हैं. जैसे आप फिदेल कास्त्रो के नाम का मज़मा लगाते हैं, वैसे ही लोग रामदेव के नाम का मज़मा लगाते है. आपको बाबा रामदेव की दुकानदारी से एतराज है, वैसे ही रामदेव के भगतों को बाबा फिदेल कास्त्रो की दुकानदारी से एतराज है. एक सेल्समेन को दूसरे सेल्समेन से एतराज होना स्वाभाविक ही है.

    आप भी तो साम्यवाद का नकली खुशबूदार साबुन के विज्ञापन में फंसकर गुलाम बन बैठे हैं. साम्यवाद भी ग्लैमर/ फैशन स्टेटमेंट है. इसका गुलाम क्यूबा-क्यूबा, चीन-चीन, ,माओ-माओ भजता रहता है, अपने शरीर के लत्ते नहीं देखता. गुलाम ही अपनी बेड़ियों का सबसे बड़ा समर्थक होता है इसलिए आपको अपनी गुलामी नहीं देख पा रहे.

    मैंने आपको पहले सलाह दी थी, पंडिज्जी अगली बार जब मथुरा जाओ तो एक स्टेशन पहले उतर जाना. नहीं तो सारी जिन्दगी इसे ही साम्यवाद के साबुन का ढोल पीटते कट जायेगी.

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  3. ढेर सारे बाबाजी हैं जो लोगों को मूर्ख बनाए हुए हैं. सबसे बड़ा बेबकूफ बनाने वाला बाबा है फिदेल कास्त्रो, इस बाबा ने अपनी बाबागिरी के चलते सारे क्यूबा को बेबकूफ बनाया और खुद अय्याशियाँ करता रहा. दुनिया भर में इस बाबा के भक्त बेबकूफ बने फिदेल कास्त्रो का नाम जपते रहते हैं. आपने पिछली पोस्ट में रामदेव को कामुकता का जनोत्सव बताया था. कामुकता का सबसे बड़ा जनोत्सव तो ये फिदेल कास्त्रो नाम का बाबा है.

    पंडिज्जी, जैसे आप इस फिदेल कास्त्रो नाम के बाबा के भगत हैं, आप इस बाबा के आगे अपनी आँखें मूँद कर मुंडी हिलाते रहते हैं, वैसे ही बाबा रामदेव के भगत आँखें मूँद कर मुंडी हिलाते रहते हैं. जैसे आप फिदेल कास्त्रो के नाम का मज़मा लगाते हैं, वैसे ही लोग रामदेव के नाम का मज़मा लगाते है. आपको बाबा रामदेव की दुकानदारी से एतराज है, वैसे ही रामदेव के भगतों को बाबा फिदेल कास्त्रो की दुकानदारी से एतराज है. एक सेल्समेन को दूसरे सेल्समेन से एतराज होना स्वाभाविक ही है.

    आप भी तो साम्यवाद का नकली खुशबूदार साबुन के विज्ञापन में फंसकर गुलाम बन बैठे हैं. साम्यवाद भी ग्लैमर/ फैशन स्टेटमेंट है. इसका गुलाम क्यूबा-क्यूबा, चीन-चीन, ,माओ-माओ भजता रहता है, अपने शरीर के लत्ते नहीं देखता. गुलाम ही अपनी बेड़ियों का सबसे बड़ा समर्थक होता है इसलिए आपको अपनी गुलामी नहीं देख पा रहे.

    मैंने आपको पहले सलाह दी थी, पंडिज्जी अगली बार जब मथुरा जाओ तो एक स्टेशन पहले उतर जाना. नहीं तो सारी जिन्दगी इसे ही साम्यवाद के साबुन का ढोल पीटते कट जायेगी.

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