बुधवार, 13 अक्टूबर 2010

जनता के भरोसेमंद ईमानदार दोस्त हैं कम्युनिस्ट

           एक पाठक ने लिखा है  ‘‘कामरेड चतुर्वेदी जी, यह तो अति हो गई!!!! भई दो राज्यों में सत्ता है समस्त भारत पर प्यार का आरोप थोप दिया ।’’ एक अन्य पाठक ने फेसबुक पर लिखा है ‘‘ kisne kaha bharat maen janta kamuniston ko pyar kartee hae ?bhaarat kee janta apnee jadon se pyar kartee hae .’’ ये दोनों मेरे बड़े ही मूल्यवान पाठक है और नेट दोस्त भी हैं। मैं निजी तौर पर इनकी टिप्पणियों का सम्मान करता हूँ। लेकिन जो बात इन दोनों ने कही है उस पर कुछ रोशनी डालना चाहूँगा।
     मैं आज भी मानता हूँ कि कम्युनिस्टों से भारत की जनता प्यार करती है। क्योंकि वे ही ईमानदारी से जनता के हकों की रक्षा के लिए सबसे भरोसेमंद और ईमानदार दोस्त साबित हुए हैं। सवाल यह नहीं है कि वे कितने राज्यों और देशों में शासन कर रहे हैं। आज भी दुनिया के अधिकांश देशों में पूंजीपतिवर्ग के दलों का शासन है। स्वयं कार्ल मार्क्स जब हुए थे तब सारी दुनिया में पूंजीपतिवर्ग का डंका बज रहा था लेकिन मार्क्स-एंगेल्स को मजदूरों और वंचितों का बेइन्तहा प्यार मिला था। आज भी बाइबिल के बाद सबसे ज्यादा बिकने वाली किताब मार्क्स की ‘पूंजी’ है।
        भारत में एक जमाने में गिनती के कम्युनिस्ट हुआ करते थे लेकिन उनका राजनीति पर व्यापक असर था। खासकर लेखकों-बुद्धिजीवियों से लेकर कलाकारों तक सभी पर साम्यवाद और मार्क्सवाद का व्यापक प्रभाव था। स्वाधीनता संग्राम के दौरान 1940-47 के  बीच जितने भी संग्राम हुए उनकी अग्रणी कतारों में कम्युनिस्ट थे। भगतसिंह और उनके साथियों पर कम्युनिस्टों का व्यापक असर था।
     हिन्दी के बड़े लेखक थे प्रेमचंद उन्होंने यहां तक लिखा कि मैं बोल्शेविक उसूलों का कायल हूँ। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि आप एक साधारण सी बात पर गौर नहीं करना चाहते कि भारत के मजदूर आंदोलन की अग्रणी कतारों में कम्युनिस्ट हैं और उनके मजदूर संघों की सदस्यता लाखों में है। आजाद भारत के किसानों के सबसे बड़े संघर्षों का नेतृत्व कम्युनिस्टों ने किया है।
      भारत के सिनेमा जगत के बेहतरीन संगीतकार,गीतकार,कलाकारों की एक विशाल पीढ़ी कम्युनिस्टों द्वारा निर्मित ‘इप्टा’ नामक संगठन की देन है। आंध्र के तेलंगाना आंदोलन के जनकवि मख़दूम से लेकर शंकरशैलेन्द्र तक ,शाहिर लुधियानवी से लेकर कैफी आजमी तक की पीढ़ी मार्क्सवाद और कम्युनिस्ट आंदोलन का हिस्सा रही है। इन लोगों की रचनाएं आज भी लाखों-करोड़ो लोगों में सुनी जाती हैं और आनंद देती हैं। 
      यह सच है कि कम्युनिस्टों की स्थिति आज तीन राज्यों तक सीमित है लेकिन ये राज्य भारत का ही हिस्सा हैं और इन राज्यों में प्रगति के गगनचुम्बी मानदण्ड किसने बनाए ? क्या कांग्रेस या भाजपा ने बनाए ? क्या हम भूल सकते हैं कि केरल में भूमि सुधार सबसे पहले पूरे हुए। सारा राज्य साक्षर बना । ये सारे काम संचार क्रांति के आने पहले ही पूरे कर लिए गए।
    कम्युनिस्ट कैसे शासन करते हैं और कांग्रेस के नेता किस तरह शासन करते हैं। इसका एक ही उदाहरण काफी है । सन् 1957 मे केरल में जब पहलीबार कम्युनिस्टों के नेतृत्व में सरकार बनी तो कोई नहीं जानता था कि कम्युनिस्ट कैसे काम करेंगे ? क्योंकि पूंजीवादी लोकतंत्र में सारी दुनिया में कम्युनिस्टों के हाथ में पहलीबार सत्ता आयी थी। कम्युनिस्टों ने चुनाव में जीतकर विजय हासिल की थी और यह ऐसा करिश्मा था जिसकी कभी कम्युनिस्टों ने कल्पना तक नहीं की थी। उस समय मुख्यमंत्री थे ईएमएस नम्बूदिरीपाद। वे मुख्यमंत्री होकर भी निजी भाड़े के मकान में रहते थे,उनके मोर्चे के विधायक भाड़े के मकानों या निजी मकानों में रहते थे, ईएमएस स्वयं साईकिल चलाकर मुख्यमंत्री दफ्तर जाते थे और उनका टाइपराइटर साईकिल के पीछे बंधा रहता था। इतनी सादगी से उस जमाने में न तो राष्ट्रपति रहते थे और न प्रधानमंत्री रहते थे।
    ईएमएस का जन्म वंश परंपरा के अनुसार आदि शंकराचार्य के कुल में हुआ था वे सादगी में आदर्शपुरूष थे। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति पार्टी को दान में दे दी। वे जब मरे तो उनके पास कोई संपत्ति नहीं थी। यही हाल अन्य पोलिट ब्यूरो नेताओं का है। ईएमएस को आधुनिक केरल का निर्माता कहा जाता है।यह गौरव जनता के प्यार के बिना संभव नहीं है। वे सारी जिंदगी निष्कलंक राजनेता बने रहे।असाधारण विद्वान थे। उनकी रचनाएं 100 से ज्यादा खंडों में मलयालम में हैं। तकरीबन य़ही हाल पश्चिम बंगाल के प्रतीक पुरूष ज्योति बसु का है।
    केरल, पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में सरकारें जनता के प्यार से ही चल रही हैं और इन सरकारों ने सीमा में रहकर अनेक काम किए हैं। इनकी आबादी कम नहीं है। वामदलों के विभिन्न संगठनों के 100 करोड़ के देश में एक करोड़ से ज्यादा सदस्य हैं। मुश्किल यह है कि कम्युनिस्टों का हमारे देश में असमान विकास हुआ है। सन् 1977 के पहले तक भारत की संसद में प्रमुख विपक्षी दल कम्युनिस्ट पार्टी थी। सन् 1952-1977 के बीच में कांग्रेस के बाद वामदलों का ही सबसे बड़ा संसदीय ग्रुप था। क्या कोई इतने लंबे समय तक जनता के प्यार के बिना प्रमुख विपक्ष में रह सकता है ?







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