बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

हाड़सौंदर्य अपमान है औरत का

मीडिया में इन दिनों कामुकता की परेड़ चल रही है। खास वे अखबार और टीवी चैनल इस मामले में आगे हैं जहां पेज थ्री कल्चर का रंग चढ़ा हुआ है। गॉसिप और पार्टी के फोटोग्राफ इतनी बड़ी तादाद में प्रकाशित किए जा रहे हैं कि देखकर आश्चर्य होता है कि भारत का स्त्रीवादी आंदोलन इन पर चुप्पी लगाए क्यों बैठा है?
   स्त्रीदेह का ऐसा महोत्सव कहीं मिलेगा ,जैसा इन दिनों कारपोरेट मीडिया में दिखाई दे रहा है। टीवी चैनलों में मनोरंजन की खबरों के अलावा अंग्रेजी चैनलों में मीडिया गॉसिप के कार्यक्रमों में हाड़ सौंदर्य का खुला प्रदर्शन चल रहा है। कायदे से इसके खिलाफ महिला संगठनों, फेमिनिस्ट संगठनों,युवाओं और छात्रों के संगठनों को अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए।
     औरत के शरीर का अपमान करते हुए अति-कृशकाय स्त्री की इमेज का खुला महिमामंडन स्त्री का अपमान है। यह उसे कमजोर और गुलाम बनाने की साजिश है। पता नहीं क्यों दक्षिणपंथी संगठनो से लेकर वामपंथी दलों तक विलक्षण चुप्पी छायी हुई है। भारतीय मॉडल -अभिनेत्रियों की भी इस मामले में आलोचना की जानी चाहिए।
    हिन्दी की एक सुंदर अभिनेत्री है जो अपने अतिकृशकाय शरीर के कारण ही आदर्श बनी हुई है। हमें स्त्री के अति कृशकाय देहयष्टि को गौरवांवित करने वाले मॉडलों और उनकी प्रस्तुतियों को लेकर जागरण पैदा करना चाहिए। क्योंकि इन स्त्रियों से युवा लड़कियां प्रेरणा ले रही हैं। कृशकाय शरीर रखने के चक्कर में कुपोषित शरीर निर्मित कर रही हैं।
     अति-कृशकाय को सबसे सुंदर का तमगा मीडिया दे रहा है। कृशकाय लड़की को आदर्श बनाने के चक्कर में मीडिया ने स्वस्थ-सुंदर स्त्री की परिभाषा ही बदल दी है। लड़कियों में कृशकाय को आदर्श मानने की धारणा का मीडिया ने प्रचार किया है। इसके कारण स्वस्थ शरीर और पौष्टिक खाने की धारणा पर बुरा असर पड़ा है। पतला रहने के चक्कर में लड़कियां कम खाती हैं और जो खाती हैं उसमें अपुष्टिकर खाना ज्यादा खाती है। असमय खाना खाती हैं। इससे लड़कियों का खान-पान का समूचा टाइमटेबिल प्रभावित हुआ है।
    डाइटिंग के नाम पर लड़कियों ने कमजोर बनना शुरू कर दिया है। कम खाने और डाइटिंग के कारण लड़कियों का स्वास्थ्य तो खराब हो ही रहा है भावी पीढ़ी का भी भविष्य खराब हो रहा है। इससे शारीरिक और भावनात्मक दुर्बलता भी बढ़ रही है। लड़कियों के आत्म-संयम पर भी इसका बुरा अलर पड़ रहा है।
   शारीरिक कमजोरी के कारण वे अपने को अक्षम और नियंत्रण करने में असमर्थ महसूस करती हैं। इस प्रक्रिया का यह भी असर होता है कि उन्हें जल्दी ही अवसाद घेरने लगता है। बेवजह तनाव रहता है। गुस्सा आता है। अकेलापन महसूस होता है। इससे निजी और पारिवारिक संबंधों पर भी बुरा असर पड़ता है।
   कृशकाय शरीर को ‘परफेक्ट शरीर’ के रूप में महिमामंडित करने वाले मीडिया और उसके कार्यक्रमों के प्रति जागरूकता पैदा करने से महिला आंदोलन भी मजबूत होगा।  खासकर टीवी कार्यक्रमों में कृशकाय लड़की को देखकर लड़कियां ज्यादा प्रभावित होती हैं। इस संदर्भ में अमेरिका के कुछ आंकड़े चौंकाने वाले हैं। वहां पर 10 साल की उम्र में बच्चे टीवी खूब देखने लगते हैं और उसका उनके दैनंदिन जीवन पर बुरा असर देखा गया है। आंकड़ों के अनुसार-  Over one-half of teenage girls and nearly one-third of teenage boys use unhealthy weight control behaviors such as skipping meals, fasting, smoking cigarettes, vomiting, and taking laxatives . Girls who diet frequently are 12 times as likely to binge as girls who don’t diet . 42% of 1st-3rd grade girls want to be thinner.81% of 10 year olds are afraid of being fat.The average American woman is 54” tall and weighs 140 pounds. The average American model is 511”tall and weighs 117 pounds.
Most fashion models are thinner than 98% of American women.46% of 9-11 year-olds are “sometimes” or “very often” on diets, and 82% of their families are “sometimes” or “very often” on diets.91% of women recently surveyed on a college campus had attempted to control their weight through dieting, 22% dieted “often” or “always”.95% of all dieters will regain their lost weight in 1-5 years. 35% of “normal dieters” progress to pathological dieting. Of those, 20-25% progress to partial or fullsyndromeeating disorders. 25% of American men and 45% of American women are on a diet on any given day . Americans spend over 40 billion on dieting and diet-related products each year    








5 टिप्‍पणियां:

  1. 10 साल की उम्र में बच्चे टीवी खूब देखने लगते हैं और उसका उनके दैनंदिन जीवन पर बुरा असर देखा गया है।

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  2. लड़कियों के आत्म-संयम पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है।

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  3. इससे निजी और पारिवारिक संबंधों पर भी बुरा असर पड़ता है।

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  4. यह आश्चर्य ही है कि नारी संगठन मानव जीवन के लिए घातक इन मूल्यों की स्थापना के विरोध मे कहीं नहीं हैं।

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  5. स्त्री पदबंध का जो रूप आज हमारे सामने है,वह पुरूष वर्चस्व की विरासत है. एक स्त्री कैसे सोचती है,किस तरह उसे अभिव्यक्ति देती है या किस तरह का उसका रहन सहन होना चाहिए, इन सब पर भी उसी वर्चस्व का नियंत्रण है.इस तरह एक सांचे में ढली स्त्री हमारे सामने आती है..जीव-विज्ञान की दृष्टी से भले ही वह कुपोषण का शिकार हो,परन्तु उसके कोमल मस्तिष्क में यह बात कहीं गहरे तक जज्ब कर दी गयी है की अगर उसे attention पाना है तो zero figure में ही रहना होगा.

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