बुधवार, 27 अक्टूबर 2010

बाबा रामदेव के टीवी लाइव शो और उसकी विचारधारा

      बाबा रामदेव के टेलीविजन पर योगशिविर लगाए जाने के बाद अनेक योगियों के टीवी शो आने लगे हैं। तकरीबन प्रत्येक चैनल योग पर कोई न कोई आइटम या कार्यक्रम पेश करता है। टीवी की आमदनी के लिए योग शो का कार्यक्रम पैकेज में रहना जरूरी है। योग शो की लाखों की ऑडिएंस है। लाखों की ऑडिएंस का अर्थ है चैनल के लिए सोने की खान। टीवी से अंधाधुंध योगवर्षा का सामाजिक असर दिखने लगा है। 
   डाक्टरों ने अपने यहां योग से उपचार की व्यवस्थाएं कर ली हैं,वे दवाओं के अलावा योग-प्राणायाम करने का सुझाव देते हैं। स्कूलों में फिजिकल एजुकेशन के पाठ्यक्रम में योग-प्राणायाम को शामिल कर लिया गया है। सेना में भी योग को जगह मिल गयी है। कारपोरेट कंपनियां भी इस विधि का इस्तेमाल कर रही हैं। अब जेलों में योगशिविर लगेंगे। मंत्रियों,एम पी,एमएलए,पंचायत सदस्यों,वकीलों,जजों,डाक्टरों आदि के शिविर लग चुके हैं।   
    बाबा रामदेव के योग शो की खूबी है उनके आसन और उनके हिन्दुत्ववादी और चिकित्सा विज्ञान विरोधी,बहुराष्ट्रीय कंपनी विरोधी राजनीतिक वक्तव्य जो कभी भी टेलीविजन चैनलों की खबरों में जगह नहीं बना पाए।  बाबा रामदेव ने जिन राजनीतिक मसलों को उठाया है और अपनी राय दी है उसे चैनलों ने कभी समाचारों में कवरेज नहीं दिया है।
      बाबा के टीवी शो में हमें भारत की स्वास्थ्य दशा के साथ सांस्कृतिक -राजनीतिक दुर्दशा का आख्यान भी सुनने को मिलता है। पश्चिमी जीवनशैली के दुष्परिणामों के बारे में भी सुनने को मिलेता है। इन सबको बड़े ही कौशल के साथ बाबा रामदेव आसन -प्राणायाम के साथ रीमिक्स कर देते हैं।
    पहले वे प्राणायाम -आसन बताते हैं, फिर अनुकरण करने के लिए कहते हैं, और भोक्ता जब तक अनुकरण करता है तब तक वे किसी न किसी मसले पर वक्तव्य देते रहते हैं। वे अपने संदेश को प्राणायाम और आसन की क्रिया के बीच में संप्रेषित करते हैं। यह काम वे वृत्तचित्र की संरचना में करते हैं।
    बाबा रामदेव के योग की टीवी पर सफलता ने टीवी के मेडीकलाइजेशन की प्रक्रिया को बल पहुँचाया है। अब टीवी पर स्वास्थ्य संबंधी सैंकड़ों कार्यक्रम प्रतिदिन आते हैं। कुछ चैनल तो सिर्फ स्वास्थ्य के कार्यक्रम ही प्रसारित करते हैं। विभिन्न भाषाओं में स्वास्थ्य सेवाओं पर धारावाहिकों का भी प्रसारण हो चुका है।
       मीडिया में हेल्थ संबंधित स्टोरियों के आने से हेल्थ का जनसंपर्क बढ़ा है। इससे यह भी पता चला है कि हेल्थ के समाचार,कार्यक्रम,धारावाहिक दिखाए जाएं तो उनके लिए लाखों की ऑडिएंस मिल सकती है। हेल्थ पहले इस तरह मीडिया में बड़ा विषय नहीं था। अब तो हेल्थ के अनेक चैनलों,पत्रिकाओं और अखबारों में स्थायी कॉलम हैं।
        आज हेल्थ पर अनेक वेबसाइट हैं जो तत्काल सूचनाएं देती हैं। यहां तक कि हेल्थ संबंधित सैलिब्रिटी गॉसिप आने लगी हैं। समूचे टेलीविजन नेटवर्क ने हेल्थ को जिस तरह मुद्दा बनाया है उसमें जीवनशैली ,रूपचर्चा ,धर्म और मनोदशा रूपान्तरण के विषय  केन्द्र में आ गए हैं। बाबा रामदेव के लाइव कवरेज को इसके फ्लो में पढ़ा जाना चाहिए।
    बाबा अपने लाइव टेलीकास्ट में योग के आसनों की प्रस्तुति करते समय एक अवधि के बाद स्टीरियोटाइप हो गए हैं। साथ एक ही किस्म की पद्धति को अपनाते हैं,अंतर सिर्फ आता है उनके भाषण की थीम में। भाषण की थीम बदलकर ही वे कुछ नया पैदा करते हैं वरना उनके लाइव टेलीकास्ट कार्यक्रम तो टेली शॉपिंग के विज्ञापन जैसे होते हैं।
    टेली शॉपिंग में जिस तरह कोई नया पात्र माल की तारीफों के पुल बांधता है और उसके उपयोग की विधि बताता है। ठीक वैसे ही बाबा रामदेव भी करते हैं। अंतर है उनके भाषण के विषयों का। इसके अलावा उनके लाइव शो में स्थान का अंतर भी रहता है। कभी इस शहर में तो कभी उस शहर से उनका लाइव टीवी शो प्रसारित होता है,इससे उन्हें नए ग्राहक मिलते हैं।
    विभिन्न शहर ,बदली ऑडिएंस और बदले हुए भाषण के विषय के जरिए वे अपने टीवी शो में आकर्षण पैदा करने की कोशिश करते हैं। वे अपने भाषणों में नए-नए विषयों का समावेश करके ऑडिएंस में विचारधारात्मक प्रभाव भी पैदा करने की कोशिश करते हैं। लेकिन योग-प्राणायाम के कार्यक्रम में योग-प्राणायाम प्रमुख है,भाषण प्रमुख नहीं है। वह अतिरिक्त है। इसकी सांस्कृतिक भूमिका है। उन विषयों को टीवी पर बनाए रखने में सांस्कृतिक-राजनीतिक भूमिका है जिन्हें हम हिन्दुत्व के विषय के रूप में जानते हैं।
       बाबा के शो वही लोग देखते हैं जिन्हें योग से लगाव है या योग सीखना है। अथवा ऐसे भी लोग देखते हैं जिनकी हिन्दुत्व के एजेण्डे में रूचि है। बाबा का बार-बार टीवी शो करना इस बात का संकेत है कि हेल्थ के बाजार में जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा है। इसमें बाबा योग के लिए जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं। बाबा अपने योग मालों के लिए ग्राहक जुटाने की कोशिश कर रहे हैं।
     बाबा के अधिकांश टीवी शो खुले वातावरण में होते हैं। वे कभी हॉलघर में कार्यक्रम नहीं करते। खुला आकाश ,मैदान और पीछे योग का चित्र या आयोजन स्थल का बैनर। मंच पर बाबा के द्वारा प्रस्तुत योग-प्राणायाम ,हिन्दुत्व और जीवनशैली के विषयों पर लंबे-लंबे भाषण।
    बाबा के कार्यक्रमों में आए दिन ऐसे मरीजों को पेश किया जाता है जो यह बताते हैं कि वे फलां बीमारी से परेशान हैं, उन्हें दवा कोई असर नहीं कर रही है। कुछ ऐसे भी मरीज आते हैं जो यह बताते हैं कि योग-प्राणायाम असर कर गया है,बीमारी में सुधार है। बाबा के कार्यक्रमों में इस तरह के बयानों के प्रसारण का लक्ष्य है आधुनिक चिकित्सा विज्ञान से आम लोगों को विमुख करना।
    संबंधित व्यक्ति को दवा क्यों नहीं लग पायी ,इसके अनेक कारण हो सकते हैं। यह भी हो सकता है कि वह सही डाक्टर से न मिला हो,दवा की मात्रा ठीक से न लेता हो। उसके खान-पान में अनियमितता हो आदि,लेकिन बाबा इस तरह के मरीजों की प्रतिक्रियाओं को मेडीकल सिस्टम की असफलता के प्रमाण के रूप में दुरूपयोग करते हैं।
    बाबा का इस तरह की प्रतिक्रियाओं को दिखाना योग उद्योग और फार्मास्युटिकल उद्योग के बृहत्तर नव्य उदारतावादी एजेण्डे की संगति में आता है। वे अपने योग कारपोरेट एजेण्डे के साथ इसे मिलाकर पेश करते हैं और योग उद्योग के बाजार हितों को विस्तार देने का काम करते हैं।
    बाबा के ये कार्यक्रम आम लोगों में मेडीकल चिकित्सा के खिलाफ जबर्दस्त असर छोड़ रहे हैं। साधारण लोगों में एक अच्छा खासा वर्ग तैयार हो गया है जो यह मानता है कि योग-प्राणायाम से सब बीमारियां ठीक हो जाएंगी। इस तरह के लाइव शो के जरिए बाबा बड़े पैमाने पर प्रत्येक कार्यक्रम और शिविर के जरिए दौलत बटोरने में सफल रहे हैं।
     बाबा रामदेव की टीवी प्रस्तुतियों में मेडीकल प्रोफेशन की असफलताओं का व्यापक कवरेज रहता है। लेकिन वे अच्छी तरह जानते हैं कि हजारों डाक्टर हैं जो अपने मरीज की अपनी क्षमता और क्षेत्र से बाहर जाकर मदद करते हैं। प्रतिदिन 8-14 घंटे काम करते हैं। प्रतिदिन लाखों मरीजों का सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में इलाज करते हैं। जबकि इन अस्पतालों में पर्याप्त सुविधाएं तक नहीं हैं। हमारे शहरों-कस्बों में समर्पित डाक्टरों की लंबी -चौड़ी फौज है जो मरीजों के इलाज में बड़ी तत्परता से काम करती है। अपवादस्वरूप मामलों को छोड़ दें तो मेडीकल पेशे से जुड़े लोग आम लोगों की सेवा में कोई कसर नहीं छोड़ते। यह भी सच है कि इन डाक्टरों में निजी क्षेत्र के पैसा कमाऊ डाक्टर भी आ गए हैं जो सिर्फ ऊँची फीस के बिना इलाज नहीं करते। लेकिन इस तरह के डाक्टरों का प्रतिशत कम है। ज्यादातर डाक्टर आज भी सामान्य फीस पर ही इलाज करते हैं। सामान्य तौर पर डाक्टर जैसे बताए उसे यदि मरीज मान ले तो उसे किसी भी नीम-हकीम और योगी की जरूरत नहीं होगी।
      बाबा रामदेव अपने शिविर में आने वाले किसी भी व्यक्ति से पैसे की बात करते नजर नहीं आते। वे शिविर में भाग ले रहे किसी व्यक्ति से यह नहीं पूछते कि यहां आने में कितना पैसा खर्च हुआ ? कैंप की फीस कितनी दी ? वे यह सवाल भी नहीं पूछते कि बाबा की दवाएं लेते हो तो उनका दाम क्या है ? वे यह भी जानने की कोशिश नहीं करते कि शिविर में भाग लेने वाले कितने लोग हैं जिनकी बीमारी पर योग-प्राणायाम का कोई असर नहीं हो रहा है अथवा नकारात्मक असर हो रहा है।
    बाबा यह मानकर चल रहे हैं कि उनके शिविर में भाग लेने वाले की पॉकेट से कुछ भी खर्च नहीं हो रहा,वे यह भी मानकर चल रहे हैं कि उनके यहां आने वाले पर योग का सीधे सकारात्मक असर हो रहा है। वे यह भी मानकर चल रहे हैं कि जो व्यक्ति शिविर से जा रहा है वह प्रतिदिन योग-प्राणायाम करता है। जबकि इनमें से कोई भी बात सच नहीं है।
     बाबा के शिविर में भाग लेने वालों से मोटी रकम फीस के रूप में ली जाती है। बाबा की आयुर्वेदिक दवाएं महंगी होती हैं। बाबा का तथाकथित वैद्य झोला छाप डाक्टर होता है।  इनमें से अधिकांश के पास सही डिग्री भी है या नहीं किसी को नहीं मालूम। बाबा के शिविर से लौटकर खुछ दिन बाद बड़ी संख्या में लोग योग-प्राणायाम करना छोड़ देते हैं। योग-प्राणायाम छोड़ देने वालों का मानना है कि किसी इलाज को अनंतकाल तक नहीं किया जा सकता।
    बाबा अपने कार्यक्रमों के जरिए एक और संदेश देते हैं कि अस्पताल या डाक्टर के पास जाने से बचो। घर में केयर करो। निजी केयर करो। वे अपने कार्यक्रमों के जरिए मेडीकल व्यवस्था के प्रति संशय और मोहभंग पैदा करने का काम करते हैं। वे बार-बार महंगी दवाएं,डाक्टर,ऑपरेशन,अस्पताल आदि के बेशुमार खर्च आदि को निशाना बनाते हैं। साथ ही फार्मास्युटिकल कंपनियों पर कभी-कभार टिप्पणियां करते हैं।
    बाबा अपने लाइव शो में जब किसी मरीज को पेश करते हैं और उससे पूछते हैं क्या बीमारी पर योग का क्या असर हुआ तो मरीज जो कुछ बताता है उसका दर्शकों पर व्यापक असर होता है। यह कहानी आसपास के लोगों में फैल जाती है। उसे योग के पक्ष में प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।  दर्शक आम तौर पर आपस में उस घटना का जिक्र करते हैं और अंत में वह घटना एक गॉसिप में तब्दील हो जाती है। व्यापक चर्चा में गॉसिप का रूपान्तरण बाबा के लिए और नए ग्राहक और आस्थावान सदस्य देता है।
   बाबा अपने शिविर में चुनकर विभिन्न रोग के शिकार लोगों को पेश करते हैं,साथ में उस रोग और उसके मेडीकल उपचार पर होने वाले बेशुमार खर्चे और परेशानियों का आख्यान बनाते हैं। यही उनकी बाजार रणनीति है।  
           














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