हिन्दी के उत्थान के नाम पर सार्वजनिक तौर पर जो कुछ हो रहा है उसकी सामाजिक समीक्षा की सख्त जरूरत है। हिन्दी के नाम पर सरकारी स्तर पर बहुत सारे अपव्यय और अगंभीर अकादमिक कार्य हो रहे हैं। इनमें दो संस्थान खास तौर पर उल्लेखनीय हैं। एक है केन्द्रीय हिन्दी संस्थान ,आगरा और दूसरा है महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा।
इन दोनों संस्थानों का लाखों का बजट है और इसका बहुत बड़ा हिस्सा हिन्दी बौद्धिकों के समागम के नाम पर फिजूल खर्च होता रहता है। हाल ही में कवि चतुष्टयी के नाम पर हिन्दी के तकरीबन 40 विद्वानों को बुलाया गया था और सेमीनार में वक्ताओं को मुश्किल से 5-10 मिनट का समय मिलाथा। हो सकता है कुछ लोग ज्यादा भी बोले हों। समस्या यह नहीं है कि इन लोगों को क्यों बुलाया गया समस्या यह है कि क्या विषय के जानकारों को बुलाया गया था ?
विश्वविद्यालय के उपकुलपति को कम से कम सार्वजनिक तौर पर यह बताना चाहिए कि जिन विद्वानों को बुलाया गया उनमें से कितने हैं जिन्होंने संबंधित विषय से जुड़े किसी भी पहलू पर पांच शोधपत्र भी लिखे हैं ? कुछ विद्वान तो ऐसे हैं जिन्होंने दस-बीस साल में कोई काम कवि चतुष्टयी (नागार्जुन,अज्ञेय,केदारनाथ अग्रवाल,शमशेर,फैज) पर नहीं किया है। हो सकता है हमारी अज्ञानता हो लेकिन उनके कामों के बारे में सार्वजनिक सूचनाएं दी जाएं। यह कैसे हो सकता है कि जिस व्यक्ति को विश्वविद्यालय बोलने के लिए हजारों रूपये खर्च करके बुला रहा है उसने अपने जीवन में संबंधित विषय पर एक भी महत्वपूर्ण निबंध नहीं लिखा,गंभीर शोध कार्य नहीं किया। ऐसे विद्वानों को इतनी बड़ी तादाद में बुलाने का अर्थ क्या है ?
विश्वविद्यालय के उपकुलपति कम से कम वक्ताओं के शोधपूर्ण लेखन का महत्वपूर्ण पक्ष जनहित में जरूर जारी करेंगे। इस समारोह में बुलाए गए अधिकांश विद्वानों ने कोई भी उल्लेखनीय काम कवि चतुष्टयी पर नहीं किया है। यह हिन्दी के नाम पर अपव्यय है और सार्वजनिक धन की लूट है। किसी भी कीमत पर ऐसी हरकतों को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कुछ समय पहले इसी विश्वविद्यालय ने लेखकों का एक बड़ा जमावड़ा किया था जिसमें 130 से ज्यादा विद्वान बुलाए गए थे। ये लोग क्यों आए और इन लोगों ने मिलने-जुलने,मार्ग व्यय और भत्ते-दक्षिणा के अलावा क्या किया कोई नहीं जानता। कहने का अर्थ यह है कि हिन्दी के नाम पर वर्धा में कॉमनवेल्थ गेम हो रहा है । सवाल उठता है वर्धा वाले कॉमनवेल्थ गेम के मार्ग पर क्यों चल पड़े हैं ? कोई उनसे सवाल नहीं पूछता कि आखिरकार सार्वजनिक धन का दुरूपयोग क्यों कर रहे हो भाई?
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