मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिस समय केन्द्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम को पत्र लिख रही थीं और उनसे हिंसा के आंकडों पर कैफियत मांग रही थीं ठीक उसी समय शासकदल के रणबाँकुरे सईदुल्ला कॉलेज (बशीरहाट ) में हिंसा कर रहे थे और कॉलेज शिक्षकों की नकल रोकने के कारण जमकर पिटाई कर रहे थे। इस हिंसा में 6लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। ममता का प्रशासन हिंसा रोकने की बजाय वहां हिसा की संगठित अभिव्यक्ति में मदद कर रहा था। राज्य के हिंसक वातावरण की यह एक चस्वीर मात्र है। इस तरह के चित्र गांवों और कच्ची बस्तियों में बिखरे पड़े हैं।लेकिन वे मुख्यमंत्री को नजर नहीं आ रहे। वे चिदम्बरम् पर नाराज हैं कि उन्होंने राज्य में हिंसा के बारे गलत आंकड़े क्यों दिए ?
उल्लेखनीय है हाल ही दो केन्द्रीय मंत्री कोलकाता आए। इन दोनों का मकसद एक था लेकिन आने के बहाने अलग-अलग थे। केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से शिक्षा संबंधी नए सुधारों को लेकर चर्चा की ,जबकि चिदम्बरम साहब एक सेमीनार में बोलने आए थे, जिसे कलकत्ता चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने आयोजित किया था। असल में इन दोनों का मकसद था ममता बनर्जी को ठंड़ा रखना। राष्ट्रपति चुनाव के प्रसंग में प्रणव मुखर्जी की उम्मीदवारी को लेकर ममता बनर्जी जिस तरह गरम हो गयी हैं उससे निबटने की रणनीति के तहत इन दोनों मंत्रियों को कोलकाता भेजा गया था। पहलीबार ऐसा हुआ कि ममता बनर्जी ने कपिल सिब्बल से बात करने के बाद प्रेस को कुछ नहीं कहा ,बल्कि कपिल सिब्बल ने ही प्रेस को बताया कि वे क्यों कोलकाता आए हैं और उनका मकसद क्या था, उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कोई बात नहीं हुई। जबकि सच यह है कि उनकी ममता बनर्जी से राष्ट्रपति चुनाव पर ही बातें हुई । सिब्बल चाहते थे कि ममता बनर्जी की पार्टी प्रणव मुखर्जी को वोट दे अथवा कदम तटस्थ रहे। बहिष्कार का हंगामा न करे।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जानती हैं कि प्रणव मुखर्जी उनके वोट के बिना जीत रहे हैं और वे वोट देती भी हैं तो उससे स्थिति में कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं आने वाला। यानी ममता बनर्जी के नेतृत्व वाले तृणमूल कांग्रेस के वोट पूरी तरह हाशिए पर चले गए हैं और ममता बनर्जी की राजनीतिक महत्ता को भी एकसिरे से हाशिए पर डालने में कांग्रेस सफल रही है। दूसरी ओर कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व राज्यपाल के रवैय्ये से भी परेशान है और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को दल की भावनाओं से अवगत करा दिया गया है। कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल गाबे-बगाहे बेवजह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सुर में सुर मिलाने लगते हैं और इससे ममता का मनोबल बढ़ा है। प्रच्छन्न तरीकों से राज्यपाल को यह संदेश दिया गया है कि वे शांत रहें। कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व में एकवर्ग है जो चाहता है राज्यपाल को बदल दिया जाय। लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अभी राज्यपाल को हटाए जाने के पक्ष में नहीं हैं।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केन्द्रीय गृहमंत्री को 6जून 2012 को 2पन्ने का एक पत्र लिखा है जिसमें कानून-व्यवस्था की स्थिति के बारे में उनके बताए आंकडों पर सवालिया निशान लगाया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मानना है कि राज्य में चारों ओर शांति है और हिंसा की घटनाओं में तेजी से गिरावट आई है। लेकिन सच्चाई इसके एकदम विपरीत है। विभिन्न दलों के बीच खूनी झगड़े बढ़े हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री पी.चिदम्बरम के अनुसार राज्य में राजनीतिक हिंसाचार बढ़ा है। सन् 2011 में 136 लोग मारे गए जबकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अनुसार 62 लोग मारे गए,सन् 2012 में चिदम्बरम् के अनुसार राजनीतिक हिंसा में 62 लोग मारे गए जबकि ममता बनर्जी के अनुसार मात्र 5लोग मारे गए। चिदम्बरम् ने राजनीतिक हिंसा की संस्कृति पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि जो लोग यह कहते हैं कि राज्य में शांति है और कानून और व्यवस्था की बेहतर अवस्था है वे मूर्खों के स्वर्ग में रहते हैं। चिदम्बरम् ने पश्चिम बंगाल में हिंसा की संस्कृति पर गंभीर चिन्ता व्यक्त करते हुए जिस पहलू की ओर सबका ध्यान खींचा है उस पर स्थानीय राजनीतिक दलों को गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए। उल्लेखनीय है चिदम्बरम् को कोलकाता चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने 180वें जन्मदिन पर बोलने के लिए बुलाया था। मजेदार बात यह है कि चिदम्बरम ने जंगलमहल में शांति के लौटने पर खुशी का इजहार किया और राज्य सरकार की इस प्रसंग में भूमिका को सही ठहराया। चिदम्बरम् ने कहा कि सन् 2011 राजनीतिक हिंसा के लिहाज से सबसे बुरा साल था। इस वर्ष 136 लोग मारे गए और 2,225 घायल हुए, सन् 2010 में 204 लोग मारे गए और 2,601 लोग घायल हुए,सन् 2012 के पहले छह माह में 82 लोग मारे गए और 1,112 लोग घायल हुए और हिंसा की 455 वारदात हुईं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को 2011 और 2012 के आंकड़ों पर आपत्ति है पहले के आंकड़ों पर नहीं। वे जानना चाहती हैं चिदम्बरम् के आंकड़ों का स्रोत क्या है ? असल में वे भी जानती हैं कि केन्द्रीय गृहमंत्रालय के आंकड़े विभिन्न स्रोतों से सूचना संग्रह करके तैयार किए जाते हैं।इस प्रसंग में आंकड़ेबाजी का उतना महत्व नहीं है जितना इस सत्य का कि राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति संतोषजनक नहीं है। राजनीतिक हिंसा बदस्तूर जारी है और यह राज्य प्रशासन की बड़ी असफलता है।
दूसरी ओर उत्तर बंगाल में पृथकतावादी संगठनों की गतिविधियां तेज हुई हैं और वे नए सिरे हिंसा का वातावरण बनाने में लगे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि पर्वतीय इलाकों में पृथकतावादी संगठनों की सक्रियता में आई तेजी से केन्द्रीय गृहमंत्री भी चिन्तित हैं। विभिन्न स्रोतों के जरिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को यह संदेश दिया गया है कि पर्वतीयक्षेत्रों पर कड़ी नजर रखी जाय।
उल्लेखनीय है हाल ही दो केन्द्रीय मंत्री कोलकाता आए। इन दोनों का मकसद एक था लेकिन आने के बहाने अलग-अलग थे। केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से शिक्षा संबंधी नए सुधारों को लेकर चर्चा की ,जबकि चिदम्बरम साहब एक सेमीनार में बोलने आए थे, जिसे कलकत्ता चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने आयोजित किया था। असल में इन दोनों का मकसद था ममता बनर्जी को ठंड़ा रखना। राष्ट्रपति चुनाव के प्रसंग में प्रणव मुखर्जी की उम्मीदवारी को लेकर ममता बनर्जी जिस तरह गरम हो गयी हैं उससे निबटने की रणनीति के तहत इन दोनों मंत्रियों को कोलकाता भेजा गया था। पहलीबार ऐसा हुआ कि ममता बनर्जी ने कपिल सिब्बल से बात करने के बाद प्रेस को कुछ नहीं कहा ,बल्कि कपिल सिब्बल ने ही प्रेस को बताया कि वे क्यों कोलकाता आए हैं और उनका मकसद क्या था, उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कोई बात नहीं हुई। जबकि सच यह है कि उनकी ममता बनर्जी से राष्ट्रपति चुनाव पर ही बातें हुई । सिब्बल चाहते थे कि ममता बनर्जी की पार्टी प्रणव मुखर्जी को वोट दे अथवा कदम तटस्थ रहे। बहिष्कार का हंगामा न करे।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जानती हैं कि प्रणव मुखर्जी उनके वोट के बिना जीत रहे हैं और वे वोट देती भी हैं तो उससे स्थिति में कोई गुणात्मक परिवर्तन नहीं आने वाला। यानी ममता बनर्जी के नेतृत्व वाले तृणमूल कांग्रेस के वोट पूरी तरह हाशिए पर चले गए हैं और ममता बनर्जी की राजनीतिक महत्ता को भी एकसिरे से हाशिए पर डालने में कांग्रेस सफल रही है। दूसरी ओर कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व राज्यपाल के रवैय्ये से भी परेशान है और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को दल की भावनाओं से अवगत करा दिया गया है। कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व ने आरोप लगाया है कि राज्यपाल गाबे-बगाहे बेवजह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सुर में सुर मिलाने लगते हैं और इससे ममता का मनोबल बढ़ा है। प्रच्छन्न तरीकों से राज्यपाल को यह संदेश दिया गया है कि वे शांत रहें। कांग्रेस के केन्द्रीय नेतृत्व में एकवर्ग है जो चाहता है राज्यपाल को बदल दिया जाय। लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अभी राज्यपाल को हटाए जाने के पक्ष में नहीं हैं।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केन्द्रीय गृहमंत्री को 6जून 2012 को 2पन्ने का एक पत्र लिखा है जिसमें कानून-व्यवस्था की स्थिति के बारे में उनके बताए आंकडों पर सवालिया निशान लगाया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मानना है कि राज्य में चारों ओर शांति है और हिंसा की घटनाओं में तेजी से गिरावट आई है। लेकिन सच्चाई इसके एकदम विपरीत है। विभिन्न दलों के बीच खूनी झगड़े बढ़े हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री पी.चिदम्बरम के अनुसार राज्य में राजनीतिक हिंसाचार बढ़ा है। सन् 2011 में 136 लोग मारे गए जबकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अनुसार 62 लोग मारे गए,सन् 2012 में चिदम्बरम् के अनुसार राजनीतिक हिंसा में 62 लोग मारे गए जबकि ममता बनर्जी के अनुसार मात्र 5लोग मारे गए। चिदम्बरम् ने राजनीतिक हिंसा की संस्कृति पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि जो लोग यह कहते हैं कि राज्य में शांति है और कानून और व्यवस्था की बेहतर अवस्था है वे मूर्खों के स्वर्ग में रहते हैं। चिदम्बरम् ने पश्चिम बंगाल में हिंसा की संस्कृति पर गंभीर चिन्ता व्यक्त करते हुए जिस पहलू की ओर सबका ध्यान खींचा है उस पर स्थानीय राजनीतिक दलों को गंभीरता के साथ विचार करना चाहिए। उल्लेखनीय है चिदम्बरम् को कोलकाता चेम्बर ऑफ कॉमर्स ने 180वें जन्मदिन पर बोलने के लिए बुलाया था। मजेदार बात यह है कि चिदम्बरम ने जंगलमहल में शांति के लौटने पर खुशी का इजहार किया और राज्य सरकार की इस प्रसंग में भूमिका को सही ठहराया। चिदम्बरम् ने कहा कि सन् 2011 राजनीतिक हिंसा के लिहाज से सबसे बुरा साल था। इस वर्ष 136 लोग मारे गए और 2,225 घायल हुए, सन् 2010 में 204 लोग मारे गए और 2,601 लोग घायल हुए,सन् 2012 के पहले छह माह में 82 लोग मारे गए और 1,112 लोग घायल हुए और हिंसा की 455 वारदात हुईं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को 2011 और 2012 के आंकड़ों पर आपत्ति है पहले के आंकड़ों पर नहीं। वे जानना चाहती हैं चिदम्बरम् के आंकड़ों का स्रोत क्या है ? असल में वे भी जानती हैं कि केन्द्रीय गृहमंत्रालय के आंकड़े विभिन्न स्रोतों से सूचना संग्रह करके तैयार किए जाते हैं।इस प्रसंग में आंकड़ेबाजी का उतना महत्व नहीं है जितना इस सत्य का कि राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति संतोषजनक नहीं है। राजनीतिक हिंसा बदस्तूर जारी है और यह राज्य प्रशासन की बड़ी असफलता है।
दूसरी ओर उत्तर बंगाल में पृथकतावादी संगठनों की गतिविधियां तेज हुई हैं और वे नए सिरे हिंसा का वातावरण बनाने में लगे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि पर्वतीय इलाकों में पृथकतावादी संगठनों की सक्रियता में आई तेजी से केन्द्रीय गृहमंत्री भी चिन्तित हैं। विभिन्न स्रोतों के जरिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को यह संदेश दिया गया है कि पर्वतीयक्षेत्रों पर कड़ी नजर रखी जाय।