पश्चिम बंगाल का बजट आनेवाला है और राज्य का
आर्थिक संकट गहरा हो गया है।नियमानुसार कोई राज्य अधिकतम जितना रूपया उधार ले सकता
है उस सीमा तक ममता सरकार उधार ले चुकी है। आज स्थिति यह है कि राज्य को यदि
किन्ही कारणों से जरूरत पड़े तो बैंक से लेकर बाजार तक कोई कर्ज नहीं मिल सकता।
पिछले साल अक्टूबर2012 में राज्य सरकार के कर्मचारियों आदि की तनख्बाह –पेंशन आदि
देने के लिए 45दिन के लिए 4000 हजार करोड़ का कर्ज लिया था। पिछले साल रिजर्व बैंक
ने कर्ज के नियमों में दोबार ढ़ील देकर राज्य को 22,423करोड़ रूपये का कर्ज दिया।
सन् 2012-13 के बजट दस्तावेज के अनुसार राज्य की कर से होने वाली अनुमानित आय
76,943करोड़ रूपये और व्यय 83,801 करोड़ रूपये आंका गया है। यानी अनुमानित बजट
घाटा 6,585करोड़ रूपये का आंका गया है। लेकिन सन् 2013-14 में यह घाटा बढ़ जाने की
संभावनाएं हैं। इसके अलावा राज्य पर इस साल कर्ज की रकम 2.26लाख करोड़ हो जाएगी।
फलतःभारत के कर्जगीर राज्यों में उसका नाम सबसे ऊपर आ गया है। मार्च 2012 तक
पश्चिम बंगाल के ऊपर 2,08,382 करोड़रूपये का कर्ज था मूलधन और ब्याज चुकाने के लिए
उसे सालाना 23,199 करोड़ रूपये का भुगतान करना होगा। ममता के शासन में आने के बाद
कर वसूली में सुधार आया है लेकिन राज्य सरकार की फिजूलखर्ची कम नहीं हुई है। इसके
अलावा छठे वेतन आयोग का राज्य कर्मचारियों का एरियर का पैसा अभी तक नहीं मिला है।
इसके कारण राज्य कर्मचारियों में क्षोभ बढ़ता जा रहा है। राज्य कर्मचारियों के ऊपर
सरकार का दबाव है कि अपनी वफादारी वाम यूनियनों के प्रति खत्म करें और इंटक(तृणमूल
कांग्रेस) के साथ अपने को जोड़ें। इसके अलावा राज्य सरकार 'मनरेगा' योजना को क बड़े राजनीतिक हथियार के रूप में
लागू करने जा रही है। ममता की यह चिन्ता है कि किसी भी तरह राज्य कर्मचारियों और
असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का भरोसा हासिल किया जाय. यही वजह है कि मुख्यमंत्री
ममता बनर्जी आनेवाले दिनों में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों में अपना जनाधार बढ़ाने
के लिए केन्द्र सरकार द्वारा संचालित 'मनरेगा' स्कीम को हथियार बनाने जा रही है। टीएमसी
नेतृत्व का मानना है कि 'मनरेगा' योजना में दैनिक मजदूरी पानेवाले मजदूरों की
दैनिक मजदूरी बढ जाती है तो वे इसे वाम के खिलाफ प्रचार में इस्तेमाल कर सकते हैं
और इसी मंशा के तहत पश्चिम बंगाल के 'मनरेगा' योजना में काम करने वाले मजदूरों की दैनिक पगार
को प्रतिदिन 136रूपये से बढ़ाकर 151रूपये कर देने के प्रस्ताव को केन्द्र सरकार ने
मान लिया है। 'मनरेगा' के मजदूरों की पगार में की गयी इस वृद्धि को
ममता सरकार अपनी ओर से मजदूर हितैषी उपलब्धि के रूप में प्रचारित करने जा रही है।
यह पगारवृद्धि एक अप्रैल 2013 से लागू होगी।
ममता
का मानना है यदि 'मनरेगा' को ठीक से लागू कर दिया जाय और असंगठित क्षेत्र
के मजदूरों में इसे एक उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया जाय तो मजदूरों के बड़े
हिस्से को वाममोर्चे से विमुख किया जा सकता है। अब देखना यह है कि क्या 'मनरेगा' के मजदूरों की पगार में की गयी बढोत्तरी से ममता
के वोट बैंक में कोई इजाफा होता है या नहीं ?
उल्लेखनीय है कि वाममोर्चे के शासन के दौरान दो
बार 'मनरेगा' मजदूरों की पगार बढ़ायी गयी थी लेकिन वामशासन इस
स्कीम को लागू करने में असफल रहा। ममता सरकार में पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री
सुब्रत मुखर्जी को यह दायित्व सौंपा गया है कि वे 'मनरेगा' योजना के जरिए ममता का जनाधार बढाएं। पंचायत
मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने अप्रैल2012 के बाद से 'मनरेगा' की मजदूरी बढ़ाने के लिए केन्द्रीय ग्रामीण
विकास मंत्रालय को 9 पत्र लिखे थे ,इसके पहले केन्द्र सरकार ने 'मनरेगा' मजूरी को एक अप्रैल 2012 से 130रूपये से बढ़ाकर
136 रूपये कर दिया था जिससे ममता सरकार खुश नहीं थी ,इसके बाद से राज्य के
पंचायतमंत्री ने मजदूरी बढ़ाने के लिए 9पत्र लिखे। इन पत्रों के जबाव में पिछले
सप्ताह केन्द्र सरकार ने उनको सूचित किया कि पश्चिम बंगाल में 'मनरेगा' मजदूरों की मजदूरी 136रूपये से बढ़ाकर 151रूपये
की जाती है। इस बढोत्तरी को राजनीतिक हलकों में कांग्रेस के खिलाफ दबाव की राजनीति
के रूप में देखा जा रहा है वहीं पर राज्य कांग्रेस अध्यक्ष ने इस तरह के किसी दबाव
से साफ इंकार किया है।जबकि इस मजदूरी का कृषि मजदूरों के लिए 2011 के आधार पर
निर्धारित उपभोक्ता मूल्य सूचकांक और महंगाईभत्ते की दर से संबंध है। मजूरी कम से
कम कितनी दी जाय यह तय है लेकिन अधिकतम की सीमा तय नहीं है। ममता शासन में 'मनरेगा' मजदूरी में 15रूपये की वृद्धि हुई है। लेकिन
वामशासन के दौरान सन् जनवरी 2010 में 25 रूपये और जनवरी 2011 में 30रूपये की
बढोत्तरी हुई थी।सामान्यतौर पर पश्चिम बंगाल में न्यूनतम दैनिक पगार 67 रूपये सन्
2005-06 में तय की गयी थी।
उल्लेखनीय है कि 'मनरेगा' स्कीम में काम करने वाले मजदूरों को 9 राज्यों और
3 केन्द्रशासित क्षेत्रों में पश्चिम बंगाल से ज्यादा मजदूरी मिलती है।