भारत
में मध्यवर्ग का तेजगति से पतन हो रहा है ।इतनी तेजगति से अन्य किसी वर्ग का पतन
नहीं हुआ है। मध्यवर्ग के आदर्शनायक आईएएस -आईपीएस अफसरों में बहुत बड़ा समुदाय
तैयार हुआ है जो आकंठ भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। ये वे लोग हैं जिनके पास सब कुछ
है।सबकुछ होते हुए भी ये क्यों भ्रष्ट हो रहे हैं ?
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भारत
के मध्यवर्ग ने सामाजिक-आर्थिक शक्ति अर्जित करते ही सामाजिक-राजनीतिक दायित्वों
और लोकतांत्रिक लक्ष्यों से अपने को सचेत रूप से अलग किया है।
अधिकतर
मध्यवर्गीय शिक्षितलोग राजनीति को बुरा मानते हैं या भ्रष्ट राजनीति की हिमायत
करते हैं या अधिनायकवादी या फासिस्ट राजनीति की हिमायत करते हैं।मध्यवर्ग का इस
तरह का चरित्र बताता है कि भारत में संपन्नता जिन वर्गों में पहुंची है उनमें लोकतांत्रिक
मूल्य अभी तक नहीं पहुंचे हैं।
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भारत में मध्यवर्ग में सांस्कृतिक परवर्जन तेजी से बढ़ा है। दुनिया
के अनेक देशों में आधुनिककाल में वैज्ञानिकचेतना और स्वस्थ लोकतांत्रिक मूल्यों का
मध्यवर्ग में विकास हुआ है ,लेकिन भारत में उलटी गंगा बह
रही है।
भारत के मध्यवर्ग में इन दिनों प्रतिगामिता की आंधी चल रही है। सेक्स से लेकर धर्म तक इसे सहज ही देखा जा सकता है। मध्यवर्ग में प्रतिगामिता के कारण इस वर्ग के बहशीयाना चरित्र की आए दिन परतें खुल रही हैं।
आश्चर्य की बात है इस वर्ग के पतनशील मूल्यों पर हम सबने हमले करने बंद कर दिए हैं। प्रतिगामिता के साथ हमसब सामंजस्य बिठाकर जीने लगे हैं। मध्यवर्गीय प्रतिगामिता अब हमारे अंदर गुस्सा पैदा नहीं करती। यह स्थिति बदलनी चाहिए।
भारत के मध्यवर्ग में इन दिनों प्रतिगामिता की आंधी चल रही है। सेक्स से लेकर धर्म तक इसे सहज ही देखा जा सकता है। मध्यवर्ग में प्रतिगामिता के कारण इस वर्ग के बहशीयाना चरित्र की आए दिन परतें खुल रही हैं।
आश्चर्य की बात है इस वर्ग के पतनशील मूल्यों पर हम सबने हमले करने बंद कर दिए हैं। प्रतिगामिता के साथ हमसब सामंजस्य बिठाकर जीने लगे हैं। मध्यवर्गीय प्रतिगामिता अब हमारे अंदर गुस्सा पैदा नहीं करती। यह स्थिति बदलनी चाहिए।
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मध्यवर्ग
की पतनशीलता के तीन बड़े क्षेत्र हैं ,एक है स्त्री उत्पीड़न-शोषण , दूसरा है खुला भ्रष्टाचार और तीसरा है तिकड़मबाजी।
मध्यवर्ग
के लोगों में शिक्षितों में आज स्त्री उत्पीड़न ,हिंसाचार,यौनशोषण आदि जिस तरह सतह पर आ गया है,उसने हमें सारी दुनिया में सभ्य कहलाने
लायक नहीं छोड़ा। यही हाल भ्रष्टाचार का है। तिकड़मबाजी में तो मध्यवर्ग के नायक
सबसे आगे हैं। इन तीनों प्रवृत्तियों को देखकर यही लगता है कि हमारी शिक्षा
व्यवस्था का मध्यवर्गीय मूल्य-संरचना पर सकारात्मक असर बहुत कम पड़ा है।
मध्यवर्गीय प्रतिगामिता अब हमारे अंदर गुस्सा पैदा नहीं करती। यह स्थिति बदलनी चाहिए।
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