शनिवार, 20 जुलाई 2013

जनसत्ता के निराला पर प्रतिक्रियावादी हमले


 हाल ही में जनसत्ता अखबार में शंकरशरण का लेख छपा है जिसमें सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' को हिन्दुत्ववादी सिद्ध करने का आधारहीन प्रयास किया गया है। इस लेख में निराला को समग्रता में देखने की कोशिश ही नहीं की गयी है। साथ ही इस लेख में निरर्थक प्रगतिवाद पर हमला बोला गया है। अप्रासंगिकता को आलोचना में दीमक कहते हैं।
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जनसत्ता जैसे अखबार की प्रगतिशीलता विरोधी मुहिम जारी है और उसमें कविताओं के साथ आलोचना कम कु-समीक्षा ज्यादा लिखी जा रही है।हाल ही में शंकर शरण जैसे लेखक ने अपने लेख में निराला की प्रसिद्ध कविता तुलसीदास का गलत मूल्यांकन किया है।
असल में उसी कविता में निराला ने कविता लिखने का मकसद भी लिखा है। निराला ने लिखा है- "करना होगा यह तिमिर पार। देखना सत्य का मिहिर द्वार।"
यह कविता हिन्दुत्ववादी नजरिए को अभिव्यंजित करने वाली कविता नहीं है। बल्कि इसका लक्ष्य भिन्न है।
इस कविता का मूल लक्ष्य है सांस्कृतिक अंधकार को पार करके सत्य को पाना। साम्प्रदायिक नजरिए का सत्य के सत्य बैर है। शंकरशरण जैसे लेखक इस मूल बात को पकड़ने में असमर्थ रहे हैं। कविता किसके लिए लिखी गयी है यह बात कविता में निराला ने स्वयं लिखी है । सवाल यह है शंकरशरण यह लेख क्यों इनदिनों मोदी को महान बनाने की मुहिम के हिस्से के तौर पर इस तरह के लेख छापकर जनसत्ता अखबार जाने-अनजाने मोदी की जनसंपर्ककला का शिकार बन गया। निराला का हिन्दुत्व से कोई संबंध नहीं है। निराला विचार और कर्म दोनों में साम्प्रदायिकता विरोधी थे।
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शंकर शरण जैसे लेखक को यह भी जानना चाहिए कि साम्प्रदायिक समस्या पर निराला आखिरकार क्या सोचते थे। निराला ने लिखा है- "हिंदू और मुसलमानों की समस्या इस देश की पराधीनता की सबसे बड़ी समस्या है।"
शंकरशरण जैसे लेखकों का इस समस्या के प्रति रूख क्या है ,यह बात भी जाननी दिलचस्प है। वे निराला में से मनवांछित यथार्थ खोज रहे हैं। इस तरह के लेखन को निराला मानसिक दु्र्बलता मानते थे।
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शंकर शरण जैसे लेखकों को ध्यान में रखकर ही निराला ने लिखा था- "हमारे देश में धार्मिक कट्टरता ही प्रबल है। इसका परिणाम यह होता है कि कट्टरता का जड़त्व मस्तिष्क का विकास नहीं होने देता।अपने अनुकूल न होने पर धार्मिक तत्व झूठे जान पड़ते हैं।यह आत्मानुकूल तत्ववृत्ति बहुत बड़ी मानसिक दुर्बलता है। इसके कारण सभी रेखाओं से मन-शक्ति का विकास नहीं हो पाता। प्रहार करने वाली पशुवृत्ति बनी रहती है।मनुष्य सब देशों के साहित्य,समाज,राजनीति और धर्म का महत्व समझ नहीं पाता।प्रगति एक हद तक बंधी रहती है। "
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निराला ने लिखा था- " हिंदुओं की संकीर्णता के कारण ही मुसलमान इस देश में संकीर्ण हो रहे हैं। "

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