´भाबी जी घर पर हैं ´सीरियल में एक पात्र है विभूतिनारायण मिश्रा, उनकी खूबी है वे नल्ले हैं ,यानी बेरोजगार हैं।इसी तरह कश्मीर मामले पर हमारे पीएम नल्ले हैं,बेरोजगार हैं, उनके पास कश्मीर को लेकर कोई काम नहीं है।उनका समूचा मंत्रीमंडल नल्लागिरी का शिकार है,इसके कारण कश्मीर के संदर्भ में नीतिहीनता-दिशाहीनता की स्थिति पैदा हो गयी है।
मोदी की कार्यशैली में अक्लमंदों-नीतिविशारदों की न्यूनतम भूमिका है,वे हर काम कॉमनसेंस और नौकरशाही के बल पर करने के अभ्यस्त हैं,वे भूल गए हैं कि वे अब गुजरात के मुख्यमंत्री नहीं भारत के पीएम हैं।उनको अनेक ऐसे क्षेत्र देखने होते हैं जहां नीति,दूरदृष्टि और विश्वदृष्टि की जरूरत होती है।हर चीज नौकरशाही-कॉमनसेंस और गुजरातदृष्टि या एप बनाने से हल नहीं होती। मोदी का एप बनाने पर जोर मूलतः उनके तकनीकी कॉमनसेंस की देन है इसका किसी नीतिगत विवेकवाद से कोई संबंध नहीं है।
मोदी के सामने मुश्किलें तब आती हैं जब कोई जटिल नीतिगत मसला आकर फंस जाता है और यहीं पर मोदी का व्यक्तित्व एकदम बौना हो जाता है। कल वे जब मंत्रीमंडल के कुछ सहयोगियों,ढोभाल,थल सेनाध्यक्ष आदि को लेकर कश्मीर की स्थिति पर बातें कर रहे थे तो लोग इंतजार में थे कि कोई बड़ा नीतिगत बयान आ सकता है लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय ने कोई नीतिगत बयान नहीं दिया बल्कि जो बयान दिया वह पीएम और उनकी सरकार की कश्मीर पर नल्लागिरी को सामने लाता है।
पीएम यह मानकर चल रहे हैं कश्मीर में स्थिति अपने आप जब सामान्य होगी तब वे कोई कदम उठाएंगे,अब पीएम को कौन समझाए कि कश्मीर में सामान्य हालात तब बनेंगे जब मोदी सरकार झुकेगी,सेना के हस्तक्षेप को रोकेगी,पीडीपी-भाजपा चुनाव घोषणापत्र में जो वायदे किए गए थे उनको पूरा करने के लिए पहल करेगी,कश्मीर पर सभी संबंधित पक्षों को बुलाकर बातचीत करेगी।आश्चर्य की बात है कश्मीर पर सभी से बातचीत करने का चुनावी वायदा करके,हुर्रियत के वोट पाकर भाजपा नेता अब हुर्रियत से बातचीत करने को तैयार नहीं हैं।हुर्रियत से जब बात नहीं करनी थी तो संयुक्त चुनाव घोषणापत्र में हुर्रियत सहित सभी पक्षों से बातचीत आरंभ करने का वायदा क्यों किया था ॽ विधानसभा चुनाव पहले श्रीनगर बाढ़ में डूब गया था उस समय मोदी ने पीड़ितों को आर्थिक मदद देने का वायदा किया था,पैकेज घोषित किया था लेकिन आज तक मदद आम लोगों तक नहीं पहुँची।अभी भी समय है कश्मीर मसले पर निकम्मेपन को त्यागकर मोदीजी स्वयं पहल करके सभी विवाद में शामिल पक्षों को दिल्ली प्रधानमंत्री कार्यालय बुलाएं और कश्मीर में सामान्य हालात बनाने के उपायों पर खुलेमन से चर्चा करें और लोगों के देशसम्मत सुझावों को ईमानदारी से लागू करें।ध्यान रहे कश्मीर में अब छात्र मैदान में निकल पड़े हैं,इस समय हर जिले में आतंकवादी नहीं ,छात्र-युवा निकल पड़े हैं सड़कों पर,वे हर स्तर पर प्रतिवाद कर रहे हैं।
मोदी की कार्यशैली में अक्लमंदों-नीतिविशारदों की न्यूनतम भूमिका है,वे हर काम कॉमनसेंस और नौकरशाही के बल पर करने के अभ्यस्त हैं,वे भूल गए हैं कि वे अब गुजरात के मुख्यमंत्री नहीं भारत के पीएम हैं।उनको अनेक ऐसे क्षेत्र देखने होते हैं जहां नीति,दूरदृष्टि और विश्वदृष्टि की जरूरत होती है।हर चीज नौकरशाही-कॉमनसेंस और गुजरातदृष्टि या एप बनाने से हल नहीं होती। मोदी का एप बनाने पर जोर मूलतः उनके तकनीकी कॉमनसेंस की देन है इसका किसी नीतिगत विवेकवाद से कोई संबंध नहीं है।
मोदी के सामने मुश्किलें तब आती हैं जब कोई जटिल नीतिगत मसला आकर फंस जाता है और यहीं पर मोदी का व्यक्तित्व एकदम बौना हो जाता है। कल वे जब मंत्रीमंडल के कुछ सहयोगियों,ढोभाल,थल सेनाध्यक्ष आदि को लेकर कश्मीर की स्थिति पर बातें कर रहे थे तो लोग इंतजार में थे कि कोई बड़ा नीतिगत बयान आ सकता है लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय ने कोई नीतिगत बयान नहीं दिया बल्कि जो बयान दिया वह पीएम और उनकी सरकार की कश्मीर पर नल्लागिरी को सामने लाता है।
पीएम यह मानकर चल रहे हैं कश्मीर में स्थिति अपने आप जब सामान्य होगी तब वे कोई कदम उठाएंगे,अब पीएम को कौन समझाए कि कश्मीर में सामान्य हालात तब बनेंगे जब मोदी सरकार झुकेगी,सेना के हस्तक्षेप को रोकेगी,पीडीपी-भाजपा चुनाव घोषणापत्र में जो वायदे किए गए थे उनको पूरा करने के लिए पहल करेगी,कश्मीर पर सभी संबंधित पक्षों को बुलाकर बातचीत करेगी।आश्चर्य की बात है कश्मीर पर सभी से बातचीत करने का चुनावी वायदा करके,हुर्रियत के वोट पाकर भाजपा नेता अब हुर्रियत से बातचीत करने को तैयार नहीं हैं।हुर्रियत से जब बात नहीं करनी थी तो संयुक्त चुनाव घोषणापत्र में हुर्रियत सहित सभी पक्षों से बातचीत आरंभ करने का वायदा क्यों किया था ॽ विधानसभा चुनाव पहले श्रीनगर बाढ़ में डूब गया था उस समय मोदी ने पीड़ितों को आर्थिक मदद देने का वायदा किया था,पैकेज घोषित किया था लेकिन आज तक मदद आम लोगों तक नहीं पहुँची।अभी भी समय है कश्मीर मसले पर निकम्मेपन को त्यागकर मोदीजी स्वयं पहल करके सभी विवाद में शामिल पक्षों को दिल्ली प्रधानमंत्री कार्यालय बुलाएं और कश्मीर में सामान्य हालात बनाने के उपायों पर खुलेमन से चर्चा करें और लोगों के देशसम्मत सुझावों को ईमानदारी से लागू करें।ध्यान रहे कश्मीर में अब छात्र मैदान में निकल पड़े हैं,इस समय हर जिले में आतंकवादी नहीं ,छात्र-युवा निकल पड़े हैं सड़कों पर,वे हर स्तर पर प्रतिवाद कर रहे हैं।
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