बुधवार, 25 अप्रैल 2018

बलराज साहनी का स्त्री संबंधी दृष्टिकोण-

                   बलराज साहनी के अभिनय और अभिनय में व्यक्त कलाकौशल और भाव-भंगिमा पर अनेकबार बातें हुई हैं, आज भी ऐसे लोग मिल जाएंगे जो उनकी फिल्मों के प्रशंसक हैं।लेकिन बलराद साहनी के लेखन पर हिंदी में कोई चर्चा नहीं मिलती,जबकि उनके समग्र में उनका समूचा लेखन मौजूद है,साथ ही उनकी पत्नी संतोष साहनी का भी समग्र मौजूद है। इस समग्र को ´बलराज-संतोष साहनी समग्र´ (1994)हिंदी प्रचारक संस्थान ,वाराणसी, ने छापा,इसका संपादन किया डा.बलदेवराज गुप्त ने ।

स्त्री संबंधी उनके नजरिए की सबसे अच्छी बात यह है कि वे आदर्श स्त्री के मानक को नहीं मानते, ´नारी और दृष्टिकोण´(1965) नामक निबंध में वे परंपरागत स्त्री की धारणा को भी नहीं मानते,उन्होंने स्त्री संबंधी अनेक पहलुओं पर विचार करने बाद यह लिखा ´अब तक आदर्श भारतीय नारी की कल्पना करना असंभव है।´(पृ.263) इस प्रसंग में साहनी ने लिखा ´पुरूष ने स्त्री को अपनी,शारीरिक ,मानसिक और कलात्मक भूख मिटाने का साधन समझ रखा है। सदियों से पुरुष को रिझाना ही स्त्री का लक्ष्य बना हुआ है –कभी माँ के रुप में ,कभी बहन के रुप में,कभी पत्नी के रुप में।´ सुंदरता के जन प्रचलित रूपों को चुनौती देते हुए लिखा,

´आदर्श भारतीय नारी का सुन्दर और सुडौल होना हर हालत में जरूरी है।भला असुन्दर होकर वह ´आदर्श´नारी कैसे कहला सकती है ! सुन्दरता को मापने का मेरे पास कोई निजी पैमाना नहीं है।´इसी लेख में उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण बात कही,लिखा, ´अगर हमारा दृष्टिकोण प्रजातंत्रवादी है,तो इस बात की ओर से आंखें नहीं मूंदी जा सकतीं कि स्त्री की सुन्दरता तभी निखर सकती है,जब उसे खाने के लिए खुराक मिले,पहनने के लिए अच्छे कपड़े मिलें और साफ-सुथरा रहने की सहूलियतें मिलें।भारतीय स्त्रियों की बहुसंख्या इन बुनियादी जरूरतों से वंचित है।´ यह भी लिखा ´शारीरिक दृष्टिकोण से अगर मैं किसी आदर्श स्त्री का चुनाव करना चाहूं,तो यह अल्पसंख्यक वर्ग की स्त्री होगी।ऐसी स्त्री पूरे भारत की स्त्रियों की प्रतिनिधि कैसे हो सकती है।´









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