रविवार, 7 अप्रैल 2013

नरेन्द्र मोदी के मीडिया उन्माद और राहुल के समावेशी मॉडल में भिडंत


  

         मोदी को लेकर इनदिनों जो मीडिया उन्माद चल रहा है वह भाजपा के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है। 2014 के लोकसभा चुनाव अभी एक साल बाद होंगे लेकिन भाजपा और मोदी की प्रधानमंत्री पद को पाने की बेचैनी देखने लायक है।
   एक जमाने में इंडिया साइनिंग के नाम से जिस तरह का भाजपा ने मीडिया उन्माद पैदा किया था ठीक वैसा ही मीडिया उन्माद इन दिनों मोदी को लेकर पैदा किया जा रहा है। प्रतिस्पर्धा साफ दिख रही है। कांग्रेस ने भावी प्रधानमंत्री के रूप में राहुल गांधी के लिए मन बना लिया है। सीआईआई के अधिवेशन में काग्रेस उपाध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी पहलीबार सार्वजनिक तौर पर बोले। उनके भाषण में एक युवानेता के सपने,ख्याल,भारत की तस्वीर और भारत की लाइफलाइन की ध्वनि वायवीय रूप में उभरकर सामने आई।
   सीआईआई के सम्मेलन में देश 1500से ज्यादा उद्योगपति भाग रहे हैं और वे धैर्य के साथ सभी दलों के नेताओं को सुन रहे हैं उसमें राहुल गांधी का भाषण काल्पनिक ज्यादा था.व्यापारी जगत काल्पनिक दुनिया में जीने का आदी नहीं है। उसे ठोस बातें करने और सुनने की आदत है।
राहुल और उनके भक्तों को जानना चाहिए भारत कोई आख्यान नहीं है। यह एक जीता-जागता देश है और इसमें जिंदादिल लोग रहते हैं।उनकी धड़कनें हैं,कम से कम राहुल के भाषण में युवामन, दलितमन, स्त्रीमन, मुस्लिम मन की अभिव्यंजना कहीं पर भी दिखाई नहीं दे रही थी।राहुल गांधी के भाषण में न किसी की आलोचना न किसी की निंदा,न नीति की आलोचना न व्यक्ति की आलोचना।इसके विपरीत व्यापारियों को क्या करना चाहिए और उन्होंने क्या नहीं किया। इसी पैराडाइम पर पूरा भाषण केन्द्रित था। प्रच्छन्नतः कहा कि मनमोहन सरकार पर उंगली मत उठाओ ,यह देखो तुमने क्या नहीं किया।
मसलन् लोगों को ट्रेंड करने का काम तुम्हारा है, संरचना बनाने का काम तुम्हारा है,गांव के प्रधान को फैसलेकुन कमेटी में लाने का काम तुम्हारा है,तुम यह नहीं जानते ,तुम वह नहीं जानते,देश इसके कारण ऊर्जा के रहते पिछड़ रहा है, राजनीतिक व्यवस्था का समाज से अलगाव हो गया है। राहुल गांधी के भाषण में आत्मालोचन एकसिरे से गायब था।
राहुलगांधी के भाषण के कुछ घंटे बाद गुजरात के  मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का गुजरात से भाषण टीवी चैनलों के जरिए सीधे लाइव प्रसारित कराया गया। इससे यह तो साफ है कि भाजपा ने मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रधानमंत्री के रुप में खड़ा करने का मन बना लिया है। मोदी ने अपने भाषण में एक मार्के की बात कही कि मैंने गुजरात का कर्ज उतारा है, अब देश का कर्ज उतारना है। प्रतीकात्मक तौर पर मोदी कहना चाहते हैं कि वे प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में मन बना चुके हैं। प्रधानमंत्री पद के लिए स्वयं को पेश करना यह अपने आप में भारत में विरल घटना है। भाजपा ने आधिकारिकतौर पर उनको अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है और नहीं एनडीए ने। चूंकि मोदी बार-बार गुजरात मॉडल की बात कह रहे हैं अतःगुजरात के प्रसंग में कुछ तथ्य उल्लेखनीय हैं। गरीबी में आई कमी के आधार पर गुजरात 20 राज्यों की सूची में 10वें पायदान पर है। मजदूरी और इसमें बढ़ोतरी के मामले में 20 बड़े राज्यों में क्रमश: 14वें और 15वें स्थान पर आता है जो संपन्न और विपन्न लोगों के बीच बढ़ती दूरी को दर्शाता है।
मोदी के शासन में शिक्षा क्षेत्र में तबाही चल रही है।  एक गैर सरकारी संगठन के मुताबिक ग्रामीण गुजरात में करीब 95 फीसदी बच्चे विद्यालयों में पंजीकृत हैं लेकिन ज्ञान का स्तर काफी कम है। पांचवीं कक्षा में पढऩे वाले करीब 55 फीसदी बच्चे दूसरी कक्षा के पाठ्यक्रम नहीं पढ़ पाते हैं। लगभग 65 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो गणित के सामान्य जोड़ घटाव भी नहीं कर पाते हैं।
बहुत सारे लोगों का कहना है कि सरकारी स्कूलों में शिक्षक शराब पीकर आते हैं और ताश खेलते हैं। बारिया में बच्चों के लिए साल में 24 दिन का शिविर चलाने वाली हार्डीकर कहती हैं कि पांचवीं कक्षा के बच्चे अक्षर भी नहीं पहचान पाते हैं। उच्च शिक्षा की स्थिति के बारे में अर्थशास्त्री वाई .के .अलघ कहते हैं कि इसकी हालत भी खस्ता है। अहमदाबाद के समाज विज्ञानियों के मुताबिक ज्यादातर कॉलेज और विश्वविद्यालय ठगों और नाकाम प्रशासकों द्वारा चलाए जा रहे हैं। तकनीकी कॉलेजों में ही थोड़ी बहुत क्षमता है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में 96 गांवों को सेवाएं देने वाले राज्य द्वारा संचालित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पिछले सात साल से किसी बाल रोग विशेषज्ञ और स्त्री प्रसूति विशेषज्ञ चिकित्सक की तैनाती नहीं हुई है। गुजरात में 44.6 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। हालांकि शिशु मृत्यु दर में कमी जरूर आई है लेकिन इस दर में गिरावट राष्ट्रीय औसत की तुलना में काफी कम है। करीब 65 फीसदी ग्रामीण परिवारों और 40 फीसदी शहरी परिवारों के पास शौचालय की व्यवस्था नहीं है और उन्हें मजबूरी में खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। राज्य में पुरुष महिला अनुपात कम है यानी 1000 पुरुषों पर 918 स्त्रियों का औसत है। यह भी राष्ट्रीय औसत से कम है।मुसलमानों की वास्तव जिंदगी देखें तो भाजपा-मोदी की पोल खुल जाती है।मसलन् गरीबी की बात करें तो शहरी मुसलमान ऊंची जाति के हिंदुओं की तुलना में करीब 8 गुना ज्यादा गरीब हैं।
सामाजिक विकास के आड़ में मुसलमानों को मैनस्ट्रीम विकास से काटकर अलग कर दिया गया है। दूसरी बात यह कि मोदी समावेशी विकास की बात नहीं करते। मसलन् 2002 के दंगों में मारे गए लोगों को कोई आर्थिक सहायता राज्य ने नहीं दी। मुसलमानों की अरबों की संपत्ति देगों में नष्ट हुई थी लेकिन उनके पुनर्वास के लिए राज्य सरकार ने समुचित कदम नहीं उठाए। दंगों में शामिल दोषियों के खिलाफ कार्रवाई तब हुई जब सुप्रीमकोर्ट ने हस्तक्षेप किया और राज्य के बाहर दंगों से संबंधित मुकदमे चलाने का आदेश दिया। यही वह प्रसंग है जिसमें राहुल गांधी का समावेशी विकास का मॉडल मोदी के मॉडल पर भारी पड़ता है। राहुल गांधी ने समावेशी मॉडल को भविष्य का प्रधान एजेण्डा बनाकर पहल मोदी के हाथ से छीन ली है।




2 टिप्‍पणियां:

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  2. इस बार तो मोदी ही पीएम बनेंगे ....... काम नहीं किया तो अगली बार राहुल को देख लेंगे ..... कांग्रेस सरकार के भ्रष्ठाचार और महंगाई से दुखी आम जनता मोदी की ओर आशा की नजरो से देख रही है

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