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फेसबुक
पर हिन्दीलेखकों में लेखकीय ध्रुवीकरण शीतयुद्धीय राजनीति के फ्रेमवर्क से बंधा
है। कायदे से शीतयुद्धीय राजनीति और सीआईए- -सोवियत कम्युनिज्म के दायरे से बाहर
निकलकर चीजों को देखने की जरूरत है। खासकर मार्क्सवादी और प्रगतिशील लेखकों को
अपना नजरिया बदलना पड़ेगा। मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य शीतयुद्धीय राजनीति के
पक्ष-विपक्ष मे बांधता है।
नए
जमाने की मांग है लोकतंत्र और दुर्भाग्य की बात है कि सीआईए या अमेरिकी
साम्राज्यवाद या समाजवाद दोनों ही लोकतंत्र की सत्ता-महत्ता और स्वायत्तता को
स्वीकार नहीं करते। मंगलेश डबराल,वीरेन्द्रयादव, अशोक पाण्डेय आदि ने मेरी पोस्ट पर
अशोक पाण्डेय की फेसबुक वॉल पर जो बहस चलायी है उसमें भागलेने वाले सुधीजन
शीतयुद्ध की राजनीति के दायरे के बाहर निकलकर नहीं सोच पाए हैं।
चार्ली
चैप्लिन,ब्रेख्त आदि सभी नामी प्रगतिशील लेखकों
के नजरिए की मुश्किलें वही हैं जो शीतयुद्धीय राजनीति की हैं। वे भी उसके दायरे के
बाहर नहीं देख पाते। प्रगतिशीलों का शीतयुद्धीय राजनीति को समाजवाद के नजरिए से
देखना मार्क्सवादी रूढ़िवाद है। मार्क्सवादी रूढ़िवाद हमें लोकतांत्रिक नजरिए से
सोचने में बाधाएं पैदा करता है।
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शीतयुद्धोत्तर
परिप्रेक्ष्य की तलाश और मार्क्सवादी रूढ़ियां-1-
फेसबुक
पर हिन्दीलेखकों में लेखकीय ध्रुवीकरण शीतयुद्धीय राजनीति के फ्रेमवर्क से बंधा
है। कायदे से शीतयुद्धीय राजनीति और सीआईए- -सोवियत कम्युनिज्म के दायरे से बाहर
निकलकर चीजों को देखने की जरूरत है। खासकर मार्क्सवादी और प्रगतिशील लेखकों को
अपना नजरिया बदलना पड़ेगा। मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य शीतयुद्धीय राजनीति के
पक्ष-विपक्ष मे बांधता है।
नए
जमाने की मांग है लोकतंत्र और दुर्भाग्य की बात है कि सीआईए या अमेरिकी
साम्राज्यवाद या समाजवाद दोनों ही लोकतंत्र की सत्ता-महत्ता और स्वायत्तता को
स्वीकार नहीं करते। मंगलेश डबराल,वीरेन्द्रयादव, अशोक पाण्डेय आदि ने मेरी पोस्ट पर
अशोक पाण्डेय की फेसबुक वॉल पर जो बहस चलायी है उसमें भागलेने वाले सुधीजन शीतयुद्ध
की राजनीति के दायरे के बाहर निकलकर नहीं सोच पाए हैं।
चार्ली
चैप्लिन,ब्रेख्त आदि सभी नामी प्रगतिशील लेखकों
के नजरिए की मुश्किलें वही हैं जो शीतयुद्धीय राजनीति की हैं। वे भी उसके दायरे के
बाहर नहीं देख पाते। प्रगतिशीलों का शीतयुद्धीय राजनीति को समाजवाद के नजरिए से
देखना मार्क्सवादी रूढ़िवाद है। मार्क्सवादी रूढ़िवाद हमें लोकतांत्रिक नजरिए से
सोचने में बाधाएं पैदा करता है।
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तीसरी
मार्क्सवादी रूढ़ि है -मार्क्सवादी कल्पनाशीलता। भारत में विभिन्न रंगत के
मार्क्सवादियों में एक विलक्षण साम्य है वे रहते पूंजीवाद में हैं,अधिकार पूंजीवाद के चाहते हैं,पूंजीवादी संरचनाओं के दुरूस्तीकरण के
लिए संघर्ष करते हैं, लेकिन चाहते हैं समाजवाद ।
हिन्दी
के प्रगतिशील लेखकों-आलोचकों ने कभी गंभीरता के साथ "कल्याणकारी पूंजीवादी
राज्य और साहित्य" के अन्तस्संबंध पर विचार नहीं किया ।वे पूंजीवाद के
सरलीकरणों और अमेरिकी बहानेबाजी के जरिए अपने दायित्व से भागते रहे हैं।
भारतीय
समाज के निर्माण में कल्याणकारी पूंजीवादी राज्य की प्रधान भूमिका रही है। इसे
सोवियत समाजवादी नजरिए या अमेरिकी नजरिए से नहीं समझा जा सकता। इसे समाजवाद के
आग्रह के नजरिए से भी नहीं समझा जा सकता।
समाजवाद
का आग्रह लोकतंत्र की शक्ति को समझने में बाधा पैदा करता है। भारत का वर्तमान
लोकतंत्र से निर्धारित हो रहा है और भविष्य में भी लोकतंत्र से जल्दी मुक्ति मिलने
वाली नहीं है। समाजवाद यहां के लिए कल्पनाशीलता है। लोकतंत्र को हमें लोकतंत्र के
नजरिए से देखना होगा। समाजवाद के नजरिए से लोकतंत्र को देखना मार्क्सवादी
कल्पनाशीलता है ।
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मार्क्सवादी
रूढ़िवाद की चौथी रूढ़ि है लोकतंत्र को हिकारत की नजर से देखना। हिन्दी के
प्रगतिशील लेखकों में बड़ा हिस्सा है जो
समाजवाद के आख्यान और गुणों को जानता है लेकिन भारत में लोकतंत्र में लेखकीय और
नागरिक अधिकारों की चेतना से शून्य है।
मसलन्, हिन्दीलेखकों में लेखक के
अधिकारों को लेकर कोई गुस्सा नहीं है। मसलन्, हमने यह कभी नहीं सुना कि नामवर सिंह या अन्य किसी लेखक ने राजकमल के
मालिक से लेखकों की रॉयल्टी समय पर देने के लिए कभी संघर्ष किया हो।
मैं निजी तौर पर दर्जनों लेखकों को जानता
हूँ जिनको प्रकाशक रॉयल्टी नहीं देता और लेखकसंघ चुप तमाशा देखते रहते हैं।
भारत के लेखक के लिए उसके अधिकारों की
चेतना समाजवादी चेतना से ज्यादा महत्वपूर्ण है। लेखक के अधिकारों की चेतना
लोकतंत्र के प्रति प्रेम और आस्था पैदा करके ही पैदा की जा सकती है। लोकतंत्र में
हिकारत से देखना लोकतंत्र का निषेध है।
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हिन्दी
लेखकों में मार्क्सवादीदंभ बहुत बड़ी समस्या है । मार्क्सवादीदंभ भाव रहने वाले
लेखक बेहतर न लिखकर भी अपने लेखकीय श्रेष्ठत्व का दावा करते हैं।
इसके
कवच के तौर पर वे मार्क्सवाद को पहले सर्वश्रेष्ठ घोषित करते हैं ,बाद में मार्क्सवादियों और फिर अपने को
सर्वश्रेष्ठ घोषित करते हैं। ये लेखक भूल गए हैं कि मार्क्सवाद का जन्म श्रेष्ठता
के सिद्धांत और संस्कार के प्रतिवाद में हुआ था।
मार्क्सवाद
,मार्क्सवादी और निज को श्रेष्ठ मानने
का विचार अवैज्ञानिक है। मार्क्सवाद ने कभी श्रेष्ठता का दावा नहीं किया। स्वयं
मार्क्स ने श्रेष्ठ होने का दावा नहीं किया।
एक
अच्छा मार्क्सवादी दंभी नहीं संवेदनशील होता है,विनयी होता है,अन्य
को सम्मान देता है।
दंभी
की भाषा हेटभाषा होती है,
रूप में भी और
अंतर्वस्तु में भी। एक अच्छा मार्क्सवादी वह है जिसके पास अन्य के विचारों और
विचारधारा के लिए जगह है। अन्य हैं इसलिए मार्क्सवाद उनसे भिन्न और वैज्ञानिक है।
-6-
मार्क्सवादी
लेखकों की इस दौर में सबसे बड़ी असफलता है कि वे शीतयुद्ध में साहित्य के अवमूल्यन
को नहीं रोक पाए। साहित्य के जो मानक रचे गए उनमें इजाफा नहीं कर पाए।साहित्य के
नए पैराडाइम को पकड़ नहीं पाए। फलतःआज वे हाशिए के बाहर चले गए हैं। लंबे समय से
हिन्दी में मार्क्सवादी आलोचना की कोई किताब बाजार में नजर नहीं आई और हिन्दी के मार्क्सवादी
आलोचकों ने समीक्षा का कोई नया मानक नहीं बनाया।
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शीतयुद्ध
और उसके बाद के दौर में जातीय विध्वंस का ग्लोबल चक्र चला है। पूर्व समाजवादी
समाजों से लेकर कांगो-सोमालिया-इराक अफगानिस्तान आदि तक इसका दायरा फैला हुआ है।
एक जमाने में समाजवादी समाज में जातीय समस्या के समाधान का हिन्दी में खूब गुणगान
किया गया लेकिन जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तो इस जातीय विघटन पर हिन्दी में
अधिकांश मार्क्सवादी चुप रहे। यहां तक कि भारत की कम्युनिस्ट पार्टियां और
माओवादी-नक्सल भी चुप रहे। यह चुप्पी अचानक नहीं है बल्कि शीतयुद्धोत्तर यथार्थ को
वैज्ञानिक ढ़ंग से न देख पाने का फल है।
शीतयुद्धोत्तर
यथार्थ पहले की तुलना में ज्यादा जटिल और संश्लिष्ट है। नए यथार्थ और नई राजनीतिक
समस्याओं के खिलाफ मोर्चा लेते हुए आप स्वयंसेवी संगठनों और व्यक्तियों के समूहों
को देख सकते हैं लेकिन मार्क्सवादी दलों-संगठनों को कहीं पर भी नहीं देखेंगे।
मसलन्
यूनियन कारबाइड के खिलाफ विगत 25 सालों में कौन संघर्ष कर रहा है ?मोदी के दंगों के खिलाफ कौन केस लड़
रहा है ?आदि अनेक समस्याएं हैं जहां पर छोटे
स्वयंसेवी संगठन संघर्ष कर रहे हैं ,कम्युनिस्टदल सोए हैं।
आपने लिखा....हमने पढ़ा
जवाब देंहटाएंऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए आज 19/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिए एक नज़र ....
धन्यवाद!