प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छता अभियान से किसी को मतभेद नहीं हो सकता। समस्या नीति और नज़रिए की है। इस अभियान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सारी सदइच्छाएं टीवी फ़ोटो कवरेज से आगे नहीं जा रही हैं । उनके इस मसले पर सभी भाषण और राजनीतिक आचरण में भी प्रदर्शनप्रियता ही प्रमुख है।
स्वच्छता की समस्या सफ़ाई का नया सिस्टम बनाने, सफ़ाई के सिस्टम में लगे लोगों के हितों और माँगों पर ग़ौर करने से जुड़ी है। भारत में इससे मिलता जुलता अभियान कांग्रेस ने 'निर्मल भारत' के नाम से यूपीए सरकार के शासन में आरंभ किया था लेकिन वह फ़ाइलों में दबा रह गया। मोदी ने उसे इवेंट और स्टंट बना दिया है!
सफ़ाई अभियान को टीवी फोटोशूट तक ले जाने में मोदी सफल रहे लेकिन 'स्वच्छता नीति 'की घोषणा नहीं कर पाए । इससे यह भी पता चलता है कि मोदी इस देश को किस तरह चलाना चाहते हैं ? मोदी इवेंट और जलसे -मेले-ठेले की राजनीति के जरिए देश को चलाना चाहते हैं ,इनके लिए समय दे रहे हैं लेकिन कोई बनाने के लिए उनके पास कोई समय नहीं है। यदि सरकार के मंत्रियों के काम करने की गति देखें तो वहाँ पर भी कोई पहलकदमी नजर नहीं आती। यानी मंत्रालयों में भी कोई पहलकदमी नजर नहीं आती! वरना स्वच्छता अभियान को लेकर नीति तो होनी चाहिए बिना नीति के देश कैसे चलेगा ? राज्यों और नगरपालिकाओं को कैसे भागीदार बनाया जाएगा ? स्वच्छता अभियान में केन्द्र और राज्य कितना पैसा निवेश करेंगे ? सफ़ाई कर्मचारियों की समस्याओं और रिक्त पदों का समाधान किस तरह किया जाएगा ?नई जरुरतों के मुताबिक़ कितने लाख नए पद सृजित किए जाएँगे ?
सफ़ाई की समस्या एकदिन की समस्या नहीं है । यह दैनंदिन समस्या है और इसके लिए मुस्तैद सिस्टम चाहिए। ऐसा सिस्टम चाहिए जो वैज्ञानिक तकनीक का भी भरपूर इस्तेमाल करे। सफ़ाई का मोदी का नज़रिया हिन्दू -कारपोरेट नजरिया है। हिन्दू के लिए सफ़ाई दीपावली की सफ़ाई योजना है जो घर, मंदिर, दुकान से बाहर नहीं निकलती।मोदी इसे कचडा परिशोधन परियोजना तक लेजाएँगे।
जबकि भारत में सफ़ाई कर्मचारियों का एक बड़ा वर्ग है जो आज भी अस्पृश्यता का शिकार है और दशकों से वे अपनी समस्याओं के लिए विभिन्न राज्य सरकारों और ज़िला प्रशासन के सामने अपनी माँगे रखते आए हैं ,आश्चर्य की बात है मोदी ने इन सफ़ाई कर्मचारियों और अछूत समस्या पर एक भी वाक्य नहीं बोला। सफ़ाई कर्मचारियों की बदहाल ज़िंदगी और भयावह गंदगी से भरे उनके रिहायशी इलाक़ों को दरकिनार करके मोदी सरकार प्रच्छन्न ढंग से बहुसंख्यकवाद के राजनीतिक लक्ष्य की दिशा में आगे बढ रही है। वरना मोदी को दलितों की बस्ती में जाकर सफ़ाई अभियान को केन्द्रित होकर चलाना चाहिए मोदी दलित मलिन बस्ती में न जाकर बाल्मीकिरामायण मंदिर गए जो हमेशा साफ़ रहता है। महात्मा गांधी ने स्वच्छता अभियान को सामाजिक सुधार कार्यक्रम के रुप में चलायाथा और सफ़ाई, दलितमुक्ति और अस्पृश्यता निवारण को लक्ष्य बनाया। गांधी के लिए स्वच्छता का मतलब इवेंट नहीं था वे स्वच्छता को समाजसुधार के परिप्रेक्ष्य में रखकर देखते थे। सफ़ाई उनके लिए नैतिक या स्वास्थ्य तक सीमित नहीं थी। जबकि मोदी के लिए स्वच्छता के सामाजिक आधार का कोई मूल्य नहीं है।
अस्वच्छता हमारे समाज के जातिप्रथा के कलंकित अध्याय से जुडी है। यही वजह है कि तमाम वैभव और संसाधनों के बावजूद धार्मिक शहर सबसे गंदे रहे हैं। हमारे समाज में आज़ादी के बाद जातिप्रथा बढी हैं ख़ासकर दलित जातियों पर ज़ुल्म बढे हैं ।हमने कभी ईमानदारी और सतत निगरानी के साथ दलितों और सफ़ाई कर्मचारियों की समस्याओं पर संसद में समग्रता में चर्चा नहीं की है।
केन्द्र -राज्य सरकारोंके लिए दलित ,वोटबैंक से ज़्यादा महत्व नहीं रखते और हमेशा किश्तों या टुकड़ों में दलितों की समस्याओं पर संसद में तदर्थभाव से चर्चा हुई है। हम चाहते हैं दलितों के प्रति तदर्थभाव ख़त्म हो और समग्रता में राष्ट्रीय एकता परिषद में खुलकर केन्द्र -राज्य मिलकर बातें करके स्वच्छता नीति बनाएँ और इसके लिए दलितों के सभी रंगत के संगठनों को भीबुलाकर सुझाव लिए जाएँ और उनकी राय को राष्ट्रीय एकता परिषद गंभीरता से सुने ।
नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान की तुलना में अरविंद केजरीवाल का नजरिया ज़्यादा सही लगता है।मसलन् मोदी गए बाल्मीकि मंदिर जबकि केजरीवाल ने नाले की सफ़ाई में भाग लिया और दलित परिवार के घर जाकर खाना खाया।
सफाई की समस्या हमारे हिन्दू संस्कारों और आदतों से मुक्ति से जुडी है। हम जब तक हिन्दू आदतों के शिकार रहेंगे समाज में अस्वच्छता रहेगी।सामाजिक अस्वच्छता का सम्बन्ध मन और मूल्यों की स्वच्छता से है। हमें देखना होगा मोदी जी स्वयं और उनके मंत्री-सांसद-विधायक कितनी जल्दी हिन्दूमन की आंतरिक सफाई करते हैं!
समाज हमारे मन का आईना है यह कचडा साफ़ करने की समस्या मात्र नहीं है ,यह गंदगी फैलाने पर जुर्माने ठोक देने से सुलझनेवाली समस्या नहीं है।
हमारे देश ने यूरोप से कपड़े लिए, शिक्षा ली,रहन-सहन लिया, बाथरुम लिया लेकिन हिन्दूमन नहीं बदला !जीवनशैली नहीं ली। यही वह प्रस्थान बिन्दु है जिस पर प्रहार करने की ज़रुरत है। हिन्दूमन की गंदगियों और जीवनशैली को निशाना बनाए बग़ैर स्वच्छता अभियान सफल नहीं होगा । सफ़ाई का सम्बन्ध आदतों से हैं और आदतें हिन्दूजीवनशैली से जुड़ी हैं और इनका समाज के ऊपर व्यापक असर है।हिन्दूजीवनशैली को मोदी सरकार को निशाना बनाना होगा। यह काम जब तक नहीं होता स्वच्छ भारत टीवी इवेंट से आगे नहीं जा पाएगा।