कलात्मक मीडिया पर्सुएशन कला आधुनिक दास समाज की कुंजी है। पहले गुलाम बनाए जाते थे अब गुलाम बने-बनाए मिलते हैं। पहले गुलामों पर मालिक का शारीरिक नियंत्रण होता था,इन दिनों गुलामों पर मालिक शारीरिक और मानसिक नियंत्रण रखते हैं। गुलाम भाव सबसे प्रियभाव है। यह ऐसा भाव है जिसका सामाजिक स्तर पर व्यापक उत्पादन और पुनर्रुत्पादन हो रहा है। नव्य- पूंजीवाद के मौजूदा दौर में मालिक का नौकर के शरीर और मन पर पूरा नियंत्रण रहता है। काम के घंटे अब आठ नहीं होते बल्कि 10,12,या 16 घंटे तक कर्मचारी से काम लिया जाता है। इस कर्मचारीवर्ग में एक बड़ा समूह ऐसे कर्मचारियों का है जिसकी नौकरी अस्थायी है ,जो ठेके पर काम करता है।जो चंचल मजदूर है। लेकिन गुलाम भाव में जीने वाले कर्मचारियों में एक बड़ा समूह उन लोगों का भी है जो पक्की नौकरी करते हैं , मोटी पगार पाते हैं। येन-केन प्रकारेण सत्ताधारी वर्ग से चिपके रहना इनके स्वभाव का अंग है। इस समूचे समुदाय में तानाशाही के प्रति स्वाभाविक रुझान है। यही वह वर्ग है जो जीवन में पोंगापंथ,अंधविश्वास और उपभोक्तावाद का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। इस वर्ग में परजीविता कूट-कूटकर भरी हुई है। खोखली बातें,खोखले जीवन मूल्य,खोखली राजनीति,खोखला कम्युनिकेशन इस वर्ग के मुख्य आदतें हैं।
इस वर्ग में गुलाम भाव के प्रति जबर्दस्त अपील है।यह बिना किसी दबाव के हमेशा सत्ताधारी वर्गों के दबाव और अनुकरण में रहता है। यह वर्ग विवेक से कम और मीडिया पर्सुएशन से ज्यादा प्रभावित होता है। मीडिया इस वर्ग का उस्ताद है और पर्सुएशनकला इसकी कमजोरी है। पर्सुएशन कला की महत्ता तब और नजर आती है जब किसी नए माल की बाजार में बिक्री सुनिश्चित करनी हो या किसी राजनीतिक प्रचार अभियान को सफल बनाना हो। इस पद्धति का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रभावशाली ढ़ंग से इस्तेमाल किया है। 'स्वच्छ भारत अभियान' इसका आदर्श नमूना है। मसलन् एक शिक्षक-कर्मचारी की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह नियत काम को नियत समय पर पूरा करे, लेकिन एक बड़ा अंश है जो परजीवी है और नियत समय पर काम न करने की मानसिकता में रहता है।यही निकम्मावर्ग है जिसको हांकने में नरेन्द्र मोदी को द्रविड़-प्राणायाम करना पड़ रहा है।यही वह वर्ग है जो समय पर दफ्तर नहीं जाता,समय पर कक्षाएं नहीं लेता,समय पर बाकी अकादमिक और गैर अकादमिक काम नहीं करता। यही वह वर्ग भी है जो मोदीभक्त भी है।इसमें ही बड़ी संख्या में मोदी के कर्मचारी मतदाता भी हैं,ये ही वे लोग हैं जिनको मोदी अपने मीडिया रुतबे से प्रभावित और सक्रिय कर रहे हैं।
आधुनिक गुलामभावबोध का दिलचस्प आलम यह है कि जो कर्मचारी कभी समय पर नहीं आता,अथवा जो विश्वविद्यालय शिक्षक कभी विभाग की मीटिंग में बार-बार बुलाने पर भी नहीं आता, समय पर कक्षाएं लेने नहीं आता, वह 'स्वच्छ भारत' अभियान के दिन नियत समय से काफी पहले विश्वविद्यालय प्रांगण में पहुँच गया और सफाई के फोटोशूट में शामिल होने के लिए बेताब नजर आ रहा था। इस पूरी समस्या के अनेक आयाम हैं लेकिन इसमें प्रमुख है परजीविता और गुलाम भावबोध। ये ही आधुनिक गुलाम की जीवनशैली की धुरी हैं। हम सोचें कि क्या शक्तिशाली देश का निर्माण गुलाम भावबोध से संभव है ? कोई भी देश अपने विवेक की शक्ति से महान बना है।गुलामी मानसिकता से महान नहीं बना है।
इस वर्ग में गुलाम भाव के प्रति जबर्दस्त अपील है।यह बिना किसी दबाव के हमेशा सत्ताधारी वर्गों के दबाव और अनुकरण में रहता है। यह वर्ग विवेक से कम और मीडिया पर्सुएशन से ज्यादा प्रभावित होता है। मीडिया इस वर्ग का उस्ताद है और पर्सुएशनकला इसकी कमजोरी है। पर्सुएशन कला की महत्ता तब और नजर आती है जब किसी नए माल की बाजार में बिक्री सुनिश्चित करनी हो या किसी राजनीतिक प्रचार अभियान को सफल बनाना हो। इस पद्धति का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रभावशाली ढ़ंग से इस्तेमाल किया है। 'स्वच्छ भारत अभियान' इसका आदर्श नमूना है। मसलन् एक शिक्षक-कर्मचारी की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह नियत काम को नियत समय पर पूरा करे, लेकिन एक बड़ा अंश है जो परजीवी है और नियत समय पर काम न करने की मानसिकता में रहता है।यही निकम्मावर्ग है जिसको हांकने में नरेन्द्र मोदी को द्रविड़-प्राणायाम करना पड़ रहा है।यही वह वर्ग है जो समय पर दफ्तर नहीं जाता,समय पर कक्षाएं नहीं लेता,समय पर बाकी अकादमिक और गैर अकादमिक काम नहीं करता। यही वह वर्ग भी है जो मोदीभक्त भी है।इसमें ही बड़ी संख्या में मोदी के कर्मचारी मतदाता भी हैं,ये ही वे लोग हैं जिनको मोदी अपने मीडिया रुतबे से प्रभावित और सक्रिय कर रहे हैं।
आधुनिक गुलामभावबोध का दिलचस्प आलम यह है कि जो कर्मचारी कभी समय पर नहीं आता,अथवा जो विश्वविद्यालय शिक्षक कभी विभाग की मीटिंग में बार-बार बुलाने पर भी नहीं आता, समय पर कक्षाएं लेने नहीं आता, वह 'स्वच्छ भारत' अभियान के दिन नियत समय से काफी पहले विश्वविद्यालय प्रांगण में पहुँच गया और सफाई के फोटोशूट में शामिल होने के लिए बेताब नजर आ रहा था। इस पूरी समस्या के अनेक आयाम हैं लेकिन इसमें प्रमुख है परजीविता और गुलाम भावबोध। ये ही आधुनिक गुलाम की जीवनशैली की धुरी हैं। हम सोचें कि क्या शक्तिशाली देश का निर्माण गुलाम भावबोध से संभव है ? कोई भी देश अपने विवेक की शक्ति से महान बना है।गुलामी मानसिकता से महान नहीं बना है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें