शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

ज़िंदादिल इंसान अजय नाथ झा



 आज सुबह फेसबुक खोलते ही शेषनारायन सिंह की वॉल से ख़बर मिली कि अजय झा नहीं रहे, बहुत दुख हुआ, वह जेएनयू के साथियों का अज़ीज़ मित्र था। हम दोनों सतलज छात्रावास में कई साल एक साथ रहे, एक साथ खाना और घंटों बतियाना, लंबी बहसें करना रोज़ की आदत थी, अजय की रुचियाँ विलक्षण थी वह जेएनयू में सांगठनिक राजनीति में शामिल नहीं था लेकिन एसएफआई के साथ उसका स्वाभाविक लगाव हुआ करता था वह हम सबका कटु आलोचक भी था, मैं उन दिनों एसएफआई का अध्यक्ष हुआ करता था ,अजय आए दिन अपनी कटु से कटु आलोचनाएँ शेयर करता और गहरे मित्रतापूर्ण भाव को बनाए रखता था।
       अजय ने जेएनयू के चुनावआयोग अध्यक्ष के रुप में काम करके ख़ूब शोहरत हासिल की, यह उसका सबसे पसंदीदा काम था ,इसके अलावा तबला बजाना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के संचालन में उसे ख़ूब मज़ा आता था. विगत ढाई दशक से भी ज़्यादा समय से वह मीडिया में सक्रिय था और अंतराष्ट्रीय विषयों पर उसे महारत हासिल थी, जेएनयू के बहुत कम स्कालर हैं जो अंतरराष्ट्रीय विषयों पर मीडिया में निरंतर लिखते रहे हैं। 
     लंबे अंतराल के बाद अजय से फेसबुक के जरिए मुलाक़ात हुई और वह संपर्क में निरंतर बना रहा। अजय में सबसे अच्छी बात थी कि बहुत सुंदर स्टाइल से बातें करता था , उसकी आवाज़ बड़ी प्यारी थी, इस पर उसे भी गर्व था । अजय के जाने से हम सब जेएनयू के मित्रगण बेहद दुखी और आहत महसूस करते हैं। हम सबकी उसे विनम्र श्रद्धांजलि । 

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