जिन लोगों को बाजार नजर न आए,बैंक में लाइन नजर न आए,सूना एटीएम नजर न आए,पाकिस्तान से आए आतंकी नजर न आएं,जनता का क्रोध नजर न आए,औरतों और किसानों की पैसे की तंगी से पैदा हुई तकलीफें नजर न आएं,दैनिक मजदूरों-असंगठित मजदूरों-ठेके पर काम करने वाले मजदूरों-बैंक कर्मचारियों की परेशानियां और मौतें नजर न आएं, आश्चर्य है वे लोग बता रहे हैं वे देश जानते हैं और देश तरक्की कर रहा है !
आम जनता के जमाधन को अचल करना राष्ट्रीय अपराध है औंर यह राष्ट्रीय अपराध किया है आरएसएस-मोदी सरकार ने।
भक्त तो अंततःभक्त हैं पोंदू खोलकर महान नेता के सामने आँखें बंद करके खड़े हैं,कह रहे हैं मार ले ,जितनी चाहे मार ले,महान नेता जितनी मारता है उतने ही खुश होते हैं ,महान नेता जितना तबाह करता है खुश होते है ,महान नेता जितने ज्यादा करेंट के झटके देतां है,उतना ही जोर से कहते हैं "आई लाइक इट", लोकतंत्र में ठेठ भाषा में इसे बाट लगाना कहते हैं,लोकतंत्र की बाट लगी पड़ी है और ये लोग भविष्य की बातें कर रहे हैं,पहले कह रहे थे,परिणाम एक दो दिन में देख लेना,फिर बोले सात दिन में,ये दोनों ही समय निकल गए,परिणाम नहीं दिखा,हां,कुपरिणाम जरूर सामने आ गए हैं।
9नवम्बर से देश की अर्थ व्यवस्था में अकेला बाजार प्रतिदिन 30हजार करोड़ रूपये का नुकसान उठा रहा है, बैंकों ने कितना नुकसान उठाया है वह भी इसमें जोड़ लिया जाए तो जितना कालाधन यह सरकार पकड़ेगी उससे ज्यादा की अब तक क्षति हो चुकी है।सारे लोग कह रहे हैं 5-7लाख करोड़ रूपये से ज्यादा का कालाधन हाथ नहीं लगेगा,लेकिन इतने का तो देश का नुकसान अब तक हो चुका है।इसके बाद भी यदि आप कह रहे हैं कि नोटबंदी सही नीति है तो हम तो यही कहेंगे कि आपसे बड़ा बैसाखनंदन अब देश में दूसरा नहीं है।कम से कम मोटा गणित का हिसाब ही लगा लिया होता तो ,समझ जाते कि देश को किस दिशा में ले जा रहे हो।
मोदी सरकार की नोटबंदी की नीति मूलतः फंडामेंटलिस्ट आर्थिक नीति है,इसको उपभोग और उपभोक्तावाद से सख्त नफरत है,वे लगातार इस पर हमले करते रहते हैं,मोदीजी ने फंडामेंटलिस्टों की नीतियों के अनुरूप नोटबंदी लागू करके समूचे उपभोक्ता बाजार को ही तबाह कर दिया है ,जिस तरह बाजार और नागरिक को तबाह करके फंडामेंटलिस्ट आनंद मनाते हैं ठीक वैसा ही आनंद मोदीपंथी फंडामेंटलिस्ट मना रहे हैं।ये वे लोग हैं जो इस देश के हिन्दुत्ववादी अभियान और हमारी शिक्षा व्यवस्था के तंत्र से निकले हैं।
जनता को बिजली के करेंट के झटके देकर अर्थनीति लागू करने का फार्मूला फंडामेंटलिस्टों की देन है इसका हमारे देश के संविधान,संसद से स्वीकृत नीतियों और उदारतावादी मूल्यों से गहरा बैर है।
खतरा बड़ा है तुम तय करो किस ओर हो ,नई नोटबंदी की नीति फंडामेटलिस्ट समाज बनाने की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है,इसके कारण आज समूचा लोकतंत्र खतरे में है।आपलोगों ने यदि जल्द ही विवेक से काम नहीं लिया तो तय है आगे और भी तकलीफें आने वाली हैं।
आम जनता के जमाधन को अचल करना राष्ट्रीय अपराध है औंर यह राष्ट्रीय अपराध किया है आरएसएस-मोदी सरकार ने।
भक्त तो अंततःभक्त हैं पोंदू खोलकर महान नेता के सामने आँखें बंद करके खड़े हैं,कह रहे हैं मार ले ,जितनी चाहे मार ले,महान नेता जितनी मारता है उतने ही खुश होते हैं ,महान नेता जितना तबाह करता है खुश होते है ,महान नेता जितने ज्यादा करेंट के झटके देतां है,उतना ही जोर से कहते हैं "आई लाइक इट", लोकतंत्र में ठेठ भाषा में इसे बाट लगाना कहते हैं,लोकतंत्र की बाट लगी पड़ी है और ये लोग भविष्य की बातें कर रहे हैं,पहले कह रहे थे,परिणाम एक दो दिन में देख लेना,फिर बोले सात दिन में,ये दोनों ही समय निकल गए,परिणाम नहीं दिखा,हां,कुपरिणाम जरूर सामने आ गए हैं।
9नवम्बर से देश की अर्थ व्यवस्था में अकेला बाजार प्रतिदिन 30हजार करोड़ रूपये का नुकसान उठा रहा है, बैंकों ने कितना नुकसान उठाया है वह भी इसमें जोड़ लिया जाए तो जितना कालाधन यह सरकार पकड़ेगी उससे ज्यादा की अब तक क्षति हो चुकी है।सारे लोग कह रहे हैं 5-7लाख करोड़ रूपये से ज्यादा का कालाधन हाथ नहीं लगेगा,लेकिन इतने का तो देश का नुकसान अब तक हो चुका है।इसके बाद भी यदि आप कह रहे हैं कि नोटबंदी सही नीति है तो हम तो यही कहेंगे कि आपसे बड़ा बैसाखनंदन अब देश में दूसरा नहीं है।कम से कम मोटा गणित का हिसाब ही लगा लिया होता तो ,समझ जाते कि देश को किस दिशा में ले जा रहे हो।
मोदी सरकार की नोटबंदी की नीति मूलतः फंडामेंटलिस्ट आर्थिक नीति है,इसको उपभोग और उपभोक्तावाद से सख्त नफरत है,वे लगातार इस पर हमले करते रहते हैं,मोदीजी ने फंडामेंटलिस्टों की नीतियों के अनुरूप नोटबंदी लागू करके समूचे उपभोक्ता बाजार को ही तबाह कर दिया है ,जिस तरह बाजार और नागरिक को तबाह करके फंडामेंटलिस्ट आनंद मनाते हैं ठीक वैसा ही आनंद मोदीपंथी फंडामेंटलिस्ट मना रहे हैं।ये वे लोग हैं जो इस देश के हिन्दुत्ववादी अभियान और हमारी शिक्षा व्यवस्था के तंत्र से निकले हैं।
जनता को बिजली के करेंट के झटके देकर अर्थनीति लागू करने का फार्मूला फंडामेंटलिस्टों की देन है इसका हमारे देश के संविधान,संसद से स्वीकृत नीतियों और उदारतावादी मूल्यों से गहरा बैर है।
खतरा बड़ा है तुम तय करो किस ओर हो ,नई नोटबंदी की नीति फंडामेटलिस्ट समाज बनाने की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम है,इसके कारण आज समूचा लोकतंत्र खतरे में है।आपलोगों ने यदि जल्द ही विवेक से काम नहीं लिया तो तय है आगे और भी तकलीफें आने वाली हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें