शनिवार, 1 जुलाई 2017

ठंडे समाज की सिहरन


       तमाम ठंड़े दिमाग के लोग यही कह रहे हैं मोदीजी उपकार करेंगे!आरएसएस देश का मान-सम्मान ऊँचा करेगा।दुनिया में जहां पर भी आरएसएस जैसे संगठनों के लोग सत्ता में आए हैं सरकार ,समाज और देश का मस्तक गर्व से ऊँचा ही हुआ है ! इसलिए आरएसएस के प्रति शत्रुभाव रखने की जरूरत नहीं है ! दंगों में लोगों का मारे जाना, गऊ रक्षकों के हाथों निर्दोष लोगों की हत्या,कश्मीर में चल रहा उत्पीड़न असल में उत्पीड़न नहीं है बल्कि वह ऐतिहासिक काम है जिसे इस देश को हर हालत में और खुशी खुशी संपन्न करना चाहिए ! हमें ठंड़े रहकर चीजों को देखना चाहिए। ठंड़े रहकर ही समाधान खोजने चाहिए।हमें ठंड़े रहकर जीने की कला हिमालय से सीखनी चाहिए।कितना ठंड़ा है और कितना ऊँचा है ! कितना निर्जन है !ठंड़ा समाज,ठंड़ा दिमाग और निर्जन समाज और हिमालय जैसी शांति और ठंड़क ही है जो भारत को महान बनाती है ! उसके मान-सम्मान में इजाफा करती है।

ठंड़ा रहना,ठंड़ा सोचना और सिहरन में काँपते रहना यही है 21वीं सदी के भारत का सच।आप ठंड़े हैं तो सुरक्षित हैं ! ऐसे बनो कि कभी पिघलो मत।चाहे जितनी चिंताएं दिखाई दें,आदमी तकलीफों में डूब जाए लेकिन ठंड़े रहो! गुलफाम रहो!गुलाम रहो!

कल्पना करो बार-बार उन ऐतिहासिक क्षणों के बारे में मोदी सरकार क्यों याद दिला रही है ॽ उन नेताओं के नामों और कामों का स्मरण क्यों कर रही है जिनके जमाने में समाज गर्म था ॽउन क्षणों में मोदी सरकार क्यों मौजूद दिखना चाहती है जो समाज के गर्म क्षण थे।

सन् 1947 में जब देश आजाद हुआ तो समाज गर्म था,पटेल ने विभिन्न रियासतों का भारत में विलय कराया था तब भारत गर्म था।आम जनता के मन में आशा और उमंगों की हिलोरें उठ रही थीं ,समाज में गर्म हवाएं चल रही थी, हर आदमी बेचैन था।यानी आज के ठंड़े माहौल से पुराने वाले माहौल की विलोम के रूपमें ही तुलना संभव है।कांग्रेस सत्ता के शिखर पर थी संसद में छाई हुई थी,आरएसएस संसद के बाहर था, लेकिन कल कांग्रेस संसद के बाहर खड़ी थी, कल आरएसएस ने संसद को घेरा हुआ था,सन् 47 में वे मुखबिर थे,आज वे देश के संरक्षक हैं,पहले वे गांधी के परमशत्रु थे ,आज वे गांधी के परमभक्त हैं! सन् 47 में कम्युनिस्टों और क्रांतिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका थी लेकिन आज वे राजनीतिक प्रक्रिया के बाहर खड़े हैं। सन्47 के समाज में गर्म ऊर्जा थी,सन्2017 के समाज में सारी ऊर्जा ठंड़ी पड़ी है।गर्म समाज और ठंडे समाज में यही अंतर है।गर्म समाज ने सुई से लेकर परमाणु बम तक सब चीजों का निर्माण किया,ठंड़े समाज ने मात्र एप का निर्माण किया।विज्ञापनों का निर्माण किया।गर्म समाज के पास कुर्बानी का जज्बा था,ठंड़े समाज के पास आराम के साथ जीने,परजीवी की तरह रहने की आदत है।गर्म समाज सोचता था ,ठंड़ा समाज भोक्ता है।

ठंड़े समाज की स्प्रिट के साथ सन्47 की स्प्रिट की तुलना करना बेवकूफी है।आप चाहकर भी वह स्प्रिट पैदा नहीं कर सकते।सन्47 में सारा देश संसद में था,सारे मत-मतान्तर संसद में थे,लेकिन सन्17 में तो सिर्फ एक ही मत संसद में था,गैर-मोदी मत-मतान्तरों को खदेड़कर बाहर कर दिया गया।याद रखो ठंड़े समाज में हरकत नहीं होती।ठंडा शरीर हरकत नहीं करता।जो हरकत नहीं करता वह समाज का निर्माण नहीं करता।हिमालय से भारत नहीं, भारत बनता है हिमालय को तोड़कर ! हिमालय प्रगति का प्रतीक नहीं है बल्कि हिमालय को बदलना ही प्रगति है।अफसोस की बात है हम ठंड़े होते जा रहे हैं!हिमालय होते जा रहे हैं!हिमालय बनने या ठंड़े समाज बनने का अर्थ है सभ्यता को,समाज को,दिमाग को प्रकृति को गिरवी रखना,तय करो किस ओर हो हिमालय की ओर या मनुष्यता की ओर ! मनुष्यता की सारी उपलब्धियां वे हैं जो उसने हिमालय को तोड़कर हासिल की हैं,लेकिन ठंड़े समाज का अंग बनकर आप उपलब्धियां हासिल नहीं कर सकते लेकिन हिटलर हासिल कर सकते हैं !





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