जय श्री राम, जै माई जी की, राधे राधे, जय श्री कृष्ण , राजाधिराज की जय आदि सम्बोधन सूचक नारे हैं।ये खोखले नारे हैं।ये जिन प्रतीकों-मिथों से जुड़े हैं उनमें सामाजिक सक्रियता पैदा करने की क्षमता नहीं है।
आधुनिककाल और आधुनिक समाज में जब इन नारों के जरिए नमस्कार-प्रणाम करते हैं तो अवचेतन में बैठे धार्मिक मन को अभिव्यक्त करते हैं।इससे यह भी पता चलता है आप आधुनिक नहीं बने हैं।
आधुनिक बनने के लिए आधुनिक सम्बोधनों का इस्तेमाल करना चाहिए,उससे आधुनिक संवेदनशीलता और अनुभूति के निर्माण में मदद मिलती है।
मसलन्, जब हलो कहते हैं तो आधुनिक मन को व्यक्त करते हैं लेकिन ज्योंही फोन पर राधे राधे कहकर सम्बोधित करते हैं तो धार्मिक चेतना को व्यक्त करते हैं।
जय श्री राम का नारा कोई क्रांतिकारी नारा नहीं है, कोई ऐसा नारा नहीं है जिसके कारण देश प्रगति की दिशा में छलांग लगाकर चला गया हो,बमबटुकों को यहनारा पसंद है।
बुनियादी तौर पर यह अर्थहीन नारा है, खोखला नारा है।इसमें कुछ करने की क्षमता का अभाव है। यह परजीवी समाज का नारा है।इसका न तो लोकतंत्र से संबंध है और न विकास से संबंध है, और न इसका रामाश्रयी धार्मिक परंपरा से संबंध है।यह बाबरी मसजिद विध्वंस के दौर में चर्चित हुआ नारा है। इसका ऐतिहासिकता,धर्म,परंपरा और भाईचारे से तीन -तेरह का रिश्ता है।
यह नारा जितनी बार लगा है उसने नागरिक की अस्मिता को क्षतिग्स्त किया है और व्यक्ति की बजाय धर्म की पहचान को उभारा है।इस परिप्रेक्ष्य में यह प्रतिगामिता और कुंठा की अभिव्यक्ति है।
इससे पता चलता है कि लोग ज्यादा पढ़ा लिख कर होशियार भी हो जाये इसकी गारंटी नहीं है । जो लोग अपने कल्चर अपनी आस्था अपने धर्म अपने संस्कारों का खयाल न रख सके उनसे बड़ा पढ़ा लिखा बेवकूफ कोइ नहीं हो सकता है । ऐसे लोग झोला छाप चापलूसी कवियों कहलाते है जो चापलूसी करके किसी मुकाम तक पहुंचते है फिर धीरे-धीरे बेवकूफी की पोल खुलती जाती है।
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