नरेन्द्र मोदी को सत्ता पर बिठाने में देश के व्यापारियों और कारपोरेट घरानों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।यह वर्ग विगत तीन सालों में मोदी सरकार की नीतियों के कारण किसी न किसी रुप में परेशान है,असंतुष्ट है और धीरे धीरे विभिन्न समूहों के तौर पर सड़कों पर प्रतिवाद के लिए निकल रहा है।मसलन्, विगत बजट के समय स्वर्ण व्यापारियों ने दो महिने तक आंदोलन किया, इधर विभिन्न स्तरों पर मांस के व्यापारी विरोध करते रहे हैं,नोटबंदी के कारण छोटे उद्योगों के मालिकों में गहरा असंतोष पैदा हुआ है।सबसे दिलचस्प है जीएसटी के विरोध में व्यापारियों का एक दिन का राष्ट्रीय बंद और उसके बाद कपड़ा व्यापारियों का सघन होता आंदोलन।ये सारी चीजें इस बात की ओर संकेत कर रही हैं कि मोदीजी को जो वर्ग सत्ता में लेकर आया उसी वर्ग के साथ अंतर्विरोध खुलकर सामने आ गए हैं।
दिलचस्प बात यह है व्यापारियों के जन- आंदोलन हो रहे हैं, विशाल रैलियां हो रही हैं,इस तरह की रैलियां हाल-फिलहाल के वर्षों में नजर नहीं आईं। मसलन् सूरत इन दिनों अशांत है।सूरत की अशांति को सामान्य रुटिन अशांति के रूप में न देखें। बल्कि उसे व्यापक फलक पर रखकर देखें कि किस तरह व्यापारियों के विभिन्न समूहों में मोदी सरकार के खिलाफ प्रतिवाद जन्म ले रहा है।वहीं दूसरी ओर मजदूरों-किसानों के आंदोलन भी हो रहे हैं। इन सबके कारण एक नए किस्म का प्रतिवादी राजनीतिक माहौल जन्म ले रहा है।
अनेक राजनीतिक विशेषज्ञ हैं जो यह मानकर चल रहे हैं कि मोदीजी 2019 में लौटकर फिर से सत्ता में आ रहे हैं। ये विशेषज्ञ भूल रहे हैं कि 2014 में मोदी के खिलाफ कोई असंतोष नहीं था बल्कि आशाएं जुड़ी हुई थीं।लेकिन 2019 तक मोदी के खिलाफ समाज के हर स्तर पर व्यापक असंतोष पैदा होगा,यह अनिवार्य है।कम से कम व्यापारियों के विभिन्न रूपों में हो रहे प्रतिवादों को गंभीरता से लेने की जरूरत है।व्यापारी समुदाय यदि बार बार प्रतिवाद कर रहा है तो यह तय है समाज में अशांति बहुत गहरे जा घुसी है,इस अशांति को मीडिया प्रबंधन के जरिए संभालना संभव नहीं है।इंतजार करें जमीन पक रही है।
दिलचस्प बात यह है व्यापारियों के जन- आंदोलन हो रहे हैं, विशाल रैलियां हो रही हैं,इस तरह की रैलियां हाल-फिलहाल के वर्षों में नजर नहीं आईं। मसलन् सूरत इन दिनों अशांत है।सूरत की अशांति को सामान्य रुटिन अशांति के रूप में न देखें। बल्कि उसे व्यापक फलक पर रखकर देखें कि किस तरह व्यापारियों के विभिन्न समूहों में मोदी सरकार के खिलाफ प्रतिवाद जन्म ले रहा है।वहीं दूसरी ओर मजदूरों-किसानों के आंदोलन भी हो रहे हैं। इन सबके कारण एक नए किस्म का प्रतिवादी राजनीतिक माहौल जन्म ले रहा है।
अनेक राजनीतिक विशेषज्ञ हैं जो यह मानकर चल रहे हैं कि मोदीजी 2019 में लौटकर फिर से सत्ता में आ रहे हैं। ये विशेषज्ञ भूल रहे हैं कि 2014 में मोदी के खिलाफ कोई असंतोष नहीं था बल्कि आशाएं जुड़ी हुई थीं।लेकिन 2019 तक मोदी के खिलाफ समाज के हर स्तर पर व्यापक असंतोष पैदा होगा,यह अनिवार्य है।कम से कम व्यापारियों के विभिन्न रूपों में हो रहे प्रतिवादों को गंभीरता से लेने की जरूरत है।व्यापारी समुदाय यदि बार बार प्रतिवाद कर रहा है तो यह तय है समाज में अशांति बहुत गहरे जा घुसी है,इस अशांति को मीडिया प्रबंधन के जरिए संभालना संभव नहीं है।इंतजार करें जमीन पक रही है।
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