हाल ही में कलकत्ता में विज्ञान कांग्रेस के अधिवेशन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जब बोल रहे थे तो वे वैज्ञानिकों को सम्बोधित कम और कांग्रेसियों को सम्बोधित करते ज्यादा दिख रहे थे। वे कांग्रेस के प्रचारक के रूप में बोल रहे थे। प्रधानमंत्री का विज्ञान कांग्रेस में दिया गया भाषण राजनीतिक प्रचार से ज्यादा महत्व नहीं रखता। वे जो कहते हैं वह कपूर की तरह कुछ क्षण दिखता है फिर गायब हो जाता है। संभवतः वे अकेले प्रधानमंत्री हैं जिनके किसी भी भाषण की कोई भी बात आम आदमी से लेकर बुद्धिजीवियों तक किसी को भी याद नहीं है। प्रधानमंत्री का प्रचारक होना सामान्य बात है लेकिन मनमोहन सिंह इस मामले में विरल हैं क्योंकि वे नव्य उदारनीतियों के नीति निर्माता-प्रचारक के रूप में काम करते रहे हैं। वे मूलतः वर्चुअल हैं। आप उनको पकड सकते हैं लेकिन घेर नहीं सकते। गलती पकड सकते हैं लेकिन दोषी नहीं ठहरा सकते।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को विपक्ष जब भी घेरने की कोशिश करता है वे हाथ से निकल जाते हैं। हाल ही में दामिनी दिल्ली बलात्कार कांड के प्रसंग में मीडिया उन्माद के जरिए मनमोहन सरकार को घेरने की असफल कोशिश की गई लेकिन वे साफ बच निकले। सवाल यह है कि मनमोहन सरकार को घेरने में विपक्ष आज तक सफल क्यों नहीं हुआ ?
मनमोहन सरकार और कांग्रेस पार्टी ने एक नयी रणनीति बनाई है जिसके तहत वे पापुलिज्म और लोकप्रिय जनदबाब का प्रत्युत्तर प्रशासनिक एक्शन के जरिए दे रहे हैं। मसलन् जब 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला सामने आया तो उन्होंने सीधे एक्शन लिया। कॉमनवेल्थ कांड से लेकर दामिनी कांड तक जो भी समस्या आई उसके प्रशासनिक समाधान तलाशने की सक्रिय कोशिश की और इससे भी ज्यादा अपनी कोशिश का मीडिया में जमकर प्रचार किया।
मनमोहन सरकार का मानना है पापुलर को मानो,आलोचनात्मक राय दो । राजनीतिक दबाब को प्रशासनिक –न्यायिक समाधान दो। इस अर्थ में वे लगातार संरचनात्मक सुधारों की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। संरचनात्मक सुधार वस्तुतःनव्य आर्थिक उदारीकरण का हिस्सा हैं। नव्य उदारवादी दृष्टिकोण के अनुसार नयी समस्याएं पुराने कानूनी फ्रेमवर्क में हल नहीं हो सकतीं, मनमोहन सरकार ने इसे सभी मंत्रालयों की कार्यप्रणाली का अंग बना दिया है। इस पद्धति का अनुकरण करने के कारण उनकी जब आलोचना आरंभ होती है तब वे सामने होते हैं लेकिन प्रशानिक एक्शन जब आने लगते हैं तो मनमोहन सरकार के खिलाफ गुस्सा गायब हो जाता है और फिर आमलोगों से लेकर मीडिया तक समस्या और समाधान पर ही बहस आकर टिक जाती है। इसके कारण राजनीति में पैदा हुए उन्माद और भावुकता को हाशिए पर डालने में उनको सफलता मिली है।
मनमोहन सिंह जब से प्रधानमंत्री बने हैं। वे मीडिया और विशेषज्ञों की आलोचना के केन्द्र में नहीं आते। उन्हें प्रधानमंत्री बने 8 साल से ज्यादा समय हो गया है। मीडिया में ममता बनर्जी,शरद पवार ,प्रफुल्ल पटेल ,डी.राजा ,कांग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं ,कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों आदि की आलोचना दिखेगी लेकिन मनमोहन सिंह की आलोचना नहीं मिलेगी। आकाश छूती मंहगाई है लेकिन प्रधानमंत्री पर न तो मीडिया हमला कर रहा है और न विपक्ष। असल में मनमोहन सिंह डिजिटल हो गए हैं। उनका डिजिटल इमेज में रूपान्तरण कर दिया गया है। डिजिटल इमेज और राजनीतिक व्यक्तित्व की इमेज में यही अंतर होता है। राजनीतिक इमेज को पकड़ सकते हैं लेकिन डिजिटल इमेज को पकड़ नहीं सकते।
मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व अनेक गुणों से परिपूर्ण है। वे बेहद विनम्र हैं, सुसंस्कृत है, शिक्षित हैं। नव्य -उदार नीतियों के विशेषज्ञ हैं। मीडिया में उनके बारे में न्यूनतम बातें छपती हैं। संभवतः मीडिया में उन्हें सबसे कम कवरेज वाले प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जाएगा।
नई डिजिटल इमेज एक ही साथ मिथकीय और ऐतिहासिक होती है। अतीतपंथी और भविष्योन्मुखी होती है। तकनीकीपरक और धार्मिक होती है। मनमोहन सिंह ने अपने प्रचार में बार-बार समृद्ध भारत और समर्थ भारत की बात करते हैं। बार-बार विकासदर को उछाला है। भारत को समृद्धि के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है। खासकर पूंजीपति,ह्वाइट कॉलर और मध्यवर्ग के साथ जोड़ा है। इस क्रम में उन्होंने मजदूरों-किसानों की राजनीति को हाशिए पर ड़ालने में सफलता अर्जित की है।
मनमोहन कोड की विशेषता है कि उसने गरीबी के यथार्थ विमर्श को वायवीय बनाया है। गरीबी और अभाव को गैर-बुनियादी विमर्शों के जरिए अपदस्थ किया है। मनमोहन कोड ने गरीबी और अभाव को अप्रत्यक्ष दानव में रूपान्तरित किया है। जिसके बारे में आप सिर्फ कभी-कभार सुन सकते हैं। मनमोहनकोड के लिए गरीबी और अभाव कभी महान समस्या नहीं रहे। मनमोहन कोड ने देश की एकता और अखंडता के लिए सबसे खतरनाक शत्रु के रूप में माओवाद को प्रतिष्ठित किया है। जबकि माओवाद भारत विभाजन या सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा नहीं है।
मनमोहन कोड की काल्पनिक सृष्टि है माओवाद और आतंकी हिन्दू। यह जादुई-मिथकीय शत्रु है। मनमोहन कोड के अनुयायी और प्रचारक माओवाद के बारे में तरह-तरह की दंतकथाएं, किंवदन्तियां आदि प्रचारित कर रहे हैं। मीडिया में माओवाद एक मिथकीय महामानव है। इसी तर्ज पर आरएसएस के नाम पर बहुत सारे आतंकी हिन्दू महामानव पैदा कर दिए गए हैं। ये सारे मनमोहन कोड से सृजित वर्चुअल सामाजिक शत्रु हैं। ये आधे मानव और आधे दानव हैं।
माओवाद और हिन्दू आतंकवाद की रोचक डिजिटल कहानियां आए दिन सम्प्रेषित की जा रही हैं। इन्हें सामाजिक विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। आप जरा गौर से माओवादी नेता किशनजी की कपड़ा मुँह पर ढ़ंके इमेज और हिन्दू आतंकी के रूप में पकड़े गए संतों को ध्यान से देखें तो इनमें आप आधे मनुष्य और आधे प्राचीन मनुष्य की इमेज के दर्शन पाएंगे।
कारपोरेट मीडिया माओवादी और हिन्दू आतंकी की ऐसी इमेज पेश कर रहा है गोया कोई फोरेंसिक रिपोर्ट पेश कर रहा हो। वे इनके शरीर की ऐसी इमेज पेश कर रहे हैं जिससे ये आधे मनुष्य और आधे शैतान लगें। इससे वे खतरे और भय का विचारधारात्मक प्रभाव पैदा कर रहे हैं।
मनमोहन सिंह मीडिया में उतने नजर नहीं आते जितना इन दिनों डिजिटल दानवों (माओवाद और हिन्दू आतंकी) को पेश किया जा रहा है। हमें इस कोड को खोलना चाहिए। यह तकरीबन वैसे ही है जैसे अमेरिका ने तालिबान और विन लादेन की इमेजों के प्रचार-प्रसार के जरिए सारी दुनिया को तथाकथित आतंकवाद विरोधी मुहिम में झोंक दिया और तबाही पैदा की । सामाजिक अस्थिरता पैदा की । घृणा का वातावरण पैदा किया । ठीक यही काम मनमोहन कोड अपने डिजिटल शत्रुओं के प्रचार-प्रसार के नाम पर कर रहा है। हमें जागरूक रहने की जरूरत है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को विपक्ष जब भी घेरने की कोशिश करता है वे हाथ से निकल जाते हैं। हाल ही में दामिनी दिल्ली बलात्कार कांड के प्रसंग में मीडिया उन्माद के जरिए मनमोहन सरकार को घेरने की असफल कोशिश की गई लेकिन वे साफ बच निकले। सवाल यह है कि मनमोहन सरकार को घेरने में विपक्ष आज तक सफल क्यों नहीं हुआ ?
मनमोहन सरकार और कांग्रेस पार्टी ने एक नयी रणनीति बनाई है जिसके तहत वे पापुलिज्म और लोकप्रिय जनदबाब का प्रत्युत्तर प्रशासनिक एक्शन के जरिए दे रहे हैं। मसलन् जब 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला सामने आया तो उन्होंने सीधे एक्शन लिया। कॉमनवेल्थ कांड से लेकर दामिनी कांड तक जो भी समस्या आई उसके प्रशासनिक समाधान तलाशने की सक्रिय कोशिश की और इससे भी ज्यादा अपनी कोशिश का मीडिया में जमकर प्रचार किया।
मनमोहन सरकार का मानना है पापुलर को मानो,आलोचनात्मक राय दो । राजनीतिक दबाब को प्रशासनिक –न्यायिक समाधान दो। इस अर्थ में वे लगातार संरचनात्मक सुधारों की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। संरचनात्मक सुधार वस्तुतःनव्य आर्थिक उदारीकरण का हिस्सा हैं। नव्य उदारवादी दृष्टिकोण के अनुसार नयी समस्याएं पुराने कानूनी फ्रेमवर्क में हल नहीं हो सकतीं, मनमोहन सरकार ने इसे सभी मंत्रालयों की कार्यप्रणाली का अंग बना दिया है। इस पद्धति का अनुकरण करने के कारण उनकी जब आलोचना आरंभ होती है तब वे सामने होते हैं लेकिन प्रशानिक एक्शन जब आने लगते हैं तो मनमोहन सरकार के खिलाफ गुस्सा गायब हो जाता है और फिर आमलोगों से लेकर मीडिया तक समस्या और समाधान पर ही बहस आकर टिक जाती है। इसके कारण राजनीति में पैदा हुए उन्माद और भावुकता को हाशिए पर डालने में उनको सफलता मिली है।
मनमोहन सिंह जब से प्रधानमंत्री बने हैं। वे मीडिया और विशेषज्ञों की आलोचना के केन्द्र में नहीं आते। उन्हें प्रधानमंत्री बने 8 साल से ज्यादा समय हो गया है। मीडिया में ममता बनर्जी,शरद पवार ,प्रफुल्ल पटेल ,डी.राजा ,कांग्रेस के क्षेत्रीय नेताओं ,कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों आदि की आलोचना दिखेगी लेकिन मनमोहन सिंह की आलोचना नहीं मिलेगी। आकाश छूती मंहगाई है लेकिन प्रधानमंत्री पर न तो मीडिया हमला कर रहा है और न विपक्ष। असल में मनमोहन सिंह डिजिटल हो गए हैं। उनका डिजिटल इमेज में रूपान्तरण कर दिया गया है। डिजिटल इमेज और राजनीतिक व्यक्तित्व की इमेज में यही अंतर होता है। राजनीतिक इमेज को पकड़ सकते हैं लेकिन डिजिटल इमेज को पकड़ नहीं सकते।
मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व अनेक गुणों से परिपूर्ण है। वे बेहद विनम्र हैं, सुसंस्कृत है, शिक्षित हैं। नव्य -उदार नीतियों के विशेषज्ञ हैं। मीडिया में उनके बारे में न्यूनतम बातें छपती हैं। संभवतः मीडिया में उन्हें सबसे कम कवरेज वाले प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जाएगा।
नई डिजिटल इमेज एक ही साथ मिथकीय और ऐतिहासिक होती है। अतीतपंथी और भविष्योन्मुखी होती है। तकनीकीपरक और धार्मिक होती है। मनमोहन सिंह ने अपने प्रचार में बार-बार समृद्ध भारत और समर्थ भारत की बात करते हैं। बार-बार विकासदर को उछाला है। भारत को समृद्धि के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया है। खासकर पूंजीपति,ह्वाइट कॉलर और मध्यवर्ग के साथ जोड़ा है। इस क्रम में उन्होंने मजदूरों-किसानों की राजनीति को हाशिए पर ड़ालने में सफलता अर्जित की है।
मनमोहन कोड की विशेषता है कि उसने गरीबी के यथार्थ विमर्श को वायवीय बनाया है। गरीबी और अभाव को गैर-बुनियादी विमर्शों के जरिए अपदस्थ किया है। मनमोहन कोड ने गरीबी और अभाव को अप्रत्यक्ष दानव में रूपान्तरित किया है। जिसके बारे में आप सिर्फ कभी-कभार सुन सकते हैं। मनमोहनकोड के लिए गरीबी और अभाव कभी महान समस्या नहीं रहे। मनमोहन कोड ने देश की एकता और अखंडता के लिए सबसे खतरनाक शत्रु के रूप में माओवाद को प्रतिष्ठित किया है। जबकि माओवाद भारत विभाजन या सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा नहीं है।
मनमोहन कोड की काल्पनिक सृष्टि है माओवाद और आतंकी हिन्दू। यह जादुई-मिथकीय शत्रु है। मनमोहन कोड के अनुयायी और प्रचारक माओवाद के बारे में तरह-तरह की दंतकथाएं, किंवदन्तियां आदि प्रचारित कर रहे हैं। मीडिया में माओवाद एक मिथकीय महामानव है। इसी तर्ज पर आरएसएस के नाम पर बहुत सारे आतंकी हिन्दू महामानव पैदा कर दिए गए हैं। ये सारे मनमोहन कोड से सृजित वर्चुअल सामाजिक शत्रु हैं। ये आधे मानव और आधे दानव हैं।
माओवाद और हिन्दू आतंकवाद की रोचक डिजिटल कहानियां आए दिन सम्प्रेषित की जा रही हैं। इन्हें सामाजिक विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। आप जरा गौर से माओवादी नेता किशनजी की कपड़ा मुँह पर ढ़ंके इमेज और हिन्दू आतंकी के रूप में पकड़े गए संतों को ध्यान से देखें तो इनमें आप आधे मनुष्य और आधे प्राचीन मनुष्य की इमेज के दर्शन पाएंगे।
कारपोरेट मीडिया माओवादी और हिन्दू आतंकी की ऐसी इमेज पेश कर रहा है गोया कोई फोरेंसिक रिपोर्ट पेश कर रहा हो। वे इनके शरीर की ऐसी इमेज पेश कर रहे हैं जिससे ये आधे मनुष्य और आधे शैतान लगें। इससे वे खतरे और भय का विचारधारात्मक प्रभाव पैदा कर रहे हैं।
मनमोहन सिंह मीडिया में उतने नजर नहीं आते जितना इन दिनों डिजिटल दानवों (माओवाद और हिन्दू आतंकी) को पेश किया जा रहा है। हमें इस कोड को खोलना चाहिए। यह तकरीबन वैसे ही है जैसे अमेरिका ने तालिबान और विन लादेन की इमेजों के प्रचार-प्रसार के जरिए सारी दुनिया को तथाकथित आतंकवाद विरोधी मुहिम में झोंक दिया और तबाही पैदा की । सामाजिक अस्थिरता पैदा की । घृणा का वातावरण पैदा किया । ठीक यही काम मनमोहन कोड अपने डिजिटल शत्रुओं के प्रचार-प्रसार के नाम पर कर रहा है। हमें जागरूक रहने की जरूरत है।
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