रविवार, 20 जनवरी 2013

नए दोस्त और नए रास्ते की तलाश में माकपा और कांग्रेस



   जयपुर में कांग्रेस का तीन दिवसीय चिन्तन शिविर खत्म हो चुका है और  उसी समय कोलकाता में माकपा की केन्द्रीय कमेटी की मीटिंग भी खत्म हुई है। इन दोनों दलों की बैठक में एक समानता है दोनों ही पार्टियां अपने लिए नए रास्ते और नए मित्रों की तलाश में हैं। दोनों के निशाने पर युवावर्ग है। माकपा के सामने चुनौती है कि आगामी विधानसभा चुनाव में त्रिपुरा में वाममोर्चे की जीत और सत्ता को कैसे बरकरार रखा जाय और कांग्रेस के सामने चुनौती है कि सन् 2014 लोकसभा में कांग्रेस की जीत को कैसे बरकरार रखा जाय। दोनों को अन्य दलों के सहयोग की जरूरत है। दोनों दलों का साझा लक्ष्य है युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करना।
   त्रिपुरा के अलावा जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे वे हैं मणिपुर और नागालैण्ड। इनमें त्रिपुरा में कांग्रेस पूरी शक्ति लगाकर वाममोर्चे को हराने की कोशिश करेगी और राज्य के पिछड़ेपन को मुद्दा बना सकती है वहीं पर वाममोर्चे के पास शांतिपूर्ण विकास का अपना दावा रहेगा।मणिपुर और नागालैण्ड में कांग्रेस मजबूत है लेकिन त्रिपुरा में वाम को हराने में अभी तक उसे सफलता नहीं मिली है।
    माकपा अपनी राष्ट्रीय छवि सुधारने के क्रम में आगामी 19मार्च को दिल्ली के रामलीला मैदान में राष्ट्रीय रैली करने जा रही है इसमें कोलकाता ,कन्याकुमारी और अमृतसर से तीन बड़े जत्थे कई हजार किलोमीटर का रास्ता तय करके शामिल होंगे। माकपा अपनी प्रतिष्ठा को पाने के लिए कांग्रेस पार्टी और खासकर यूपीए-2 सरकार की जनविरोधी नीतियों को अपने प्रचार अभियान में मुख्य हथियार बनाएगी। केन्द्र सरकार की आर्थिकमंदी से निबटने में असफलता, मूल्यवृद्धि ,भ्रष्टाचार और बेकारी को मुख्य मुद्दे के रूप में आम जनता के सामने रखने का माकपा की केन्द्रीय कमेटी ने फैसला किया है। माकपा की पश्चिम बंगाल में अपने संगठन को बचाने और आगामी पंचायत चुनावों में वामदलों की एकजुटता बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है।
  माकपा केन्द्रीय कमेटी ने पश्चिम बंगाल राज्य कमेटी को आदेश दिया है कि सभी सदस्यों को सक्रिय करो ,दलीय निष्क्रियता को खत्म करो। केन्द्रीय कमेटी ने पश्चिम बंगाल में माकपा नेताओं और कार्यकर्ताओं पर बढ़ते हमलों पर गहरी चिन्ता व्यक्ति की है। साथ ही  ममतासरकार ,तृणमूल कांग्रेस और अपराधी गिरोहों के हमलों का एकजुट प्रतिवाद करने का आह्वान किया है।
     कांग्रेस के तीन दिवसीय जयपुर चिंतन शिविर में कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने अपने उद्घाटन भाषण में आत्मालोचना करते हुए कहा कि हमें इस सवाल पर विचार करना चाहिए कि किस तरह कांग्रेस के परंपरागत जनाधार में सेंधमारी करने में विपक्ष सफल हो गया।
    इसके अलावा सन् 2014 के लोकसभा चुनाव के समय कांग्रेस को अपने नए दोस्तों की भी तलाश करनी होगी। अधिकांश कांग्रेस नेताओं का मानना है कि आगामी लोकसभा चुनाव जीतने के लिए जरूरी है कि विभिन्न राज्यों में कांग्रेस को मजबूत मित्रदलों की तलाश की करनी चाहिए और मित्रदलों के साथ विनम्रता के साथ संबंध विकसित किया जाना चाहिए। इस क्रम में अनेक नेताओं ने वामदलों खासकर माकपा और भाकपा के प्रति नरम रूख अपनाने पर जोर दिया। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मतानुसार विगत चुनावों में कांग्रेस ने जो रणनीति अपनायी वह बुनियादी तौर पर पिट चुकी है। बिहार,यूपी और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस अभी तक अपने पैंरों पर खड़ी नहीं हो पायी है। उलटे यह खतरा है कि यदि स्थानीयस्तर पर पश्चिम बंगाल में वाममोर्चा,बिहार में लालू यादव और यूपी में मुलायम सिंह यादव के साथ यदि नरम रवैय्या नहीं अपनाया जाता है तो भविष्य में यूपीए के सत्ता में लौटने की संभावनाएं कम हैं। इसलिए नई रणनीतियों और राजनीतिक कार्यक्रमों के साथ उन मसलों को ज्यादा उभारे जाने की संभावना है जिन पर कांग्रेस अपने साथ ज्यादा से ज्यादा मित्रदलों को जुटा सके। इसके लिए कांग्रेस ने महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण के प्रस्ताव को फिलहाल ठंड़े बस्ते में रखने का ही फैसला किया है लेकिन महिला सशक्तिकरण के अन्य साझा उपायों पर आगामी दिनों में काम किया जाएगा। यह भी संभावना है कि आगामी दिनों में कांग्रेस अपने प्रमुख प्रचार के मुद्दे के रूप में साम्प्रदायिकता और भ्रष्टाचार के मसले को प्रमुखता के साथ उठाए और महिलाओं की दुर्दशा के सवालों पर भाजपाशासित राज्यों में जो स्थिति है उस पर आमलोगों का ध्यान खींचे। खासकर मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि में औरतों की बदहाली के सवाल को प्रमुखता के साथ उठाए जाने की संभावना है।   
कांग्रेस की मुख्य चिंता है कि मध्यवर्ग को किस तरह आकर्षित किया जाय। मध्यवर्ग के 20करोड़ लोग सन् 2014 तक इंटरनेट से जुड़ चुके होंगे और ये नेट से जुड़े नागरिक अन्य समूहों की तुलना में ज्यादा सजग हैं। इनके बीच में कांग्रेस अपना जनाधार बढ़ाने की पूरी कोशिश करेगी।
    उल्लेखनीय है कि विगत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 11करोड़ वोट मिले थे और वह अन्यदलों के साथ मिलकर सरकार बनाने में सफल रही थी। लेकिन सन् 2014 में अकेले नेट से जुड़े 20 करोड़ लोग होंगे। इन लोगों में किस तरह पैठ बनायी जाय इसकी ओर कांग्रेस चिन्तनशिविर में खासतौर पर ध्यान दिया गया । सोशलमीडिया और इंटरनेट की भूमिका ओर सोनिया गांधी ने सभी का ध्यान भी आकर्षित किया है। इसका अर्थ यह भी है कि नए दौर के लायक नेट संरचनाओं के जरिए कांग्रेस पूरी तैयारी के साथ मैदान में कूदने जा रही है।  कांग्रेस की मूल चिन्ता यह है की  सरकार की जड़ता को तोड़ा जाय और निर्भीक ढ़ंग से नीतिगत फैसले लिए जाएं और उनके जल्दी से परिणाम भी हासिल किए जाएं जिससे केन्द्र सरकार की निष्क्रिय इमेज को खत्म किया जा सके। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पार्टी ने पहलकदमी करके फैसले लेने के सभी अधिकार सौंप दिए हैं। कांग्रेसियों में संपत्ति के प्रदर्शन की जो प्रवृत्ति बढ़ रही है उस पर भी लगाम लगाने की सोनिया गांधी ने अपील की है। 

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