बेलगाम भाषा का टकराव पैदा करती है।साथ ही पीड़ादायक आनंद की सृष्टि भी करती है। सुनने वाला आनंद में रहता है लेकिन इस तरह की भाषा सामाजिक कष्टों की सृष्टि करती है और तनाव पैदा करती है। मोदी बाबू ने मैनस्ट्रीम मीडिया में बेलगाम भाषा को जनप्रिय बनाया है। हाल ही में वे जब हरियाणा में बोल रहे थे तो लोग समझ ही नहीं पाए कि उनके साथ क्या घट रहा है,यही हाल चुनावी सभाओं का भी था।
मोदी के भाषायी प्रयोगों को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि मोदी ने वक्तृता का ऐसा इडियम विकसित किया है जिसमें रेशनल के लिए कोई जगह नहीं है। वे भाषा में शब्दों का प्रयोग करते समय पद,सामाजिकता और संस्थान की भाषा के मानकों का अतिक्रमण करते हैं। चुनावों में इस तरह का अतिक्रमण चलता है लेकिन सामान्य स्थितियों में पद और संस्थान की भाषा का ख्याल रखा जाना चाहिए।
मसलन मोदी का हाल ही में वैज्ञानिकों को यह कहना कि 'चलता है' का रवैय्या नहीं चलेगा। यह कथन अपने आप में बहुत कुछ कहता है।प्रधानमंत्री अपनी संस्थान की भाषा भूलकर और पेशेवरलोगों की भाषा भूलकर जिस मुहावरे में बोल रहे थे वह बेलगाम भाषा का नमूना है। नभाटा के अनुसार मोदी ने कहा ''अब 'चलता है' वाला रवैया बिल्कुल नहीं चलेगा और इसे छोड़ना ही होगा।'' । मोदी ने यह भी कहा '' डीआरडीओ ग्लोबल समुदाय को ध्यान में रखकर खुद में बदलाव लाए।'' , अफसोस की बात है कि मोदी को इतना ही नहीं मालूम कि यह संस्थान विश्व प्रतिस्पर्धा को ध्यान में रखकर अपनी प्राथमिकताएं तय करके काम कर रहा है। सबसे बेहतरीन वैज्ञानिक इसमें काम करते हैं।इन वैज्ञानिकों के बीच में प्रधानमंत्री की भाषा में बोलना चाहिए न कि गैर-सांस्थानिक भाषा में।इसके अलावा वैज्ञानिकों के बीच में बोलते समय यह भी ध्यान रहे कि वे गुलाम नहीं हैं जो आदेशों पर काम करें। वे जो तय करते हैं उसकी रोशनी में काम करते हैं। इसी तरह जब 15अगस्त को लालकिले से मोदी बोल रहे थे तो पद-संस्थान की भाषिक मर्यादा का अतिक्रमण करके बोल रहे थे।मसलन् , बिना संसद की अनुमति के उन्होंने योजना आयोग को खत्म करने की घोषणा कर डाली।साथ में हिदायतों और नसीहतों की जड़ी लगा दी। नसीहतें तानाशाह देते हैं,लेकिन मोदी तो लोकतंत्र के नायक के रुप में बोल रहे थे उनको नसीहतें देने की जरुरत नहीं थी।
मोदी ने अपनी भाषा को पद-संस्थान की भाषा के अनुकूल भाषा परिवर्तन नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं कि वे देश में भाषा में भिडंत करते-कराते नजर आएंगे। हाल ही में हरियाणा में हाइवे के उदघाटन पर उनका जो भाषण था वह प्रधानमंत्री का उदघाटन भाषण नहीं था वह तो भिड़ंत भाषण था ,जाहिरा तौर पर परिणाम सामने है,कांग्रेस के कई नेताओं ने तेज और सही प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इस तथ्य को मोदी समझें और दुरुस्त करें कि वे देश के प्रधानमंत्री हैं और उस पद और संस्थान की भाषायी परंपरा है,वह परंपरा यदि टूटती है तो जमीनी स्तर पर सामाजिक बिखराव और टकराव पैदा होना लाजिमी है।
मोदी की भाषा में हेकड़ी,उपदेश,दादागिरी के साथ फासिस्ट भाषायी भावबोध छिपा है ,मोदी को इसको सचेत रुप से अपने भाषिक संसार से बेदखल करना होगा वरना टकरावों का जन्म होगा।
मोदी के भाषायी प्रयोगों को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि मोदी ने वक्तृता का ऐसा इडियम विकसित किया है जिसमें रेशनल के लिए कोई जगह नहीं है। वे भाषा में शब्दों का प्रयोग करते समय पद,सामाजिकता और संस्थान की भाषा के मानकों का अतिक्रमण करते हैं। चुनावों में इस तरह का अतिक्रमण चलता है लेकिन सामान्य स्थितियों में पद और संस्थान की भाषा का ख्याल रखा जाना चाहिए।
मसलन मोदी का हाल ही में वैज्ञानिकों को यह कहना कि 'चलता है' का रवैय्या नहीं चलेगा। यह कथन अपने आप में बहुत कुछ कहता है।प्रधानमंत्री अपनी संस्थान की भाषा भूलकर और पेशेवरलोगों की भाषा भूलकर जिस मुहावरे में बोल रहे थे वह बेलगाम भाषा का नमूना है। नभाटा के अनुसार मोदी ने कहा ''अब 'चलता है' वाला रवैया बिल्कुल नहीं चलेगा और इसे छोड़ना ही होगा।'' । मोदी ने यह भी कहा '' डीआरडीओ ग्लोबल समुदाय को ध्यान में रखकर खुद में बदलाव लाए।'' , अफसोस की बात है कि मोदी को इतना ही नहीं मालूम कि यह संस्थान विश्व प्रतिस्पर्धा को ध्यान में रखकर अपनी प्राथमिकताएं तय करके काम कर रहा है। सबसे बेहतरीन वैज्ञानिक इसमें काम करते हैं।इन वैज्ञानिकों के बीच में प्रधानमंत्री की भाषा में बोलना चाहिए न कि गैर-सांस्थानिक भाषा में।इसके अलावा वैज्ञानिकों के बीच में बोलते समय यह भी ध्यान रहे कि वे गुलाम नहीं हैं जो आदेशों पर काम करें। वे जो तय करते हैं उसकी रोशनी में काम करते हैं। इसी तरह जब 15अगस्त को लालकिले से मोदी बोल रहे थे तो पद-संस्थान की भाषिक मर्यादा का अतिक्रमण करके बोल रहे थे।मसलन् , बिना संसद की अनुमति के उन्होंने योजना आयोग को खत्म करने की घोषणा कर डाली।साथ में हिदायतों और नसीहतों की जड़ी लगा दी। नसीहतें तानाशाह देते हैं,लेकिन मोदी तो लोकतंत्र के नायक के रुप में बोल रहे थे उनको नसीहतें देने की जरुरत नहीं थी।
मोदी ने अपनी भाषा को पद-संस्थान की भाषा के अनुकूल भाषा परिवर्तन नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं कि वे देश में भाषा में भिडंत करते-कराते नजर आएंगे। हाल ही में हरियाणा में हाइवे के उदघाटन पर उनका जो भाषण था वह प्रधानमंत्री का उदघाटन भाषण नहीं था वह तो भिड़ंत भाषण था ,जाहिरा तौर पर परिणाम सामने है,कांग्रेस के कई नेताओं ने तेज और सही प्रतिक्रिया व्यक्त की है। इस तथ्य को मोदी समझें और दुरुस्त करें कि वे देश के प्रधानमंत्री हैं और उस पद और संस्थान की भाषायी परंपरा है,वह परंपरा यदि टूटती है तो जमीनी स्तर पर सामाजिक बिखराव और टकराव पैदा होना लाजिमी है।
मोदी की भाषा में हेकड़ी,उपदेश,दादागिरी के साथ फासिस्ट भाषायी भावबोध छिपा है ,मोदी को इसको सचेत रुप से अपने भाषिक संसार से बेदखल करना होगा वरना टकरावों का जन्म होगा।