फेसबुक से लेकर राजनीति तक बेवकूफी का नया तूफान चल रहा है । शिक्षित मध्यवर्ग के लोगों का एक हिस्सा सरेआम बेवकूफियां कर रहा है और मीडिया उसे कवरेज भी दे रहा है । बेवकूफी के इस नए तूफान का केन्द्र इन दिनों पश्चिमी उत्तरप्रदेश है ।
यूपी में कुछ भी हो या घटे ,तुरंत अफवाहें आरंभ हो जाती हैं। अफवाहों के दबाव के कारण आमलोग विवेक-कानून की बात सुनने को तैयार नहीं हैं । घटना हुई कि बेवकूफों फौज अपने –अपने घरों से निकल पड़ती है और 'मार साला को' हल्ला बचाना शुरु कर देती है। अविवेकवाद की यूपी में जिस तरह की आंधी चल रही है ऐसी आंधी पहले कभी नहीं देखी गयी। कई महिने हो गए लेकिन आंधी थमने का नाम नहीं ले रही ।
मसलन् कोई अपराध हुआ है कि हल्ला शुरु हो जाता है, उसके बाद किसी भी तर्क को लोग सुनने को तैयार नहीं होते । वे सिर्फ अफवाह सुनना चाहते हैं। उनके पास हर घटना के अपने तर्क,निष्कर्ष और फैसले होते हैं, ये लोग अपने तर्कों के आधार पर मीडिया कवरेज चाहते हैं, फेसबुक लेखन कर रहे हैं,जनता को भड़का रहे हैं, पुलिस को गरिया रहे हैं । इसके आधार पर राजनीतिक ध्रुवीकरण कर रहे हैं ।
पहले कभी- कभार कोई घटना होती थी और एक-दो दिन में शांत हो जाती थी। लेकिन नया फिनोमिना यह है कि अफवाहें शांत नहीं हो रहीं ,अफवाहों के कारखाने चल रहे हैं और बेवकूफों की फौज इसमें अहर्निश श्रम कर रही है । यह खतरनाक स्थिति है । हमें सावधान होना होगा वरना बाद में पछताएंगे ।
यदि कोई घटना घटे तो निजी आग्रहों और निष्कर्षों के आधार पर भड़काऊ बातें लिखना,अफवाह लिखना बंद करें । उससे सामाजिक घृणा बढ़ रही है । अफवाह असभ्य बनाती है,आदिम बनाती है ।
कलम और दिमाग में ताकत है तो कोई सकारात्मक काम करो, बुरा ही काम करना है तो अनेक बुरे अवैध -धंधे हैं वे चुन लो,लेकिन अफवाह फैलाना या घृणा का लेखन बंद होना चाहिए।
खासकर संघ परिवार से जुड़े लोग इस दिशा में गंभीरता से सोचें वरना जान लें जनता को भड़काकर लाभ तो उठा सकते हैं ।लेकिन विनाश तय है । हिटलर का पराभव याद करो और जितना जल्दी हो रास्ता बदलो वरना पराभव तय है । त्रासदी यह है कि तब तक समूचा भारत नरक कुंड में डूब जाएगा, और भारत की नई पीढ़ी घृणा और तिरस्कार में डूब चुकी होगी ।
हो सकता है मेरठ में बलात्कार पीड़िता जो कह रही है वह सही हो ,यह भी हो सकता है कि गलत हो, लेकिन यह तय कौन करेगा ? न्यायालय को जनोन्माद और मीडिया उन्माद पैदा करके दबाव में लाने की रणनीति बंद होनी चाहिए ।
संघ की रणनीति है कि वह पहले अफवाह पैदा करो, फिर अफवाह पर भरोसा करो.फिर उसे प्रचार अभियान में रुपान्तरित करो । कहीं पर भी कोई भी घटना घटे ,संघ के लोग तुरंत सक्रिय हो जाते हैं। वे तथ्यों और सत्य के आने का इंतजार नहीं करते । उनके पास तयशुदा रणनीति है और लोग हैं ,जिनका काम ही है अफवाह बनाना ।
अफवाहें स्वतःस्फूर्त नहीं होतीं, वे निर्मित की जाती हैं और उन्हें संघ के संगठनों के जरिए वितरित किया जाता है । इसके बाद मीडिया दुरुपयोग के जरिए अफवाह को वैध बनाया जाता है । फलतःआमलोग और प्रशासन समझ ही नहीं पाता कि वह क्या करे, अफवाहों से लड़े या घटना पर काम करे ।
अफवाहें असल में पीड़ित को न्याय से वंचित करती हैं। अफवाहें न्यायबुद्धि और मीडियाबुद्धि को प्रभावित करती हैं । अफवाहें तो सभी माध्यमों की सरताज हैं,बस जरुरत इस बात की है कि आपके पास अफवाह को प्रचारित करने वाला सांगठनिक नेटवर्क हो।
मंदिर आंदोलन के समय से रणनीति रही है अफवाहों के आधार पर पहले जनता को इकट्ठा करो, मीडिया को इकट्ठा करो,फिर हिंसाचार करो या घृणा अभियान चलाओ,इसका परिणाम यह हुआ है कि आमलोगों में सच जानने की इच्छा ही खत्म हो गयी है। आमलोग सच से कोसों दूर कर दिए गए हैं ।
अब वही 'सत्य' है जो अफवाहों से पुष्ट है, उसमें ही हम मजा लेने लगे हैं,बदला लेने लगे हैं,न्याय करने लगे हैं,अफवाहों के आधार पर ही तर्क करने लगे हैं ।
भारत में नागरिकचेतना और नागरिक अधिकारों के लिए अफवाहें सबसे बड़ा खतरा है। अफवाह तो लोकतंत्र का विलोम है,लोकतंत्र में सत्य महत्वपूर्ण है,अफवाह के लिए सत्य अप्रासंगिक है,लोकतंत्र के लिए विवेकवाद महत्वपूर्ण है ,अफवाह के लिए विवेक की नहीं ,जो कहा-सुना जा रहा है उसे मानो,अनुकरण करो। अफवाह का आधार है सामाजिकभेद,लिंगभेद और सामाजिक घृणा , जबकि लोकतंत्र में सामाजिक घृणा के लिए कोई जगह नहीं है। समग्रता में देखें तो अफवाह तो लोकतंत्र के लिए जहर है। नागरिक बनें और अफवाहों का तुरंत जमीनी स्तर पर जबाव दें ।
यूपी में कुछ भी हो या घटे ,तुरंत अफवाहें आरंभ हो जाती हैं। अफवाहों के दबाव के कारण आमलोग विवेक-कानून की बात सुनने को तैयार नहीं हैं । घटना हुई कि बेवकूफों फौज अपने –अपने घरों से निकल पड़ती है और 'मार साला को' हल्ला बचाना शुरु कर देती है। अविवेकवाद की यूपी में जिस तरह की आंधी चल रही है ऐसी आंधी पहले कभी नहीं देखी गयी। कई महिने हो गए लेकिन आंधी थमने का नाम नहीं ले रही ।
मसलन् कोई अपराध हुआ है कि हल्ला शुरु हो जाता है, उसके बाद किसी भी तर्क को लोग सुनने को तैयार नहीं होते । वे सिर्फ अफवाह सुनना चाहते हैं। उनके पास हर घटना के अपने तर्क,निष्कर्ष और फैसले होते हैं, ये लोग अपने तर्कों के आधार पर मीडिया कवरेज चाहते हैं, फेसबुक लेखन कर रहे हैं,जनता को भड़का रहे हैं, पुलिस को गरिया रहे हैं । इसके आधार पर राजनीतिक ध्रुवीकरण कर रहे हैं ।
पहले कभी- कभार कोई घटना होती थी और एक-दो दिन में शांत हो जाती थी। लेकिन नया फिनोमिना यह है कि अफवाहें शांत नहीं हो रहीं ,अफवाहों के कारखाने चल रहे हैं और बेवकूफों की फौज इसमें अहर्निश श्रम कर रही है । यह खतरनाक स्थिति है । हमें सावधान होना होगा वरना बाद में पछताएंगे ।
यदि कोई घटना घटे तो निजी आग्रहों और निष्कर्षों के आधार पर भड़काऊ बातें लिखना,अफवाह लिखना बंद करें । उससे सामाजिक घृणा बढ़ रही है । अफवाह असभ्य बनाती है,आदिम बनाती है ।
कलम और दिमाग में ताकत है तो कोई सकारात्मक काम करो, बुरा ही काम करना है तो अनेक बुरे अवैध -धंधे हैं वे चुन लो,लेकिन अफवाह फैलाना या घृणा का लेखन बंद होना चाहिए।
खासकर संघ परिवार से जुड़े लोग इस दिशा में गंभीरता से सोचें वरना जान लें जनता को भड़काकर लाभ तो उठा सकते हैं ।लेकिन विनाश तय है । हिटलर का पराभव याद करो और जितना जल्दी हो रास्ता बदलो वरना पराभव तय है । त्रासदी यह है कि तब तक समूचा भारत नरक कुंड में डूब जाएगा, और भारत की नई पीढ़ी घृणा और तिरस्कार में डूब चुकी होगी ।
हो सकता है मेरठ में बलात्कार पीड़िता जो कह रही है वह सही हो ,यह भी हो सकता है कि गलत हो, लेकिन यह तय कौन करेगा ? न्यायालय को जनोन्माद और मीडिया उन्माद पैदा करके दबाव में लाने की रणनीति बंद होनी चाहिए ।
संघ की रणनीति है कि वह पहले अफवाह पैदा करो, फिर अफवाह पर भरोसा करो.फिर उसे प्रचार अभियान में रुपान्तरित करो । कहीं पर भी कोई भी घटना घटे ,संघ के लोग तुरंत सक्रिय हो जाते हैं। वे तथ्यों और सत्य के आने का इंतजार नहीं करते । उनके पास तयशुदा रणनीति है और लोग हैं ,जिनका काम ही है अफवाह बनाना ।
अफवाहें स्वतःस्फूर्त नहीं होतीं, वे निर्मित की जाती हैं और उन्हें संघ के संगठनों के जरिए वितरित किया जाता है । इसके बाद मीडिया दुरुपयोग के जरिए अफवाह को वैध बनाया जाता है । फलतःआमलोग और प्रशासन समझ ही नहीं पाता कि वह क्या करे, अफवाहों से लड़े या घटना पर काम करे ।
अफवाहें असल में पीड़ित को न्याय से वंचित करती हैं। अफवाहें न्यायबुद्धि और मीडियाबुद्धि को प्रभावित करती हैं । अफवाहें तो सभी माध्यमों की सरताज हैं,बस जरुरत इस बात की है कि आपके पास अफवाह को प्रचारित करने वाला सांगठनिक नेटवर्क हो।
मंदिर आंदोलन के समय से रणनीति रही है अफवाहों के आधार पर पहले जनता को इकट्ठा करो, मीडिया को इकट्ठा करो,फिर हिंसाचार करो या घृणा अभियान चलाओ,इसका परिणाम यह हुआ है कि आमलोगों में सच जानने की इच्छा ही खत्म हो गयी है। आमलोग सच से कोसों दूर कर दिए गए हैं ।
अब वही 'सत्य' है जो अफवाहों से पुष्ट है, उसमें ही हम मजा लेने लगे हैं,बदला लेने लगे हैं,न्याय करने लगे हैं,अफवाहों के आधार पर ही तर्क करने लगे हैं ।
भारत में नागरिकचेतना और नागरिक अधिकारों के लिए अफवाहें सबसे बड़ा खतरा है। अफवाह तो लोकतंत्र का विलोम है,लोकतंत्र में सत्य महत्वपूर्ण है,अफवाह के लिए सत्य अप्रासंगिक है,लोकतंत्र के लिए विवेकवाद महत्वपूर्ण है ,अफवाह के लिए विवेक की नहीं ,जो कहा-सुना जा रहा है उसे मानो,अनुकरण करो। अफवाह का आधार है सामाजिकभेद,लिंगभेद और सामाजिक घृणा , जबकि लोकतंत्र में सामाजिक घृणा के लिए कोई जगह नहीं है। समग्रता में देखें तो अफवाह तो लोकतंत्र के लिए जहर है। नागरिक बनें और अफवाहों का तुरंत जमीनी स्तर पर जबाव दें ।
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