मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी का मानना है कि आईआईटी के छात्रों को संस्कृतभाषा की शिक्षा दी जानी चाहिए।सुनने में यह सुझाव बड़ा अच्छा लगता है लेकिन सवाल यह है संस्कृत पढ़कर आईआईटी का छात्र क्या करेगा ॽ क्या संस्कृतभाषा उसके ज्ञान-विज्ञान में कोई इजाफा करेगी ॽइससे भी बड़ी बात यह कि संस्कृत पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों को आईआईटी में क्या दाखिला मिलता है ॽये कुछ सवाल हैं जिनके बारे में ईरानी और उनकी संस्कृतमंडली को जबाव देने चाहिए।
आईआईटी के पाठ्यक्रम का ढ़ांचा कुछ इस तरह का है कि उसमें संस्कृत से कोई मदद नहीं मिलेगी।मसलन्,आईआईटी के पाठ्यक्रम से संबंधित कोई भी सामग्री संस्कृत में नहीं है।दूसरी बात यह कि आईआईटी में भाषा की पढ़ाई नहीं होती बल्कि प्रौद्योगिक,इंजीनियरिंग आदि की पढ़ाई होती।स्मृति ईरानी को यदि संस्कृत के उत्थान की इतनी ही चिन्ता है तो उनको संस्कृत भाषा और साहित्य के पठन-पाठन पर उन विश्वविद्यालयों में जोर देना चाहिए जहां संस्कृत पढायी जाती है।अधिक से अधिक संस्कृत के शिक्षकों की नियुक्तियां कराएं,संस्कृत के विद्यार्थियों को विशेष वजीफे दें,शोध के लिए बड़े-बड़े प्रोजेक्ट दें।संस्कृत के विद्वानों को नए-नए विषयों में अनुसंधान के लिए प्रेरित करें।यह सब करने की बजाय स्मृति ईरानी आईआईटी के छात्रों को संस्कृत पढ़ाकर न तो संस्कृत का भला करेंगी और न छात्रों का ही भला करेंगी।इस प्रसंग में चीन के अनुभव से हम सीख सकते हैं,चीन में सब कुछ चीनी भाषा में पढ़ाया जाता है लेकिन उच्च शिक्षा,प्रौद्योगिकी,इंजीनियरिंग,विज्ञान आदि की शिक्षा में वहां पर भी अंग्रेजी भाषा में पठन-पाठन पर जोर दिया गया है, इसके कारण विज्ञान से लेकर समाजविज्ञान तक हर क्षेत्र में चीनी मेधा का विश्वस्तरीय मानकों के आधार पर विकास करने में मदद मिली है।विश्व के नामी विश्वविद्यालयों में चीन के कई विश्वविद्यलयों के नाम आते हैं,यहां तक कि भारत के हजारों छात्र वहां पढ़ने जाते हैं।वहां माध्यम के रूप में चीनी भी है लेकिन अंग्रेजी भी है।
संस्कृत सुंदर और समृद्ध भाषा है ,लेकिन संस्कृत का व्याकरण तो संस्कृतसाहित्य में मदद करेगा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी,समाजविज्ञान,देशज भाषायी साहित्य में मदद नहीं करेगा।आरएसएस के लोगों की मुश्किल यह है कि संस्कृत से तथाकथित प्रेम करना जानते हैं लेकिन यह नहीं जानते कि संस्कृत प्रेम को हासिल कैसे करें।संस्कृत के विद्वानों ने डंडे और सत्ता के जोर से संस्कृतभाषा और उसके साहित्य का निर्माण नहीं किया ।कोई भी भाषा पर्सुएसन के जरिए ही विकास करती है।संस्कृत भाषा के बारे में यह मिथ है कि वह सबसे वैज्ञानिक भाषा है ,लोग यह भी कह रहे हैं कि कम्प्यूटर की भाषा बनाने में उससे मदद मिल सकती है,हम यही कहेंगे कि भारत सरकार वैज्ञानिकों और भाषावैज्ञानिकों से कहे कि वे संस्कृत में काम करें और सिद्ध करें कि संस्कृत सच में विज्ञान की भाषा बन सकती है और उससे हमें काम करने में मदद मिल सकती है,फिलहाल तो अवस्था यह है कि हिन्दीसहित दस देशी भाषाओं के यूनीकोड फॉण्ट को ही हम इंटरनेट पर जनप्रिय नहीं बना पाए हैं,हिन्दी सबसे पिछड़ी अवस्था में है,ऐसे में संस्कृत को क्षितिज पर लाना तो दिवा-स्वप्न ही कहेंगे।
आईआईटी के पाठ्यक्रम का ढ़ांचा कुछ इस तरह का है कि उसमें संस्कृत से कोई मदद नहीं मिलेगी।मसलन्,आईआईटी के पाठ्यक्रम से संबंधित कोई भी सामग्री संस्कृत में नहीं है।दूसरी बात यह कि आईआईटी में भाषा की पढ़ाई नहीं होती बल्कि प्रौद्योगिक,इंजीनियरिंग आदि की पढ़ाई होती।स्मृति ईरानी को यदि संस्कृत के उत्थान की इतनी ही चिन्ता है तो उनको संस्कृत भाषा और साहित्य के पठन-पाठन पर उन विश्वविद्यालयों में जोर देना चाहिए जहां संस्कृत पढायी जाती है।अधिक से अधिक संस्कृत के शिक्षकों की नियुक्तियां कराएं,संस्कृत के विद्यार्थियों को विशेष वजीफे दें,शोध के लिए बड़े-बड़े प्रोजेक्ट दें।संस्कृत के विद्वानों को नए-नए विषयों में अनुसंधान के लिए प्रेरित करें।यह सब करने की बजाय स्मृति ईरानी आईआईटी के छात्रों को संस्कृत पढ़ाकर न तो संस्कृत का भला करेंगी और न छात्रों का ही भला करेंगी।इस प्रसंग में चीन के अनुभव से हम सीख सकते हैं,चीन में सब कुछ चीनी भाषा में पढ़ाया जाता है लेकिन उच्च शिक्षा,प्रौद्योगिकी,इंजीनियरिंग,विज्ञान आदि की शिक्षा में वहां पर भी अंग्रेजी भाषा में पठन-पाठन पर जोर दिया गया है, इसके कारण विज्ञान से लेकर समाजविज्ञान तक हर क्षेत्र में चीनी मेधा का विश्वस्तरीय मानकों के आधार पर विकास करने में मदद मिली है।विश्व के नामी विश्वविद्यालयों में चीन के कई विश्वविद्यलयों के नाम आते हैं,यहां तक कि भारत के हजारों छात्र वहां पढ़ने जाते हैं।वहां माध्यम के रूप में चीनी भी है लेकिन अंग्रेजी भी है।
संस्कृत सुंदर और समृद्ध भाषा है ,लेकिन संस्कृत का व्याकरण तो संस्कृतसाहित्य में मदद करेगा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी,समाजविज्ञान,देशज भाषायी साहित्य में मदद नहीं करेगा।आरएसएस के लोगों की मुश्किल यह है कि संस्कृत से तथाकथित प्रेम करना जानते हैं लेकिन यह नहीं जानते कि संस्कृत प्रेम को हासिल कैसे करें।संस्कृत के विद्वानों ने डंडे और सत्ता के जोर से संस्कृतभाषा और उसके साहित्य का निर्माण नहीं किया ।कोई भी भाषा पर्सुएसन के जरिए ही विकास करती है।संस्कृत भाषा के बारे में यह मिथ है कि वह सबसे वैज्ञानिक भाषा है ,लोग यह भी कह रहे हैं कि कम्प्यूटर की भाषा बनाने में उससे मदद मिल सकती है,हम यही कहेंगे कि भारत सरकार वैज्ञानिकों और भाषावैज्ञानिकों से कहे कि वे संस्कृत में काम करें और सिद्ध करें कि संस्कृत सच में विज्ञान की भाषा बन सकती है और उससे हमें काम करने में मदद मिल सकती है,फिलहाल तो अवस्था यह है कि हिन्दीसहित दस देशी भाषाओं के यूनीकोड फॉण्ट को ही हम इंटरनेट पर जनप्रिय नहीं बना पाए हैं,हिन्दी सबसे पिछड़ी अवस्था में है,ऐसे में संस्कृत को क्षितिज पर लाना तो दिवा-स्वप्न ही कहेंगे।
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