छह दिन हो गए हैं लेकिन अभी तक एक गिरफ्तारी हुई है।जबकि वे बीस से अधिक थे और उन सबके हाथों में चाकू थे,वे चाकू लिए ही ट्रेन में दाखिल हुए थे,संयोग की बात थी कि जुनैद अपने भाईयों के साथ उस ट्रेन में था।कोई तर्क जुनैद की हत्या को वैध नहीं बना सकता,लेकिन मजाल है कि भाजपा के लोगों के मुँह पर शिकन पड़ी हो,वे गम में हों !
प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री तक सबको मालूम है लेकिन कोई जुनैद के घर नहीं गया। हरियाणा के मुख्यमंत्री भी जुनैद के घर नहीं गए।कम से कम मानवता और संवेदनशीलता के नाते जुनैद के घर शोक व्यक्त करने जा सकते थे,ट्विटर पर एक-दो पोस्ट लिख सकते थे।लेकिन पीएम,सीएम,मुख्यमंत्री किसी के पास जुनैद की मौत पर शोक व्यक्त करने का समय नहीं है।
बेशर्मी की हद देखो कि टीवी चैनलों में जुनैद की हत्या को वर्गीकृत कर रहे हैं और बता रहे हैं यह तो यात्रियों के बीच में सीट पर बैठने का झगड़ा था।सत्ता में बैठे लोग यह देखने को तैयार नहीं है कि देश में चारों ओर घृणा की विचारधारा की जहरीली हवा चल रही है और उस हवा को चलाने में आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों की केन्द्रीय भूमिका है। हम सब जानते हैं साम्प्रदायिकता या पृथकतावाद के नाम पर जब भी जहां पर भी प्रचार आरंभ होता है ,जब आम जनता उसमें भाग लेने लगती तो सबसे पहले राजसत्ता और उसके तंत्र ठंड़े पड़ जाते हैं,पुलिस-सेना के हाथ-पैर फूल जाते हैं,दिमाग सुन्न हो जाता है,अनेक मामलों में तो सत्ता के तंत्र स्वयं भी उस जहरीले प्रचार का अंग बन जाते हैं और आम जनता पर साम्प्रदायिक-पृथकतावादी ताकतों के साथ मिलकर हमला करने लगते हैं।आज ठीक देश की यही अवस्था है।सारा देश मुसलिम विरोधी प्रचार में डूबा हुआ है। मुसलिम विरोध को स्वाभाविक बनाकर हम सबके मन में उतार दिया गया है।
आज वास्तविकता यह है कि मोदीसरकार रहे या जाए मुसलिम विरोधी जहरीला प्रचार समाज से सहज ही जाने वाला नहीं है।इसका प्रधान कारण है साम्प्रदायिकता के खिलाफ केन्द्र और राज्य सरकारों का खुला समर्पण।देश के विभिन्न इलाको में इस समर्पण को साफ तौर पर देखा जा सकता है।मुसलिम विरोधी साम्प्रदायिक जहर महज सामान्य प्रचार या राजनैतिक कार्यक्रम नहीं है,बल्कि यह असामान्य राजनैतिक कार्यक्रम है। इसका लक्ष्य है समाज को,लोगों के दिलो-दिमाग को साम्प्रदायिक आधारों पर विभाजित करना,साम्प्रदायिक तर्कों को सहज,बोधगम्य बनाना और आम लोगों के दिलो-दिमाग में उतारना।इस काम में आरएसएस पूरी तरह सफल हो चुका है। आज उसकी साम्प्रदायिक विचारधारा की पकड़ में सारा देश है।हर आदमी है।चाहे वह किसी भी दल का हो।
जो लोग सोचते हैं साम्प्रदायिक विचार मुझे नहीं उसे प्रभावित कर सकते हैं वे गलतफहमी के शिकार हैं। साम्प्रदायिक विचार सबको प्रभावित कर सकते हैं,वे जिस गति ,आक्रामकता और स्वाभाविक रूप में आ रहे हैं उससे हर कोई प्रभावित होगा,वे भी प्रभावित हो सकते हैं जो उसके शत्रु दिख रहे हैं।
साम्प्रदायिकता का मुसलिम विरोधी जहरीला प्रचार तमाम किस्म के कॉमनसेंस विश्वासों,कपोल-कल्पित कहानियों और धारणाओं के जरिए फैलाया जा रहा है। जुनैद की हत्या सतह पर उन 20गुंडों ने की है जिनके पास चाकू थे,लेकिन असल में उन चाकुओं में धार और उनको चलाने का बहशियाना भावबोध तो मुसलिम विरोधी प्रचार ने निर्मित किया था।जुनैद के कातिल पकड़े जाएं यह जरूरी है। लेकिन इससे ज्यादा जरूरी है कि मुसलिम विरोधी जहरीले प्रचार अभियान के खिलाफ बिना किसी किन्तु-परन्तु और बहानेबाजी के हम सब एकजुट हों,उसके खिलाफ जमकर लिखें,बोलें,आंदोलन करें।असल में जुनैद के हत्यारे हमारे अंदर प्रवेश कर चुके हैं। वे जुनैद को नहीं हम सबको रोज चाकुओं से मार रहे हैं,हमें साम्प्रदायिकता के खिलाफ संघर्ष करने से रोक रहे हैं।
जुनैद मुसलमान नहीं था।वह भारतीय नागरिक था।साम्प्रदायिक ताकतें सतह पर मुसलमान को मारती दिखती हैं लेकिन वे असल में नागरिक को मार रही होती हैं,नागरिक हकों पर हमले कर रही होती हैं,संविधान के परखच्चे उडा रही होती हैं।उनके सामने पीएम,सीएम,न्यायपालिका बौने हैं।
प्रधानमंत्री से लेकर गृहमंत्री तक सबको मालूम है लेकिन कोई जुनैद के घर नहीं गया। हरियाणा के मुख्यमंत्री भी जुनैद के घर नहीं गए।कम से कम मानवता और संवेदनशीलता के नाते जुनैद के घर शोक व्यक्त करने जा सकते थे,ट्विटर पर एक-दो पोस्ट लिख सकते थे।लेकिन पीएम,सीएम,मुख्यमंत्री किसी के पास जुनैद की मौत पर शोक व्यक्त करने का समय नहीं है।
बेशर्मी की हद देखो कि टीवी चैनलों में जुनैद की हत्या को वर्गीकृत कर रहे हैं और बता रहे हैं यह तो यात्रियों के बीच में सीट पर बैठने का झगड़ा था।सत्ता में बैठे लोग यह देखने को तैयार नहीं है कि देश में चारों ओर घृणा की विचारधारा की जहरीली हवा चल रही है और उस हवा को चलाने में आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों की केन्द्रीय भूमिका है। हम सब जानते हैं साम्प्रदायिकता या पृथकतावाद के नाम पर जब भी जहां पर भी प्रचार आरंभ होता है ,जब आम जनता उसमें भाग लेने लगती तो सबसे पहले राजसत्ता और उसके तंत्र ठंड़े पड़ जाते हैं,पुलिस-सेना के हाथ-पैर फूल जाते हैं,दिमाग सुन्न हो जाता है,अनेक मामलों में तो सत्ता के तंत्र स्वयं भी उस जहरीले प्रचार का अंग बन जाते हैं और आम जनता पर साम्प्रदायिक-पृथकतावादी ताकतों के साथ मिलकर हमला करने लगते हैं।आज ठीक देश की यही अवस्था है।सारा देश मुसलिम विरोधी प्रचार में डूबा हुआ है। मुसलिम विरोध को स्वाभाविक बनाकर हम सबके मन में उतार दिया गया है।
आज वास्तविकता यह है कि मोदीसरकार रहे या जाए मुसलिम विरोधी जहरीला प्रचार समाज से सहज ही जाने वाला नहीं है।इसका प्रधान कारण है साम्प्रदायिकता के खिलाफ केन्द्र और राज्य सरकारों का खुला समर्पण।देश के विभिन्न इलाको में इस समर्पण को साफ तौर पर देखा जा सकता है।मुसलिम विरोधी साम्प्रदायिक जहर महज सामान्य प्रचार या राजनैतिक कार्यक्रम नहीं है,बल्कि यह असामान्य राजनैतिक कार्यक्रम है। इसका लक्ष्य है समाज को,लोगों के दिलो-दिमाग को साम्प्रदायिक आधारों पर विभाजित करना,साम्प्रदायिक तर्कों को सहज,बोधगम्य बनाना और आम लोगों के दिलो-दिमाग में उतारना।इस काम में आरएसएस पूरी तरह सफल हो चुका है। आज उसकी साम्प्रदायिक विचारधारा की पकड़ में सारा देश है।हर आदमी है।चाहे वह किसी भी दल का हो।
जो लोग सोचते हैं साम्प्रदायिक विचार मुझे नहीं उसे प्रभावित कर सकते हैं वे गलतफहमी के शिकार हैं। साम्प्रदायिक विचार सबको प्रभावित कर सकते हैं,वे जिस गति ,आक्रामकता और स्वाभाविक रूप में आ रहे हैं उससे हर कोई प्रभावित होगा,वे भी प्रभावित हो सकते हैं जो उसके शत्रु दिख रहे हैं।
साम्प्रदायिकता का मुसलिम विरोधी जहरीला प्रचार तमाम किस्म के कॉमनसेंस विश्वासों,कपोल-कल्पित कहानियों और धारणाओं के जरिए फैलाया जा रहा है। जुनैद की हत्या सतह पर उन 20गुंडों ने की है जिनके पास चाकू थे,लेकिन असल में उन चाकुओं में धार और उनको चलाने का बहशियाना भावबोध तो मुसलिम विरोधी प्रचार ने निर्मित किया था।जुनैद के कातिल पकड़े जाएं यह जरूरी है। लेकिन इससे ज्यादा जरूरी है कि मुसलिम विरोधी जहरीले प्रचार अभियान के खिलाफ बिना किसी किन्तु-परन्तु और बहानेबाजी के हम सब एकजुट हों,उसके खिलाफ जमकर लिखें,बोलें,आंदोलन करें।असल में जुनैद के हत्यारे हमारे अंदर प्रवेश कर चुके हैं। वे जुनैद को नहीं हम सबको रोज चाकुओं से मार रहे हैं,हमें साम्प्रदायिकता के खिलाफ संघर्ष करने से रोक रहे हैं।
जुनैद मुसलमान नहीं था।वह भारतीय नागरिक था।साम्प्रदायिक ताकतें सतह पर मुसलमान को मारती दिखती हैं लेकिन वे असल में नागरिक को मार रही होती हैं,नागरिक हकों पर हमले कर रही होती हैं,संविधान के परखच्चे उडा रही होती हैं।उनके सामने पीएम,सीएम,न्यायपालिका बौने हैं।
जो सरकार सांप्रदायिकता की कश्ती पर सवार होकर सत्ता में आई है उससे और उम्मीद भी क्या की जा सकती है। पूरे देश को धर्म, वर्ण, भाषा और जाति के आधार पर टुकड़ों में बांटा जा रहा है और हम इस बंटवारे को खुशी खुशी मंजूर ही नहीं कर रहे हैं बल्कि जश्न भी मना रहे हैं।
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