संकट गहरा है,यह कहना अब बेकार है,क्योंकि हम सब संकट में घिर चुके हैं।कातिल कितने ताकतवर हैं यह कहना अर्थहीन है क्योंकि हम सब असहाय साबित किए जा चुकेहैं। जब किसी निर्दोष व्यक्ति को भीड़ पीट रही हो और लोग तमाशा देख रहे हों तो समझो चीजें हम नहीं वे तय कर रहे हैं।ये ´वे´कौन हैं ॽ बताने की जरूरत नहीं,ये ´वे´तो ´हम ´में से ही हैं।´हम´को ´वे´में तब्दील करने की कला का नाम ही तो फासिज्म है। उसकी कारीगरी बेहद जटिल होती है।
फासिस्ट विचार एकदिन ,दो दिन ,एक साल या तीन साल में पैदा नहीं होता,बल्कि फासिस्ट विचार लंबा समय लेता है पूरी तरह पकने में।भारत में फासिस्ट विचारों की फसल एक ही दिन में पैदा नहीं हुई है, इस फसल को किसी एक संगठन या विचार विशेष ने तैयार नहीं किया है,बल्कि फासिस्ट विचार को अनेक विचारों,अनेक संगठनों और हजारों लोगों ने मिलकर रचा है। यह किसी एक के दिमाग की खुराफात नहीं है,यह खामखयाली भी नहीं है।
फासिस्ट विचारों का हमारे देश में पहले से भौतिक और वैचारिक आधार मौजूद है, नए फासिस्टों ने सिर्फ इतना किया है कि उस आधार को पाला-पोसा और बड़ा किया है।फासिज्म आज हर व्यक्ति के अंदर जगा दिया गया है। फासिज्म को उन पुरानी सड़ी-गली मान्यताओं और धारणाओं से मदद मिल रही है जिनके बारे में हम यह मानकर चल रहे थे कि वे मान्यताएं तो पुरानी हैं,मर चुकी हैं।लेकिन हकीकत में सड़ी गली मान्यताएं मरती नहीं हैं। भारत में तो एकदम नहीं मरतीं,पुरानी सड़ी गली मान्यताओं को बचाकर रखना,उनमें जीना और उनकी पूजा करना भारत की विशेषता है और यही वह जगह है जहां से फासिस्ट लोग अपने लिए ईंधन और समर्थन जुटाते हैं।
´गऊ हमारी माता है ´ उसी तरह का पुराना विचार है,जिसे हम मान चुके थे कि वह मर गया,लेकिन वह इतना ताकतवर होकर चला आएगा हमने कभी सोचा नहीं था। मन में विचार करें कि पुराने सड़े गले विचार के निशाने पर कौन लोग हैं,उसके नाम पर किस आय़ुवर्ग के लोग हत्याएं कर रहे हैं ॽ पुराने सड़े गले विचारों से चिपके हुए समाज में फासिज्म आसानी से पैदा होता है,तय मानो पीएम लाख चिल्लाएं, मेरे जैसे लोग लाखों-करोड़ों शब्द खर्च कर दें पुराने सड़े गले विचारों को हम सब मिलकर पछाड़ नहीं सकते।वे महाबलि हैं।
पुराने सड़े-गले विचारों को समूल नष्ट करने की भावना हम जब तक अपने मन में नहीं लाते हम आधुनिक मनुष्य नहीं बना सकते।हमने अजीब सा घालमेल किया हुआ है।कपड़े बदल लिए हैं,शिक्षा बदल ली है।व्यवस्था बदल दी है।कम्युनिकेशन के उपकरण बदल दिए हैं,लेकिन विचारों के दुनिया में नए विचारों के प्रवेश को रोक दिया है,विचारों की दुनिया वही सड़े –गले विचारों से लबालब भरी है।
फ्रेडरिक एंगेल्स ने लिखा है जब कोई विचार एकबार जन्म ले लेता है और व्यवहार में आजाता है तो फिर आसानी से वो नष्ट नहीं होता बल्कि एक अवधि के बाद वो भौतिक शक्ति बन जाता है।उसे आप व्यवस्था बदलने के बाद भी हटा नहीं सकते जब तक आप इसके विकल्प को लोगों के मन में न उतार दें। ´गऊ माता है´ के विचार को हम आज तक लोगों के मन से नहीं निकाल पाए,हम कितने असफल हैं,हमारा सिस्टम कितना अक्षम है,हमारी शिक्षा कितनी अधूरी है,यह इस बात का सबूत है।पुराने सड़े-गले विचारों को मन में जब तक बनाए रखोगे फासिस्ट हमले होते रहेंगे,जुनैद-अखलाक जैसे लोग कत्ल होते रहेंगे।
फासिज्म महज कोई एक संगठन विशेष नहीं है,बल्कि वह एक विचारधारा है।मानव इतिहास की सबसे बर्बर विचारधारा है। इसे हमने विदेशों से नहीं मंगाया है बल्कि यह हमें विरासत में मिली है,हमारे संस्कारों में इसकी गहरी जड़ें हैं,अविवेकवाद इसकी बुनियाद है।अविवेकवाद को त्याग दो फासिज्म मर जाएगा।अविवेकवाद को जब तक गले लगाए रखोगे फासिज्म आपसे चिपटा रहेगा और जुनैद जैसे लोग मरते रहेंगे।
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