गुरुवार, 29 जून 2017

जुनैद की हिमायत में


               आरएसएस और उनके समर्थकों में गजब की क्षमता है कह रहे हैं आरएसएस के बारे में ´षडयंत्र´के रुप में न देखें, हर घटना में न देखें। पहली बात यह कि आरएसएस सामाजिक संगठन नहीं है वह राजनीतिक संगठन है केन्द्र और अनेक राज्यों में उसके नियंत्रण और निर्देश पर सरकारें काम कर रही हैं,नीतियों के निर्धारण में उसकी निर्णायक भूमिका है।जमीनी स्तर पर आरएसएस और उसके संगठनों के बनाए नारे सक्रिय हैं,संयोग की बात है नारों के समानान्तर और संगति में सामाजिक हिंसा भी हो रही है। उनके नारों के पक्ष में न बोलनेवालों या उनका विरोध करने वालों पर आए दिन हमले हो रहे हैं, विभिन्न बहानों से उन नारों के प्रभाववश 22 निर्दोष मुसलमानों की हत्या हुई है। ये हत्याएं जिस तरह हुई हैं और जिन लोगों ने की हैं उनसे एक बात साफ है कि हत्या करने वाले स्वतःस्फूर्त हमले नहीं कर रहे।दूसरी बात यह कि आरएसएस की आलोचना करने पर जो समर्थक साइबरजगत में कुतर्क दे रहे हैं वे भी स्वतःस्फूर्त नहीं बोल रहे बल्कि आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित होकर ही बोल रहे हैं।ऐसी अवस्था में आरएसएस की आलोचना होना उसके राजनीतिक फैसलों का विरोध करना हम सबका दायित्व बनता है।

जुनैद की हत्या सामान्य अपराध नहीं है।आरएसएस को जुनैद की हत्या का सड़कों पर उतरकर विरोध करना चाहिए। लेकिन हो उलटा रहा है। उस हत्या के खिलाफ जो आवाजें उठ रही हैं उनके खिलाफ आरएसएस –भाजपा के नेता और साइबर समर्थक तरह-तरह के कुतर्क दे रहे हैं,सवाल यह है जुनैद की हत्या यदि साम्प्रदायिक हत्या नहीं है तो आरएसएस उसका जमीनी स्तर पर विरोध करने वालों का साथ क्यों नहीं देता ॽ क्यों उन पर हमले कर रहा है ॽ मुसलमान होने के कारण 22लोग अब तक मारे गए हैं एक भी हत्या के खिलाफ भाजपा –आरएसएस ने पूरे देश में एक भी जुलूस नहीं निकाला,जबकि यही आरएसएस-भाजपा मिलकर तीन तलाक के मसले पर मुसलमान हितैषी होने का ढोंग करती रही है, मुसलमानों के मोदी एंड कंपनी को जमकर वोट मिले हैं।इसके बावजूद मुसलमानों पर ही हमले क्यों हो रहे हैं ॽ उनके ही धंधे को ही निशाना क्यों बनाया जा रहा हैॽ क्या मुसलमान देश में हिन्दुओं पर जुल्म कर रहे हैं या हिंदुओं के खिलाफ बोल रहे हैं ॽ

कायदे से आरएसएस और उससे जुड़े संगठन गऊरक्षकों और दूसरे किस्म साम्प्रदायिक गुंडों के द्वारा हमलों में मारे गए मुसलमानों के परिवारों के साथ आरएसएस खड़ा हो और जो लोग इन घटनाओं का विरोध कर रहे हैं उनका साथ दे,अपनी राज्य और केन्द्र सरकारों को सीधे निर्देश दे कि इस तरह के हत्याकांड करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाय।लेकिन हमें मालूम है आरएसएस यह सब करने नहीं जा रहा।वे और जोशो-खरोश से अपनी हिंदुत्ववादी मुहिम को और तेज करने जा रहे हैं और मुसलमानों के पक्ष में खड़े लोगों पर हमले कर रहे हैं, साइबर हमले कर रहे हैं। सवाल यह है जुनैद के हत्यारे अभी तक पकड़े कयों नहीं गए ॽ आरएसएस-भाजपा के लोग न्याय की मांग करने वालों या हत्यारो की गिरफ्तारी की मांग करने वालों के खिलाफ सीधे जहर क्यों उगल रहे हैं ॽ क्या जनता को विरोध का हक नहीं है ॽ अफसोस इस बात का है इस काम में अनेक शिक्षित लोग,प्रोफेसर लोग भी हत्यारों के साथ खड़े हैं।

भारत में हिंसा के पक्ष में खड़े होने, हिंसा और अत्याचार को वैध ठहराने की परंपरा है।इस परंपरा की जडें हिंदू संस्कारों से खाद-पानी लेती रहती हैं। वे घुमा-फिराकर जुनैद के मसले पर बात करने की बजाय ´पहले यह हुआ आप क्यों नहीं बोले´, ´कश्मीर में यह हुआ आप क्यों नहीं बोले ´, ’मुसलमान इतने खराब हैं आप क्यों नहीं बोले ´, आदि मुहावरों का प्रयोग करके संघियों और उसके हत्यारे गिरोहों की हिमायत कर रहे हैं।

हम विनम्रतापूर्वक एक बात कहना चाहते हैं जुनैद और इसी तरह की हत्याओं के विचारधारात्मक पहलू को देखें,छोटे-छोटे विवरण और ब्यौरों और अतीत के नरक को न देखें। मुसलमानोंके खिलाफ जो हमले हो रहे हैं ये रुटिन हमले नहीं हैं,ये रुटिन मॉब हिंसा नहीं है.बल्कि एक विचारधाराजनित हिंसा है।हम यहां जो लिख रहे हैं वह इस हिंसा के विचारधारात्मक पहलू को केन्द्र में रखकर लिख रहे हैं। दूसरी बात यह कि कांग्रेस के शासन का विरोध करने का अर्थ यह नहीं है कि लोग विकल्प के रुप में आरएसएस के जुल्मों का समर्थन करें। इससे भी बड़ी बात यह कि आरएसएस की विचारधारा के राष्ट्रव्यापी प्रभाव को देखें।आरएसएस ने लोकतांत्रिक हकों पर सीधे हमले किए हैं और सभी किस्म के बौद्धिक कर्म को निम्नस्तर पर पहुँचा दिया है।अब ज्ञान-विवेक के आधार पर संघी लोग बहस नहीं कर रहे वे गालियां दे रहे हैं या फिर आरोप लगारहे हैं या फिर सीधे शारीरिक हमले कर रहे हैं।इसमें भी उनका सबसे ज्यादा गुस्सा वामपंथियों पर निकल रहा है।वाम के प्रति उनकी घृणा का प्रधान कारण वैचारिक है, वाम के खिलाफ घृणा के कारण ही कारपोरेट घराने उनको पसंद करते हैं।संघियों की वामविरोधी घृणा का स्रोत है कारपोरेट घराने।क्योंकि वे भी वाम से नफरत करते हैं,इस मामले में संघ और कारपोरेट घराने जुडबां भाई हैं।

आरएसएस के नारों और राजनैतिक कारनामों के कारण भारत की आर्थिकदशा लगातार खराब हो रही है। जो लोग आरएसएस से प्रेम करते हैं वे कभी इस बात गौर करें कि आरएसएस की विचारधारा ने भारत के आर्थिक ढांचे को कितने बड़े पैमाने पर नुकसान पहुँचाया है।आरएसएस के लोकतंत्र में उभार को सामान्य राजनीतिक उभार के रूप में न देखें,यह असामान्य और भयानक है। ठीक वैसे ही जैसे स्पेन में फ्रेंको आया था,जर्मनी में हिटलर आया था।लोकतंत्र में इस तरह की संभावनाएं हैं कि मोदीजी फ्रेंको बन जाएं !

आरएसएस के बनाए दो नए मिथ हैं -´भारतीय हिंदुत्व´ और ´भारतीय लोकतंत्र´। वे इन दोनों की महानता बहुत गुणगान करते रहते हैं। पीएम से लेकर मोहन भागवत तक के भाषणों में इन दोनों मिथों को देख सकते हैं। इन दोनों मिथों का संघी फासिज्म से गहरा समंबंध है।इन दोनों मिथों के कारण आज समूची बहस लोकतंत्र के मसलों,मानवाधिकार के मसलों के बाहर कर दी गयी है।इसके अलावा ´हाशिए´के लोगों की लड़ाई और हितों की रक्षाके सवालों को ठेलकर समाज से बाहर कर दिया गया है।इस समय सिर्फ उन दो मिथों पर बातें हो रही हैं जिनका ऊपर जिक्र किया गया है।प्रधानमंत्री से लेकर मंत्रियों तक, मोहन भागवत से लेकर प्रवीण तोगडिया तक इन दोनों मिथों का नया-नया भाष्य रचा जा रहा है।इन दो मिथों की आड़ में सीधे हमले हो रहे हैं।हम कहना चाहते हैं ´भारतीय लोकतंत्र´ महान नहीं है। महान बनाकर लोकतंत्र के मर्म की हत्या की जा रही है,लोकतंत्र को वायवीय बनाया जा रहा है। भारत की जनता को वास्तव अर्थ में लोकतंत्र चाहिए,न कि ´भारतीय लोकतंत्र´।



-´भारतीय हिंदुत्व´ और ´भारतीय लोकतंत्र´ के मिथों की आड़ में ´आक्रामकता´ और ´सैन्य आक्रामकता´की खुलकर वैसे ही हिमायत की जा रही है जैसी एक जमाने में हिटलर ने की थी। हिटलर की नकल करते हुए मोदी के भाषणों को ´राष्ट्रीय आख्यान´ बनाकर पेश किया जा रहा है।आज जरुरत है इन दोनों मिथों के खिलाफ आम जनता को शिक्षित करने और गोलबंद करने की।

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