फासिज्म के मायने क्या हैं इस पर भारत में बहुत बहस है और इस बहस में बड़े बड़े दिग्गज उलझे हुए हैं लेकिन आजतक उसकी कोई सर्वमान्य परिभाषा तय नहीं कर पाए हैं। फासिज्म वह भी है जो हिटलरऔर मुसोलिनी ने किया , फासिज्म वह भी जो आपातकाल में श्रीमती इंदिरा गांधी ने किया,फासिज्म का एक रुप वह भी है जो पीएम नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं। मोदी के फासिज्म की लाक्षणिक विशेषताएँ भिन्न हैं। मोदीजी का फासिज्म विकास और गरीब के कंधों पर सवार है लेकिन इसके प्रशासन के संचालक कारपोरेट घराने हैं।इसकी धुरी है मीडिया प्रबंधन और राज्य के संसाधनों की खुली लूट ।यह अपने विरोधी को राष्ट्रद्रोही , राष्ट्र विरोधी कह कहकर कलंकित करता है,इसके पास मीडिया और साइबर मीडिया की बेशुमार ताकत है।यह ऐसी सत्ता है जो किसी की आवाज नहीं सुनती बल्कि सच यह है यदि जीना चाहते हैं तो सिर्फ उसकी आवाज़ें सुनो।मोदी के शासन में आने के बाद से अहर्निश मोदी की सुनो,मोदी के भक्तों की सुनो।दिलचस्प पहलू यह है कि इस समय मोदी और भक्तों के अलावा कोई नहीं बोल रहा ।सब लोग इनकी ही सुन रहे हैं । जनता बोल नहीं रही। वो सिर्फ सुन रही है और आज्ञा पालन कर रही है।हमारे जैसे लोग जो कुछ कह रहे हैं उसे न तो जनता सुन रही है और न सत्ता सुन रही है सिर्फ हम ही अपनी आवाज सुन रहे हैं।हम तो सहमत को सुना रहे हैं । अपने ही हाथ से अपनी पीठ ठोक रहे हैं। जब जनता न सुने , सरकार न सुने, संवादहीनता हो तो समझो फासिज्म के माहौल में जी रहे हैं।इस माहौल को पैदा करने के लिए प्रत्यक्षत: हक छीनने , या संविधान को स्थगित करने या बर्बर हमले करने की जरूरत नहीं है।
जगदीश्वर चतुर्वेदी। कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। पता- jcramram@gmail.com
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