रविवार, 20 अगस्त 2017

मोदीमोह के छंद से गुज़रते हुए



     प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब भी बोलते हैं तो सवा सौ करोड़ भारतवासियों को सम्बोधित करके बोलते हैं।वे हर इलाके में प्रचलित समस्या को उठाते हैं और उसे स्थानीय भावनाओं से जोड़ते हैं।फलत:मंच पर वे राजनीतिक तौर पर सही नजर आते हैं, सुनने वाला यही कहता है  मोदीजी सही बोल रहे हैं।इस क्रम में जहाँ वे समस्या की ओर व्यापकतम जनता के तबक़ों का ध्यान खींचने में सफल हो जाते हैं वहीं दूसरी ओर जनता को मंत्रमुग्ध कर लेते हैं।
      मोदी के प्रचार में मंत्रमुग्ध करना ही सबसे प्रमुख चीज है। स्थिति यह है सभी विपक्षी नेता तक उनकी भाषणकला का लोहा मानते हैं।मंत्रमुग्ध करने के बाद उनका असली खेल आरंभ होता है ।वह श्रोताओं को बहलाना-फुसलाना शुरू कर देते हैं।वे मंत्रमुग्ध भावबोध को वोट देने की मंशा से जोड़ देते हैं,भाजपा-आरएसएस के लक्ष्यों से जोड़ देते हैं।इस क्रम में जनता यह भूल जाती है कि भाजपा-आरएसएस ने वर्तमान या अतीत में क्या किया ।यही वजह है कि मोदी के राष्ट्रीय क्षितिज पर आने के बाद भाजपा-आरएसएस के वर्तमान और अतीत के कर्म-कुकर्मों पर बहस ही नहीं होती, उसके जनविरोधी -साम्प्रदायिक चरित्र पर बहस नहीं होती।
     मंत्रमुग्ध करके बहलाने-फुसलाने की कला के कारण हमेशा चीजें भविष्य की ओर ठेली जा रही हैं। मोदीजी जो कुछ करेंगे वह भविष्य में सामने आएगा, वर्तमान में उसे मत खोजो।राजनीतिक लक्ष्यों को अर्जित करने को वर्तमान की बजाय भविष्य में ठेलना अपने आपमें सबसे बडा अविवेकवाद है।लेकिन आम जनता को यह अविवेकवाद नजर ही नहीं आता।
   मोदी और आरएसएस का सारा जोर आक्रामक प्रचार अभियान पर है जिससे वे अपनी असफलताओं को आम जनता से छिपाने में सफल रहे हैं।मसलन जो उन्होंने चुनावी वायदे किए थे उनको वे आजतक पूरा नहीं कर पाए ,लेकिन जनता इस सब पर बहस ही नहीं कर रही, वह तो मोदीमोह में डूबी है और सुंदर भविष्य का इंतजार कर रही है, आम जीवन में सामाजिक-आर्थिक तौर पर जो गिरावट आई है उस पर समाज में कहीं पर बहस नहीं हो रही और सारी जनता भविष्य के हवाले कर दी गयी है, यह मोदी के प्रचार अभियान की सबसे बडी सफलता है।
        हम सब जानते हैं कि कांग्रेस और यूपीए की जनविरोधी नीतियों से जनता परेशान थी उसने मजबूरी में , विकल्प के अभाव में भाजपा-मोदी को वोट दिया था।मोदी आम जनता की रेशनल पसंद नहीं हैं बल्कि वे मजबूरी में , विकल्प के अभाव में सत्ता में आए हैं।वहीं दूसरी ओर मोदी के प्रचार अभियान ने विकल्प बनाने में मदद की।
        प्रचार अभियान के जरिए दो तरह के लोगों को ख़ासतौर पर निशाना बनाया गया।एक तरफ भाजपा-आरएसएस के समर्थकों को निशाना बनाया गया वहीं दूसरी ओर तटस्थ  मतदाताओं को निशाना बनाया।इसके लिए बृहत्तर जन आकांक्षाओं को प्रचार अभियान के केन्द्र में रखा गया।
        मोदी के प्रचार अभियान के प्रभाव को उनको मिले वोट की तराज़ू में नहीं तोलना चाहिए, कहने उनको मात्र ३१ प्रतिशत वोट मिले हैं, लेकिन उनके प्रचार के असर को देखना हो तो यहां से देखो कि उन्होंने भाजपा और आरएसएस के बारे में जनता का नजरिया ही बदल दिया।उन्होंने जितने भी राजनीतिक एक्शन किए उसकी संगति में प्रचार मशीन को सक्रिय रखा जिसका उनको लाभ मिला।मसलन् लवजेहाद,गऊ रक्षा, जेएनयू आदि के बारे में उनके राजनीतिक एक्शन को आम लोगों में व्यापक समर्थन मिला जबकि ये तीनों मसले एकसिरे से जनविरोधी और संविधान विरोधी फ्रेमवर्क में चलाए गए।आम लोगों में इन तीनों मसलों पर या तो संघ परिवार के साथ सहमति नजर आई या फिर लोगों ने प्रतिवाद को गंभीरता से नहीं लिया।

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