भारत सरकार ने हाल ही में याहू.गूगल,माइक्रोसॉफ्ट आदि कंपनियों को वह सॉफ्टवेयर प्रदान करने का आदेश दिया है जिसके आधार पर वह उनके सरवर के जरिए नेट पर चल रही भारतीयों की सभी किस्म की गतिविधियों की निगरानी कर सके। उपग्रह संचार ने जिस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को जन्म दिया था उसके साथ सत्ता का अन्तर्विरोध बढ़ता जा रहा है। अमेरिका में भी इंटरनेट और सत्ता के अन्तर्विरोध तीखे हो गए हैं। साइबर कानूनों को कड़ा बनाया जा रहा है। जिससे इंटरनेट पर मुक्त अभिव्यक्ति बाधित होगी। इस काम में इंटरनेट सर्विस प्रदाता कंपनियां सत्ता के चौकीदार की भूमिका अदा कर रही हैं। वे रीयलटाइम में ऑनलाइन पर आने वाले लाखों -करोड़ों संदेशों को विश्लेषित करके सत्ताकेन्द्रों को संप्रेषित कर रहे हैं। पहले किसी को यह समझ में नहीं आया कि इंटरनेट को कैसे नियंत्रित किया जाएगा लेकिन बाद में इसका भी रास्ता निकाल लिया गया । अब इंटरनेट सर्विस प्रदाता कंपनी ही यूजर पर निगरानी करने लगी है।
नये कानून के अनुसार भारत और अमेरिका में इंटरनेट पर ब्लॉग से लेकर फेसबुक तक गुमनाम टिप्पणी लिखना अपराध घोषित होने जा रहा है। प्रशासन चाहता है कि इंटरनेट पर सही नाम से लिखा जाए। ऑनलाइन गुमनामी को खत्म करने के साथ ही इंटरनेट कंपनियों ने एक नया सिस्टम ईजाद किया है जिस पर कनाडा की एक प्राइवेसी वाचडाग संस्था ने लिखा है कि गुमनामी खत्म होते ही प्रत्येक आदमी की 24 घंटे निगरानी करने में मदद मिलेगी। इंटरनेट पर गुमनाम टिप्पणी लिखने वाले लेखकों की प्रकृति क्या है,वे कौन हैं और क्यों लिखते हैं ,इन सबका पता लगा लिया गया है। ट्विटर,ब्लॉग,इंटरनेट, फेसबुक आदि पर जो लोग अनाम टिप्पणियां लिखते हैं उन्हें अब चिह्नित कर लिया गया है। विज्ञान तत्वशास्त्र के विद्वान डेविड मिसकेविज ने अपने अनुसंधान के जरिए अनाम लोगों की पहचान की है। मिसकेविज ने यह रहस्योदघाटन चर्च की एक घरेलू पत्रिका में प्रकाशित लेख में किया है। मिसकेविज का मानना है इंटरनेट पर ‘अनाम’ मुखौटे वाले सबवर्सिव और अराजकतावादी हैं। ये लोग मनोरंजन उद्योग पर आए दिन हमले करते हैं।ये लोग विकीलीक पर भी बेहद सक्रिय हैं। इसके अलावा फेसबुक के मालिकों ने ऐसी तकनीक विकसित की है जिसके तहत यूजर इमेज को कम्प्यूटर पहचान लेगा और उस पर टैग भी लगा देगा। अभी इस तकनीक का प्रयोग अमेरिका में किया जाएगा। फेसबुक के अनुसार अभी वह प्रतिदिन दस करोड़ फोटो पर टैग लगाने का काम कर रहा है। फेस रिकॉगिनीशन प्रोसेस के नाम से यह प्रक्रिया फेसबुक ने आरंभ की है। इस प्रक्रिया का निहितार्थ यह भी है कि फेसबुक पर नकली फोटो के साथ भ्रमण करना अब खतरे से खाली नहीं होगा। प्रत्येक इमेज पर टैग होगा। जब इमेज के साथ कोई टैग लगी है तो आप सहज ही उससे अपने को विच्छिन्न नहीं कर पाएंगे। यह काम फेसबुक का सिस्टम स्वचालित ढ़ंग से करेगा। मसलन किसी नाम के साथ अगर कोई टैग तय हो चुका है तो फिर उसका कोई अन्य दुरूपयोग नहीं कर पाएगा। आप जो भी इमेज पोस्ट करेंगे वह टैग दिखाई जाएगी,आप चाहें तो अपनी टैग में रद्दोबदल कर सकते हैं लेकिन बिना टैग के अब फेसबुक पर कोई इमेज नहीं होगी। इससे फेसबुक नजरदारी बढ़ जाएगी। संबंधित टैग से जुड़ी सूचनाएं स्वतः एक जगह संचित होती जाएंगी। दूसरी ओर एक सर्वे से यह भी पता चला है कि फेसबुक पर आनंद के विषयों का बोलवाला है। वहां पर गंभीर विषयों पर बहुत कम बातें हो रही हैं। मसलन् फेसबुक और ट्विटर पर इराक-अफगानिस्तान युद्ध ,नव्य आर्थिक उदारीकरण, भूमंडलीकरण,मंदी बेकारी, निरूद्योगीकरण ,अमेरिका की आंतरिक राजनीति और देशज राजनीतिक विवाद एकसिरे से गायब हैं।
सोशल नेटवर्क के प्रभाव के बारे में हम जितना जानेंगे उतना ही बच्चों और युवाओं को भी बेहतर ढ़ंग से जान पाएंगे। बच्चों और युवाओं का बहुत बड़ा हिस्सा सोशल नेटवर्क पर विभिन्न किस्म के संचार और संपर्क का काम कर रहा है। मसलन अमेरिका में 75 प्रतिशत युवा (18-24 साल की आयु के) सोशल नेटवर्क पर जाते हैं। 65 साल से ऊपर की आयु के मात्र 7 प्रतिशत लोग ही सोशल नेटवर्क पर जाते हैं। कहने का अर्थ यह है कि सोशल नेटवर्क युवाओं का माध्यम है। जबकि 25-34साल आयु के 57 प्रतिशत,35-44 साल के 30 प्रतिशत,45-54 साल के 19 प्रतिशत,55-64 साल के 10 प्रतिशत लोग सोशल नेटवर्क पर जाते हैं।
विभिन्न सामाजिक नेटवर्क में माइस्पेस पर 50 प्रतिशत,फेसबुक पर 22 प्रतिशत और लिनकेदिन पर 6 फीसदी का प्रोफाइल है। ज्यादातर तरूण अपने परिचितों के साथ ही जुड़ते हैं। 51 फीसदी सोशल नेटवर्क यूजर की दो या उससे ज्यादा ऑनलाइन प्रोफाइल हैं। जबकि 43 प्रतिशत का एक ही प्रोफाइल है।ज्यादातर सोशल नेटवर्क यूजर प्राइवेसी सचेतन हैं। इसके बावजूद यूजरों की वेब पर प्रच्छन्नतःजासूसी जारी है। लेकिन फेसबुक जैसे सोशल नेटवर्क ऑफिसों में समग्र ऑफिस समय का 1.5 फीसदी समय बचाते हैं। यह बात ' नुक्लिस रिसर्च' के पिछले साल कराए सर्वे में सामने आयी है। एक अन्य संस्था मोर्से के सर्वे में यह तथ्य सामने आया है कि ब्रिटिश कंपनियों को फेसबुक जैसे मंचों के जरिए काम करने से सालाना 2.2 बिलियन डॉलर का लाभ हुआ है। यह भी पाया गया है कि छोटे स्तर पर ब्लॉगिंग में खर्च होने वाला समय वस्तुतः समय की बर्बादी है। इसके विपरीत फेसबुक में आप निरंतर संपर्क,संवाद और उच्चकोटि की सर्जनात्मकता बनाए रख सकते हैं। फेसबुक में सर्जनात्मक निरंतरता बनाए रखने की क्षमता है। वह इंटरनेट की सभी विधाओं का निर्धारक है। इंटरनेट में क्या होगा ,ऑनलाइन समूह क्या करेंगे,यूजर कैसे रहे ,उसकी प्राइवेसी क्या है,सार्वजनिक क्या है और यूजर को कैसे बोलना चाहिए,कैसे व्यक्त करना चाहिए,भावों-संवेदनाओं और अनुभूतियों को कैसे व्यक्त करें आदि बातों का निर्धारक फेसबुक है। फेसबुक में सभी पूर्ववर्ती मीडिया और नेट विधाओं का समाहार कर लिया है। अनेक अभिव्यक्ति रूपों को सार्वजनिक कर दिया है।
हम तो किसी सोशल नेटवर्किंग साइट पर हैं ही नहीं।
जवाब देंहटाएंमामला गम्भीर लगता है।
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बेहतर लेखन की ‘अनवरत’ प्रस्तुति।
अब आप अल्पना वर्मा से विज्ञान समाचार सुनिए..
यह नियंत्रण जरूरी भी है नफ़रत फ़ैलाने वाले लोगो को रोकना ही होगा भले ही हम जैसे ब्लागरो को कुछ नुकसान उठाना पड़े
जवाब देंहटाएंअभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर सीधा हमला...
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