पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी असत्य-सत्य के खेल में फंस गयी हैं। वे मंच पर भाषा में खेलती हैं और बाद में फंसती हैं। भाषाखेल खतरनाक होता है , अमूमन इसमें फंसने का खतरा होता है। ममता जब मंच से बोलती हैं तो यह भूल जाती हैं वे मुख्यमंत्री हैं। ममता यह भी भूल गयी हैं कि वाममोर्चे के अत्याचारों से तंग आकर लोगों ने बड़ी आशाओं के साथ उनको जिताया था और यह सोचा था कि उनके नेतृत्व में राज्य सरकार लोकतांत्रिक मान-मर्यादाओं का पालन करते हुए काम करेगी। राज्य में कानून-व्यवस्था का शासन स्थापित होगा। मस्तानों-दादाओं के राज की विदाई होगी। लेकिन ममता बनर्जी की अराजक कार्यशैली ने इन सपनों को नष्ट किया है। आमलोगों में तेजी से असंतोष पैदा हुआ है। एकवर्ग अभी भी ममता से आस लगाए बैठा है कि वे अपनी कार्यशैली को सुधारें। लेकिन ममता का निरंकुश मन नियंत्रण में काम करने को तैयार नहीं लगता।
आज से दो साल पहले ममता राज्य के लोगों का सुंदर सपना थीं और इनदिनों वे दुःस्वप्न की तरह लग रही हैं।पहले उनके भाषण को लोग टीवी पर मन लगाकर सुनते थे ,इनदिनों उनका भाषण ज्योंही टीवी पर आता है दर्शक चैनल बदल लेते हैं।
ममता भूल गयी हैं कि मुख्यमंत्री के तंत्र का सारा हिसाब विभिन्न खातों में दर्ज होता है। वे पहले तृणमूल कांग्रेसनेत्री थीं, वे स्वतंत्र थीं मनमाने काम करने के लिए। वे स्वतंत्र थीं मनमाने ढ़ंग से खर्च करने को। लेकिन मुख्यमंत्री के पास यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। मुख्यमंत्री के पास अबाध अधिकार हैं लेकिन इन अधिकारों के उपयोग-दुरूपयोग का हिसाब रहता है। उनकी हर गतिविधि खाते में दर्ज होती है । उनके काम का अन्य संस्थाएं मूल्यांकन करती हैं। यही वह बिन्दु है जहां ममता फंस गयी हैं। वे राज्य सरकार के कामकाज को अपने दल के कामकाज की तरह चला रही हैं। वे भूल कर रही हैं कि दल में वे सर्वेसर्वा हैं लेकिन मुख्यमंत्री के नाते वे जनता की नजरों में,विपक्ष की नजरों में ऑडीटरों की नजरों में कैद हैं।इनलोगों की सख्त जांच-परख के सामने उनके सारे भाषाखेल की परतें जल्द ही खुल जाती हैं।
ममता और उनके दल को यह भी ध्यान रखना होगा कि असत्य के पैर नहीं होते। असत्य हमेशा निराधार होता है। असत्य को यदि मीडिया या आमसभाओं में बार बार दोहराया जाएगा इससे तालियां मिल सकती हैं,कवरेज मिल सकता है लेकिन सत्य की सृष्टि नहीं हो सकती।
असत्य को यदि राजनीति में विरोधी को परास्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसमें येन-केन प्रकारेण सफलता मिल जाती है तो एक अवधि के बाद आमलोग असत्य को समझ जाते हैं और फिर से सत्य की खोज करने लगते हैं। जिस तरह असत्य का आधार नहीं होता उसी तरह सत्य कभी निराधार नहीं होता। असत्य और सत्य का यह खेल अंततःसत्य को प्रतिष्ठित करता है।
ममता सरकार में कुछ मंत्री हैं जो लगातार असभ्यभाषा का बोल रहे हैं। इनमें मदनमित्र,बेचाराम मन्ना,ज्योतिप्रिय मल्लिक आदि प्रमुख हैं। यह अभी तक रहस्य बना हुआ है कि तृणमूल कांग्रेस के अधिकांश कार्यक्रमों में इन तीनों मंत्रियो को ही क्यों बुलाया जाता है ?
ममता के असत्य प्रचार के जबाब में माकपा ने हमले तेज कर दिए हैं। ममता को यह बात समझनी ही होगी कि जनता के मन को सत्य से जीतते हैं असत्य से नहीं। वाममोर्चे के विगतशासन में आमलोग बेहद कष्ट में थे जिसके कारण वाममोर्चा बुरी तरह चुनाव हारा । लेकिन इस जीत को ठोस सत्य का आवरण पहनाने में ममता असफल रही हैं। वे भूल गयीं कि मुख्यमंत्री झूठ नहीं बोल सकता। उसकी निगरानी होती है। उस पर कई अंकुश लगे हैं। ममता अपने अंदर झांककर देखें कि उनसे कहां गलती हो रही है।
ममता ने सत्ता संभालते ही राज्य की अर्थव्यवस्था के बारे में आम लोगों से सत्य नहीं बोला। राज्य की अर्थव्यवस्था के बारे में उनके बताए सारे आंकड़े और दावे सही नहीं हैं। अर्थव्यवस्था के बारे में असत्य कहने से उनकी राजनीतिक साख ही खतरे में पड़ गयी है। उनका मानना है राज्य में अर्थसंकट है और केन्द्र उनकी मदद नहीं कर रहा। विगत वामशासन ने राज्य की अर्थव्यवस्था को खोखला कर दिया और सरकार के पास एक भी पैसा नहीं है।
वामशासन में लंबे समय तक वित्तमंत्री रहे असीमदास गुप्ता ने इस संदर्भ में जो तथ्य पेश किए हैं उनकी रोशनी में ममता के दावों में दम नजर नहीं आता। असीमदास गुप्ता का मानना है राज्य की सकल आय 100366 करोड़ रूपये है और सकल खर्चा है 100375 करोड़ रूपये। यह आंकड़ा ममता सरकार के वित्तमंत्री ने 2012-13 के राज्य बजट में विधानसभा में पेश किया है। इस तथ्य से ममता के दावे का खण्डन होता है।
ममता सरकार की अराजक कार्यशैली के कारण विभिन्न विकास प्रकल्पों के लिए धन का अबाध फ्लो बाधित हुआ है। मसलन् विकास प्रकल्पों के लिए जो धन पहले दिया गया है उसके खर्चे का ब्यौरा जब तक संबंधित विभाग में जमा नहीं होता तब तक अगली किश्त जारी नहीं होती। ऐसी स्थिति में विकास प्रकल्प बंद पड़े हैं। ममता सरकार की अकर्मण्यता है कि विभिन्न विभागों में खर्चे का हिसाब जमा नहीं हो पा रहा । इसमें पुराने वामशासन की कोई भूमिका नहीं है। केन्द्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के लिए आवंटित धन की भी यही स्थिति है।
अधिकांश केन्द्रीय योजनाएं ठप्प पड़ी हैं क्योंकि आवंटित धन का राज्य सरकार इस्तेमाल ही नहीं कर पा रही है। मसलन् राज्य के पिछड़े इलाकों के विकास के लिए केन्द्र सरकार ने 8,756 करोड़ रूपये सन् 2011 सत्र के लिए आवंटित किए थे।लेकिन राज्य सरकार इस पैसे का इस्तेमाल ही नहीं कर पायी। इस योजना के 2500 करोड़ रूपये की पहली किश्त सन् 2012 की जनवरी में आई थी लेकिन इनके खर्चे का हिसाब अभी तक केन्द्र सरकार को नहीं भेजा गया है।
असल में इस योजना के लिए आवंटित धन को राज्य सरकार समुचित ढ़ंग से खर्च करने में असफल रही है। पिछली आवंटित राशि के बिल जमा किए बगैर ममता सरकार ने अगली किश्त के तौर पर कुछ माह पहले मात्र 750 करोड़ रूपये की मांग की है। जाहिरातौर पर केन्द्र यह राशि नहीं दे सकता ,क्योंकि पहले जो धन दिया है उसका हिसाब अभी तक सरकार ने नहीं दिया है।
आज से दो साल पहले ममता राज्य के लोगों का सुंदर सपना थीं और इनदिनों वे दुःस्वप्न की तरह लग रही हैं।पहले उनके भाषण को लोग टीवी पर मन लगाकर सुनते थे ,इनदिनों उनका भाषण ज्योंही टीवी पर आता है दर्शक चैनल बदल लेते हैं।
ममता भूल गयी हैं कि मुख्यमंत्री के तंत्र का सारा हिसाब विभिन्न खातों में दर्ज होता है। वे पहले तृणमूल कांग्रेसनेत्री थीं, वे स्वतंत्र थीं मनमाने काम करने के लिए। वे स्वतंत्र थीं मनमाने ढ़ंग से खर्च करने को। लेकिन मुख्यमंत्री के पास यह सुविधा उपलब्ध नहीं है। मुख्यमंत्री के पास अबाध अधिकार हैं लेकिन इन अधिकारों के उपयोग-दुरूपयोग का हिसाब रहता है। उनकी हर गतिविधि खाते में दर्ज होती है । उनके काम का अन्य संस्थाएं मूल्यांकन करती हैं। यही वह बिन्दु है जहां ममता फंस गयी हैं। वे राज्य सरकार के कामकाज को अपने दल के कामकाज की तरह चला रही हैं। वे भूल कर रही हैं कि दल में वे सर्वेसर्वा हैं लेकिन मुख्यमंत्री के नाते वे जनता की नजरों में,विपक्ष की नजरों में ऑडीटरों की नजरों में कैद हैं।इनलोगों की सख्त जांच-परख के सामने उनके सारे भाषाखेल की परतें जल्द ही खुल जाती हैं।
ममता और उनके दल को यह भी ध्यान रखना होगा कि असत्य के पैर नहीं होते। असत्य हमेशा निराधार होता है। असत्य को यदि मीडिया या आमसभाओं में बार बार दोहराया जाएगा इससे तालियां मिल सकती हैं,कवरेज मिल सकता है लेकिन सत्य की सृष्टि नहीं हो सकती।
असत्य को यदि राजनीति में विरोधी को परास्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसमें येन-केन प्रकारेण सफलता मिल जाती है तो एक अवधि के बाद आमलोग असत्य को समझ जाते हैं और फिर से सत्य की खोज करने लगते हैं। जिस तरह असत्य का आधार नहीं होता उसी तरह सत्य कभी निराधार नहीं होता। असत्य और सत्य का यह खेल अंततःसत्य को प्रतिष्ठित करता है।
ममता सरकार में कुछ मंत्री हैं जो लगातार असभ्यभाषा का बोल रहे हैं। इनमें मदनमित्र,बेचाराम मन्ना,ज्योतिप्रिय मल्लिक आदि प्रमुख हैं। यह अभी तक रहस्य बना हुआ है कि तृणमूल कांग्रेस के अधिकांश कार्यक्रमों में इन तीनों मंत्रियो को ही क्यों बुलाया जाता है ?
ममता के असत्य प्रचार के जबाब में माकपा ने हमले तेज कर दिए हैं। ममता को यह बात समझनी ही होगी कि जनता के मन को सत्य से जीतते हैं असत्य से नहीं। वाममोर्चे के विगतशासन में आमलोग बेहद कष्ट में थे जिसके कारण वाममोर्चा बुरी तरह चुनाव हारा । लेकिन इस जीत को ठोस सत्य का आवरण पहनाने में ममता असफल रही हैं। वे भूल गयीं कि मुख्यमंत्री झूठ नहीं बोल सकता। उसकी निगरानी होती है। उस पर कई अंकुश लगे हैं। ममता अपने अंदर झांककर देखें कि उनसे कहां गलती हो रही है।
ममता ने सत्ता संभालते ही राज्य की अर्थव्यवस्था के बारे में आम लोगों से सत्य नहीं बोला। राज्य की अर्थव्यवस्था के बारे में उनके बताए सारे आंकड़े और दावे सही नहीं हैं। अर्थव्यवस्था के बारे में असत्य कहने से उनकी राजनीतिक साख ही खतरे में पड़ गयी है। उनका मानना है राज्य में अर्थसंकट है और केन्द्र उनकी मदद नहीं कर रहा। विगत वामशासन ने राज्य की अर्थव्यवस्था को खोखला कर दिया और सरकार के पास एक भी पैसा नहीं है।
वामशासन में लंबे समय तक वित्तमंत्री रहे असीमदास गुप्ता ने इस संदर्भ में जो तथ्य पेश किए हैं उनकी रोशनी में ममता के दावों में दम नजर नहीं आता। असीमदास गुप्ता का मानना है राज्य की सकल आय 100366 करोड़ रूपये है और सकल खर्चा है 100375 करोड़ रूपये। यह आंकड़ा ममता सरकार के वित्तमंत्री ने 2012-13 के राज्य बजट में विधानसभा में पेश किया है। इस तथ्य से ममता के दावे का खण्डन होता है।
ममता सरकार की अराजक कार्यशैली के कारण विभिन्न विकास प्रकल्पों के लिए धन का अबाध फ्लो बाधित हुआ है। मसलन् विकास प्रकल्पों के लिए जो धन पहले दिया गया है उसके खर्चे का ब्यौरा जब तक संबंधित विभाग में जमा नहीं होता तब तक अगली किश्त जारी नहीं होती। ऐसी स्थिति में विकास प्रकल्प बंद पड़े हैं। ममता सरकार की अकर्मण्यता है कि विभिन्न विभागों में खर्चे का हिसाब जमा नहीं हो पा रहा । इसमें पुराने वामशासन की कोई भूमिका नहीं है। केन्द्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के लिए आवंटित धन की भी यही स्थिति है।
अधिकांश केन्द्रीय योजनाएं ठप्प पड़ी हैं क्योंकि आवंटित धन का राज्य सरकार इस्तेमाल ही नहीं कर पा रही है। मसलन् राज्य के पिछड़े इलाकों के विकास के लिए केन्द्र सरकार ने 8,756 करोड़ रूपये सन् 2011 सत्र के लिए आवंटित किए थे।लेकिन राज्य सरकार इस पैसे का इस्तेमाल ही नहीं कर पायी। इस योजना के 2500 करोड़ रूपये की पहली किश्त सन् 2012 की जनवरी में आई थी लेकिन इनके खर्चे का हिसाब अभी तक केन्द्र सरकार को नहीं भेजा गया है।
असल में इस योजना के लिए आवंटित धन को राज्य सरकार समुचित ढ़ंग से खर्च करने में असफल रही है। पिछली आवंटित राशि के बिल जमा किए बगैर ममता सरकार ने अगली किश्त के तौर पर कुछ माह पहले मात्र 750 करोड़ रूपये की मांग की है। जाहिरातौर पर केन्द्र यह राशि नहीं दे सकता ,क्योंकि पहले जो धन दिया है उसका हिसाब अभी तक सरकार ने नहीं दिया है।