टाइम्स नाउ टीवी चैनल पर वक्ताओं और एंकर अर्णव गोस्वामी की अ-लोकतांत्रिक चाल देखकर यही नज़र आ रहा है कि जनहितों के लिए संघर्ष करने वालों को एकओर मोदी सरकार से लड़ना होगा वहीं दूसरी ओर कारपोरेट न्यूज़ टीवी चैनलों के प्रायोजित टॉक शो और न्यूज़ प्रसारण से भी लड़ना होगा। आज अर्णव गोस्वामी जिस तरह सरकारीभोंपू की तरह बोल रहा था उसने डीडी न्यूज़ को भी लज्जित कर दिया, मज़ेदार बात यह है डीडी न्यूज़ पर मोदीभक्ती कम दिख रही है इसके विपरीत टाइम्स नाउ आदि निजी चैनलों पर सरकारभक्ति का नशा छाया हुआ है ।
अर्णव गोस्वामी की बातों को सुनकर लग रहा था कि मोदी सरकार ढेर सारे विकासमूलक और भ्रष्टाचारविरोधी काम करना चाहती है लेकिन विपक्ष करने नहीं दे रहा ! यह अपने आप में बेबुनियाद तर्क है । संसद चले या न चले , इसे लेकर मोदी सरकार गंभीर नहीं रहे ।संसदीय गरिमा और संसद के प्रति मोदी सरकार न तो गंभीर है और न ज़िम्मेदार है। महंगाई, ग़रीबी, मिड डे मिल , ग़रीबों के लिए घर बनाने आदि कार्यों को लेकर गंभीर है तो उसे किसने काम करने से रोका है। यह सरकार अध्यादेश के ज़रिए काम करना चाहती है। सरकार नहीं चाहती कि लोकतांत्रिक ढंग से शासन और संसद चले। लोकतांत्रिक ढंग से सरकार चल रही होती तो पीएम को सभी मंत्रालयों के फ़ैसले लेने का हक़ नहीं दिया जाता। मोदी की बुनियादी प्रकृति अ-लोकतांत्रिक और सर्वसत्तावादी है ।
मोदी के सत्ता में आने के बाद से सब फ़ैसले प्रधानमंत्री कार्यालय में लिए जा रहे हैं। यहाँ तक कि विदेश,गृह और वित्त मंत्रालय के पास भी कोई स्वायत्तता नहीं बची है । ऐसी स्थिति में पीएम मोदी को लोकतंत्र और विकास का पक्षधर बताना और यह कहना कि विपक्ष उसे काम नहीं करने दे रहा है , यह आरोप बेबुनियाद है। सच यह है मोदी किसी भी क़िस्म के लोकतंत्र और स्वायत्तता को अपने मंत्रियों तक को देना नहीं चाहते। हाल ही में नागा समझौते की घोषणा की गयी लेकिन इस काम में विदेश और गृहमंत्री ग़ायब थे, पड़ोसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कोई सलाह-मशविरा करना जरुरी नहीं समझा गया । यह सब ग़लत है ।
मोदी यदि लोकतांत्रिक होते तो भूमि अधिग्रहण बिल बार बार अध्यादेश के ज़रिए लागू न करते। वे संसदीय समिति को पहले ही दिन अपना प्रस्ताव भेज सकते थे लेकिन उन्होंने यह सामान्य सा काम नहीं किया , ऐसी स्थिति में यह कहना कि मोदी सरकार लोकतांत्रिक ढंग से काम करना चाहती है, पूरी तरह ग़लत है।
संसद में विपक्ष ने लगातार प्रतिवाद करके सही क़दम उठाया है, इस तरह के प्रतिवाद संसद के उदय के समय से होते रहेहैं। जिस तरह लोकसभा स्पीकर ने कांग्रेस के सांसदों को थोक में संसद से निष्कासित किया है वह भी संसदीय नीति का अंग है। ऐसे में संसद चलेगी या नहीं यह तो सरकार को ही सुनिश्चित करना होगा।
मोदी सरकार की मुश्किल है हठधर्मिता। सरकार तय कर चुकी है कि वह विपक्षी दलों की कोई माँग नहीं मानेगी, लेकिन इससे गतिरोध बढ़ेगा और हर स्तर पर टकराव भी बढ़ेगा । सरकार ने टकराव और हठधर्मिता के बल पर यदि देश चलाने का मन बना लिया है तो फिर विपक्ष बीच में कहाँ आता है । संसद बीच में कहाँ आती है, दनादन अध्यादेश निकालकर सरकार काम कर सकती है ।
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